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लेख
सब सदा सर्वथा पूर्ण || आचार्य प्रशांत (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
4 मिनट
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श्रोता : भ्रष्टता कहाँ पैदा हुई ? किस बिंदु पर ?

वक्ता : कहीं भी नहीं।

श्रोता : जो ये गंदगी दिखती है…

वक्ता : कहीं भी नहीं। कहीं कोई करप्शन, भ्रष्टता नहीं है। भ्रष्टता किसको कहना चाहते हो?

श्रोता : मतलब जो आसक्ति है।

वक्ता : कहीं कुछ करप्ट नहीं है। इस बात को बिलकुल ढंग से समझना, कहीं कुछ गलत नहीं है। चाहो तो लिख लो, ‘There is no corruption,no deficiency, no incompletion’. कहीं कोई भ्रष्टता, कोई कमी, कोई अपूर्णता नहीं है।

All is already and always perfect.

श्रोता : इसको थोडा सा और समझाये, क्यूंकि अगर मन स्रोत से निकला है और कोई भ्रष्टता नहीं है , तो सुःख में फंस जाना, दुःख में फंस जाना, यह क्यूँ है ?

वक्ता : सुःख में क्यों फंसते हो आप? प्लेज़र में क्यों फंसते हो ? बिलकुल बारीकी से जाइएगा। आप क्यूँ जाते हो सुख कि तरफ?

श्रोता : कुछ अपूर्णता है, कुछ कमी है।

वक्ता : मैं यहाँ लिख रहा हूँ All is already and always perfect और ये इस कमरे कि दीवारों में है, इस कमरे कि हवाओं में है ,ये बात इस कमरे कि रौशनी में है। ये बात यहाँ के रेशे-रेशे में है। सूक्ष्मतम परमाणु में भी ये बात घुसी हुई है। और आप भी इसी कमरे में हो और आप सुख की तरफ भाग रहे हो। मतलब क्या है इस बात का? आप जिस आकाश में हो, उस आकाश के रेशे रेशे में, अणु -अणु में ये बात बसी हुई है कि सब सदा सर्वथा पूर्ण है, लेकिन आप सुख की तरफ भाग रहे हो। इसका अर्थ क्या है?

श्रोता : क्यूंकि मैं मान रही हूँ कि सब परफेक्ट नहीं है।

वक्ता : बस,बस बस,बस…तो ये जो तुमने कहा कि करप्शन क्यों है ? यही करप्शन है कि तुम मान रहे हो कि करप्शन है। करप्शन है ही नहीं। करप्शन है ही नहीं। पर हमें ये विचार है कि कुछ कमी है और इस कमी को पूरा करने के लिए हम किस तरफ जाते हैं?

श्रोता : सुःख की तरफ।

वक्ता : सुख की तरफ। प्लेज़र की तरफ। ये मानना कि कुछ कमी है, यही कमी है।

श्रोता : ये मानना आता कहाँ से है?

वक्ता : ये मानना, मानने से आता है। ये कहीं से नहीं आता। ये आप क्यों मान रहे हो? मत मानो तो नहीं आएगा।

श्रोता : हाँ, समझ गयी, समझ गयी।

वक्ता : या फिर ये सवाल अपने आपसे तब पूछो जब ये मान रहे हो। ये मानना कहाँ से आता है? आप पाओगे कि मानना गायब हो गया। तो आपको कम से कम एक बौद्धिक उत्तर मिल जाएगा और बौद्धिक उत्तर ये होगा कि ये मानना ध्यान की कमी से आता है। जहाँ ध्यान दिया, तहाँ ये मानना गायब हो जाता है। पर यह भी कोई बहुत उचित उत्तर नहीं है | हाँ, मन को बहलाने के लिए ठीक है कि ध्यान की कमी की वजह से आता है। ये मानना बस मानना है। जहाँ देखा कि मैं मान रहा हूँ, कि कुछ कमी है, वहीं समझ लो माया है।

माया क्या है? कमी का आभास। माया क्या है? वो बस भासती है। प्रतीत होती है। और क्या प्रतीत होता है? कुछ कम है। कुछ कम है। जबकि हवा में और दीवालों में और रौशनी में, हर जगह लिखा हुआ है कि सब परफेक्ट है, पूरा है। पूछो कि समस्या क्यों है? क्योंकि तुम पूछ रहे हो, विचार उठा है| समस्या अन्यथा कहाँ है? तुम किसी ऐसी चीज़ कि ऒर इशारा करके पूछ रहे हो कि ‘ये क्यों है?’, जो है ही नहीं। जैसे तुम यहाँ इशारा करो कि कमरे में बरगद का पेड़ क्यों है? तो मैं क्या बोलूंगा? मैं बोलूंगा कि जाओ उसको ध्यान से देखो और पूछो कि तू क्यों है? और क्या होगा इससे? जैसे ही ध्यान से देखोगे तो क्या दिख जाएगा?

श्रोता : है ही नहीं।

वक्ता : है ही नहीं। तो जो तुम पूछ रहे हो कि कुछ भी भ्रष्ट क्यों हुआ? कुत्सित क्यों हुआ? दूर क्यों हुआ? खंडित क्यों हुआ? हुआ ही नहीं। तुम कह भर रहे हो कि हुआ। या यूँ कह लो कि इसीलिए हुआ क्योंकि तुम कह रहे हो। जैसे भी बात को घुमाना फिराना है। जैसे भी समझना है।

स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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