आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
सबसे सुंदर है वो चेहरा जिस चेहरे पर डर नहीं || आचार्य प्रशांत
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत: अपनी हस्ती पर भरोसा करिए। आप अपनेआप को जितना जानते हैं, आप उससे कहीं ज़्यादा सामर्थ्यवान हैं। अपना आकलन आप बड़ी हीनता में करते हैं, अंडरएस्टिमेशन (कम आँकना)।

छोटे नहीं हैं आप, विश्वास करिए। उसी ऊँचे विश्वास को श्रद्धा भी कहते हैं। कि जाने दो जो जाता है, हम तब भी जी लेंगे और मौज में जिएँगे। और पक्का भरोसा है कि अगर किसी छोटी चीज़ को छोड़ेंगे तो कुछ ऊँचा, अच्छा और बड़ा ही मिलेगा। भरोसा पक्का है। बुरे-से-बुरा क्या हो सकता है? एक सही उपक्रम में शरीर को मौत आ जाएगी, यही होगा। वो भी बेहतर है एक क्षुद्र जीवन जीने से।

और हमसे अस्तित्व की दुश्मनी है क्या, कि ख़ासकर हमें ही मौत आ जाएगी? मौत अगर हमें आएगी भी तो सबको आनी है। ईमानदारी की ज़िन्दगी जीकर बुरे-से-बुरा ये होगा कि मर जाऊँगा। तो क्या जो बेईमान हैं, वो अमर बैठे हैं? मरना तो बेईमानों को भी है न, मरना तो सब कायरों को भी है न? या कायरता दिखाकर के अमर हो जाते हो?

‘आचार्य जी, हम मरने से नहीं डरते, हम तो कई तरीक़े के कष्टों से डरते हैं। और हम अपने ऊपर वाले कष्टों से भी नहीं डरते, आचार्य जी। हम बहुत अच्छे आदमी हैं। हमारे अपनों को कुछ नहीं होना चाहिए। अपने लिए तो मैं जीता ही नहीं। मैंने तो अपनी ज़िन्दगी ही दूसरों के नाम रखी हुई है। उन्हें कुछ नहीं होना चाहिए, आचार्य जी। इसलिए मैं झूठी ज़िन्दगी जीता हूँ।’

तुम जैसी ज़िन्दगी जी रहे हो, इसमें तुम्हारे अपनों को भी क्या मिल रहा है? तुम्हारे जितने भी तर्क हैं एक कमज़ोर, झूठा, खोखला जीवन जीने के समर्थन में, वो सारे तर्क कितने बेबुनियाद हैं। ये भी अगर कहते हो कि डरी हुई, कमज़ोर ज़िन्दगी जी रहा हूँ अपनों की ख़ातिर, तो मुझे बताओ न, अपनों को भी तुमने क्या दे दिया आज तक? अधिक-से-अधिक एक औसत जीवन।

वो जो अपने हैं न आपके, वो भी एक बहुत ऊँचे जीवन के अधिकारी हैं, हक़दार हैं। और छोटी ज़िन्दगी जीकर के आप उन्हें भी कुछ नहीं दे पा रहे हो। आप उनके साथ भी अन्याय कर रहे हो। कोई तर्क नहीं चलेगा, सब मिथ्या है। सच के ख़िलाफ़ कौनसा तर्क चल सकता है, बताइए।

बस एक चीज़ है जो मैं प्रमाणित नहीं कर सकता, कोई भी प्रमाणित नहीं कर सकता, कि झूठ के आगे भी जीवन है। मैं आपको प्रेरित कर सकता हूँ कि झूठ छोड़ दो। लेकिन उसके आगे भी जीवन है और सुन्दर, सच्चा, ऊँचा जीवन है, ये मैं प्रमाणित नहीं कर सकता। आप माँगते हो गारंटी (आश्वासन), बोलते हो, ‘हाँ-हाँ, ये सब छोड़-छाड़ देंगे। बेकार जीवन जी रहे हैं, हमें भी पता है, लेकिन गारंटी दीजिए कि इसके बाद कुछ बहुत अच्छा मिल जाएगा।’ वो नहीं दे सकता। मैं तो बस आपको प्रेरित ही कर सकता हूँ कि करके देखो, हो जाएगा।

और पहले नहीं हो तुम कि मानव जाति में आप अचानक नये-नये खड़े हुए हैं कि मैं अपने सब झूठ को और कूड़े-कचरे को जलाऊँगा, मुझसे पहले तो किसी ने ये किया ही नहीं। आपसे पहले सैकड़ों-हज़ारों लोगों ने ये किया है। और वही हैं जो जिये हैं। और उन्हीं के नाम से आज मानवता ज़िन्दा है। आप पहले नहीं हैं। सही और सच्चे रास्ते पर आपसे पहले हज़ारों-लाखों लोग चल चुके हैं। तो ये भी मत कहिएगा कि हम ही तुर्रम खाँ हैं क्या, हम कैसे कर लें। कोई भी नहीं करता।

कोई भी नहीं करता माने आप उनको जानते नहीं जिन्होंने किया, क्योंकि आप अच्छा साहित्य पढ़ते नहीं। आप बस देखते हो अपने गली-मोहल्ले में। अपने सोसाइटी, अपार्टमेंट में आप देखते हो, ‘यहाँ तो सब ऐसे ही झूठे-झूठे हैं।’ और फिर आपको तर्क भी यही दे दिया जाता है कि तुम ही आये बड़े फन्ने खाँ! देखो, ताऊजी की लड़की भी वही कर रही है जो हमने कहा। रीता भाभी की लड़की भी वही कर रही है जो सब करते हैं। तुम ही उड़न परी निकलोगी?

आप कहिएगा, ‘हम ही नहीं निकल रहे हैं उड़न परी, हमसे पहले हज़ारों-लाखों निकल चुके हैं। बस आपका अज्ञान इतना है कि अच्छे लोगों के बारे में आपको पता नहीं। आपको सब घटिया ही लोगों की जानकारी होती है, तो आपको लगता है सब घटिया ही हैं।’

अगर मेरी जानकारी में ही जो सौ, दो सौ, हज़ार लोग हों, वो सब एक ही तरह के हों तो मुझे क्या लगेगा? पूरी दुनिया इसी तरह की है। यही लगेगा न? इसलिए ऊँचा साहित्य पढ़ना चाहिए, ऊँची संगति रखनी चाहिए ताकि आपको दिखता रहे कि नहीं, बहुतों के साथ हुआ। सभी के साथ हो रहा है। जो भी कोई सही जीवन जीना चाहता है, वो सफल हो रहा है। वो सब सफल हो रहे हैं, तो मैं भी सफल होऊँगा। और ग़लत जगह जियोगे, ग़लत लोगों की संगति रखोगे — दो-सौ-छप्पन लोगों का व्हॉट्सएप ग्रुप है, उसमें से दो-सौ-पचपन बिलकुल एक ही तरह के हैं, ‘हैलो जी! गुड मॉर्निंग जी!’ और बना दिये दो फूल सुबह-सुबह। ऐसे व्हॉट्सएप ग्रुप में रहोगे तो वहाँ यही सब सुनने को मिलेगा।

संगति से अलग कुछ नहीं है। संगति से ऊँचा कुछ नहीं है। आपकी जैसी संगति है, आप वैसे ही हो जाओगे। उससे अलग आप नहीं हो सकते।

और तुर्रा ये रहेगा कि आप कहोगे, ‘पूरी दुनिया ही ऐसी है।’ पूरी दुनिया वैसी नहीं है, पूरा इतिहास भी वैसा नहीं है, बस आप जिन लोगों को जानते हो, वो वैसे हैं। तो अपने तर्कों को थोड़ा क़ाबू में रखिए।

डर इतनी केन्द्रीय बीमारी है कि हमारे उच्चतम ग्रन्थ भी ये नहीं कहते कि वो आपको मोक्ष दिलाने के लिए हैं या वो आपके भीतर से मोह कम करने के लिए हैं या क्रोध या काम कम करने के लिए हैं, वो भी ये कहते हैं कि वो आपके भीतर से डर कम करने के लिए हैं। हमारे चेहरों पर डर लिखा रहता है।

किसी ने पूछा था मुझसे एक बार कि सुन्दर किसको मानूँ। मैंने कहा, सिर्फ़ एक है उसका पैमाना — चेहरे पर डर नहीं होना चाहिए। डर आपको बदसूरत बना देता है, फिर कितना भी मेकअप (श्रृंगार) कर लीजिए। और जिसके चेहरे पर डर नहीं है, वो सुन्दर है। सौन्दर्य की शायद इससे सटीक परिभाषा हो भी नहीं सकती। जहाँ डर नहीं है, वहाँ सौन्दर्य है।

बड़े-से-बड़े ख़तरे के सामने, नुक़सान की स्पष्ट सम्भावना के सामने भी आपका चेहरा चमकना चाहिए। मूर्ख लोग नहीं आएँगे आपको ‘मिस्टर इंडिया’, ‘मिस यूनिवर्स’ देने। लेकिन आप जानेंगे, और जो भी कोई ढंग का इंसान होगा वो जानेगा कि आपसे ज़्यादा उस पल में खूबसूरत कोई नहीं है।

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