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लेख
वर्तमान में जीना माने क्या? || (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
10 मिनट
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प्रश्नकर्ता: क्या ये वर्तमान में जीने की बात हो रही है?

आचार्य प्रशांत: सैद्धांतिक रूप से हाँ। लेकिन, जब आप कहते हैं नाउ (अभी), तो उससे आपका आशय क्या है? मन के लिए नाउ जैसी कोई चीज़ होती नहीं है। शब्दों में आप भले ही कह दें: ‘अभी’, ‘वर्तमान’, लेकिन मन वर्तमान को भी अतीत और भविष्य की श्रृंखला में एक कड़ी के रूप में ही देखता है। तो ये जो आजकल प्रचलित मुहावरा है, लिविंग इन द मोमेंट , वर्तमान में जीना, ये बड़ा अर्थहीन है। इससे हमें ये दिलासा मिल जाता है कि जैसे हमें कुछ पता चल गया। जैसे कि हमें कोई सूत्र मिल गया हो, अच्छा जीवन जीने के लिए : ‘*लिविंग इन द नाउ, लिविंग इन द प्रेसेंट*।’

पर ये है क्या? क्या आप वर्तमान की बात कर पाते हैं, जब आप पूर्णतया शांत होते हैं? कोई बात नहीं होती, तो नाउ की भी कैसे होगी? शांत ना भी हों, आप सो गए हों, तब कोई नाउ बचता है क्या? सोते हुए भी, नाउ गायब हो जाता है। इसका मतलब यही है, कि ये जो नाउ है, जिसे हम कहते हैं, द प्रेसेंट मोमेंट , ये और कुछ नहीं है, ये मन की एक लहर है। उसमें सत्य नहीं है, सत्य होता, तो चेतना की अलग-अलग स्थितियों में, वो आता-जाता नहीं।

सत्य का काम ही नहीं है, आना-जाना। जो आए-जाए, वो मानसिक उथल-पुथल है, बस।

'वर्तमान', बड़ा सुन्दर शब्द है। 'वर्तमान' शब्द की गहराई में जाएँगे, तो कुछ राज़ खुलेगा। 'वर्तमान' का अर्थ होता है: वो जो है और वो समय की धारा में एक बिंदु नहीं है। वर्तमान वो, जो वर्तता है। वो, जो है। वो जो है, वो किसी नाउ वगैराह से पकड़ में नहीं आएगा। वो तो पूर्ण सत्य है तो यदि आप लिविंग इन द नाउ पर आग्रह करेंगे भी, तो लिविंग इन द नाउ का अर्थ होगा, सत्य में जीना। उसका अर्थ ये नहीं होगा कि आगे-पीछे की चिंता मत करो क्योंकि आप जब ये कहते भी हो कि आगे-पीछे की चिंता नहीं करो, तो आपको ख़याल किसका होता है?

प्र: आगे-पीछे का।

आचार्य: जब आप ये कहते भी हो, कि नाउ में जी रहा हूँ, तो वास्तव में नाउ आपके लिए वर्तमान का क्षण होता है। उदाहरण के लिए, मैं आपसे पूछूँ, " व्हॉट इज़ द टाइम राईट नाउ? " तो आप समय बता दोगे। तो नाउ क्या हुआ फिर? जो समय अभी चल रहा है और समय का तो अर्थ ही है कि पीछा भी है और आगा भी है। आप बोलो, " आई एम लिविंग इन द नाउ ", मैं तुरंत पूछूँगा, " व्हॉट इज़ द टाइम राईट नाउ? " क्या आप मुझे समय नहीं बता पाओगे? आप बता दोगे न?

इससे क्या सिद्ध होता है? आपका नाउ अभी भी समय का ही हिस्सा है। इसका मतलब अभी भी बात मानसिक ही है। अभी भी मन अपनी सीमाएँ छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, बस नाम नए-नए दे दिए हैं। ये पिछले कुछ दशकों का सबसे प्रचलित मुहावरा है अध्यात्म के क्षेत्र में, लिविंग इन द नाउ , और इससे ज़्यादा घातक दूसरा नहीं रहा है। बड़ा इसने नुकसान पहुँचाया है। वो कहते हैं, आगे की मत सोचो, पीछे की मत सोचो, अभी जो करना है, कर डालो। अभी अपनी इच्छाएँ पूरी कर लो, इतनी देर से हम बात कर रहे थे, कृष्ण वो जो पूर्णतया जीता है। पर यदि आप टीवी खोलें, तो वहाँ आपको कई विज्ञापन ऐसा कहेंगे, "चल जी ले, पूरा जी ले!" सुनने में लगेगा, "अरे! ये तो बड़ी आध्यात्मिक बात है। आज वहाँ भी ऐसा ही कहा जा रहा था, कि कृष्ण वही जो पूरा जीता हो और यहाँ एक शीतल पेय का विज्ञापन भी यही बता रहा है। क्या? जी ले खुल कर, अभी!"

पर आप अंतर समझिए। वहाँ पूरे तरीके से बात का दुरुपयोग कर लिया गया है, भोग के लिए। 'अभी जी ले', इसका अर्थ आपको ये समझा दिया गया है, कि, "जितनी इच्छाएँ हैं, उनको अभी पूरा कर ले, कल पर मत टालना। जो भी तेरी वासनाएँ हैं, उनमें अभी उद्यत हो जा, ज़रा भी रुकना मत। जी ले!"

तो उद्योगों की, और व्यापार की, सुविधा के लिए खूब ये मुहावरा प्रचलित किया गया है, ‘ लिवंग इन द प्रेसेंट * ।’ आप एक गाड़ी खरीदना चाहते हैं, आपने सोचा है कि दिवाली पर खरीदेंगे। आप के पास एक आता है, बेचने के लिए तैयार। वो कहता है, "अरे! * लिव इन द नाउ, वाय वेट फॉर द फ्यूचर ? (अभी में जियो, भविष्य के लिए इंतज़ार कैसा?)"

"जो गाड़ी तुमको दिवाली पर खरीदनी है, वो अभी खरीदो। रोकते क्यों हो, अपने आप को?" ये आध्यात्मिकता में व्यवसाय का अतिक्रमण है। इन सबके ख़िलाफ़ जागरूक रहा करें।

*प्रेसेंट* का वास्तविक अर्थ है: सत्य। प्रेसेंट का वास्तविक अर्थ है, वो जो है। वो जो है। वो जो है – उसे कृष्ण कहते हैं। जो है – उसे सत्य कहते हैं, उसे हक़ कहते हैं, शून्यता कहते हैं, पूर्णता कहते हैं।

वो किसी शीतल पेय का विज्ञापन नहीं हो सकता।

'जो है' से आशय है वो जो निरंतर है। 'है' मतलब है, बदल नहीं सकता। जहाँ ना आएगा, ना कुछ जाएगा। जहाँ समय के साथ कुछ घटेगा बढ़ेगा नहीं, जिसमें नित्यता है। जो बस है, और उसका होना किसी शर्त पर आधारित नहीं है और अस्थाई नहीं है। वो कभी चली नहीं जाएगी। तो प्रेसेंट उसको ही जानना वास्तव में, जिसके होने पर ना कोई सवाल लगता हो, और जिसका होना इतना व्यापक और सूक्ष्म हो कि पता भी ना चले। मन कभी जान भी ना पाए कि वो है। ये बोतल है, मन इसको जान जाता है कि है। ये व्यक्ति है, मन इसको जान जाता है कि है। प्रेसेंट , वर्तमान – वो है जिसकी उपस्थिति का एहसास भी ना हो।

वो है, पूरी तरह से है, मात्र वही है लेकिन पकड़ में ना आए। तो हो कर भी नहीं है।

हमारे यहाँ पर ये सब हैं युवा लोग, ये कुछ समय पहले तक खूब गाते रहते थे – ‘हो भी नहीं और तुम इक गोरखधंधा हो’। तो गाने वाले इस रूप में प्रेसेंट को इंगित करते हैं। 'हो भी नहीं, और हर जा हो, तुम इक गोरखधंधा हो' – ऐसा होता है सत्य। वो ऐसा नहीं होता कि छह बज कर पैंतीस मिनट और पंद्रह सेकण्ड्स – *लिविंग इन द नाउ*। वो गोरखधंधा है, वहाँ रहस्य है। वो बात ऐसी नहीं है जिसे आप शब्दों में बयान कर सकें, बातों में पकड़ लें। ज़्यादा सोचेंगे, तो उलझ जाएँगे, गोरखधंधा है। तो सोचने का नहीं है, कि सोच-सोच कर पकड़ में आ जाएगा इसीलिए वर्तमान की बात नहीं की जाती। वर्तमान में, सारी बातें होती हैं। जहाँ आपने कहा कि मैं वर्तमान को पकड़ूँ, या वर्तमान में जीएँगे, आपने कहा नहीं, कि आप चूके। बात कहने की है ही नहीं। बात तो मौन रह जाने की है। बात तो शांत समर्पण की है।

प्र: सर, जब ऐसा होगा तो हमें टाइम (समय) का पता चलेगा कि नहीं चलेगा?

आचार्य: चलेगा, बिलकुल चलेगा। मन को अगर समय का नहीं पता चलेगा, बेचारा क्या करेगा? मन समय में ही जीएगा। समय में जीते हुए, किसी ऐसे के सामने झुका रहेगा, जो ना समय में आया ना समय में जाएगा। आप जिसको भी जानते हो, कभी-न-कभी उसकी उत्पत्ति होती है और कहीं-न-कहीं जाकर के, उसका अंत भी होता है। कुछ ऐसा आ जाए आपके जीवन में, और आपका प्रेम लग जाए उससे, आपकी श्रद्धा बन जाए उसमें जो समय ने नहीं दिया आपको, जो घटनाओं ने नहीं दिया आपको, और जो, घटनाएँ आपसे छीनेंगी भी नहीं, तब तुम समय में रहते हुए भी समय के पार चले गए। अब तुम्हें पता होगा अच्छे से, कि वक़्त क्या हुआ है। पर उस वक़्त के तुम ग़ुलाम नहीं हो जाओगे। और वक़्त समझना, वक़्त माने जीवन। जीवन में तुम जब भी होते हो, वक़्त ही चल रहा होता है। वक़्त माने हालत, वक़्त माने अवस्था, वक़्त माने स्थिति। तो ‘*लिविंग इन द प्रेसेंट*’, का मतलब ये हुआ, कि जो भी हालत चल रही है, जो भी वक़्त चल रहा है, हम उससे कहीं हट कर खड़े हैं। और इसलिए, अब हमें वक़्त डराता नहीं है। वक़्त डराता नहीं है, तो हम वक़्त में पैठ जाते हैं। क्या चल रहा है? जो भी चल रहा है, हम उसके लिए हाज़िर हैं। बोलो क्या चल रहा है? यमुना चढ़ी हुई है, तैरना है, तो कृष्ण तैरेंगे, गुरु सामने खड़े हैं, कृष्ण नमन करेंगे, राधा सामने खड़ी हुई है, पूर्ण मिलन होगा। अर्जुन सामने खड़ा हुआ है, दोस्त भी है और शिष्य भी है, ज्ञान गंगा बहेगी। अब डरेंगे नहीं। अब ये नहीं कहेंगे कि, "मैं तो प्रेमी हूँ, मैं ज्ञानी होने का पात्र कैसे अदा करूँ।" अब ये नहीं कहेंगे कि, "अरे, मैं तो सुकुमार प्रेमी हूँ, मैं जा कर कंस से कैसे भिड़ जाऊँ? मेरी कोई प्रतिष्ठा है, मैं सड़क पर कैसे उतर आऊँ? मैं तो इस धर्म का अनुयाई हूँ, मैं मंदिर कैसे चला जाऊँ, मैं मस्जिद कैसे चला जाऊँ? मुझे तो इतना ज्ञान है, में बेवकूफ की तरह आचरण कैसे करने लग जाऊँ?"

आपको तब पता चल जाता है कि ये सब चीज़ें आपको वक़्त ने दी हैं। और जो भी कुछ आपको वक़्त ने दिया है, वो तो वैसे भी बेवफ़ा है, चला जाना है। उसको कितनी गंभीरता से ले रहे हो भाई? जब ये रवैया आ जाता है, तब आप समय के पार चले गए।

जो समय के पार चला गया, उसने शुरू कर दिया वर्तमान में जीना।

तो ‘*लिविंग इन द मोमेंट*’ का अर्थ है, समय के पार चले जाना, उस सब से आगे निकल जाना जो समय से मिला है।

वक़्त ने मुझे जो भी दिया है, ज्ञान दिया है, सम्बन्ध दिया है, रिश्ते-नाते दिए हैं, मेरे तमाम पात्र दिए हैं, मैं जितनी भी ज़िम्मेदारियों की, किरदारों की, अदायगी कर रहा हूँ, वो सब दिए हैं मुझे। अब ऐसे नहीं कि हमें अदायगी से कोई इंकार है, हमें तो अदायगी से कोई परहेज़ ही नहीं, हम तो डूबते हैं। डूब इसलिए पाते हैं, क्योंकि डूबने में हमें डर नहीं लगता। ये तो वैसे भी आनी-जानी चीज़ें हैं, इनसे क्या डरना। ये बेचारे तो ख़ुद मरने को तैयार बैठे हैं, हमें क्या डराएँगे! जो ख़ुद जाने के लिए तैयार बैठा हो, वो इतना बेचारा है कि उस बेचारे से हम क्या डरें! अब आप जी रहे हैं। जीने का अर्थ ही है, वर्तमान में जीना। वर्तमान में जीना और समर्पण में जीना एक ही बात है। वर्तमान में जीना, और समय से हट कर जीना एक ही बात है। वर्तमान में जीना और आज़ादी में जीना एक ही बात है।

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