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लेख
प्रेम और विवाह || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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वक्ता: प्रेम क्या है और उसका शादी से क्या सम्बन्ध है?

सुनने में ये दोनों एक ही संवर्ग के शब्द लगते हैं, प्रेम और विवाह । और एक शब्द तो प्रेमविवाह भी होता है । पर वास्तव में इनमें कोई विशेष रिश्ता-नाता है नहीं । बिलकुल भी नहीं है ।

सबसे निचले तल का जो प्रेम होता है, वो आकर्षण भर होता है- सिर्फ एक आकर्षण । और वो ये भी ज़रूरी नहीं है कि ये किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच में हो । वो व्यक्ति और वस्तु के बीच में भी हो सकता है और वस्तु और वस्तु के बीच में भी हो सकता है । तुम खिंचे चले जाते हो एक नए मोबाइल की तरफ । एक नया मोबाइल लॉन्च हुआ है बाज़ार में और तुम खिंच गए उसकी तरफ, या कि लोहा खिंच गया चुम्बक की तरफ । वस्तु और वस्तु, व्यक्ति और वस्तु ।

ये सबसे निचले तल का प्रेम है । ये इतना निचला है कि इसको प्रेम कहना भी उचित नहीं होगा, पर चलो कहे देते हैं क्योंकि हम अक्सर प्रेम शब्द का प्रयोग यहाँ भी कर जाते हैं । हम कह देते हैं कि मुझे अपनी बाइक से प्यार है । वो सिर्फ एक आकर्षण है पर हम कह देते हैं कि मुझे अपनी बाइक से प्यार है । तो ये दुरूपयोग ही ही है उस शब्द का पर चलो, ठीक, तुम करते हो, कोई बात नहीं । ये सबसे निचले तल का है, इसमें कोई समझ नहीं है । तुम बिल्कुल नहीं जानते क्या हो रहा है,बिल्कुल बेहोशी है ।

उससे थोडा सा ऊपर एक दूसरा प्रेम होता है जिसमें तुम्हें झलक तो मिलती है – समझ की भी, जानने की भी, असली अपनेपन की भी । जिसमें तुम वस्तु में भी वस्तु के पार कुछ देखते हो, जिसमें तुम व्यक्ति में भी व्यक्ति के पार कुछ और देखते हो पर बस झलक मिलती है ।

जो सबसे निचले तल का प्रेम होता है वो शोषण भर होता है, कुछ तुम्हारा फायदा हो रहा होता है इसलिए आकर्षण है । बाइक से उसी दिन तक आकर्षित हो जब तक वो अच्छी दिखती है और अच्छी चलती है । वही बाइक अभी कूड़ा बन जाए तो तुम्हें आकर्षण नहीं रहेगा । वही मोबाइल जिस दिन काम करना बंद कर देता है, जिस दिन उसकी उपयोगिता नहीं रहती है तुम उसे फेंक देते हो, बेच देते हो या दे ही देते हो किसी को । वो सबसे निचला तल था ।

आदमी कभी-कभी उससे ऊपर उठता है, जहाँ पर वो ये कहता है कि मुझे उपयोगिता नहीं देखनी, मुझे शोषण नहीं करना । मैं अपनी ख़ुशी नहीं चाह रहा हूँ इस चीज़ से, बस है । यह जो कुछ है बस मैं इससे एक हूँ ।

अन्तर समझ रहे हो ना निचले तल में और इसमें ।जो निचले तल का प्रेम है उसमे तुम किसी वस्तु या व्यक्ति से सम्बन्धित इसीलिए हो ताकि तुम्हारा कुछ मुनाफा हो सके । मोबाइल तुम्हें कुछ फायदा देता है । तुमने किसी को देखा कि यह पढ़ने में बहुत अच्छा है और तुमने कहा, ‘ वाह, इसके नोट्स मिल जायेंगे ‘, तुम उसकी ओर खिंचे चले गये । तुम्हें ये लग सकता है कि तुम्हें वो बहुत प्यारा है पर वो प्यारा है नहीं । तुम अपने मुनाफे के लिए उसके पास चले गए हो । हो सकता है कि तुम्हारे मन में स्पष्टतया ये ख्याल भी ना हो कि मुनाफे के लिए जा रहा हूँ पर जा तुम मुनाफे के लिए ही रहे हो।

मैंने कुछ दिन पहले देखा एक लड़का टी-शर्ट पहन कर घूम रहा था जिस पर लिखा था कि ‘My dad is an ATM.’ , अब उससे पूछो तो कहेगा कि ये तो मज़ाक है, ये बस यूँ ही लिखा हुआ है । पर ये मज़ाक है नहीं और मैं उसी लड़के की बात नहीं कर रहा हूँ । हम सबकी ज़िन्दगियों में ये मज़ाक है नहीं ।

हमारे सारे सम्बन्ध लाभ पर आधारित है और वो लाभ पारस्परिक होता है, वो व्यापार होता है, तुम्हें उससे लाभ है, उसे तुमसे लाभ है । पर वो प्रेम है नहीं, वो तो व्यापार हो गया ना । मैं तुम्हें कुछ दे रहा हूँ, तुम मुझे कुछ दे रहे हो, व्यापार हो गया ना ।तो जहाँ पे आपको पता होता है कि मुनाफे के लिए जा रहे हो तो तुम कह भी देते हो । अक्सर हमारे सम्बन्ध होते मुनाफे के लिए ही हैं पर हमें पता नहीं होता । ये मैं कह रहा हूँ, सबसे निचले तल का है । वहाँ पर बस एक खिंचाव है ।

उससे ऊपर के तल की बात शुरू करी थी । मैंने कहा इस प्रेम में झलक तो मिलती है, किसी बहुत गहरी चीज़ की, कुछ ऐसी चीज़ की जो बड़ा सुकून दे जाती है, पर वो झलक बड़ी अस्थायी होती है- fleeting, temporary । और जब वो झलक चली जाती है तो हम डर जाते हैं कि वो झलक कहीं छिन ना जाए । कुछ बहुत प्यारा मिला था, हम उसे पकड़ लेना चाहते हैं । एक डर उपजता है ।

पहले तल में तो डर भी नहीं होता, जैसे मैंने कहा था कि लोहा चुम्बक की तरफ आकर्षित हो रहा है उसमें डर भी नहीं है । कुछ नहीं है, बस एक मुर्दा सी प्रक्रिया है, उसमें कुछ नहीं है । तुम बाइक की तरफ जा रहे हो, तुमने कभी जानने कि कोशिश भी नहीं की है कि बाइक क्यों प्यारी है ? दावा बस है कि बाइक अच्छी लगती है । तुमने कभी गौर से देखा नहीं कि कैसे अच्छी लगनी शुरू हुई और किस दिन अच्छी लगनी खतम हो जायेगी ? वो सबसे निचला तल था, उससे ऊँचे वाले तल पे कुछ और होता है ।

क्षण भर के लिए ही सही, थोड़ी देर के लिए ही सही, कुछ दिनों के लिए ही सही, तुमको किसी दूसरे में कुछ ऐसा दिखाई देने लगता है जो तुम्हें तुम्हारे करीब ले आता है । तुम कहते हो कि जब तुम्हारे साथ होता हूँ तो अपने साथ हो जाता हूँ । तुम कहते हो कि खुद को समझने का बड़ा मौका मिलता है जब तुम साथ होते हो । तुम्हारे साथ होने में मैं बंधक नहीं होता बल्कि मुक्त हो जाता हूँ ।

कई लोग होते हैं कि जिनके साथ रहो तो बड़ी कसमसाहट महसूस होती है, लगता है भागो । मुक्ति मिले किसी तरीके से । और कोई ऐसा भी हो सकता है, मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि अगर लड़की है तो लड़के का ही साथ होगा या लड़का है तो लड़की का ही साथ होगा । वो कोई भी हो सकता है, वो माँ-बाप भी हो सकते हैं, वो अपना गुरु हो सकता है, वो कोई किताब भी हो सकती है । पर बात इतनी है कि जब उसके साथ होते हो तो अपने पास आ जाते हो । पर वो अपने पास का होना लेकिन , जैसा मैंने कहा, क्षणभंगुर होता है, temporary ।

होता बड़ा प्यार है, वो कुछ क्षण,जब तुम उस किताब के साथ हो, या उस व्यक्ति के साथ हो, इतने मीठे होते हैं, इतने सुकून के होते हैं जो तुम्हें कहीं और अन्यथा मिलता नहीं है । तो स्वाभाविक सी बात है कि मन कहता है कि इन क्षणों को बाँध के रख लूँ । ये कहीं जाने ना पाएँ, मन डर जाता है । मन कहता है कि ये जो सुकून मिला था, ये इस व्यक्ति की उपस्थिति में ही मिला था, मैं इस उपस्थिति को पक्का बना लूँ, क्या कर लूँ ? पक्का दीवार में कैद कर के रख लूँ । ऐसी बहुत सारी दीवारें होती है । ये जितने हमारे रिश्ते-नाते होते हैं, वो एक तरीके की दीवार हैं ।

वैसी ही एक दीवार का नाम है विवाह । कुछ मिल गया है वो छूट ना जाए, उसको पक्का कर दूँ । विवाह के मूल में एक डर बैठा हुआ है, क्या डर ? कुछ छूट ना जाए, तो कसमें खाते हैं, आग के चारों ओर फेरे लेकर के कि मैं तुम्हे नहीं छोडूंगा और तुम मुझे नहीं छोड़ोगे । अगर डर ना हो तो इन कसमों की कोई ज़रुरत नहीं है । तो हुआ इतना ही है कि कुछ बहुत विशेष है जिसकी अनुभूति है लेकिन उसकी अनुभूति दूसरे पर निर्भर है, उस दूसरे को तुम बाँध लेना चाहते हो । अब उसकी अनुभूति अपनी नहीं है । तुम कहते हो कि जब तू सामने होता है तो सुकून होता है, नहीं तो फिर से बेचैनी ।

ये जो सुकून है ये निर्भर करने लग गया है किसी और पर, तो अब तुम्हारे लिए ज़रूरी हो गया है उसको बाँध लेना । लेकिन इस बाँध लेने में तुम ये ख्याल नहीं करते हो कि उसका क्या होगा । तुम स्वार्थी हो, तुम्हे अपने सुकून की चिंता है, मेरा सुकून बना रहे।ये चिड़िया मुझे पसन्द है, मैं इसे पिंजरे में कैद कर लूँगा, इसमें मैं ये नहीं देख रहा कि चिड़िया का क्या हो रहा है। हाँ, मैं उसे दाना दूँगा, उसे पानी दूँगा, उसकी सुरक्षा करूँगा, हो सकता है कि मैं पिंजरा सोने का बनवा दूँ । हो सकता है कि मैं चिड़िया के गले में हीरों का हार डाल दूँ पर जो भी करा है, कैद कर के तो रख ही किया है चिड़िया को, कैद तो उसको कर ही लिया है ।

तो विवाह एक बड़ी ही अजीब सी चीज़ है, मूल में उसके प्रेम है, पर अभिव्यक्ति डर की है । मूल में तो प्रेम है, कुछ दिखा है ऐसा जिसको तुम खोना नहीं चाहते, लेकिन वो अभिव्यक्ति डर की ही है क्योंकि तुम्हें डर है कि खो सकता है । अगर पूरा-पूरा पा लिया होता तो ये डर नहीं होता कि खो जाएगा । आधा-अधूरा सा पाया है, एक झलक भर है ।

इन दोनों के ऊपर एक तीसरा तल भी होता है जहाँ पर अब तुम किसी और पर निर्भर नहीं हो उस चैन के लिए, उस सुकून के लिए, उस अपनेपन के लिए । वो अब पूरे तरीके से तुम्हारा हो चुका है । अब उसके लिए किसी और की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है । इतना तुम्हारा हो चुका है कि परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है । परिस्थितियाँ कोई भी रहें, तुम मज़े मे रहते हो और इतने मज़े में रहते हो कि वो मज़ा फूटता है, और दूसरों को भी मिलता है । तुम भिखारी नहीं हो, याचक नहीं हो, तुम कहने नहीं जा रहे कि थोडा सा प्यार दे दो । तुम भरे हुए हो ,अपने आप में ही पूरे हो तुम्हें बार-बार प्रपोज़ नहीं करना पड़ रहा कि आओगी मेरे साथ ? अच्छा थोडा सा आ जाओ, एक घण्टा ।

(छात्र हँसते हैं )

वक्ता: इतना सा तो दे दो । ये अब भिखारी होना बंद हुआ, बिलकुल बंद हुआ । और जो हमारा साधारण प्रेम है वो भीख से बहुत आगे कुछ नहीं होता । तुम देखो ना किस-किस तरीके से भीख मांगी जाती है ।

जान दे दूँगी । (छात्र हँसते हैं) हमने तुम्हें बीस साल पाला-पोसा, इतना बड़ा किया, फीस दी, इतना सब किया तुम्हारे लिए, तुम कुछ वसूली नही दोगे वापिस ? ये सब भीख ही माँगी जा रही है । तुम हमारा ज़रा भी एहसान नहीं मानते ? हमने बड़ा प्यार किया, वो बेवफ़ा निकले । ये सब ये ही बता रहा है कि कटोरा खाली है । कोई एक रूपया डाल दे,कोई दो रूपया डाल दे, बस इसी हसरत में ज़िन्दगी बीत रही है । कहीं से तो मिल जाए । देखो ना तुम्हारे फ़िल्मी गाने कैसे होते हैं । यही तो होते हैं ।कोई तो मिल जाए, कैसा भी चलेगा । पल भर के लिए कोई हमे प्यार कर ले, झूठा ही सही । नकली सिक्का ही सही डाल तो दो मेरे कटोरे में, फेसबुक पे लगा दूँगा, उन्हें थोड़े ही पता चलेगा कि नकली है । और कई तो ऐसे होते हैं कि जिनका दिख भी रहा होता है नकली, फिर भी लगा देंगे ।मॉल में जायेंगे, वहाँ वो मैनेकविन खड़ी होती है, जानते हो । पुतले खड़े होते हैं, कपडे पहन के, उनके गले में हाथ डाल के फोटो खींचेंगे । (छात्र हँसते है )और चिपका दी है, झूठा ही सही ।

और फिर जब भिखारी होते हो तब वो सुना है ना ‘Beggars can not be choosers’ . जो भिखारी है उसे तो जो मालिक बोलेगा वो करना पड़ेगा । जो तुम को हो पसन्द वही बात कहेंगे, तुम दिन को कहो रात अगर रात कहेंगे । अब मरो । भीख मांगने गए हो तो ये थोड़े ही कहोगे कि राजा हो, यही कहोगे कि आप का भला हो, फलो-फूलो, आप महान हो, आपकी शकल पर लिखा है कि आप को किसी तरह थोडा सा ही मिल जाए ।

ये तीसरे प्रकार के प्रेम में नहीं होता क्योंकि उसमें तुम भिखारी नहीं होते । वहाँ तुम्हे किसी को बाँध के रखने कि चाहत भी नहीं बची है। तुम कहते हो कि हम पूरे हैं, अब हम बादशाह हो गए ।

पहले पायदान पर हो सोये हुए- बेहोश, पत्थर ।

दूसरे पायदान पर हो भिखारी- डरा हुआ, लालची ।

तीसरे पायदान पर हो जगे हुए- अपने आप में सम्पूर्ण ।

विवाह किस तल पे आता है? दूसरे ।

पहले पर भी नहीं आएगा । लोहा और चुम्बक एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते रहते हैं, नहीं सोचते विवाह की, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता । और तीसरे तल पर भी नहीं आता क्योंकि ज़रुरत ही नहीं है । बिन फेरे, हम तेरे । शादी किसे करनी है ?ज़रुरत क्या है ? किसको सर्टिफिकेट देना है, किसको दिखाना है, किसकी अनुमति चाहिए? समाज से डरता कौन है ? नहीं चाहता तुम्हे बाँध के रखना और ना तुमसे बँध जाना चाहता हूँ ।

प्रेम काफी है, ये तीसरे तल पर होता है । यहाँ पूर्ण मुक्ति है और इसी में प्रेम सम्भव है ।

जब प्रेमी मर जाते हैं तो उनकी लाश पर पति पत्नी पैदा होते हैं । इसका मतलब समझ रहे हो l जिस दिन तक वास्तविक प्रेम है, उस दिन तक तुम्हारे मन में विवाह का ख्याल आयेगा नहीं । और जिस दिन विवाह हो गया, उस दिन प्रेमी बचे नहीं, अब पति-पत्नी हो गए । इसी लिए हर प्रेम कहानी विवाह पर आकर ख़त्म हो जाती है क्योंकि प्रेम ही ख़त्म हो जाता है ।

हर प्रेम कहानी, तुमने कभी देखा है, शादी के आगे भी ? अब ख़त्म,गयी । अब तुम पति और पत्नी हो और ये एक मुर्दा सम्बन्ध है । पति को पता है कि पत्नी के साथ क्या और पत्नी को पता है कि पति के साथ क्या । वो तो एक बंधी-बंधाई बात है कि दुनिया में सभी ऐसा कर रहे हैं तो बस । उसी तरीके से अपना जीवन-यापन करो, बात तयशुदा है । अब उसमे कुछ नया नहीं है । कुछ नया नहीं है । अब एक बंधन भर है । अब तुम को पता है यही है, यहीं लौट के आना है, अपनी मर्ज़ी से नहीं लौट रहे हो रोज़ । प्रेम के कारण नहीं लौट रहे हो रोज़ । इसलिए लौट रहे हो क्योंकि पति हो और पति को लौटना ही पड़ेगा । क़ानून की बाध्यता है, समाज की बाध्यता है, पति को लौटना ही पड़ेगा । प्रेम के कारण नहीं लौट रहे हो । विवाह करते तो हम इसी लिए हैं ताकि प्रेम बचा रहे लेकिन उल्टा हो जाता है ।

सच तो ये है कि प्रेम ऐसी चीज़ है कि जिसको बचाने की कोशिश की वो उसी समय मर जाती है । जैसे लगा लो कि कोई हवा को मुट्ठी में कैद करने की कोशिश करे तो जैसे ही हवा को मुट्ठी में कैद करना चाहा, हवा कहाँ गयी ? (हाथ से इशारा करते हैं ) वो गयी बाहर, प्रेम ऐसी सी ही चीज़ है । जहाँ तुमने उसको बंधन में डालना चाहा वो वैसे ही गायब हो जाती है । वो बड़ी मुक्त चिड़िया है, खुले आकाश में ही उड़ती है, ज़रा सा उसे बंधन दोगे वो ख़तम हो जायेगी । जैसे धूप , धूप को पकड़ना चाहोगे, नहीं पकड़ पाओगे क्योंकि जहाँ तुमने धूप को पकड़ने के लिए कुछ भी करा, छाया आ जायेगी । हाँ, उस धूप में नहा सकते हो । पर उसे पकड़ने की कोशिश मत करना । जितना आनंद बहाना है बहा लो, पर कैद करने कि कोशिश मत करना । जहाँ कैद करने कि कोशिश की वो फिसल जाएगी।

तो मूल में तो यही है कि पा लूँ , कुछ ऐसा पा लूँ जो कभी जाए ना । इसी कारण लोग विवाह करते हैं । इतना प्यार कुछ मिल गया है कि वो जीवन से अब कभी विदा ना हो । इसीलिए विवाह करते हैं पर भूल हो जाती है । क्योंकि जैसे ही तुमने उसको एक नाम दिया और जैसे ही ये कह रहा हूँ वैसे ही कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी है । सुना है ?

हमने देखी है उन आँखों की महकती खुश्बू, हाथ से छू के उसे रिश्तों का इल्ज़ाम ना दो, सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो ।

जिस दिन कोई नाम दे दिया, उस दिन नाम बचता है, प्यार नहीं बचता और हम नाम देने को बड़े आतुर रहते हैं । आप ज़िन्दगी को बहने नहीं देना चाहते । आप प्यार को प्यार नहीं रहने देना चाहते, आपको उसको बांधना ज़रूरी है, एक नाम देना ज़रूरी है । और जहाँ ये करोगे, वहाँ फँसोगे । विश्वास नहीं है ना मन में कि मिल गया है वो बचा रहेगा । हम कहते हैं कि मुझे कुछ करना चाहिए और क्या करना चाहिए, शादी कर लेनी चाहिए । कुछ मिल गया है धोखे से अब मैं उसको पकड़ लूँ । विश्वास नहीं है । मत रखो विश्वास, डरे हुए हो, डरे रहो । डर के कुछ पाओगे नहीं । डर के प्रेम तो निश्चित रूप से नहीं पाओगे । सम्भव ही नहीं है, डरा हुआ मन प्यार नहीं कर सकता । जो डरते हैं वो प्यार करते नहीं और तुम डर-डर के ही शादी करना चाहते हो । तुम्हारी बात नहीं, पूरी दुनिया की यही बात है ।

चार महीने बीतेंगे नहीं और वो लड़की चिल्लाना शुरू कर देगी कि शादी कब होगी और तुम बोल के दिखाओ कि ऐसा तो मेरा कोई इरादा नहीं है । कहेगी कि मुझे करैक्टरलैस समझ रखा है । फिर किस नाते ये सब चल रहा है ? FIR और हो जायेगी । तुम बोल के दिखाओ कि प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो । कहेगी कि सारे नाम चाहिए, मुझे तुम्हारा नाम भी चाहिए, अपना नाम भी बदलना है । नाराज़ मत हो, बात सिर्फ लड़कियों की नहीं है, सबकी यही है । ये तो बताओ कि तुम मेरे कौन हो ? क्यों जानना है ? स्वस्थ रहो, आज़ाद रहो और श्रद्धा रखो मन में कि बिना तुम्हारे किये भी तुम्हे बहुत कुछ मिलता रहेगा । जो मिला है वो तुम्हारे करे नहीं मिला है ।

जो तुम्हारे लिए सबसे अमूल्य है, जीवन भी, वो तुम्हे, तुम्हारे कर्मों से नहीं मिला है, बस मिल गया है । ये हवा, ये पानी, ये धूप , ये सब कुछ कर-कर के नहीं मिले हैं, ये बस मिल गए हैं ।

तीसरा पायदान याद रखना, भले अभी तुम्हारे लिए वो शाब्दिक ही है । अभी बस वो एक सिद्धांत ही है, लेकिन भूलना नहीं । वहाँ पर तुम किसी पर आश्रित नहीं हो, तुम नहीं कह रहे कि कोई और मिलेगा तो जीवन में बहार आएगी । तुम कह रहे हो कि जीवन मेरा अपने आप में पूर्ण है । मैं अकेला हूँ और बड़ी मौज में हूँ । अकेले होने का मतलब ये नहीं है कि मैं किसी से बात-चीत नहीं करता, मेरे सम्बन्ध नहीं है । मैं अकेला हूँ इसी कारण मेरे बड़े अच्छे सम्बन्ध हैं । मैं आत्मनिर्भर हूँ । गुलाम कोई सम्बन्ध बना सकता है क्या किसी से ? जो मुक्त होता है, उसी के तो सम्बन्ध भी होंगे ना ।

मेरे सम्बन्ध हैं और मेरे सम्बन्ध मेरी माल्कियत से निकलते हैं, मेरे आज़ाद होने से निकलते हैं ।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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