आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
ख्याल को तथ्य मत समझ लेना || आचार्य प्रशांत (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
4 मिनट
51 बार पढ़ा गया

वक्ता: इसमें लिखा है कि – “अगर मुझे पता भी है कि कोई तथ्यात्मिक रूप से गलत है तब भी मैं कुछ कह नहीं पाता। मैं ये नहीं समझा पाता कि मैं सही हूँ और वो दूसरा गलत है”।

देखो, अगर वो एक ‘तथ्य’ है, तो उसे कभी भी समझाने की ज़रूरत नहीं है। आप तथ्यों को कभी नहीं समझाते। तुम तथ्य ‘देख’ सकते हो। तथ्य देखे ही जाते हैं। तथ्य ‘बताए’ जाते हैं, तुम तथ्य बता सकते हो, पर तथ्यों पर झगड़ा नहीं कर सकते। क्या तुम तथ्यों पर झगड़ते हो?

श्रोता १: हम तथ्यों के सहारे किसी और चीज़ के लिए लड़ते हैं।

वक्ता : हाँ, तुम तथ्यों के सहारे अपने ख्याल के लिए लड़ सकते हो। तुम हमेशा अपने ख्याल के लिए लड़ते ही हो। अगर कुछ वास्तव में तथ्यात्मक है तो कोई बड़ी चीज़ निकल कर नहीं आने वाली। वो तथ्य नहीं है। वो जो पूरी खिचड़ी है न, तथ्य उसका एक हिस्सा हो सकते हैं। शायद उस खिचड़ी का हिस्सा हों, पर वो असली चीज़ नहीं हैं।

अलसी चीज़ कुछ और है। कुछ और पक रहा है। अगर वो तथ्य होते तो इतनी बहस की ज़रूरत ही क्या है। उसे गूगल या विकिपीडिया से जांचा जा सकता है। वहाँ तथ्य होते हैं या उसका अभिलेख किया जा सकता है। तथ्य वहीं मिलते हैं, और उन्हें जांचा परखा जा सकता है। तथ्यों का तो ख्याल-लब ही यही होता है कि जो मैंने देखा वही तुमने देखा। जो तुमने सुना वही उसने सुना। अदालतें तथ्यों को ही तो सत्यापित करती हैं, गवाही यही तो होती है कि ‘हाँ भई, वो दोनों कितनी दूर पर खड़े थे’। ये बताया जा सकता है ‘छ: फीट की दूरी थी’, बात ख़तम हो गई। तथ्यों में कभी इतनी बहस नहीं हो सकती। मामला कुछ और होगा। देखना पड़ेगा, मामला तथ्यों का नहीं है।

तथ्य तो बड़ी निरपेक्ष चीज़ होते हैं। तथ्य तो न तेरा है न मेरा है। तथ्य तो तथ्य है। ‘पांच फीट आठ इंच ऊंचाई है’ – अब इस पर लड़ोगे क्या? क्या करोगे? ख्याल-लब हाँ लड़ाई इस बात पर हो सकती है कि ‘पांच-फीट आठ-इंच वाला लम्बा कहलाएगा, मंझला कहलाएगा या नाटा कहलाएगा’। इस बात पर लड़ सकते हो। पर ये तो तथ्य नहीं है, ये तो ख्याल है। ये निर्णय है। इस पर लड़ सकते हो, बेशक लड़ लो। ये ख्याल कहना लेकिन, कि हम तथ्य पर लड़ रहे थे। हम तथ्य पर जीते नहीं हैं। हम जीते दूसरी चीज़ों में हैं। देखो एक बात समझना, कोई अपने ख्याल को ख्याल नहीं बोलता। जिस दिन दिखाई दे जाए न कि मेरा ख्याल, मेरा ख्याल है, उस दिन वो ख्याल पिघलने लगेगा। हम अपने ख्याल को सदा क्या बोलते हैं? – तथ्य, यही है।

श्रोता २: ‘ये तो एक तथ्य है’ – ऐसा करके बोलते हैं।

वक्ता: “नहीं,नहीं, ये तो एक तथ्य है – तुम तो अपमानजनक हो” – अब ये तथ्य कैसे हो गया, भई? तो पहले तो तथ्य और ख्याल में अन्तर करो कि तथ्य वो है जो तुम्हारे बिना भी रहेगा , ख्याल वो है जो तुम्हारे होने से होता है। तथ्य वो है जो तुम देखो या कोई और देखे तो बात एक है।

हाँ यही शब्द बोला गया है, नेति-नेति में है न –

“बारिश हो रही है”, ये क्या है?

“मौसम बहुत खराब है”, ये क्या है?

अब तुम बोलोगे ये तो तथ्य ही है न कि “मौसम बहुत ख़राब है”।

ये तथ्य नहीं है, ये आपके होने से है। ये आपके मन की अवस्था है।

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें