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आत्मा का अनुभव कैसे करें? || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, गीता एवं सभी ग्रंथों में जो भी बातें बताई गई हैं, उन पर मुझे सहज विश्वास नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर, मैंने सुन तो लिया कि ‘आत्मा को अग्नि जला नहीं सकती’ परंतु मैं इसको अनुभव में कैसे उतार सकता हूँ? क्या ये बातें इसलिए मान ली जाएँ क्योंकि यह ग्रंथों में लिखी गई हैं या महापुरुषों के द्वारा कही गई हैं? या फिर इन्हें अनुभव में लाकर, प्रयोग के द्वारा जाना जा सकता है?

आचार्य प्रशांत: सब बातें अनुभव की ही हैं। कुछ अनुभव बताते हैं कि क्या है, और कुछ अनुभव बता देते हैं कि क्या है जिसका कोई अनुभव नहीं हो सकता। जब कहते हैं कृष्ण कि आत्मा को अग्नि जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता, शस्त्र छेद नहीं सकते, तो वो कह क्या रहे हैं? आग पदार्थ को ही जलाएगी न! आग जलाए तो जलने के लिए कुछ होना चाहिए, कुछ पदार्थ, तो ही तो जलेगा। पानी भी पदार्थ को ही गीला करेगा। शस्त्र भी पदार्थ को ही छेदेगा।

तो जब कह रहे हैं कृष्ण कि कुछ ऐसा है जिसे आग जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता, तो वो इतना ही कह रहे हैं कि पदार्थ के अलावा भी कुछ है। कुछ अभौतिक भी है। कुछ ऐसा भी है जिसकी कोई भौतिक सत्ता नहीं है, परंतु फिर भी वो है ज़रूर। अब किसकी बात कर रहे हैं? तुम अभी ये मेरा उत्तर सुन रहे हो, मैंने जो बात कही, उसको सुनने के बाद हो सकता है तुम कहो, ‘आचार्य जी, बात समझ में आ गई। बात समझ में आ गई!’ ये समझ क्या चीज़ है? ये समझ क्या है? जब तक तुम्हारे पास सवाल था, सवाल भौतिक था। सवाल भौतिक था।

सवाल भौतिक इस तरह था कि जब तुममें सवाल उठता था, तब तुम्हारे मस्तिष्क में कुछ गतिविधि हुई थी। उस गतिविधि को मशीन पर भी देखा जा सकता है। जिस समय तुम्हारे मस्तिष्क में सवाल इत्यादि उठ रहे होते हैं, उस समय तुम्हारे मस्तिष्क में जो विद्युतीय प्रवाह है और जो तरंगें हैं, उनको मशीनों द्वारा देखा जा सकता है, नापा जा सकता है, एक स्क्रीन (पटल) पर दर्शाया जा सकता है।

आप में से अभी जिन लोगों के मन में हलचल मची हुई हो, उनके मन का स्कैन (जाँच) अगर यहाँ किसी स्क्रीन पर दिखाया जाए, तो वो एक शांत व्यक्ति के मन के स्कैन से बिलकुल अलग होगा। तो सवाल भौतिक होता है। क्योंकि भौतिक चीज़ें ही तो स्क्रीन पर दिखाई जा सकती हैं न!

सवाल तो भौतिक था। जब समझ मिली, तो समझ क्या है? समझ स्क्रीन पर नहीं दिखा पाओगे, सवाल को दिखा लोगे। और हो सकता है कि आने वाले समय में विज्ञान के पास इतनी उन्नत मशीनें हों, कि तुम्हारे मस्तिष्क का स्कैन करके ये भी बता दिया जाए कि तुम्हारे मस्तिष्क में क्या विचार चल रहा है, कि तुम्हें क्या प्रश्न उठ रहा है। सिर्फ़ मशीन लगाई गई और वहाँ स्क्रीन पर आ जाएगा, साफ़ हो जाएगा कि अभी मस्तिष्क में बात क्या चल रही है। क्योंकि वो बात भौतिक है। और जो कुछ भी भौतिक है, उसे पदार्थ पढ़ लेगा, पकड़ लेगा।

सवाल तो भौतिक था, ये समझ क्या है? समझ जो गया, उसके मस्तिष्क में अब क्या होगा? जो हलचल थी, जो तरंगें थीं, वो तरंगें शांत हो जाएँगी। मशीन क्या दिखा पाएगी? कुछ नहीं। तो ये समझ क्या चीज़ है? सवाल तो मटीरियल (पदार्थ) था, तभी उसे मशीन ने पकड़ लिया। मशीन मटीरियल को ही तो पकड़ेगी न? सवाल तो मटीरियल था, मशीन ने पकड़ लिया।

समझ क्या चीज़ है? बोध, अंडरस्टैंडिंग (समझ), वो क्या है? क्योंकि उसे तो मशीन नहीं पकड़ पाएगी। जो हलचल थी, वो मिट गई, मशीन कुछ नहीं दिखाएगी, खाली स्क्रीन दिखा देगी। ये क्या हो गया? तो कुछ है न, जो है तो पर भौतिक नहीं है। या ये कहोगे कि ‘मैं समझ गया और ये समझ कुछ भी नहीं है।’ तुम भली-भाँति जानते हो, समझ बहुत बड़ी बात है, सवाल से ज़्यादा बड़ी चीज़ है समझ। समझ बड़ी चीज़ है और भौतिक भी नहीं है।

इसी तरह से मैं उदाहरण लेता हूँ प्रेम का। कोई नहीं होगा जो कहे कि उसे प्रेम नहीं मालूम। अब प्रेम क्या है? किस मशीन पर दर्शाओगे उसको? और मैं शारीरिक उत्तेजना की बात नहीं कर रहा, उसको मशीन पकड़ लेगी। मैं हॉर्मोनल (ग्रंथिरस संबंधी) गतिविधि की बात नहीं कर रहा, मशीन उसे भी पकड़ लेगी। मैं प्रेम की बात कर रहा हूँ। कहते हो न कि प्रेम जानते हो, प्रेम का क्या रूप है, क्या रंग है, क्या वज़न है, क्या आकार है?

कृष्ण यही कह रहे हैं कि बोध जैसा कुछ होता है, सत्य जैसा कुछ होता है, प्रेम जैसा कुछ होता है, और ये भौतिक नहीं है। बार-बार यही कहोगे कि शास्त्रों में जो लिखा है वो समझ में नहीं आता, तो अंततः तुम यही कह रहे हो कि तुम्हारे जीवन में न समझ है, न सत्य है, न प्रेम है। क्योंकि इनमें से कोई भी भौतिक तो है नहीं।

मटीरियलिस्ट्स , पदार्थवादियों की सज़ा ही यही होती है कि उनके जीवन में सिर्फ़ पदार्थ रह जाता है। न आनंद पदार्थ है, न मुक्ति पदार्थ है, न सत्य पदार्थ है, न बोध पदार्थ है, तो ये सब फिर उनके जीवन में होते भी नहीं। उनके जीवन में कपड़े होते हैं, दीवारें होती हैं, गाड़ियाँ होती हैं, भोग के बड़े से बड़े साधन होते हैं। क्योंकि वो सब क्या हैं? भौतिक हैं। लेकिन उनके जीवन में क्या नहीं होता? सत्य, मुक्ति, आनंद, ये नहीं होंगे। क्योंकि उन्होंने ख़ुद ही कह दिया है कि दुनिया सिर्फ़ मटीरियल है और जो चीज़ मटीरियल नहीं, उसकी कोई हस्ती ही नहीं है। अब सत्य तो मटीरियल है नहीं, तो फिर मटीरियलिस्ट के जीवन में सत्य की कोई हस्ती भी नहीं होती।

प्रेम भी मटीरियल नहीं है, आनंद भी मटीरियल नहीं है। तो मटीरियलिस्ट के जीवन में आनंद की और प्रेम की भी कोई हस्ती नहीं होती।

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