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लेख
प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी, और अध्यात्म
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
8 मिनट
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, दैनिक जीवन में कभी-कभी थक जाता हूँ, जिस कारण अपने कार्यों को अच्छे से कर नहीं पाता। मेरी मदद करें!

आचार्य प्रशांत: क्या काम है जो करना चाहते हो?

प्रश्नकर्ता: जैसे कि बहुत पढ़ना होता है।

आचार्य प्रशांत: क्या पढ़ना रहता है?

प्रश्नकर्ता: जैसे मैं GATE की तैयारी कर रहा हूँ।

आचार्य प्रशांत: इसका कोई उत्तर तुम्हें अध्यात्म में नहीं मिलेगा। अध्यात्म इसलिए नहीं है कि तुम्हें GATE पास करा दे या CAT पास करा दे या UPSC करा दे।

अध्यात्म इसलिए नहीं है कि तुम्हें तुम्हारे द्वारा चुने गए लक्ष्य में सफलता मिल जाए। अध्यात्म बहुत मूलभूत चीज़ होती है। अध्यात्म घर पर लगाई हुई झालर नहीं होती कि घर तो तुमने अपने हिसाब से बना लिया और उस को सजाने के लिए उस पर झालर लटका रहे हो, गेरूए रंग की झालर है और तुम कह दो आध्यात्मिक हो गया घर! वो जैसे लोग घर बनाकर एक मुखौटा लेते हैं राक्षस का और उस पर नींबू-प्याज लटका देते हैं वह अध्यात्म नहीं होता।

अध्यात्म घर की बुनियाद होती है; घर के ऊपर रखा दीया नहीं होता, घर पर लटकती झालर नहीं होती, न नींबू प्याज होता है। वह घर की बुनियाद होती है। अध्यात्म होता है एक ही लक्ष्य को चुनना और वो लक्ष्य है मुक्ति! और उसी लक्ष्य के लिए जगना भी, सोना भी, खाना भी, पीना भी, करना भी और न करना भी।

लेकिन न जाने कहाँ से यह धारणा फैली हुई है कि UPSC क्लियर करना हो तो दिन में आधे घंटे गीता भी पढ़ा करो। दो-चार लोग जिन्होंने किसी तरह से पास कर लिया होगा UPSC, उन्होंने इंटरव्यू में बोल दिया होगा कि मेरी सफलता का राज है श्री कृष्ण द्वारा रचित- भागवत गीता। अब कृष्ण भक्ति में तो भागवत गीता तुम कभी न पढ़ते, नौकरी के लोभ में कुछ भी कर जाओगे।

यह खूब देखा है हॉस्टलों में चले जाओ वहाँ पर हर हॉस्टल में दो-चार मिल जाएँगे कोई जप कर रहा है, कोई माला कर रहा है। पूछिए क्यों कर रहे हो? वह बोले इससे सीधे पाँच परसेंट बढ़ता है और मज़े की बात है कि बढ़ भी जाता है।

(सभी श्रोता हँसते हुए)

IIT दिल्ली का मैं बता देता हूँ, IIT खड़गपुर का देवेश जी बता देंगे(सामने बैठे देवेश जी की तरफ इशारा करते हुए)। यह तो बढ़िया है कृष्ण भक्ति से नंबर बढ़ते हैं, बढ़ा ही लेते हैं।

कितना विद्रुप दृश्य है न? मेघनाद, कुंभकरण सब मारे जा चुके हैं, अब राम-रावण रण छिड़ने वाला है और उसके ठीक पहले रावण क्या करने गया? क्या करने गया था? शिव पूजा कर रहे हैं।

शिव पूजा की जा रही है राम को मारने के लिए।

अब माफ़ करना अगर तुम्हारे इरादे नेंक-पाक हों लेकिन हिंदुस्तान में कोई सरकारी नौकरी में इसलिए तो घुसता नहीं कि उसको बड़ा साफ-सुथरा जीवन बिताना है।

तो आध्यात्मिक ग्रंथों का पाठ किया जा रहा है ताकि सरकारी नौकरी भी मिल जाए, फिर बढ़िया बीवी भी मिल जाए और फिर खूब घूस भी खायें। नहीं जब तैयारी कर रहे होते हैं तो किसी को नही लगता कि घूस खाएगे, सब आदर्शवादी होते हैं, तब सभी भगत सिंह से अनुप्रेरित और लोहिया के चेले होते हैं। पर अंदर जाकर के स्थिति बिल्कुल दूसरी हो जाती है न?

समझो अच्छे से! अध्यात्म इसलिए नहीं होता कि तुम्हें तुम्हारे व्यक्तिगत लक्ष्यों में सफलता मिल जाए और व्यक्तिगत लक्ष्य कुछ भी हो सकते हैं। लड़का नहीं हो रहा, तीसरी शादी नहीं हो रही, मुकदमा लगता है हार ही जाएँगे, दुकान नहीं बढ़ रही ऐसे ही तो लक्ष्य होते हैं हमारे और ऐसे ही लक्ष्यों के लिए हमें अध्यात्म चाहिए होता है। ऐसे ही लक्ष्यों के लिए हम मंदिरों को भर देते हैं।

अकबर भी चला गया था सूफ़ी संतों के पास। क्यों चला गया था? हिंदुस्तान, उस समय दुनिया की सबसे बड़ी बादशाहत थी। उस समय अकबर के राज्य से बड़ा, चीन के राजा का भी राज्य नहीं था और अकबर नंगे पाँव जा रहा है, अजमेर। यही है न कहानी? क्यों गया था? निर्वाण चाहिए था उसको? क्या चाहिए था?

बेटा, नन्हा-मुन्ना।

ये नन्हे-मुन्ने का, अध्यात्म के विकास में बड़ा योगदान रहा है। उनकी वजह से बहुत सारे नास्तिक, आस्तिक हो गए हैं। GATE का भी रहा है, वो दूसरे नम्बर पर आता है।

(सभी श्रोता हँसते हुए)

लोग सोचते हैं कि पंडें-पुरोहित, इवेंजलिस्ट, मुल्ले, मौलवी, चर्चों के मिशनरी ये लोग धर्म का प्रचार कर रहे हैं। बिल्कुल गलत बात है!

धर्म का वास्तविक प्रसार UPSC, CAT, GATE, बोर्ड की परीक्षाएँ ये लोग कर रहे हैं।

कॉलेजों के कैंपस में, एक मंदिर ज़रूर मिलेगा और अस्पतालों के कैंपस में। तो बोर्ड की परीक्षा सामने आए और मौत सामने आए तो घोर नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ध्यान क्या है? ध्यान को लेकर मेरे मन में बहुत सारे भ्रम हैं।

आचार्य प्रशांत: मेडिटेशन क्या है?

कि कुछ पकड़ लिया और उसको कर डाला?

कि किसी ने बता दिया पहले ऐसे, फिर ऐसे, फिर ऐसे इसी को चालीस बार करना है इसी का नाम मेडिटेशन है? मेडिटेशन माने क्या करते हो?

जैसे दौड़ने में ऐसे-ऐसे-ऐसे दौड़ते हो (दौड़ने की भूमिका करते हुए) वैसे ही मेडिटेशन में क्या करते हो?

प्रश्नकर्ता: ध्यान लगाते हैं।

आचार्य प्रशांत: ध्यान लगाते हैं माने क्या लगाते हो? फेविकोल लगाते हो, बम लगाते हो क्या लगाते हो?

प्रश्नकर्ता: बैठकर मन को शांत करता हूँ।

आचार्य प्रशांत: कैसे? पानी डालते हो उस पर? क्या करते हो?

(सभी श्रोता हँसते हुए)

नहीं हँसने की बात नहीं है क्योंकि अभी यह शब्द जितना घूम रहा है 'ध्यान', 'मेडिटेशन' और जितना ज़्यादा यह अभी दूरुपयुक्त है उतना शायद कभी न रहा हो। हर दुकान मेडिटेशन की दुकान है और मेडिटेशन माने अब यह करो, अब यह करो, अब यह करो।

जीने के लिए, एक सही, उपयुक्त, माकूल वजह खोजना, उससे प्रेम में ही पड़ जाना और फिर उसी के लिए जिए जाना यह होता है ध्यान।

दो घंटे को नहीं उमर भर।

अलार्म लगा कर नहीं किया जाता।

कोई विधि नहीं है, कोई तरीका नहीं है मेडिटेशन, जिंदगी ही है।

जिंदगी का कोई छोटा हिस्सा नहीं है, दो घंटे नहीं है, जिंदगी ही है।

या तो जीवन ही ध्यान है या फिर जीवन में ध्यान नहीं हो सकता और अगर जीवन ध्यान नहीं है तो जितने तरीके की भी तुम ध्यान के नाम पर क्रियाएँ कर रहे हो वो सब बेईमानी है। सौ तरीके के नक़ाब हम पहनते-उतारते हैं दिनभर में, उनमें से एक नक़ाब का नाम थोड़े ही है मेडिटेशन या ध्यान।

या जैसे अंग्रेजी में कहते हैं न कि अभी तुमने कौन सी हैट पहन रखी है? तो कभी तुमने हैट पहन रखी होती है दुकानदार की, कभी पहन रखी होती है वक्ता की, कभी श्रोता की तो वैसे ही तुम सोचते हो कि एक हैट का या मुखौटे का नाम है- ध्यान। वह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो तुम ऊपर-ऊपर कर डालो, किसी जगह पर या किसी समय में कर डालो।

ध्यान माने ध्येय को पूरा जीवन हीं समर्पित कर देना।

ध्यान माने उच्चतम लक्ष्य से एक हो जाना। उसी को लक्ष्य बना लेना और हटना नहीं।

अरे! ध्येय अगर उच्चतम होगा तो तुम उसको दो ही घंटे कैसे दे पाओगे? और उच्चतम को अगर दो ही घंटे दे रहे हो तो बाकी बाईस घंटे किसको दे रहे हो भाई?

मेरी टेबल पर 9 उपनिषदों का संग्रह पड़ा होगा ले आना। आज मैं पढ़ रहा था शौनक ऋषि और अंगिरा ऋषि के मध्य का संवाद, मुंडक उपनिषद। तुम जो कह रहे हो उससे उसका ख़्याल आ गया।

पारब्रह्म परमेश्वर के विषय में कथन है- "उपनिषद में वर्णित प्रणवरूप महान अस्त्र धनुष को उपासना द्वारा तीक्ष्ण किया हुआ बाँण चढ़ाएँ फिर भावपूर्ण चित्त के द्वारा बाँण को खींचकर हे प्रिये! उस परम अक्षर पुरुषोत्तम को ही लक्ष्य मानकर वेधो!" ये ध्यान है।

किसको लक्ष्य बनाना है?

प्रश्नकर्ता: ईश्वर को।

आचार्य प्रशांत: ये ध्यान है!

ओंकार धनुष है, आत्मा बाँण है, परब्रह्म परमेश्वर ही उसका लक्ष्य है। वह प्रमादरहित मनुष्य द्वारा ही वीधे जाने योग्य है। उसे वेध कर उस लक्ष्य में तन्मय हो जाना चाहिए।

मन द्वारा आत्मा का वेधन करना है इसी का नाम ध्यान है। जीवन तुम्हारा लगातार ही आत्मा की ओर उन्मुख रहे ये ध्यान कहलाता है।

पग-पग पर सच्चाई ही तुम्हारी पथ प्रदर्शिका हो ये ध्यान कहलाता है।

सच के अलावा जितना कुछ दिखाई देता है, प्रभावित या आकर्षित करता है, उस सब के प्रति तुम उदासीन और निरपेक्ष रहो ये ध्यान कहलाता है।

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