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लेख
मौन और एकांत कोई समस्या नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
4 मिनट
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प्रश्न- सर, मेरी समस्या ये है कि मैं बहुत बोलता नहीं। मुझे अकेले रहना पसंद है।

वक्ता- आयुष, ये एक स्थिति है कि तुम्हें बहुत बात करना पसंद नहीं। ये एक सिचुएशन है, समस्या कहाँ है? स्थिति और समस्या में अंतर होता है।

प्रश्न- सर, लेकिन इसी वजह से लोग बुरा मान जाते हैं।

वक्ता- तो जो हो रहा है उसमें समस्या नहीं है, समस्या ये है कि तुम दूसरों के कहने से प्रभावित हो रहे हो। पहले तो समस्या क्या है ये ध्यान से समझना, समस्या ये बिल्कुल भी नही है कि तुम चुप रहना पसंद करते हो। कई अर्थों में तो चुप रहना बेहतरीन है। It’s far better to keep your mouth shut than to be loose-mouthed.

अभी भी, यहाँ हॉल में, जो लोग चुप बैठे हैं वो एहसान कर रहे हैं दूसरों पर और कई हैं जो विस्फोट कर रहे हैं इधर-उधर। कोई समस्या ही नही हैं इसमें अगर तुम्हें चुप रहना पसंद है।

A little bit of shyness is like a protective cocoon. लार्वा अगर अपने कोकून से निकल भागे तो कभी तितली नहीं बन पाएगा।

जितना भी कुछ महत्वपूर्ण होता हैं वो एकांत में ही होता है । चाहे वो कोई वैज्ञानिक खोज हो या फिर कुछ और। प्रेम और प्रार्थना, ये सब अकेले में ही होते हैं। ध्यान और ज्ञान, सब एकांत में ही घटता है।

तुम्हारी दिक्कत क्या है वो मैं समझ रहा हूँ, तुम्हारी दिक्कत है कि तुम्हें लोगों ने चिढाना शुरू कर दिया है। पर तुम क्यों परेशान होते हो? तुमने क्या ठेका ले रखा है उनके जैसा होने का? Are you obliged to be like them? Who are they to decide the standards of conduct? Who are they to set up benchmarks? वो होते कौन हैं ये निर्धारित करने वाले कि क्या नार्मल है और क्या एब्नार्मल है? उनके पास सिर्फ़ तादाद का ज़ोर है, संख्या का, और शायद परंपरा का।

सत्य बहुमत में यकीन नही रखता। सत्य का डेमोक्रेसी जैसा हाल नहीं है कि सारे लोग जो चाहें वही होगा। ट्रुथ इंडीविजुअलिटी पर चलता है, उसे भीड़ से कोई लेना-देना नही है। इतिहास गवाह हैं की मेजोरिटी हमेशा मूर्खों की रही है। Copernicus was assaulted, even Newton was rejected for a very long time.

भले ही विज्ञान का क्षेत्र हो, राजनीति का हो, बहुमत सदा मूर्खों का ही रहा है। तुम इस चक्कर में पड़ते ही क्यों हो कि मैं अकेला हूँ ?

भेड़ें चलती हैं झुण्ड में, शेर को कभी चलते देखा झुण्ड में?

भीड़ की तलाश तो सीधे-सीधे इस बात की निशानी है कि तुम अपने आप को नहीं जानते। जो अपने आप को जानता है वो किसी भीड़ का हिस्सा नही होता। वो किसी ग्रुप से नही डरता कि ग्रुप मुझे ओपिनियन देगा और उस ओपिनियन के माध्यम से मैं अपनी एक छवि बनाऊंगा। वो कहता हैं कि मेरे पास अपनी आँखें हैं, अपना दिमाग है, मैं खुद को खुद ही जानूंगा।

तुम शांत रहते हो, अकेले रहते हो, इसमें कोई समस्या नहीं, समस्या दूसरी है, उसे समझो। वो दूसरी समस्या है पर-आश्रित होना, दूसरों पर निर्भरता, मानसिक ग़ुलामी। दुनिया की सारी बीमारियाँ इसी से निकली हैं। समझ रहे हो?

मौन, एकांत जीवन का अमृत हैं, कोई समस्या नहीं। किसी पर निर्भरता की ज़रुरत नहीं, अपने साथी तुम स्वयं हो।

– ‘संवाद’ पर आधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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