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लेख
प्रेम और आकर्षण || आचार्य प्रशांत (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
5 मिनट
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वक्ता: जब आकर्षण नहीं है, परन्तु फिर भी जुड़ाव है, सम्बंधित हैं, तो उसको समझना कि जुड़ाव है। आकर्षण नहीं है, पर जुड़ाव तब भी रह सकता है, आदत के फल स्वरूप। कि जैसे दो शरीर, एक दूसरे के साथ गले मिले हुए थे और तब ही मर गए। अब प्राण नहीं है उनमें, पर तब भी वो सदा मिले हुए ही रहेंगे। और इसीलिए सदा मिले हुए रहेंगे क्यूँकी प्राण नहीं है उनमें। प्राण अगर होते, तो दूर हो जाते। तो आकर्षण नहीं है, पर प्राण भी नहीं है।

अधिकांशतः मामले जो अरेंज मैरिज के होते हैं, वो ऐसे ही होते हैं। आप वहाँ बहुत कम ख़ट-पट पाओगे। पति-पत्नी बिलकुल एक हो चुके होते हैं, और एक चुके होते हैं इसका ये मतलब नहीं हैं कि उनके बीच में कोई डिवाइन कनेक्शन है। उसका यही मतलब है कि दोनों एक दूसरे के बिलकुल आदती हो गए हैं। गंभीर आदत पड़ गई है एक दूसरे को देख़ने की और इस आदत को उन्होनें पारस्परिक प्रेम समझ लिया है। ये प्रेम नहीं है, ये आदत है।

आप तीस-चालीस साल किसी भी चीज़ के साथ रहो, आपको आदत पड़ जाएगी। आप एक छड़ी के साथ रहो, तो आप बिछुड़ नहीं पाओगे। आप एक जानवर के साथ तीस साल रहो, आपको आदत पड़ जाएगी। आप एक मोटर कार तीस साल चलाओ, आपसे वो बेची नहीं जाएगी – ये प्रेम नहीं है। और अक्सर जो पुराने लोग होते हैं, थोड़े उम्र दराज़, वो आज कल के लोगों को यही कहते हैं कि तुम्हारा प्यार क्या है? तुम्हारा प्यार सिर्फ़ शारीरिक आकर्षण है। ”मुझको देखो, अपनी दादी को देखो, हम में कोई शारीरिक आकर्षण नहीं, फिर भी हम कितने जुड़े हुए हैं।” उनकी बात यहाँ तक तो ठीक थी कि जवान आदमी का जो प्यार है, वो क्या है? शारीरिक आकर्षण। लेकिन वो भूल गए कि अगर जवान आदमी के पास प्रेम नहीं है, तो प्रेम तुम्हारे पास भी नहीं है। वो जुड़ा है शरीर के वशीभूत होकर और तुम जुड़े हो आदत के वशीभूत होकर।

प्रेम दोनों ही किस्सों में नहीं है। तुम्हारी आदत लग चुकी है कि सुबह उठूँगा, बुढ़िया का चेहरा दिखेगा। बुढ़िया की आदत भी लग गई है कि सुबह उठूंगी, इसके लिए चाय बनाउंगी। और कुछ नहीं है।

श्रोता ये जो वाक्य है कि, ‘‘लव इज़ एफर्ट एंड *एक्शन*’’।

वक्ता: वो भी इसी बात पर ज़ोर डालने के लिए दी गई है कि प्रेम सिर्फ़ एक रुमानी एहसास नहीं है। भाई, क्या होता है कि कई सारे लोग उस तल पर बैठे होते हैं, ख़ास तौर पर जवानी में, प्रेम हो गया, प्रेम हो गया। और कैसे हो गया प्रेम? कि पड़ौस के घर में आई है, वो नयी-नयी, उसको दो-चर बार टहलते देख लिया, तो प्रेम हो गया। ऐसे ही तो होता है, 18 साल का प्रेम, और कैसे होता है? और वही अभी ज़्यादा भी नहीं अगर 100 कि.मी. दूर चले जाए, दूसरे शहर में, तो यही प्रेम फ़स भी हो जाता है। फिर इनको इतना भी नहीं होता है कि, ‘’गई होगी 100 कि.मी. दूर, हम रोज़ जाएँगे।’’

श्रोता: ज़्यादा नहीं तड़प आ जाती फिर?

वक्ता: आती है। इतनी आती है कि फिर लगता है कि दाएँ वाली गई है, तो फिर बाएँ वाली को पकड़ लो अब। क्यूँकी तड़प सही नहीं जा रही न अब। जब पहली पत्नी मरती है, तो पति वियोग में गहराई से पागल होता है, इतना पागल होता है, इतना पागल होता है कि दूसरी शादी कर लेता है। और तर्क यही रहता है कि उसकी याद इतनी सताती थी कि दूसरी करनी पड़ी।

तो प्रेम ये नहीं है कि ब्रश करने आई है, तो खिड़की से झाँक लिया। ये दो पैसे का प्रेम नहीं है तुम्हारा। दो कौड़ी की औकात नहीं है। जहाँ ज़रा श्रम करना हुआ, जहाँ ऐसा कुछ करना हुआ, जहाँ तुम्हारे अहंकार को भी चोट लगती है, वहाँ तुम पीछे हट जाओगे। देखा नहीं है कभी कि पाँच-दस साल के प्रेम प्रसंग टूट जाते हैं ,क्यों? क्योंकि पापा ने मना कर दिया।’ ये प्रेम है तुम्हारा? तो इसी सन्दर्भ में कहा गया है कि प्रेम ये नहीं है कि हाथ में हाथ डाल कर पार्क में बैठ गए, तो प्रेम है। फिर जान देनी पड़ती है। वो कर्म में भी तो परिणीत हो। या सिर्फ़ कल्पनाएँ फैलानी हैं, उसका नाम प्रेम है। उसकी कीमत भी तो अदा करो। तो ये उस सन्दर्भ में कहा गया है।

भाई, ऐसा है कि हम सब लोग न, सस्ती श्रद्धांजलि देने में बड़े माहिर हैं। असली मोल देने की हिम्मत नहीं है हममें क्योंकि उसके लिए काम करना होता है। मेल लिख दो किसी को! मेल लिखने में क्या तकलीफ़ है? फ्री मेल सर्विस है, तो गई। पहले तो दो पैसा एस.एम.एस का भी लग जाता था, अब तो वाट्स एप है। अरे! ज़रा कीमत भी तो अदा करो। ‘’सर, आपने मेरा जीवन बदल दिया है, पर मैं आपको अपना चेहरा नहीं दिखाऊंगा!’’ ‘’सर, अद्वैत (संस्था का नाम) ने मुझे परम आनंद दिया है, पर बस मैं एक्टिविटी नहीं बनाता।’’ ये क्या है? इसको कह रहे हैं एफर्ट एंड एक्शन कि मुँह से बोल देने में क्या रखा है कि गए और बोल दिया कि तुम बड़े प्यारे हो। जब कीमत देने की बारी आई, तब सटक लिए। जैसे ये रोडसाइड रोमियो होते हैं, पीछे से बोलेंगे, ‘’आई लव यू,’’ और ज़रा सा पलट के देख लो तो भाग लेंगे।

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