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लेख
विश्वास क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
6 मिनट
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प्रश्न : विश्वास क्या है?

वक्ता : विश्वास का अर्थ है- मानना । विश्वास का अर्थ है कहना कि ‘ऐसा है’ । ये जो वाक्य है, ‘ऐसा है’, इसको तीन-चार अलग अलग तलों पर कहा जा सकता है । सबसे नीचे का जो तल है, वो है *‘अंधविश्वास’*। उसके ऊपर है, ‘विश्वास’ । उसके ऊपर आता है, ‘विचार’ और उसके भी ऊपर आता है, ‘ समझ’ ।

‘अंधविश्वास’, ‘विश्वास’,’विचार’, ‘समझ’ । ये चार ताल हैं ये कह पाने के कि ‘ऐसा है’ ।

जो सबसे निचला तल है, जो सबसे बंद मन है, वो किसमें जीएगा ?

श्रोता १ : अंधविश्वास ।

वक्ता : ऐसा मन विचार तक भी नहीं करेगा । उसको तुम कुछ भी कह दो, वो बोलेगा, ‘हाँ, बात चली आ रही है पाँच सौ सालों से, ठीक है ही ।’ वह सोच भी नहीं पाता । पूरी तरह अंधा है, मन की आँखें बिलकुल बंद ।

उसके ऊपर आता है, विश्वास । ये आदमी थोड़ा तर्क करेगा, इधर-उधर से कुछ बात पूछेगा, लेकिन जल्दी ही मान लेगा । कर लिया विश्वास । समझा नहीं है, जाना नहीं है, लेकिन विशास कर लिया है । किस आधार पर विश्वास किया है? कि जो बता रहे होंगे, वो ठीक ही कह रहे होंगे- ये उसका तर्क है । ‘किताबों में लिखा है, शिक्षक बता रहे हैं, माँ-बाप बता रहे हैं, तो ठीक ही बता रहे होंगे।’

उसके ऊपर आता है वो व्यक्ति जो विचार करता है । जो ‘विचारक’ है । ये किसी भी बात को आसानी से नहीं मान लेता । ये खूब बहस करता है । ये ‘वैज्ञानिक’ है, ये प्रमाण माँगता है । लेकिन इसके साथ दिक्कत ये है कि ये वहीँ तक जा पाता है, जहाँ तक प्रमाण उपलब्ध हैं । जिस बात का प्रमाण मौज़ूद नहीं, ये उसको मानने से इनकार कर देता है ।

अब ‘प्रेम’ का तो कोई प्रमाण नहीं होता । तो ये मानेगा ही नहीं कि प्रेम जैसा भी कुछ है । उसको तुम ये कहो कि ‘स्वतंत्रता सबसे कीमती है’, तो ये मान नहीं पाएगा । क्यों ? क्योंकि कोई प्रमाण नहीं है । ये कहता है, ‘मेरे सामने प्रमाण रखो, तो मानूँगा।’ अब कैसे प्रमाण लाकर रखोगे? तो ये बहुत ऊँचा है, बहुत बढ़िया आदमी है, लेकिन इसके साथ एक कमज़ोरी जुड़ी हुई है कि ये प्रमाण का ग़ुलाम हो गया है । और प्रमाण भी कैसा ? जो मन को समझ में आये । ये ‘विचारक’ है ।

ऐसे लोग भी कम होते हैं। मैं ये नहीं कह रहा कि ये निचले स्तर का आदमी है। यहाँ तक पहुँचना भी बड़ा मुश्किल है। बहुत कम लोग हैं जो इस तल तक भी आ पाते हैं। लेकिन ये तल सबसे ऊँचा नहीं है, क्योंकि इसके साथ एक कमजोरी है कि बिना प्रमाण के ये कुछ मानता ही नहीं ।

सबसे ऊँचे तल पर कौन बैठा है ?

श्रोता २ : जो आदमी समझता है ।

वक्ता : जो आदमी समझता है, वो सबसे ऊपर बैठा हुआ है । जो समझता है, वो सोचता तो है, उसके पास विचार की शक्ति तो है ही, पर इसके अलावा उसके पास कुछ और भी है । उसके पास ‘ ध्यान ‘ है। वो सोच तो सकता ही है, लेकिन साथ ही साथ समझ भी सकता है । वो वहाँ भी जा सकता है, जहाँ ‘ विचार ‘ नहीं जा सकता । इसलिए वो उन बातों को भी समझ पाता है जिनका कोई प्रमाण नहीं है । ये सबसे ऊँचा आदमी है ।

अब तुम देख लो कि तुम्हें कहाँ पर होना है । जीवन कहाँ पर बिताना है । कहाँ पर जीवन बिताना चाहते हो ? अंधविश्वास में, विश्वास में, विचार में, या समझ में ?

श्रोतागण : समझ में।

वक्ता : अब वो तुम्हारे ऊपर है ।

श्रोता २ : सर, हमारे धर्मग्रंथों में तो कहीं नहीं लिखा है कि उन पर विश्वास करो।

वक्ता : यही तो विडंबना है ना। कहीं लिखा नहीं है, पर फिर भी पढ़ा हुआ है, क्योंकि जनश्रुति यही कहती है, क्योंकि परंपरा यही बनी हुई है । क्या तुम्हारे घर में बाइबिल है ?

श्रोता २ : नहीं।

वक्ता(हँसते हुए) : क्यों नहीं है ? इसको देखो ना ! बाइबिल बिल्कुल नहीं कहती कि उसे हिन्दू के घर में ना रखो । पर फिर भी तुम्हारे घर में नहीं है । बाइबिल ने कहा है क्या कि उसे ना रखो ?

श्रोता २ : नहीं।

वक्ता : इतने सारे दार्शनिक हुए, विचारक हुए, संत हुए, चीन में हुए, यूरोप में हुए। किसी की भी कोई किताब क्या है तुम्हारे घर में?

श्रोता २ : नहीं।

वक्ता : लेकिन रामायण होगी, गीता भी होगी । क्यों है ? क्योंकि एक परंपरा है, और उस परंपरा के आगे हम देख ही नहीं पाते ।

श्रोता २ : तो फिर जो इन ग्रंथों में और किताबों में लिखा है, क्या वो सत्य नहीं है ?

वक्ता : क्या उस सत्य को तुमने जाना है, या कहीं से सुना है ?

श्रोता २ : सुना है ।

वक्ता : अभी आदित्य से पूछा जाए, ‘सर्वश्रेष्ठ धर्म कौन सा है ?’ तो उसका क्या जवाब होगा ? ‘हिन्दू धर्म।’ अभी यही सवाल असलम से पूछा जाये तो वो क्या बोलेगा ? ‘इस्लाम।’ और एंजेला बैठी हो तो क्या जवाब होगा? ‘ईसाई धर्म।’ इन्होंने ये जाना है, या क्योंकि ये उस धर्म के हैं, इसलिए बोल रहे हैं ?

श्रोतागण : सर, समझ में आ गया कि सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना है । अपनी समझ का प्रयोग करना है ।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं ।

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