आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
वर्तमान में जीने का अर्थ || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
12 मिनट
38 बार पढ़ा गया

श्रोता : सर, मैंने अभी तक जितने ‘HIDP’ सेशन और संवाद अटेंड किये हैं, उनसे मुझे ऐसा लगता है कि कोई भी अल्टीमेट सोल्युशन किसी प्रॉब्लम का अगर होता है तो वो है वर्तमान में पूरे तरीके से जीनाl क्या ये सही है?

वक्ता : हाँ, सही हैl तुमने कहा कि इन सारी बातों से तुम्हें यही समझ में आया है कि वर्तमान में जियोl वर्तमान में बेशक जियो पर इस वाक्य का आंशिक अर्थ मत निकाल लेना। क्योंकि आंशिक अर्थ हम अपनी सुविधा के अनुसार निकाल लेते हैं और फिर उसको पकड़ के बैठ जाते हैंl मैं बिलकुल बेहोश होकर इधर-उधर कूद रहा हूँ, मन बिलकुल उत्तेजित हैl और पूछा जा रहा है कि क्या कर रहे हो; तो जवाब आता है कि ‘मैं तो वर्तमान में जी रहा हूँ, मौज मना रहा हूँ, मुझे आगे की कोई फिकर नहीं है’l वर्तमान में जीने का ये अर्थ नहीं हैl ये जो शब्द तुमने लिया ‘वर्तमान’, ये बड़ी दूर तक जाता है, इसको समझनाI

हम आमतौर पर जब वर्तमान कहते हैं तो हमारा आशय होता है कि पास्ट है, भूत और फिर वर्तमान है और फिर भविष्यlहमारा आशय ये होता है कि इसको छोड़ो, इसको छोड़ो और वर्तमान में जियोl हमारा आशय ऐसा होता है कि तीन हैंl इसमें से दो को त्यागो और वर्तमान में जियोl दो कौन? भूत और भविष्य l बात ये बिलकुल भी नहीं हैl वर्तमान समय का हिस्सा नहीं हैl वर्तमान का अर्थ ये नहीं है कि भूत नहीं या भविष्य नहींl वर्तमान का अर्थ है कि जो कुछ है, ‘अभी है’l भूत और भविष्य इसी वर्तमान में ही समाये हुए हैंl जब कहा जाता है कि वर्तमान में जियो तो कहा जाता है कि पूरे में जियो क्योंकि जो कुछ है, वर्तमान ही हैl पूरा वर्तमान है l वर्तमान के अलावा और कुछ है ही नहींl अंश नहीं किये जा रहे, टुकड़े नहीं किया जा रहे | ये नहीं कहा जा रहा कि वर्तमान में जियो और अतीत में ना जियोl ये भी नहीं कहा जा रहा कि वर्तमान में जियो और भविष्य में ना जियोl किसी भी चीज़ को नकारा नहीं जा रहाl भूत और भविष्य की कोई मनाही नहीं हैl वर्तमान में जीने का अर्थ है कि जो है, वर्तमान है और इसी को पूर्णता से जियोl

तुम कहाँ और जी सकते हो, मुझे ये बताओ? तुममें से कोई है जो भूत में जी सकता है? कोई है, जो भविष्य में जी सकता है? कोई है, जो अतीत में जाकर साँसें लेगा? तुम उनकी बस कल्पना कर सकते होl अतीत बस स्मृतियों में हैlजो है वो यही हैl तुम कब कह रहे हो कि मेरा एक अतीत है? कब कहते हो? वर्तमान में ही तो कहते हो! यदि वर्तमान ना हो तो क्या अतीत भी हो सकता है? तुम भविष्य के सपने कब लेते हो? वर्तमान में ही तो लेते हो ना? वर्तमान में सब समाया हुआ हैl वर्तमान पूरा हैl लेकिन इस पूरे को य़ा तो जाना जा सकता है या अनभिज्ञता में जिया जा सकता हैl जब कहा जाता है कि वर्तमान में जियो तो उससे आशय होता है कि जागने में जियो, सोने में नहींl इतना हीl समझ रहे हो बात को? गलत मत ले लेनाl क्योंकि हमारे लिए बड़ा सुविधाजनक वाक्य बन सकता है कि मैं तो अतीत की परवाह नहीं करताl ‘अतीत है’ और तुम्हें परवाह करनी होगीl हम सब यहाँ जो बैठे हुये हैं, सारे अतीत के साथ ही बैठे हुये हैंl सच तो ये है कि तुम नहीं बैठे हो, तुम्हारा अतीत ही तो बैठा हुआ हैl एक अर्थ में इसको देखनाl ये जो कपड़े तुमने पहने हुये हैं, ये अतीत से आ रहे हैंl ये जो तुम्हारा शरीर है, ये अतीत से आ रहा हैl तुम्हारे शरीर का रेशा-रेशा, एक-एक कोशिका, अतीत से ही आ रही हैl अतीत को छोड़ कर कैसे बैठ जाओगे? इन शब्दों के अर्थ भी समझ पाओगे अगर अतीत लुप्त हो जाये ? ये जो भाषा-ज्ञान है, ये भी तो अतीत से ही आया हैl

वर्तमान में जीने का अर्थ स्मृति को मिटा देना नहीं हैl स्मृति को मिटा देना और स्मृति से मुक्त होना, दो बिलकुल अलग-अलग चीजें हैंl वर्तमान में जीने का अर्थ बस इतना ही है कि अतीत को मैं वर्तमान से अलग नहीं मानताl अभी उपलब्ध हैl सारा अतीत स्मृति के तौर पर बैठा ही हुआ हैl अब जो होना होगा, अपने आप होगाl मुझे उसकी अलग से, विशेष परवाह करने की जरूरत नहीं हैl अतीत का विचार करने की जरूरत नहीं हैl अतीत तो मौजूद है और मैंने उसको स्वीकार लियाl अतीत मौजूद हैl अतीत मौजूद है और अब मुझे जो करना है, सो करना हैl मैं उसका गुलाम नहीं हूँl अतीत मौजूद है, पर मैं उसका गुलाम नहीं हूँl और जैसा मैंने कहा कि ये बिलकुल रस्सी पर चलने के बराबर हैl अतीत मौजूद तो रहे पर तुम उसके गुलाम ना रहोl हम जिस दुनिया में जीते हैं,वहाँ पर हमें सिखाने के लिए अतीत के पास बहुत कुछ हैl हम क्यों ना सीखें? हमें बेशक सीखना ही चाहिएl जो कुछ भी दोहरा-दोहरा कर होता है,जहाँ कहीं भी पुनुरुक्ति है, वहाँ पर अतीत लाभ देगाl और वहाँ पर जो लोग अतीत से सबक नहीं सीखेंगे, उन्हें चोट लगेगीl जीवन में जो कुछ भी ऐसा है जो दोहराया जा सकता है, वहाँ पर अतीत निश्चित रूप से फायदेमंद हैl लेकिन मज़ेदार बात ये है कि वो फायदा तुम्हें लेने की जरूरत नहीं हैl फायदा तुम्हें उपलब्ध हैl उस अतीत से गुजर चुके होना? वो अतीत स्मृति के रूप में बैठा हुआ है ना? अब वो स्मृति अपने आप तुम्हारी मदद कर देगीl तुम्हें बार-बार उसे आह्वान करने की जरूरत नहीं हैl हमें दिक्कत क्या हो जाती है कि ‘मैं यहाँ हूँ, अतीत कहीं पीछे है और मुझे मुड़ कर अतीत की तरफ देखना है’l हम ये कहते हैंl मैं तुमसे कह रहा हूँ कि मुड़ कर अतीत की तरफ नहीं देखनाहै, अतीत तुम्हारे साथ अभी मौजूद हैl सारा अतीत वर्तमान में समाया ही हुआ हैl मुड़ कर अतीत की ओर देखो ही मतl पीछे कुछ है ही नहींl ना पीछे कुछ है, ना आगे कुछ है, जो कुछ है बस अभी हैl पूरा अतीत तुम्हारे साथ अभी है तो तुम्हें उसकी परवाह करने की जरूरत नहीं हैl भाई, जब तुम्हारा कोई दोस्त पीछे छूट जाता है, तो तुम्हें पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत पड़ती है ना? तुम्हारे पास कोई चीज़ है, पीछे कहीं गिर जाती है,तब तुम्हें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत पड़ती है ना? कुछ पीछे छूटा ही नहीं हैl कुछ पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत ही नहीं हैl जो है, वो तुम्हारे साथ हैl पूरा-पूरा तुम्हारे साथ है| तुम कुछ छोड़ कर नहीं आ रहे हो पीछेl ना तुम कुछ पीछे छोड़कर आ रहे हो, ना आगे कुछ है जो तुम पाओगे| जो कुछ है अभी हैl तो तुम मौज में जियोl अभी की समझ में जो काम होते हैं, उनको होने दोl अभी की समझ में जीवन जैसे बढ़ता है, उसको बढ़ने दो l अतीत के सारे अनुभव तुम्हें उपलब्ध हैंl

मैंने ये अक्सर देखा है कि यहाँ पर हम चूक कर जाते हैंl हम अतीत के साथ दो ही तरीके का सम्बंध रखते हैं कि या तो उससे बिलकुल जा कर आसक्त हो जाओ – कि मैं तो भूत में ही जीता हूँ और भूत जैसी ही मेरी हालत हो गयी हैl तो या तो गहरी आसक्ति है, बिलकुल चिपके हुये हैं, भूत जैसेl या कि नहीं, मुझे बिलकुल याद ही नहीं रखना कि पहले क्या-क्या हुआ हैl इतिहास होता ही नहीं, मैं नहीं जानता| ये दोनों ही गड़बड़ हैंl ना उससे आसक्त होने की जरूरत है, ना उससे पीछा छुड़ाने की जरूरत हैl क्योंकि ये दोनों ही काम हमेशा असफल होंगेl आसक्ति कैसी, क्योंकि वो तो तुम्हारे पास है और पीछा छुड़ाओगे कैसे,जब वो हमेशा तुम्हारे साथ है? कौन पीछा छुड़ा सकता है? अपनी आती-जाती सांस से पीछा छुड़ा सकते हो क्या? ये साँस तुम्हें अतीत ने ही दी हैl तुम अपने विचार करने वाले मस्तिष्क से पीछा छुड़ा सकते हो क्या? जो कुछ है अतीत से ही आ रहा हैl तो उस सब का स्वागत करोl उस सब का स्वागत करते हुए उससे मुक्त रहोl तुम्हारे घर में एक मेहमान आता हैl तुम उसका स्वागत करते हो पर उसके गुलाम हो जाते हो क्या? तो वर्तमान के घर में ऐसे समझ लो कि ये सब मेहमान हैंl इनका स्वागत करो पर इनके गुलाम नहीं बन जाओl तुम्हें पता रहे कि घर के मालिक तुम होl और ये बाकी लोग हैं, जो तुम्हारे साथ हमेशा मौजूद हैंl हमेशा मौजूद हैं तुम्हारे साथ, पर मालिक तुम्हीं होl ना उनसे डरना है, ना उनको भगा देना हैl दोनों में से कोई काम नहीं करना हैl ना उनको भगा देना है औरना उनसे आसक्त हो जाना हैl

तो बात बहुत दूर तक जाती हैl सुनने में छोटी सी लगती है कि “वर्तमान में जियो”l पर उसका मतलब समझनाl ये तब तक तो बहुत सुविधाजनक है, जब तक ये लगे कि वर्तमान का मतलब अभी जो हो रहा हैl वर्तमान का मतलब ये नहीं है कि अभी मैं तुमसे बात कर रहा हूँ; ये वर्तमान नहीं है| इस भूल में मत पड़ जानाl तुममें से ज्यादातर लोगों से अगर मैं पूछूँ कि वर्तमान माने क्या, वर्तमान माने क्या? तो तुम कहोगे कि वर्तमान माने ये जो अभी हो रहा है, आप यहाँ बैठे हो, हम यहाँ बैठे हैंl बिल्कुल गलतl संस्कृत का जो धातु है, जिससे वर्तमान निकला है, ‘वर्तते’, समझते हो? संस्कृत का हैl ‘वर्तते’ मतलब, ‘जो है’l जिसकी सत्ता है, वही वर्तमान हैl तुम्हें क्या लग रहा है कि वर्तमान में बस हम तुम हैं? वर्तमान माने जो कुछ ‘है’, वही वर्तमान हैl और उसमें सब समाया हुआ हैl वर्तमान पूर्ण हैl जो कुछ भी है वो वर्तमान ही हैl वर्तमान सत्य है, वर्तमान पूर्ण है,वर्तमान पूरा हैl वर्तमान अस्तित्व हैl वर्तमान का अर्थ ‘वर्तमान पल’, ये सीमित व्याख्या मत कर लेनाl और वर्तमान पल माने क्या? मैं इस समय खाना खा रहा हूँ, तो ये वर्तमान पल है? ये तो विचार है तुम्हारा कि तुम हो, खाना है और खाना खाया जा रहा हैl ये तो तुम्हारी अवधारणा हैl इसका वर्तमान से क्या लेना देना? वर्तमान तो कुछ और ही चीज़ हैl वर्तमान का अर्थ है, वो स्रोत,वो चेतना, जहाँ से सब निकलता हैl जब कहा जा रहा है कि वर्तमान में जियो, तो कहा जा रहा है कि बोध में जियो, होश में जियोl जगे हुए रहोl तुम्हें पता रहे कि क्या हैl बिखरे-बिखरे मत रहो, निर्भर मत रहो, सीमित और संकुचित मत रहोl वर्तमान में जियो, मतलब ‘पूर्णता’ में जियोl वर्तमान में जियो, मतलब ‘सत्य’ में जियोl बेहोशी मे नहीं, झूठों में नहींl धारणाओं में नहीं, वास्तविकता मेंl जो ‘है’ – ये है वर्तमान में जीने का अर्थl हम उसका बहुत सीमित अर्थ लेते हैं और फिर गड़बड़ हो जाती है,क्योंकि ये आजकल बड़ा फैशनेबल हो गया है, ये सब कहना कि ‘आई लिव इन द प्रेज़ेंट, मैं वर्तमान में जीता हूँ’l हम बिना उस वाक्य के विस्तार को जाने, बिना उसकी पूरी गरिमा को जाने, दावा कर देते हैं वर्तमान में जीने काl कोई बैठ कर खूब शराब पिये जा रहा है, पिये जा रहा हैl ‘भाई, क्यों पीते हो इतना’? ‘देखो भाई हम कल की परवाह नहीं करते| हम तो अभी की मौज में जीते हैंl अभी हमें पीने में बड़ा आनन्द आ रहा है तो इसलिए हम पिये जा रहे हैं’l अब ये तो तुमने अर्थ का अनर्थ कर दियाl वर्तमान का क्या अर्थ था और तुमने उसको क्या बना दियाl वर्तमान का अर्थ है सत्य और तुमने उसको शराब बना दिया, बेहोशीl वर्तमान है होश और तुमने उसको बेहोशी का प्याला बना दियाl

वर्तमान का अर्थ है जाननाl जानने के अलावा वर्तमान कुछ नहीं हैl मैं दोहरा रहा हूँ बल्कि शायद तिहरा रहा हूँ लेकिन जरूरी है कहना कि वर्तमान कोई समय नहीं हैl कभी मत कहना कि मैं वर्तमान में जीता हूँ क्योंकि वर्तमान कोई क्षण है ही नहींl जब भी तुम किसी क्षण कि कल्पना करोगे तो वो अतीत का क्षण होगा| जिसको तुम वर्तमान बोलते हो,जब तक उसे वर्तमान बोलते हो तब तक तो वो अतीत हैl तो वर्तमान कोई क्षण नहीं हैl ना अतीत का और ना आगतl वर्तमान समय की धारा में है ही नहींl वर्तमान का अर्थ ही है कि जगा हुआ हूँl जान रहा हूँl सब कुछ चल रहा है बाहर-बाहर,पर अंदर एक बिंदु है,जो जगा हुआ हैl जिसे होश है|जहाँ पर शंका नहीं हैl जो सब समझता है, वो है वर्तमानl सिर्फ वही है वर्तमानl वही वर्तता है, वर्तना माने वर्तमानl वही वर्तता हैl वही वास्तविक हैl

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें