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आत्म-विचार से आत्म-बोध तक || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
...ये सारे विचार किस श्रेणी के हैं? कहाँ आएंगे? आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) में| ठीक है? और ये हम सब अकसर करते ही रहते हैं, पर इसको हम पूरी ताकत के साथ नहीं करते| जब अपने बारे में यही विचार पूरी शिद्दत के साथ किया जाता है, तो धीरे-धीरे विचार छटने लगता है, और एक स्पष्टता आने लगती है| प्रयोग तुम विचार का ही कर रहे हो, पर इतनी ताकत से प्रयोग किया, इतनी आतुरता है समझ जाने की, कि अब सोच धीरे-धीरे छटना शुरू हो जाएगी, और स्पष्टता आने लगेगी, और जब स्पष्टता आने लग जाती है तब विचार की कोई आवश्यकता ही नहीं है| विचार जैसा मैंने कहा कि छटने लग जाता है, जैसे बादल छटते हैं, और बात खुल जाती है, बिल्कुल स्पष्ट| ये स्थिति होती है आत्म-बोध की, ये सेल्फ-अवेयरनेस कहलाती है| हम भूल करते हैं, हम अकसर आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) को आत्म-बोध(सेल्फ-अवेयरनेस) समझ लेते हैं| याद रखना आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) में अपने ही बारे में विचार करने वाला मन मौजूद है, अहंकार मौजूद है, वो अहंकार ही विचार कर रहा है, वही केंद्र है विचार का| तुम वहाँ बैठे हुए हो, और वहाँ बैठ कर अपने जीवन को देख रहे हो| आत्म-बोध(सेल्फ-अवेयरनेस) में जो केंद्र था अहंकार का, वो केंद्र ही मिट गया| तो इसीलिए जो केंद्र आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) में मौजूद है वो केंद्र आत्म-बोध(सेल्फ-अवेयरनेस) में मौजूद ही नहीं है, ये दोनों बहुत अलग-अलग बातें हैं| आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियस) तो हर कोई होता है, तुम देखो चारों तरफ भीड़ को, वो बड़ी आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियस) है| ‘मेरी छवि कैसी बन रही है? ...आत्म-विचार से आत्म-बोध तक || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)...
ज्ञान और बोध में अंतर || (2016)
...मैं दूसरी-तीसरी बार बोल रहा हूंँ: आत्म बोध का अर्थ आत्मा का बोध नहीं होता। आत्मा का कुछ नहीं हो सकता, ना ज्ञान ना बोध। ...ज्ञान और बोध में अंतर || (2016)...
बोध क्या है? बोध और ज्ञान में क्या अंतर है? || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)
...बोध क्या है? बोध और ज्ञान में क्या अंतर है? || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)...बोध ‘ज्ञान’ नहीं होता, बोध एक तरह की रिक्तता होती है, शून्यता होती है। ...
कर्म नहीं, बोध || आत्मबोध पर (2019)
...अरे, अज्ञान से ही कर्म निकल रहा है, ऐसा कर्म तो अज्ञान को और पुख़्ता करेगा न? और अगर कर्म बोध से निकल रहा है, तो बोध केंद्र है और बोधजनित कर्म उसका उत्पाद है; केंद्र पर बैठा है बोध और उस बोध से निकल रहा है सुंदर कर्म, अब बताओ, मिटाने के लिए अज्ञान बचा कहाँ? ...कर्म नहीं, बोध || आत्मबोध पर (2019)...
बोध और शान्ति पाए नहीं जाते
...बोध और शान्ति पाए नहीं जाते...
आत्मा: कई सवाल || (2020)
...आत्मा: कई सवाल || (2020)...’ बोध मात्र हूँ मैं, और बोध का मतलब क्या है? सब सूचनाओं के पार जो जानना है, माने सूचनाओं से मुक्ति, सीधी सी बात। ...
आत्मा का क्या रूप है? (2018)
...तो ये मत पूछो कि “आत्मा का बोध कैसे हो?” आत्मा का बोध नहीं होता, आत्मा ही बोध होती है। ...आत्मा का क्या रूप है? (2018)...
जो त्याग बोध से उठे || श्वेताश्वतर उपनिषद् पर (2021)
...दूसरी ओर, पूर्ण चैतन्य में भी आप नहीं पीते पर आप बोध के कारण नहीं पीते, बोध के साथ नहीं पीते, यह अंतर है। ...जो त्याग बोध से उठे || श्वेताश्वतर उपनिषद् पर (2021)...
बोध के लिए अभी कितनी यात्रा बाकी है? || (2019)
... प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, क्या यह पता लगाया जा सकता है कि बोध की प्राप्ति में अभी कितनी यात्रा बची है, या किसकी कितनी यात्रा हो चुकी है? ...बोध के लिए अभी कितनी यात्रा बाकी है? || (2019)...
तुम, तुम्हारा बोध, तुम्हारी शोभा
...अनुवाद: अज्ञान मात्र की निवृत्ति होते ही, तथा स्वरूप का बोध होते ही, दृष्टि का आवरण भंग हो जाता है और तत्वज्ञ पुरुष शोकरहित होकर शोभायमान होते हैं। ...तुम, तुम्हारा बोध, तुम्हारी शोभा...
आत्म-छवि है मिथ्या; करो आत्मा की जिज्ञासा || आचार्य प्रशांत (2015)
...कोई ऐसी मशीन विकसित कर दीजिए, जिसमें बोध की क्षमता हो। जो समझ सकती हो कि मैं क्या कह रहा हूँ, और जिसमें प्रेम उठता हो, जिसमें उल्लास उठता हो। ...आत्म-छवि है मिथ्या; करो आत्मा की जिज्ञासा || आचार्य प्रशांत (2015)...
बोध सशक्त प्रेरणा है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
...श्रोता: अहंकार आ गया| वक्ता: बात पकड़ो, करीब-करीब बात यही है| आत्म-सम्मान को ठेस पहुँच गयी| श्रोता: सर किसे ठेस पहुँच गयी? ...बोध सशक्त प्रेरणा है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)...
आत्म-ज्ञान ही आत्म-सम्मान || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
... प्रश्न : जीवन में आत्म-सम्मान कितना ज़रुरी है? वक्ता : सुधांशु पूछ रहे हैं कि जीवन में आत्म-सम्मान कितना ज़रूरी है? ...आत्म-ज्ञान ही आत्म-सम्मान || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)...
आत्मा क्या, जीवात्मा क्या? क्या आत्मा का पुनर्जन्म होता है? || (2019)
...आत्मा अशांत कैसे हुई भई? और आत्मा तो निर्वैयक्तिक है, किसी की व्यक्तिगत कैसे हो गई आत्मा, कि उसकी आत्मा, मेरी आत्मा, तेरी आत्मा। ...आत्मा क्या, जीवात्मा क्या? क्या आत्मा का पुनर्जन्म होता है? ...
आत्म-साक्षात्कार का झूठ
...तो तुम सकारात्मक भाषा का इस्तेमाल करना चाहते हो, तो तुम कहना चाहते हो, “वहाँ भी आत्मा, यहाँ भी आत्मा, इसकी आत्मा, उसकी आत्मा, इधर-उधर, दाएँ -बाएँ, ऊपर-नीचे; सर्वत्र आत्मा-ही-आत्मा।...आत्म-साक्षात्कार का झूठ...
चलो ज्ञान में, पर स्थित बोध में रहो || (2014)
...जब तक शरीर है, ज्ञान के लिए पूरा स्थान है, ज्ञान की आवश्यकता है, सब कुछ ज्ञान ही ज्ञान है। मन ज्ञान में रहे, बोध में डूबा हुआ। मन ज्ञान का प्रयोग कर ले परन्तु बोध की स्थिरता में। ...चलो ज्ञान में, पर स्थित बोध में रहो || (2014)...
बोध और परितोष || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2015)
...मन की भी आख़िरी इच्छा थम जाने की ही है| मन की आख़िरी इच्छा भी यही है कि थम जाऊँ| जब आख़िरी इच्छा उसकी यही है कि थम जाऊँ, तो थम ही जाओ| सारा जो बोध-साहित्य है, बस वो यही है कि अंततः तुम चाहते ही यही हो कि थम जाऊँ, तो थम ही जाओ ना! ...बोध और परितोष || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2015)...
बोध, विचार, और कर्म || आचार्य प्रशांत (2014)
...बोध, विचार, और कर्म || आचार्य प्रशांत (2014)...
बोध क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
...तो परिवर्तनीय होता है, उसमें शून्य से दो-सौ तक कुछ भी गणना हो सकती है| जिस ‘इंटेलिजेंस’ की मैं बात कर रहा हूँ, इसमें या तो कुछ होगा या कुछ भी नहीं होगा, शून्य या एक| जैसे की अभी, या तो तुम ध्यान में हो या नहीं हो, या तो स्पष्टता से सुन पा रहे हो या नहीं सुन पा रहे हो| सुन पा रहे हो तो ‘एक’ और नहीं सुन पा रहे हो तो ‘शून्य’| इसमें कोई बीच का तल नहीं है| ध्यान का अर्थ है, या तो तुमने जान ही लिया, या तुम अपने विचारों में खोए रहे| इसमें बीच का कुछ नहीं| इसलिए जिस ‘इंटेलिजेंस’ की मैं बात कर रहा हूँ उसे बोध या समझ भी कहते हैं| तुम या तो समझते हो या नहीं समझते हो, बीच का कुछ नहीं है| तो ‘इंटेलिजेंस’ है समझ, दृष्टा होना, साक्षी होना| और वो या तो तुम होते हो, या नहीं होते, इसमें बीच का कुछ नहीं| समझ गए? ...बोध क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)...
बोध ही जीवन है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
...ठीक है आँखें बाहर को देख रहीं हैं और आँखों को जो कुछ दिखाई देगा वो बाहर का ही होगा| पर आँखों ने जो कुछ देखा, उसको समझने वाला, उसको जान जाने वाला, उसका बोध कर लेने वाला वो बाहरी नहीं हो सकता| वो बाहरी नहीं हो सकता| (हँसते हुए) पर वो तुम्हारा भी नहीं हो सकता| क्योंकि तुम जिस सब को अपना बोलते हो, वो क्या है ? ...बोध ही जीवन है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)...
बोध खरीदा नहीं जाता || आचार्य प्रशांत (2014)
...इस तरीके से तुम्हें विज्ञान का ज्ञान मिल सकता है, गणित का ज्ञान मिल सकता है, भौतिकी का ज्ञान मिल सकता है, पर जीवन का ज्ञान तो गुरु से ही मिलता है| और वहाँ पर रवैया बिल्कुल दूसरा रखना होता है, बिल्कुल ही दूसरा रखना होता है|दूसरी ओर गुरु का भी दायित्व है ये देखना कि शिष्य को उससे घृणा ही न हो जाये| और शिष्य को भी ये देखना है कि गुरु-गुरु होता है| असल में जबसे शिक्षा व्यवसाय बनी है, तबसे तुम छात्रों को लगने लग गया है कि हर कोई बिकाऊ है| तुमको लगने लग गया है कि तुम जो कोर्स कर रहे हो, वो तुमने खरीदा है कुछ पैसे दे कर| तुम सोचते हो कि हमने पैसे दिए हैं इसलिए हमें ये कोर्स कराया जा रहा है| तो कहीं न कहीं मन में ये बात बैठी हुई है कि हमने ये कोर्स ‘ख़रीदा’ है| ये गुरु नहीं, विक्रेता है जो हमें सेवा-प्रदान कर रहा है| गुरु सेवा-प्रदाता नहीं होता| गुरु तुम्हें सेवा-प्रदान करने नहीं आया है| मैं फिर से कह रहा हूँ कि विज्ञान का शिक्षक विक्रेता हो सकता है, जीवन-शिक्षा का शिक्षक विक्रेता नहीं, गुरु होता है| और तुम अगर ये नज़रिया रख कर सेशन में जाओगे कि वह शिक्षक आया था और मुझे उसकी प्रतिपुष्टि(फीडबैक) देनी है, कि हम उनके पढ़ाने का मूल्यांकन करेंगे, तो उससे तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा| ये नज़रिया, ये उपभोक्ता वाली मानसिकता इतनी गहरी है कि मैंने जो ई-ग्रुप्स बनाये हैं संवाद वाले, उसमें एक कॉलेज के एक -दो धुरंधर छात्रों ने मुझसे सवाल किया कि मैंने उनको क्यों नहीं शामिल किया, जैसे की यह मेरी उनके प्रति जवाबदेही हो| गुरु होने के नाते ये तो मेरी मर्ज़ी है कि मैं किन छात्रों को शामिल करूँ या न करूँ| पर देख रहे हो न, जैसे कि तुम पूछते हो कि मेरा पिज़्ज़ा तीस मिनट में क्यों नहीं आया, ठीक उसी तरह से वो पूछ रहे हैं कि उन्हें भी क्यों नहीं शामिल किया गया है| बोध खरीदा नहीं जाता है| चाहे वो तुम्हारा जीवन-विद्या कोर्स हो, या चाहे ये बोध-शिविर हो, यह तुमने खरीदा नहीं है पैसे देकर| यह तो अनुग्रह होता है, कृपा होती है| तुम करोड़ रुपये दे दो, तुम्हें नहीं मिलेगा| यह ज्ञान खरीदा ही नहीं जा सकता | गुरु और शिष्य में एक अच्छा सम्बन्ध हो तो उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता| वो दुनिया के रिश्तों में सबसे अद्भुत रिश्ता है क्योंकि उसमें कोई खून का रिश्ता नहीं है| उसमें कोई भोग का रिश्ता नहीं है| वो ज्योति से ज्योति जलने वाला रिश्ता है| तो उससे सुन्दर रिश्ता कोई हो नहीं सकता| (हँसते हुए) और वही रिश्ता अगर विक्रेता और ग्राहक का रिश्ता बन जाए तो उससे बेहुदा रिश्ता कोई नहीं हो सकता | -‘ज्ञान सेशन’ पर आधारित | स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त है | ...बोध खरीदा नहीं जाता || आचार्य प्रशांत (2014)...
न भाग्य न कर्म, मात्र बोध है मर्म || (2014)
...न भाग्य न कर्म, मात्र बोध है मर्म || (2014)...
अन्तर्भाव बोध नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
...बोध अंतर्भाव नहीं है। बोध तुम्हारी भावनायें भी नहीं है। ...अन्तर्भाव बोध नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)...
शिवलिंग: बहस से पहले बोध || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
...हम कौन हैं? मन। साजन माने आत्मा। ये भक्ति में भी जितने गीत, जितने भजन हैं वो सब मन की पुकार हैं आत्मा के प्रति। ...शिवलिंग: बहस से पहले बोध || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)...
आत्मा का अनुभव कैसे करें? || आचार्य प्रशांत (2019)
...आत्मा का अनुभव कैसे करें? || आचार्य प्रशांत (2019)...कृष्ण यही कह रहे हैं कि बोध जैसा कुछ होता है, सत्य जैसा कुछ होता है, प्रेम जैसा कुछ होता है, और ये भौतिक नहीं है। ...
असली आज़ादी है आत्मा || युवाओं के संग (2015)
...तीन तलों पर हम होते हैं; १. शरीर २. मन ३. आत्मा आत्मा परम स्वतंत्र है, बाँधी जा नहीं सकती। ...असली आज़ादी है आत्मा || युवाओं के संग (2015)...
आत्मा परमात्मा जीवात्मा - एक हैं? अलग हैं? || (2020)
...आत्मा परमात्मा जीवात्मा - एक हैं? अलग हैं? || (2020)...पर आत्मा बोले या परम आत्मा, आशय सत्य से ही है, आत्मा मात्र। ...
समय या तो बोध में रुकता है या मूर्छा में || आचार्य प्रशांत (2013)
...समय या तो बोध में रुकता है या मूर्छा में || आचार्य प्रशांत (2013)...
बोध में स्मृति का क्या स्थान है? || आचार्य प्रशांत (2015)
...बोध में स्मृति का क्या स्थान है? || आचार्य प्रशांत (2015)...ऐसा नहीं है कि नहीं हो सकता। कोई यह न सोचे कि बोध के क्षण में, कि समाधि के क्षण में यादें विलुप्त हो जाती हैं। ...
शरीर, मन, आत्मा || (2016)
...ख़ुद गए थे और कहीं देखकर आए थे कि तीन पेड़ों पर तीन अलग-अलग फल हैं - शरीर, मन और आत्मा। कुछ पता है आपको शरीर का? आत्मा से क्या परिचय है आपका? ...शरीर, मन, आत्मा || (2016)...
प्रेम और बोध साथ ही पनपते हैं || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)
...“मत्तो भवति, स्तब्धो भवति, आत्मा रामो भवति”| असली प्रेम तभी जानना जब ऐसी स्तब्धता आ जाए कि ये पूछा-पूछी ही गई| किसको प्रेम हुआ है? ...प्रेम और बोध साथ ही पनपते हैं || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2014)...
आत्म-सम्मान और अहंकार || आचार्य प्रशांत (2014)
...‘रेस्पेक्ट’ का मतलब है बोध, जानना, करीब जाना। पर हमने ‘रेस्पेक्ट’ का अर्थ निकाल दिया है आदर। ...आत्म-सम्मान और अहंकार || आचार्य प्रशांत (2014)...
आत्मा न तो शरीर में रहती है, न शरीर का आत्मा से कोई संबंध है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता (2023)
...आत्मा अनंत और निरंजन है। ◾ मेरी-तेरी आत्मा जैसा कुछ भी नहीं होता। ...आत्मा न तो शरीर में रहती है, न शरीर का आत्मा से कोई संबंध है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता (2023)...
क्या जीवन के अनुभवों से बोध प्राप्त हो सकता है? || आचार्य प्रशांत (2016)
...क्या जीवन के अनुभवों से बोध प्राप्त हो सकता है? || आचार्य प्रशांत (2016)...
ध्यान संकल्प है बोध में उतरने का || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
...मन को ऐसी स्थितियाँ देना, मन में यह संकल्प जागृत करना कि ‘मैं समझूँ, मैं जानूँ’, यह हमारे ही बस में है। यहाँ (बोध स्थल) पर आना, आने से पहले पढ़ कर आना, आ करके शांत बैठ जाना, सही समय पर आना–यह समझ के लक्षण नहीं हैं, पर यह संकल्प के लक्षण ज़रूर हैं। ...ध्यान संकल्प है बोध में उतरने का || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)...
आत्मा न हो तो शरीर से कौन प्रेम करेगा? || आचार्य प्रशांत (2014)
...इसका अर्थ ये है कि अगर प्रेम की अभीप्सा उठती है मन में तो इतना निश्चय जान लीजिए कि बिना आत्म बोध के वो आपको नहीं मिलेगा। आपको बड़ा भ्रम है अगर आप सोचते है कि आप बिना स्वयं को जाने, सत्य को जाने, बिना पूरे तरीक़े से जाग्रत हुए प्रेमी हो सकते हैं। ...आत्मा न हो तो शरीर से कौन प्रेम करेगा? || आचार्य प्रशांत (2014)...
आत्मा ऐसा नहीं करती मृत्यु के बाद || आचार्य प्रशांत (2019)
...तो अध्यात्म प्रेम की और बोध की और शांति की बात कर लेगा, यह बात विज्ञान के आगे की हैं। ...आत्मा ऐसा नहीं करती मृत्यु के बाद || आचार्य प्रशांत (2019)...
आत्मा ऐसा नहीं करती मृत्यु के बाद || आचार्य प्रशांत (2019)
...तो अध्यात्म प्रेम की और बोध की और शांति की बात कर लेगा, यह बात विज्ञान के आगे की हैं। ...आत्मा ऐसा नहीं करती मृत्यु के बाद || आचार्य प्रशांत (2019)...
आत्मा और जगत का क्या सम्बन्ध है? || (2018)
...आत्मा और जगत का क्या सम्बन्ध है? || (2018)...तो दोनों ही बातें क्या हो गईं? आत्मा हो गईं। तो आत्मा जब निराकार है, तो सत्य है। ...
आत्मा - निर्गुण होते हुए भी गुणवान || तत्वबोध पर (2019)
...गुरु शंकराचार्य जी ने आत्मा को इस तरह परिभाषित किया है – "स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर से जो पृथक है, जो तीनों अवस्थाओं का साक्षी है तथा जो सच्चिदानंदस्वरूप है, वह आत्मा है”, और वहीं यह भी कहा है कि "स्थूल शरीर अभिमानी आत्मा को विश्व कहा जाता है, सूक्ष्म शरीर अभिमानी आत्मा को तैजस तथा कारण शरीर अभिमानी आत्मा को प्राज्ञ कहा जाता है।...आत्मा - निर्गुण होते हुए भी गुणवान || तत्वबोध पर (2019)...
AP Circle - तत्सत्यं स आत्मा
...AP Circle - तत्सत्यं स आत्मा...जो आत्मा है, वही सत्य है। आत्मा के अलावा कोई सत्य नहीं। ...
अद्वैत बोध शिविर - अवलोकन सत्र 2 || आचार्य प्रशांत (2014)
...अद्वैत बोध शिविर - अवलोकन सत्र 2 || आचार्य प्रशांत (2014)...
जहाँ आत्मा है, मात्र वहीं बल है || आचार्य प्रशांत (2017)
...जहाँ आत्मा है, मात्र वहीं बल है || आचार्य प्रशांत (2017)...भक्ति की भाषा में अगर इसे कहें तो ऐसे कहोगे कि मन सेवक है आत्मा स्वामी। मन भक्त है आत्मा भगवान। मन शक्ति है आत्मा शिव। ...
मन की आवाज़, या आत्मा की? || आचार्य प्रशांत (2020)
...पचासों, सैकड़ों, हजारों और लाखों लोग अगर किसी एक साझी दिशा जा रहे हों, तो संभावना ज़्यादा इसी बात की है कि वह दिशा वृत्ति की है, आत्मा की नहीं है। तो इतना मुश्किल नहीं है यह पता करना कि अब जो आवाज़ सुनाई दे रही है, वह मन की है कि आत्मा की है। ...मन की आवाज़, या आत्मा की? || आचार्य प्रशांत (2020)...
जीवात्मा क्या? आत्मा क्या? || आत्मबोध पर (2019)
...जीवात्मा क्या? आत्मा क्या? || आत्मबोध पर (2019)...क्योंकि आत्मा ही उच्चतम है और परम है, इसीलिए आत्मा को ही कहते हैं परमात्मा। ...
तृप्त मन ही आत्मा है || आचार्य प्रशांत (2019)
...तृप्त मन ही आत्मा है || आचार्य प्रशांत (2019)... प्रश्नकर्ता: मन, आत्मा और मैं, जैसे कि मैं अतृप्त आत्मा हूँ, हम बोलते हैं या मैं बोलता हूँ तो उसमें से, मैं और अतृप्त चेतना हूँ तो…। ...
क्या पुनर्जन्म होता है? आत्मा, अस्तित्व, या व्यक्ति का? || (2019)
...आत्मा निर्वैयक्तिक होती है, आत्मा तुम्हारी तो होती नहीं कि तुम्हारी बची रहेगी। ...क्या पुनर्जन्म होता है? आत्मा, अस्तित्व, या व्यक्ति का? || (2019)...
आत्म-जिज्ञासा क्या है? || आचार्य प्रशांत (2014)
...आत्म-जिज्ञासा क्या है? || आचार्य प्रशांत (2014)...
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है || आत्मबोध पर (2019)
...ये तुम्हें किसने बताया कि आत्मा शरीर में आती है और आत्मा जन्म लेती है? ऐसा आत्मबोध में तो कहीं नहीं लिखा। ...आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है || आत्मबोध पर (2019)...
आत्मा कहाँ स्थित है? || आचार्य प्रशांत (2014)
...वैसे ही हमें लगता है कि हमारे अन्दर आत्मा है क्योंकि वो छवि है आत्मा की। लेकिन आत्मा जो है, वो सर्वव्यापक है और वो छवि है, जिसे हम अपनी आत्मा मान के बैठ गए हैं। ...आत्मा कहाँ स्थित है? || आचार्य प्रशांत (2014)...