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लेख
ज़िंदगी पूरी फ़िल्मी है || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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तुम्हें बर्बाद करने में एक चीज़ का सबसे बड़ा योगदान रहा है तो वो है – फिल्में और *टीवी*।

तुम्हें पता भी नहीं है जिनको तुम अपने विचार कहते हो वो वास्तव में फ़िल्मी विचार हैं। जिनको तुम अपनी भावनाएँ बोलते हो वो वास्तव में फ़िल्मों ने दी हैं तुमको। पर तुम उन भावनाओं को लिए-लिए फिरते हो, उन भावनाओं को पोषण देते हो, उन्हीं भावनाओं पर जीते हो, मरते हो। यहाँ तक कि तुम्हारे चेहरे के जो भाव हैं वो भी तुम्हारे नहीं हैं। तुम्हारे देखने का जो तरीका है, ये जो टेढ़ी-तिरछी चितवन है, ये भी तुम्हारी नहीं है। ये तुमने फ़िल्मों से सीखी है।

कभी-कभी तो तुम्हें देखकर के ये साफ़ बताया जा सकता है कि ये तुम किस फ़िल्म के किस दृश्य की नकल कर रहे हो।

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