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लेख
सपनों में गुरुदर्शन का क्या महत्व है? || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्न: आचार्य जी, क्या सपनों में गुरुदर्शन का महत्त्व है?

आजकल कई बार ऐसा हो रहा है कि मेरे गुरुजी सपनों में आ रहे हैं। उनके द्वारा कही गयी बात सुनाई तो देती है, महसूस भी होती है, पर मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि वो कहना क्या चाह रहे हैं, क्या समझाना चाह रहे हैं। पर यह महसूस ज़रूर होता है कि कुछ कहना चाह रहे हैं ।

आचार्य प्रशांत जी: अच्छा लक्षण है यह। इससे यही पता चलता है कि मन सीखने को तैयार हो रहा है। मन इतना तो मान ही रहा है कि गुरु की सत्ता होती है, मन ने इस बात को गहराई से स्वीकृति दे दी है कि गुरु जैसा कुछ होता है।

गुरु क्या कह रहा है ये भले ही न समझ आ रहा हो, पर इतना भी मान लेना बहुत होता है कि गुरु की सत्ता होती तो है।

समझना इस बात को।

इतना भी आसान नहीं होता है। ये तो बहुत ही दूर की बात है कि गुरु के कहे को गह लिया, समझ लिया, या गुरु के समक्ष नतमस्तक हो गये। ये तो बहुत-बहुत आगे की बात है। मन के लिये इतना भी आसान नहीं होता कि वो मान ले कि मन के आगे, मन से बड़ा, मन के अतीत, मन के परे भी कुछ होता है।

मन की पूरी ज़िद यही मानने की रहती है, इसी दुराग्रह की रहती है कि – “जो है सब मेरी सीमाओं के भीतर है, जो है उसका मुझे अगर अभी पता नहीं भी है, तो कल पता लग जाएगा। मैं जैसा हूँ, वैसा रहते हुए भी कल मुझे, जो आज अज्ञात है, कल ज्ञात हो जाएगा। तो मुझे किसी के सामने झुकने की ज़रुरत नहीं। कुछ मुझे पता है, स्वयं ही पता है, अनुभवों से पता है, और जो मुझे पता नहीं वो मुझे कल के अनुभवों से पता चल जाएगा,” – ऐसा मन का आग्रह होता है।

ये मन की ज़िद होती है।

तो आधे से ज़्यादा काम तो तभी हो गया जब मन ने गुरु की सत्ता को स्वीकार कर लिया, कि – गुरु है। झुका तो सही। ये माना तो सही कि मन से बड़ा कुछ है, स्वयं से बड़ा कुछ है। इतना मानने के बाद आगे का काम यूँ भी आसान ही है, और ये नहीं माना तो आगे का काम फ़िर शुरु ही नहीं होगा।

झुक गये हो, तो धीरे-धीरे फ़िर सुनाई भी देने लगेगा, समझ भी आने लगेगा।

सपनों में अगर गुरु की छवि आ रही है – ये शुभ संकेत है।

और, और भी अच्छा है अगर तुम्हें समझ नहीं आ रहा कि सपनों में जो गुरु की छवि आती है वो तुमसे कहती क्या है। भली बात। समझना।

छवियाँ भी हमारी बनायी हुई होतीं हैं, और छवियाँ भी अगर बोलने लगीं, तो बोल भी सब हमारे ही होते हैं। तो भला है छवि आ रही है, धुंधली-सी, और वो छवि कुछ बोल नहीं रही। छवि का आना सूचक है, प्रतीक है। भला है कि प्रतीक भर ही आ रहा है, वो तुम्हें बता दे रहा है कि जीवन में एक नया अध्याय खुलने को है। मन परिपक्व होकर उस मुकाम पर आ गया है जहाँ अब वो सुनेगा, झुकेगा। अच्छी बात है।

अब इसी मुताबिक़ आगे बढ़ो।

ठीक है?

कोई दिव्यदर्शन हैं सपने में। सपने में तुम्हें दिखाई वही देता है जो पहले ही तुम्हारे मन के भीतर है, तो बाहर का, पार का, कोई सपनों में प्रवेश नहीं करता, न कर सकता। फ़िर भी सपने उपयोगी होते हैं, क्योंकि सपनों में तुम्हें अपने मन का तो कुछ पता चल जाता है न।

और ये कोई छोटी बात नहीं है।

पार का ज्ञान नहीं भी हुआ, स्वयं का ज्ञान तो हो गया। सपने स्वयं का ज्ञान कराने में सहयोगी होते हैं। हमारी ही चेतना में क्या छुपा हुआ है, हमारे ही अंतस में गहरा क्या बैठा हुआ है, ये बात सपने में सामने आ जाती है। जागृत अवस्था में हो सकता है, वो बात पीछे रहे, या दमित रहे, सपने में उभर आती है। सपने में तुम्हें अपना ही हाल पता चल जाता है।

तो तुम्हारा हाल अब यह है कि तुम तैयार हो। ठीक है? जब तैयारी है ही, तो कूच करो। जब पता ही चल रहा है कि तैयारी है, तो फ़िर रुको मत अब।

आगे बढ़ो!

ठीक है?

‘शब्द-योग’ सत्र से उद्धृत। स्पष्टता हेतु सम्पादित।

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