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लेख
क्या तुम सिर्फ शरीर हो?
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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श्रोता : सर, हमने जब अहंकार के बारे में पढ़ा था तब हमें ये बताया गया था कि जहाँ पर भी ये आ जाये कि ‘मैं हूँ’, वहां पर अहंकार है।

वक्ता : ‘मैं हूँ’ नहीं, ‘मैं कुछ हूँ’।

श्रोता : अगर कोई भिखारी कहे कि मैं भूखा हूँ, तो क्या उसमे भी अहंकार है?

वक्ता : मुकुल कह रहे हैं कि अगर मैं ये कहूं कि भूख लगी है, दर्द हो रहा है तो क्या उसमें भी अहंकार है? बिल्कुल है। बात थोड़ी सूक्ष्म है। ध्यान से सुनना। जब तुम कहते हो कि मैं भूखा हूँ और तुम ये नहीं कहते कि पेट भूखा है, तो तुमने अपनी पहचान पेट के साथ बाँध ली है। अब तुम वही हो जो पेट है। भूख तुम्हें नहीं, पेट को लगी है। तुमने अपनी पहचान पेट के साथ बाँध दी है। पेट शरीर है।

एक बार तुमने अपनी पहचान शरीर के साथ बाँध ली, तो अब तुम्हें वो सब कुछ करना पड़ेगा जो शरीर तुमसे करवाएगा। और तुम्हें ये भ्रम रहेगा कि ये तो मैं कर रहा हूँ। तुम भूल ही जाओगे कि ये तो शरीर कर रहा है। तुमको पता है कि भूख का अर्थ क्या है? भूख का अर्थ ये है कि पेट महसूस कर रहा है कि ईंधन की कमी है उस कारण कुछ रसायन हैं जो रिलीज़ हुए हैं, और रासायनों ने एक सन्देश भेजा है मस्तिष्क को और मस्तिष्क एक अनुभव कर रहा है, जिसे तुमने भूख का नाम दिया है। ये पूरे तरीके से एक मेकनिकल प्रक्रिया है जो एक मशीन के भीतर चल रही है ।

ऐसे समझ लो कि एक कार होती है, उसमें जब ईंधन कम होने लगता है, तब एक बत्ती जल जाती है। उसी बत्ती के जलने का नाम है भूख कि अब ईंधन कम हो गया है। ये पुरे तरीके से एक मेकनिकल प्रक्रिया है। एक यांत्रिक प्रक्रिया है। पर तुमने इसे यांत्रिक प्रक्रिया नहीं जाना, तुमने कह दिया कि मैं भूखा हूँ। तुमने इस तरीके से अपनी पहचान बना ली। तुमने इसके साथ अपने आप जोड़ दिया, तुमने ये नहीं कहा कि पेट में ईंधन की कमी है। नतीजा क्या होगा? नतीजा ये होगा कि तुम पुरे तरीके से अपने आप को शरीर से एक मानोगे। और क्या होगा इससे? ध्यान देना। शरीर के साथ एक मानोगे, शरीर जो कुछ भी करेगा तुम उसे एक मानोगे, तुम्हें लगेगा कि तुम कर रहे हो।

उदाहरण के लिए, सब जवान हो, जिस तरह रसायन द्वारा भूख का पता चलता है, उसी प्रकार शरीर में और भी रसायन होते हैं जिन्हें कहते हैं हॉर्मोन्स। एक उम्र आती है वो हॉर्मोन्स सक्रिय हो जाते हैं। और जब वो सक्रिय होंगे, तो तुम ये नहीं कहोगे कि ये तो केमिकल्स हैं, होर्मोनेस हैं। तुम कहोगे कि मुझे प्रेम हो गया। हुआ कुछ नहीं हैं। हुआ इतना ही है कि जैसे लोहा चुम्बक से आकर्षित होता है, पूरे तरीके से एक फिज़िकल काम चल रहा है जिसको विज्ञान समझा सकता है, कि कुछ रसायन सक्रिय हुए हैं जिनकी वजह से तुम विपरीत जेंडर है की तरफ आकर्षित हो रहे हो। लड़का होगा तो लड़की की तरफ और लड़की होगी तो लड़के की तरफ। पर तुम समझ ही नहीं पाओगे कि ये तो एक यांत्रिक प्रक्रिया है। तुम कहोगे क्या? मुझे प्रेम हो गया है। और फिर जैसे ही वैलेंटाइन्स डे आएगा, तुम देखोगे इधर-उधर कि कोई मिल नहीं रहा। तुम्हें समझ में नहीं आएगा कि इसमें मेरा क्या है? ये केमिकल्स का काम है और अगर ये केमिकल्स मेरे शरीर से निकाल दिए जाएँ, तो प्रेम ही गायब हो जाएगा क्योंकि तुम्हें अंतर ही नहीं करना आता, अपने में और शरीर में। ये सारी दुर्घटनायें हमारे साथ होती ही इसलिए हैं क्योंकि हमें ये कहना ही नहीं आता कि शरीर उत्तेजित हो रहा है। हमें ये कहना ही नहीं आता कि पाँव में दर्द हो रहा है। हम ये कहते हैं कि मुझे दर्द हो रहा है ।

तुमने इसके साथ एक तादात्मय बना लिया है, अपनी पहचान बना ली है। अब फंसोगे, अब मरोगे। करेगा शरीर, भुक्तोगे तुम। समझ में आ रही है ये बात? ये अहंकार है, और हर प्रकार का अहंकार तुम्हें नर्क में ही ले जाता है। नर्क वैसा नहीं कि मर कर कुछ मिलेगा। ये नर्क, अभी । जो भुगत रहे हो, यही नर्क है। अब ये जो मस्तिष्क है, ये भी शरीर है। इसके अपने कुछ नियम हैं। जो समझदार आदमी है वो जानता है कि मस्तिष्क का तो स्वभाव ही ऐसा है , वो यही करता है। वो हमेशा विचारों में रहेगा, वो भटकता रहेगा। पर तुम ये नहीं कहोगे की अरे ! ये तो मस्तिष्क है, जो भटकता रहता है।

तुम कहते हो, ‘मैं बड़ा चिंतित हूँ’। अब भटक मस्तिष्क रहा है और चिंता तुमने अपने ऊपर ले ली। ठीक है, रहो परेशान। जब भी तुम ‘मैं हूँ’ के साथ कुछ भी लगा लोगे तो अब तुमने कष्ट का आयोजन कर लिया।अपने ही पाँव पर मार ली कुल्हाड़ी। किसी भी वस्तु, व्यक्ति या विचार के साथ ‘मैं’ को जोड़ लेना ही अहंकार है। मैं ऐसा हूँ, वैसा हूँ, इनके आगे तुमने कुछ भी लगा दिया, यही अहंकार है। और अहंकार तुम्हें कष्ट के अलावा कुछ भी नहीं देगा, तुम्हें बेवकूफ़ बनाएगा। जिंदगी बेवकूफ़ तरीके से बिताओगे। बात स्पष्ट हो रही है?

श्रोता : जी सर।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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