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लेख
शरीर की औक़ात || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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चेतना ना बचे उसके बाद देह का हश्र भी देखा है? दो दिन पुराना मुर्दा भी देखा है, कैसा हो जाता है? यह है इस देह की औक़ात। बड़ी सुंदरता निखारते फिरते हो! यह जितने प्रेमी घूम रहे हैं, देह के, यह पास आने से घबराएँगे।

मर जाओगे उसके ४ घण्टे बाद कोई पास नहीं बैठना चाहेगा। बदबू उठती है, सड़ने लगते हो तो बर्फ़ पर रख दिए जाते हो। ज़्यादा देर तक फूँके नहीं गए तो तुम्हारी वजह से बीमारी फैल जाएगी। यह देह की औक़ात है, कीड़े पड़ जाएँगे; और चमकाओ!

मैं गंदा रहने को नहीं कह रहा हूँ, मैं पूछ रहा हूँ बस, कि जीवन का जितना अंश अपनी ऊर्जा, अपने समय, अपने संसाधनों का जितना बड़ा हिस्सा इसकी (देह) देखभाल में बिता रहे हो, क्या वह हिस्सा इस पर जाना चाहिए था? या जीवन का कोई और ऊँचा उद्देश्य होना चाहिए, जिसकी तरफ़ तुम्हारा समय जाए, संसाधन जाएँ?

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