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लेख
मत पूछो कि करें क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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वक्ता: सवाल है, ‘करें क्या’?

देखो बेटा सवाल है क्या इसको ध्यान से समझना। अक्सर मैं देखता हूँ कि छात्र यही बातें करते आते हैं कि हम समझ गए हैं कि ये ठीक है, ये नहीं । ये जान गए कि हम डरे हुए हैं, ये भी जान गए कि हमारा ध्यान नहीं रहता। अब करें क्या? अब बात आती है कर्म में उतारने की।

ये सवाल जानते हो कहाँ से आ रहा हैं ? ये सवाल ऐसे आ रहा है कि आज तक हमने जो भी किया है, वो दूसरों के बताए हुए रास्तों पर चलकर किया हैं । तो अभी भी तुम्हारे भीतर एक स्वाभाविक सी चाह उठती है। तुम्हें हमेशा दूसरों ने बताया है कि क्या करना है, तो अब तुम सोचते हो कि मैं भी तुम्हें कुछ बता दूँ और तुम वो कर डालो ।

असली गलती तो वही है कि तुम कुछ समझ नहीं रहे है। असली कृत्य तो तुम्हारी अपनी समझ से निकलना चाहिए। अगर तुम्हारा कृत्य किसी और ने निर्धारित किया है, तो ये गुलामी है। मैं कुछ बातें कह सकता हूँ, उनको जानो, समझो, और उसके फलस्वरूप कर्म अपने आप निकलेगा ।

पर तुम्हें आदत लगी हुई है कि किसी और से मैंने एक आचार संहिता(कोड ऑफ़ कंडक्ट) ले ली है, और अब ऐसे ही चलना चाहिए। और बचपन से हुआ ही ऐसा है कि किसी और ने हमें आचरण के निर्देश दे दिए और हम उसी के अनुसार चलते हैं। ये दिशा-निर्देश मशीन को दिए जाएं तो बात समझ में आती है, इस कैमरे को निर्देश दिया गया है कि रिकॉर्डिंग करो, तो ये कर रहा है रिकॉर्डिंग। पर तुम सब पढ़े लिखे लोगों को जिनमें बौद्धिक क्षमता है, तुम्हें कुछ करने के निर्देश दिए जाएं तो बहुत बड़ी भूल होगी ।

मेरा काम है एक माहौल तैयार करना जिसमें तुम समझ सको और जिसके फलस्वरूप कर्म अपने आप निकलेगा। समझने पर ध्यान दो, इस समझने के फलस्वरूप कर्म अपने आप निकलता है। जो समझा नहीं वही पूछता है कि क्या करें?मुझे उदाहरण देना बड़ा पसंद है। तुम्हें भी देता हूँ। तुम हाथ में एक चीज़ लेकर खड़े हुए हो बीस साल से और तुम्हें यह लग रहा है कि ये तो बड़ी पूज्यनीय, बड़ी दैवीय, बड़ी सुन्दर माला है, मंदिर में चढ़ाने योग्य। अचानक से कोई उस पर रौशनी फेंकता है और तुम्हें दिखाई देता है कि जिसे मै दैवीय, पूज्यनीय चीज़ समझा बैठा था, वो असल में एक साप है, किंग कोबरा॥ जैसे ही तुम ये समझ गए कि ये एक साँप है, अब क्या तुम पूछोगे की सर करें क्या?

जैसे ही तुम समझे कि ये है क्या, वैसे ही कर्म अपने आप फलीभूत होगा तुम्हारी समझ से। तुम मोबाइल फ़ोन नहीं मिलाओगे और पूछोगे, ‘पापा, क्या करें, सामने कोबरा है?’ समझ गए तो तुम सिर्फ करोगे ना की गूगल सर्च करोगे, ‘साँप सामने हो तो क्या करें?’

समझ गए तो कर्म अपने आप निकलेगा। अगर ध्यान से सुनोगे तो ये प्रश्न ही नहीं उठेगा ।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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