आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
सुधरेगी तो पूरी ज़िन्दगी या फिर कुछ नहीं || (2017)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत: पूरा जीवन अगर सुचारु नहीं है तो वो — ग्रंथ भी यही कहते हैं, मेरा भी अनुभव यही रहा है — कि फिर बड़ा मुश्किल हो जाएगा आचरण पर नियंत्रण कर पाना। आहार-विहार तो आचरण की ही बात है न – क्या खाया? क्या पिया? पूरी दिनचर्या, सारे सम्बन्ध, अखबार में क्या पढ़ रहे हैं, टीवी में क्या दिख रहा है, इंटरनेट पर क्या रुचि है और आचरण कैसा है, आहार-विहार कैसा है यह सब आपस में जुड़ी बातें है। कोई एक इनमें से अकेले ठीक कर पाना ज़रा मुश्किल काम रहा है।

आमतौर पर जब सुधरते हैं तो सब एक साथ सुधरते हैं, सुधरने के रास्ते मैं बाधा यह बात बन जाती है कि अगर किसी एक से मोह बैठ गया हो…आप ऐसे समझ लीजिए कि कोई बहुत बड़ी ट्रेन है, उसके सारे डब्बे आपस में जुड़े हुए हैं। यह सारे डब्बे, ये हमारी दिनचर्या के अलग-अलग भाग हैं या इसको जीवन के अलग-अलग भाग समझ लीजिए। इसीलिए मैंने दिनचर्या सम्बंधित प्रश्न किया था। इनको जुड़े ही रहना है इन्हें अलग-अलग कर पाने का कोई तरीका नहीं है। इनमें से एक भी डब्बा अगर चलने से इनकार कर दे तो बाकी भी नहीं चल पाएँगे।

मैं इसी बात को थोड़ा और आगे ले जाता हूँ, अगर रेलगाड़ी है और लम्बी रेलगाड़ी है तो उसमें सैकड़ों पहिये होंगे। उनमें से अगर एक पहिया भी चलने से इनकार कर दे तो बाकी भी बहुत दूर नहीं जा पाएँगे, बाकियों पर बहुत ज़ोर पड़ेगा, बड़ा घर्षण हो जाएगा। तो हमारी जो समूची दिनचर्या है उसको आप डब्बे मानियेगा और दिनचर्या के भी सूक्ष्म अंगो को आप डब्बे के पहिये मानियेगा। चलेंगे तो सब साथ चलेंगे, और अगर एक भी अटक रहा है तो या तो पूरी तरह से रोक देगा, या फिर अगर व्यवस्था आगे बढ़ेगी भी तो घिसटकर बढ़ेगी।

एक भी पहिया ऐसा ना हो जिसने पटरी से मोह बाँध लिया हो, तादात्म्य स्थापित कर लिया हो। कुछ भी जीवन में अगर ऐसा रहता है न जहाँ फँस गया आदमी, तो वो छोटा सा हिस्सा नहीं फँसता, आदमी समूचा का समूचा फँसता है। इतना बड़ा शरीर है, लेकिन मेरी ये छोटी उंगली भी अगर इस मेज़ से चिपक गयी तो ये उंगली नहीं चिपकी, मैं ही चिपक गया। और अकसर यही चूक हो जाती है। हम अस्सी प्रतिशत मुक्त हो जाते हैं, हम पिचान्य्वे प्रतिशत मुक्त हो जाते हैं; यह छोटी उंगली का मेज़ से मोह नहीं जाता, कुछ-न-कुछ रह जाता है जो पकड़े रहता है।

और फिर इसीलिए जो हिस्से मुक्त भी हैं वो भी मुक्त नहीं रह पाते, हाथ बहुत कोशिश करेगा इधर-उधर जाने की, मन कोशिश कर लेगा उड़ पाने की लेकिन यह ज़रा सी छोटी उंगली, बाँध कर रख देगी पूरे तंत्र को। यह बड़ी सतर्कता माँगता है। यहाँ पर आकर करीब-करीब सब फँस जाते हैं और भ्रम भी हो जाता है न, कि निन्यानवे प्रतिशत तो छूट ही गए। पूर्णता का मतलब ही यही है – ‘या तो उपलब्ध होती है, तो पूरी - पूर्णता है न, तो पूरी ही मिलेगी - और नहीं मिली तो उसके ना मिलने में भी पूरापन रहेगा।’

नहीं मिली तो फिर नहीं ही मिली, पूरी नहीं मिली। ऐसा नहीं हो सकता कि अधूरी मिली या अधूरी नहीं मिली – या तो पूरी मिली या पूरी नहीं मिली। तो इस छोटी उंगली को लेकर थोड़ा सा जागरुक रहियेगा, यह बात मैं उन्हीं लोगों से कहता हूँ जिनको मैं देखता हूँ कि अधिकांश तो निर्मलता ही है, जिनको मैं देखता हूँ कि व्यवस्था काफ़ी हद तक तो मुक्त ही है तो फिर मैं उनसे कहता हूँ कि जो थोड़ा बहुत आपने छोड़ दिया हो उसको थोड़ा बहुत मत समझियेगा। पिच्यानवे प्रतिशत पर जाते ही ये भ्रम हो जाता है न कि, "पिच्यानवे तो कर लिया, बहुत है, थोड़ा छूटता है तो छूटे!"

' लास्ट माइल फ़टीग (अंतिम मील की थकान)', जिसको कहते हैं कि आ ही गए, हो ही गया, अब ज़रा सा बचता है तो बचा रहे। वो ज़रा सा नहीं बचता है। ये छोटी उंगली पूरे-पूरे बाजू को बाँध लेगी, ये छोटी उंगली कंधो को जाँघों को, सारी माँसपेशियों को बाँध लेगी। तो थोड़ा भी छोड़ियेगा नहीं बिलकुल। जब तक आखिरी कदम ना रख दें तब तक यही मानियेगा कि पहला कदम भी नहीं रखा।

आप शायद कृष्णमूर्ति की बात कर रहे थे, “ फर्स्ट स्टेप इज़ दा लास्ट स्टेप (पहला कदम आखिरी कदम है)” और आखिरी नहीं रखी तो जानिये कि पहली नहीं रखी क्योंकि अगर पहली ही आखिरी है और आखिरी नहीं रखी गयी तो कौन सी नहीं रखी गयी? फिर पहली भी नहीं रखी गयी तो फिर तो यही माना जाए कि अभी तो शुरुआत भी नहीं हुई – आखिरी तक जाइएगा।

आप की शुरुआत है उसमें मुझे शुभ दिख रहा है। आपके चेहरे पर, आपकी बातचीत में एक शांति है। इसका हक़ है कि ये मंज़िल तक पहुँचे, बीच में जो भी व्यवधान आ रहे हों, आकर्षण आ रहे हों, आपका कर्तव्य है कि उनको पार करें। ये हमारे भीतर जो होता है, जीसस का वचन है कि हमारे भीतर जो बैठा है, जो मंज़िल को जानता है, जो स्वयं मंज़िल है और जो मंज़िल पर हमें पहुँचाना चाहता है अगर आपने उसको प्रकट होने दिया, अगर आप उसके अनुसार चले तो वो आपका तारणहार बन जाएगा, वही आपको बचा देगा। और अगर उसको प्रकट नहीं होने दिया तो वही आप का नाश कर देगा – “ दैत व्हिच इज़ वीथिन यू, इफ एक्सप्रेस्ड, विल बिकम योर सविओर। एंड इफ नॉट अलॉउड टू बी एक्सप्रेस्ड, विल बिकम योर डिस्ट्रॉयर "

जहाँ प्रकट हो रहा हो वहाँ उसे खुल कर प्रकट होने दें, बड़ी मौज है उसमें, बड़ी मस्ती है। बीच-बीच में माया बाधाएँ डालेगी, जब लगे तो बस परमात्मा को याद करें, मन को शांत होने दें, बाधा के पार निकल जाएँगे। बीच में मत रुकिएगा।

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