आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
जो पकड़ेगा वो गँवायेगा || आचार्य प्रशांत, जीसस क्राइस्ट पर (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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द लास्ट शाल बी फर्स्ट, एंड द फर्स्ट लास्ट फॉर मानी बी कॉल्ड बट फ्यू चोज़न।

(मैथ्यू.XX.16 )

वक्ता: नियति सबकी एक ही है, क्योंकि हम सब एक ही हैं। चूंकि हम में, मूल रूप से कोई अंतर नहीं है, इसीलिए हमारी नियति भी एक ही है। जो हम हैं, वही हम हैं। कुछ और होना, भ्रम है। भ्रम मिट जाना है। समय उसी भ्रम का नाम है। जब तक समय है, तब तक यह भ्रम कायम रहेगा कि हम कुछ और हैं। समय भ्रम है और समय में ही वो भ्रम मिटेगा। तो कहीं पर भी जीसस ये नहीं कह रहे हैं कि कोई ऐसा भी है, जो नहीं पहुंचेगा, पहुंचेंगे सभी। समय का अंतर है, कोई पहले, कोई बाद में। तात्विक दृष्टि से देखा जाए, तो पहले और बाद भी भ्रम ही है। तो असल में सब पहुंचे ही हुए हैं। लेकिन जिनको लग रहा है, अभी वो नहीं पहुंचे हैं, उनके पहुंचने में मात्र समय का अंतर रहेगा। अब सवाल ये उठता है कि किसको समय कम लगेगा और किसको समय ज़्यादा लगेगा? पहले कौन पहुंचेगा, और बाद में कौन पहुंचेगा? उसी का उत्तर जीसस यहां दे रहे हैं।

प्रश्न है, पहले कौन पहुंचेगा और बाद में कौन पहुंचेगा? पहुंचेंगे सभी। पहुंचना हम सब की नियति है क्योंकि पहुंचे हम सब हुए ही हैं। जीसस कह रहे हैं, जो इस जगत में पहला है, वो सबसे अंत में पहुंचेगा। यहां पर जो लोग, कतारों में सबसे आगे खड़े नज़र आते हैं, वो ‘वहां’ की कतार में सबसे पीछे नजर आएंगे।

द फर्स्ट शाल बी लास्ट एंड द लास्ट शाल बी फर्स्ट

यहां जो सबसे आगे खड़े नज़र आते हैं, कतारों में, उनका ये मानना है कि यही दुनिया है, इसी को जीतना है, इसी में सबसे आगे-आगे भागना है। काश, उन्हें ये पता होता, कि पहुंचना तो उन्हें भी वहीँ है। वो कितना भी आंखे मूंद लें, कितना भी इनकार कर लें कि, ‘’नहीं, ये जो हमें दिखाई पड़ रहा है, ये जो इन्द्रियगत अनुभूतियां हैं, यही आखिरी सत्य है।’’ ये आखिरी सत्य नहीं है, तो नहीं है। उनके इच्छा करने से नहीं हो जाएगा। आखिर में वहीँ पहुंचना है, आखिरी परीक्षा वहीँ देनी है, और उस परीक्षा में सबसे आखिरी नंबर तुम्हारा लगेगा। इस दुनियां में जो सबसे आगे-आगे भागेगा, वो वही है, जो इस दुनिया को ही सच माने बैठा है। वो यही माने बैठा है कि जो आंखों से दिखाई देता है, और जो कानों से सुनाई देता है, उसके अतिरिक्त कुछ है नहीं। वो मूर्ख है। वो भूल ही गया है कि ये दुनिया, एक आधारहीन द्वैत है।मन बना है संसार से, संसार बना है मन से, और वो ये पूछना ही भूल जाता है कि दोनों किससे बने हैं? वो मन और संसार की ही दौड़ में लगा रहता है, और इस दौड़ को जीतता भी रहता है। आगे-आगे चल रहा है। जीसस उनसे कह रहे हैं, *“ द फर्स्ट शाल बी लास्ट। ”*

जितना आगे-आगे भाग रहे हो, उतना पीछे पहुंचोगे, समय ज़्यादा लगेगा। उम्मीद नहीं खत्म किये दे रहे हैं। ये भी नहीं कह रहे हैं कि यहाँ जो बहुत आगे-आगे भागेगा, वो कभी वहां पहुंचेगा ही नहीं। अगर जीसस ने ये कह दिया, तब तो ये आगे-आगे भागने वालों की चांदी हो जाएगी। वो कहेंगे, यही तो हम चाहते थे कि हम वहां कभी पहुंचे ही नहीं। जीसस कह रहे हैं, ‘’ना, पहुंचना तो पड़ेगा वहां, नियति है तुम्हारी, तुम भी पहुंचोगे, पहुंचोगे और जबाब दोगे। लेकिन सज़ा भुगत कर पहुंचोगे; और वहां, आखिरी होगे।

एंड द लास्ट शैल बी फर्स्ट।

कौन सा वो जगत है, जहाँ जीसस पहुंचने की बात कर रहे हैं? ध्यान से समझेंगे। अभी हमने कहा कि ये संसार वो, जो आँखों से दिखाई देता है, कान से सुनाई देता है, पदार्थ। जो कुछ भी हम कहते हैं कि ‘है’, वो ये संसार है। लेकिन कुछ और भी है ऐसा, जो आंखों से न दिखाई देता है, न कान से सुनाई देता है, लेकिन फिर भी है। वो, वो दूसरी दुनिया है, जहाँ जीसस पहुंचने की बात कर रहें हैं। वही असली दुनिया है।

प्रेम को आप आँख से देख नहीं पाएंगे। आनंद को आप हाथ से पकड़ नहीं पाएंगे। मुक्ति का आप कोई चित्र नहीं बना सकते। सत्य का कोई नाम नहीं होता लेकिन ये हैं, और यही वास्तविक हैं। जीसस कह रहे हैं, इन्हीं की दुनियां मे तुम आखिरी रहोगे।

जो द्वैत की दुनिया में अव्वल है, वो अद्वैत की दुनिया में आखिरी रहेगा। ना उसे सत्य मिलेगा, ना प्रेम मिलेगा, ना आनंद, ना मुक्ति।

जो खूब पदार्थों के पीछे भाग रहा है, जो खूब प्रतिष्ठा कमा रहा है, जिसने ज़मीन को, पत्थर को और आसमान को, इन्हीं को सच मान लिया है, वो असली दुनिया में, अपनी भीतरी दुनिया में — जहाँ उसका घर ही है — वहां वो तड़पेगा, वहां उसे कुछ न मिलेगा, वहां वो कतार में आखिरी नज़र आएगा।

जो बाहर से अपने आप को खूब भर लेगा, वो अंदर से खाली होता जाएगा।

एंड द लास्ट शैल बी फर्स्ट

जो जितना बाहर से अपने आप को खाली करेगा, वो अंदर से उतना ही भरा हुआ होगा और इन दोनों घटनाओं में, अन्दर से भरना पहले आता है। ज्यों-ज्यों अन्दर से भरते जाओगे, ज्यों-ज्यों एक भीतरी तृप्ति की अनुभूति होती जाएगी, तुम पाओगे कि बाहर-बाहर कुछ पकड़ने की आवश्यकता कम होती जा रही है। जितना प्रेम से भरे हुए होगे, उतना छीन-झपट कम करोगे। जितने आनंदपूर्ण होगे, उतना देने में आगे रहोगे।

जितने मुक्त रहोगे, उतना दूसरों को मुक्ति दोगे।

बात समझ में आ रही है?

एक है असली, और एक है भ्रम, और दो अलग-अलग हैं ये आयाम। निश्चित सी बात है, जो भ्रम के आयाम को ही असली मान लेगा, वो असली से चूकेगा। जीसस कह रहे हैं यही:

द फर्स्ट शाल बी लास्ट एंड द लास्ट शाल बी फर्स्ट

जिन्होंनें इसको असली मान लिया, वो असली से चूकेंगे, और जिन्होंनें असली को पा लिया वो इसकी परवाह नहीं करेंगे, और उसी में जोड़ कर के कह रहा हूँ, कि असली ही तुम्हारी नियति है। तुम लाख मनाओ कि भ्रम में जीये आएं, सत्य तो सामने आ ही जाना है। हसरत तुम्हारी भले ही यह हो।

देखो, जिसने खूब वो सब हासिल कर लिया, जो उसे चाहिए था, वो दुनियां का राष्ट्रपति बन गया, सारी सम्पदा है उसके पास, खूब इज्ज़त मिल रही है, घर पर बीवी है, बच्चे हैं, जो जो उसे चाहिये, सब मिला हुआ है। वो क्या चाहेगा? वो भीतर से रूखापन, खालीपन, अनुभव करते हुए भी यही चाहेगा कि, जैसा आज का दिन है, काश! सदा सारे ऐसे दिन रहे आएं। यही चाहेगा कि नहीं? वो कहेगा कि, काश! आज का दिन, किसी फ्रेम में अटक कर रह जाए, फ्रीज़ होकर के रह जाए, कि सारे दिन ऐसे ही चलते रहें। वो कहेगा, बार-बार दिन ये आए। यही कहेगा न? पर बार-बार वो दिन आएगा नहीं। उसका सूरज ढलना है, रात आनी है। नियति है उसकी कि जो कुछ तुझे यहाँ मिला है, वो छिन ही जाना है और अंत में, तुझे बस अपने साथ रह जाना है। इसी अपने साथ होने का नाम है, भीतरी दुनिया।

तुम दुनियां के साथ जितना चहक लो, कैवल्य तुम्हारी नियति है, एकांत तुम्हारी नियति है।

और जितना तुम चहकोगे दुनिया के साथ, उतना तुम पाओगे कि अपने आप को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह रहे। लेकिन, एक सावधानी है, जब जीसस कह रहे हैं, *“द लास्ट शाल बी फर्स्ट।*”, तो तुम पिछले होने की कोशिश में मत लग जाना। ज़बरदर्स्ती त्याग के ढोंग में मत पड़ जाना। जब वो कह रहे हैं, “इसी रीति से जो पिछले हैं, वह पहिले होंगे,” तो उनका आशय, बस सीधा-सीधा, इतना ही है, कि जो भीतर से संपन्न है, उसे बाहरी दौलत की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। याद रखना, वो त्याग नहीं करता। उसे आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जो स्वयं ही बड़ा सुन्दर हो, उसे ज़रूरत क्या है चहरा रंगने की? भीतर से सौन्दर्य फूट रहा है, अब करना क्या है कॉस्मेटिक सर्जरी का? बस इतनी सी बात कह रहे हैं। तो बाहर जो कुछ है, वो उसको छोड़ता चलता है। वो कहता है, ‘’क्या करूंगा तुम्हारे प्रसाधनों का? क्या ज़रूरत है मुझे चहरा रंगने की?’’ भीतर का सौन्दर्य है, भीतर की आभा है, एक तेज है, जो फूट पड़ रहा है, चहरे से बाहर आ रहा है। आंखों से दिखाई दे रहा है। चहरे पर है, होंठों पर है।

बात आगे बढ़ती है, कहते हैं, ‘फॉर मेनी बी कॉल्ड बट फ्यू चोज़ेन’ । नियति तो सबकी है, पर बहुत कम हैं, जो जान पाते हैं इस बात को कि यही हमारी नियति है, *‘मेनी बी कॉल्ड’*। वो नियति सबको आवाज़ देती है। वो जो तुम्हारा स्वाभाव है, वो सभी का स्वभाव है, और वो सभी को बुलाता है। कोई नहीं है, जिसे सत्य नहीं चाहिए। कोई नहीं है, जो प्रेम को ठुकरा सकता हो। कोई नहीं है, जो मुक्ति छोड़ कर बंधन में रहना चाहता हो। ये सबको आवाज़ देते हैं। तुम्हें चैन मिलेगा नहीं, जब तक तुम्हें पूर्ण मुक्ति न मिले। तुम्हें चैन मिलेगा नहीं, जब तक तुम सत्य जान न लो। तुम्हें चैन मिलेगा नहीं, जब तक तुम प्रेम को पी न लो। तो बुला तो ये सबको रहे हैं, ‘*मेनी बी कॉल्ड* ,’ उसको पढ़ो, एवरीबॉडी बी कॉल्ड मेनी भी नहीं, एवरीबॉडी। सबको ये आवाज दे रहे हैं। पर हम भ्रम में पड़े हैं। ‘*बट फ्यू चोज़न,*‘ उसको ऐसे पढ़ो- बट फ्यू रेस्पोंड। एवरीबॉडी बी कॉल्ड बट फ्यू रेस्पोंड। आशय यही है जीसस का, शब्द चाहें जो हों। जो असली दुनिया है, जो भीतर की दुनिया है, जहाँ तुम्हें अव्वल होना है, वास्तव में जो तुम्हारा घर है, जो तुम्हारी नियति है, बुला तुम्हें रही है, लगातार बुला रही है। अविछिन्न उसकी पुकार है। प्रतिपल बुला रही है, कभी उसकी पुकार रुकती नहीं। मौन की तरह है वो, आवाजों का आना-जाना रुक जाता है, मौन कभी नहीं रुकता। लेकिन बहुत कम हैं, जो उसको सुनते हैं और इससे बड़ी बेवकूफ़ी हो नहीं सकती। तुम उससे बचना चाह रहे हो, जो तुम हो। तुम उससे बचना चाह रहे हो, जिससे बचना असंभव है। तुम उस घटना को टाल रहे हो, जो होनी ही है और अगर बात को और साफ़ कहूँ, तो जो हो ही रही है। जो हो ही चुकी है और जिसके अलावा कभी कुछ होता नहीं। तुम उससे लड़ रहे हो? तुम उसे टाल रहे हो? तुम सोचते हो, टाल सकते हो? लेकिन नहीं, हम टालते हैं। हम असंभव को संभव करने की कोशिश करते हैं, दुःख पाते हैं। दुःख नकली है, क्योंकि टाला जा नहीं सकता। लेकिन हम फिर भी पाते हैं, हम फिर भी पाते हैं। फॉर मेनी बी कॉल्ड, बट फ्यू बी चोज़न।’ नहीं, छांटने में, चुनाव करने में, किसी की कोई रुचि नहीं है।

तुम्हारा अंतस क्या चुनेगा? उसके पास चुनने के लिये कुछ नहीं है। तुम्हारा स्वाभाव, तुम्हें चुनेगा थोड़े ही? वो निर्विकल्प है। निर्विकल्प तुम भी हो, क्योंकि एक न एक दिन, उसका आमंत्रण तुम्हें स्वीकार करना ही है, लेकिन तुम अपनी निर्विकल्पता को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं हो। तुम अड़े हुए हो, जिद्द है एक, ज़बरदस्ती की।

ज़िद्द छोड़ दो! जो लड़ाई हारनी है, क्यों लड़े जा रहे हो? चुपचाप हार मान लो, बड़ा मीठा समर्पण होगा। नाक नहीं कट जाएगी। जैसे प्रेमी मना रहा हो, तो मान जाते हैं, नाक नहीं कट जाती उसमें। मान गये, चलो ठीक है। नाक कट गई? कट गई?

उसका बुलाना ऐसे ही है। प्रेम। जब प्रेम बन कर बुलाता है, तो वो प्रेमी है। जब सत्य बन कर बुलाता है, तो गुरु है। गुरु ने थोड़ी सी अगर डांट भी दी, तो उससे नाक कट गई? मान लो बात चुपचाप। क्यों अड़े बैठे हो?

चाहे उसे प्रेमी मानो, चाहे गुरु मानो, और जब वो मुक्ति बन कर बुलाता है, तो वो मित्र है। मित्र ने कुछ अटपटा बोल भी दिया, तो क्या हो गया? मित्र ने तुमसे ये कह भी दिया कि तू बंधन में है, तो मित्र है न? कह सकता है, हक़ है उसको। क्यों ज़िद्द कर रहे हो? क्यों तुमने हज़ार और चीजों में दिल लगा रखा है? एक ही है, जो महत्वपूर्ण है। उसके अलावा कुछ नहीं। उसके हो जाओ, फिर मस्त होकर, चैन से और जो करना है, करते रहो। अपने लाख काम-धंधे, निपटाने हैं तो निपटाओ, नहीं निपटाने हैं तो नहीं निपटाओ। निपटाओगे तो भी कोई बात नहीं, नहीं निपटाओगे तो भी कोई बात नहीं। फिर दाएं चलोगे कि बाएं चलोगे, कोई अंतर नहीं पड़ता। दाएं जा रहे हैं, तो प्रेम में जा रहे हैं, बाएं जा रहे हैं, तो प्रेम में जा रहें हैं। गा रहे हैं तो समर्पण में गा रहे हैं, चुप बैठे हैं तो समर्पण में चुप बैठे हैं। फिर ठीक है, फिर पूरी आज़ादी है; जो चाहो करो।

जीसस जब ये कह रहे हैं: ‘मेनी बी कॉल्ड, फ्यू बी चोज़न,’ तो दो आंसू गिरा कर कह रहे हैं। हर्षित होकर के नहीं कह रहे हैं कि बड़ा अच्छा लग रहा है उन्हें कि ‘ आई ऍम दी ऑनली सन ऑफ़ गॉड।’ ना, जीसस का ऐसा कोई इरादा नहीं। ईसाईयों का मानना है कि परम को, संसार से इतना प्रेम था कि उसने अपना इकलौता बेटा संसार में भेज दिया, ताकि वो संसार को सीख दे सके, और संसार ने ईश्वर के पुत्र को मार डाला! ईश्वर ने, अपना इकलौता बेटा संदेशवाहक बना कर, दूत की तरह भेजा कि, ‘’तू जा और मेरी बात दुनिया को बता,’’ और दुनिया ने ईश्वर के बेटे को ही?

श्रोता: मार डाला।

वक्ता: सूली चढ़ा दिया।

सत्य का सन्देश हैं ये बातें। जब जीसस कहते हैं, ‘’*आई ऍम दी सन ऑफ़ गॉड* ,’’ उसका अर्थ समझना। वो कह रहे हैं, ‘’मेरे मूल में, वो पूर्ण बैठा हुआ है, मैं उसका पुत्र हूँ’’ मतलब, ‘’वो मेरा मूल है। वो, वो बिंदु है, जहाँ से मैं उपजा हूँ’’ और जीसस अपने आप को देह नहीं मानते। देह तो उनकी किसी दूसरी देह से ही आई है। जब जीसस कह रहे हैं, ‘’ आई ऍम दी सन ऑफ़ गॉड ,’’ तो वो अपने अंतस की बात कर रहे हैं और जो अपने अंतस को पा लेता है, वो ये भी जानता है कि वो जो है, वो सब है। दो होते ही नहीं, वो द्वैत से मुक्त हो जाता है। वो जानता है कि जो उसका स्वभाव है, वही सबका स्वभाव है, स्वभाव क्योंकि एक है। दो होते ही नहीं। तो ये बात, बड़े फिर उन्हें अफ़सोस के साथ कहनी पड़ेगी कि *मेनी बी कॉल्ड, फ्यू चोज़न* सब एक हैं, फिर भी ये कृत्रिम अंतर हमने पकड़ रखे हैं। इन्हीं कृत्रिम अंतरों का नाम है: मेरी व्यक्तिगत पसंद और नापसंद, और मेरी व्यक्तिगत वरीयताएं। ‘’देखिये भाई, ये बात ठीक होगी कि सत्य परम महत्वपूर्ण है, लेकिन अभी मैं जिस स्थिति में हूं और मेरे परिवार की जो दशा है, मेरे लिए तो अभी दूसरी चीजें ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। मेरे लिए मेरी नौकरी ज्यादा महत्वपूर्ण है, मेरा बच्चा ज़्यादा महत्वपूर्ण है और उसके अलावा मेरी दस और प्राथमिकताएं हैं। जब ये प्राथमिकताएं निपटती हैं, तब हम देखेंगे, ईश्वर वगैरह की बात करेंगे।’’

तुम पागल हो? तुम्हारी प्राथमिकताएं, तुम्हारी वरीयताएं , जीसस की वरीयताओं से अलग हो सकती हैं? जीसस ने कहीं पर तुमसे ये कहा, कि सन ऑफ़ गॉड होने का हक़ किसी और को नहीं है? जीसस ने कहीं पर ये कहा कि तुम किसी और के बच्चे हो? जो जीसस हैं, वही तुम हो। और अगर जीसस, चोज़न वन हो सकते हैं, तो फिर ये क्यों कहने की नौबत आए कि दैट फ्यू बी चोज़न? जीसस को बड़ा अफ़सोस रहा होगा, ये कहते समय। फ्यू बी चोज़न! नहीं, हम सब में योग्यता है, हम सब में पात्रता है, स्वभाव ही है हम सब का, उसको पाएं। जो मिला ही हुआ है, उसको ठुकराने से बड़ी बेवकूफ़ी दूसरी नहीं हो सकती। आप कुछ अर्जित करने चलें, अर्जित ना कर पाएं, बात समझ में आती है। लेकिन जो आप हैं, जो आपका हक़ है, जो आपकी गोद में पड़ा हुआ है, उससे भी ज़्यादा करीब है, आपके भीतर स्थापित है। आप उसको ही ना हासिल कर पाएं, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा? कुछ आपसे दूर हो, और आप उस तक नहीं पहुंच पाए, माफ़ी है, समझा जा सकता है। कुछ हो गया होगा, रास्ता कठिन था, भूल गए, फिसल गए, सो गए, गिर गए। पर कुछ आपके भीतर ही बैठा हुआ था, और आप जीवन बिता बैठे, बिना उसको जाने, बिना उसको पाए, तो अब कोई माफ़ी है? और जब मैं जीवन कह रहा हूँ, तो मैं किसी बहुत लम्बी-चौड़ी घटना की बात नहीं कर रहा हूँ।

संतों ने हमेशा हमें मृत्यु का स्मरण कराया है, भूलिएगा नहीं, बहुत महीन डोर है, कब टूट जाए पता नहीं। चार नन्हें पशुओं को हमने आज ही देखा, कल तक थे, आज नही हैं। हमारी स्थिति कोई भिन्न नहीं, चार दिन हैं, चेत जाइए।

उसको पा लीजिये, जिसको पाया तो सब पाया।

क्यों अंधी दौड़ों में लगे हुए हैं, जहाँ कोई अंत नहीं, और जहाँ कोई प्राप्ति नहीं? और इस डर में बिलकुल मत रहिये कि, ‘’अगर मैं सत्य की ओर उन्मुख हो गया, तो संसार छूट जाएगा।‘’ ये बहुत बड़ा दुष्प्रचार है। बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है कि संन्यास का अर्थ होता है, दुनियां से भाग ही बैठे। ना, आप सत्य में स्थापित होइए, फिर संसार आपके लिये खुलेगा। आप क्यों डरते हैं? आपको ऐसा क्यों लगता है कि सन्यासी तो पलायनवादी होता है, भाग जाता है, दुनिया से कोई मतलब नहीं रखता?

नहीं भाई, मतलब रखता है दुनिया से। उसके पास मतलब बदल जाते हैं। आपका जो सम्बन्ध है दुनिया से, वो भय और लालच का है। जब मैं सन्यासी कह रहा हूँ, तो मेरा इतना ही आशय है, वो जो सत्य में स्थापित है। बस इतना ही। सन्यासी का जो सम्बन्ध होता है दुनिया से, वो भय और लालच का नहीं होता, सत्य और प्रेम का होता है।

संसारी वो बहुत मामूली सी परिभाषा है, समझ लो, बड़ी आसान बात। संसारी कौन? जो दुनियां से, लालच की डोर से बंधा हो, कुछ पाना है, नहीं तो कुछ गवाना है। जहाँ लालच है, वहां डर है। पाऊंगा, नहीं तो गवाऊंगा। सन्यासी कौन? जो दुनियां से प्रेम और मुक्ति की डोर से बंधा हुआ है। मुक्त प्रेम का सम्बन्ध होता है दुनिया से, मोह का नहीं। मुक्ति की डोर है। सम्बन्ध है, डोर है, पर मुक्ति की है, प्रेम की है। थोड़ा दो चार कदम आगे बढ़ाइये, देखिये तो सही कि मुक्ति के सम्बन्ध, कितने उल्लासपूर्ण होते हैं। ‘’हमने तो अभी तक सिर्फ़ लालच के, डर के, और बंधन के सम्बन्ध जाने हैं और हमें लगता है कि लालच, डर, बंधन ना रहे, तो सम्बन्ध जैसी कोई चीज़ ही नहीं रहेगी।’’ यही लगता है न हमें? माँ डर जाती है, अगर बच्चे से मोह न रहा, तो फिर सम्बन्ध कहाँ रहेगा! पागल हो तुम? मोह जाएगा, तभी तो प्रेम प्रकट होगा? प्रेम है, पर मोह के बादल के नीचे छुपा-छुपा है।

जो कह रहे हैं, उसको सुनो और बिलकुल मत डरो कि कोई नुकसान हो जाएगा। कोई नुकसान नहीं होगा, और अगर नुकसान हुआ भी, तुमने कुछ खोया भी, तो तुम कचरे को ही खोओगे। अपनी ज़ंजीरों को खोओगे। कोई तकलीफ़ है उसमें? कोई सम्पदा है उसमें? आभूषण हैं ज़ंजीरें? पकड़ के रखनी हैं?

जीसस को सिंघासन पर मत बिठाओ, कि ही वाज़ द चोज़ेन वन’ और खुद ही तो कह रहे हैं जीसस कि, ‘दैट ऑनली फ्यू बी चोज़न,’ तो हमारी ऐसी किस्मत कहाँ? जीसस वहां, ऊपर, पहाड़ पर बैठे हुए हैं, और हम यहाँ नीचे तलहटी में; और देखो न, बता तो गए, कि सबकी किस्मत एक जैसी नहीं होती। जीसस कह रहे हैं, पर ये चाह नहीं रहे हैं, तथ्य है, तो बयान कर रहे हैं। पर चाह कुछ और रहे हैं।

कितनी दिक्कत आती है, ये कल्पना करने में भी कि हम जीसस हैं। जीसस को वहां, चोटी पर बैठा देने में बड़ा अच्छा लगता है। यहाँ नीचे पालथी मार कर बैठ जाओ, और उनको वहां, शिखर पर विराजमान कर दो और, और सहारा तब मिल जाता है, जब वो कहें, कि देखो, ‘’मैं! तुम्हारे लिए, ईश्वर का सन्देश लाया हूँ, क्योंकि मुझमें कुछ ख़ासियत है।’’ लेकिन बड़ी तकलीफ़ शुरू हो जाती है, जब जीसस कह दें कि, ‘’मुझमें कोई ख़ासियत नहीं है, जो मैं हूँ, वही तुम हो। मैं जगा हूँ, तुम सोए हुए हो। मैं जानता हूँ कि मेरा असली पिता कौन है, तुम जानते नही हो, पर पिता है दोनों का एक ही। जानने का फ़र्क है बस।’’ तब हमें तकलीफ होनी शुरू हो जाती है। तकलीफ़ की कोई बात नही है। सुनो क्या कह रहे हैं।

“कोई तुममें से ऐसा नहीं है, जो जीसस नहीं है, तुम मानो चाहे न मानो।” तुम्हारे मानने, न मानने से, सत्य का कुछ बनता-बिगड़ता नहीं।

वक्ता: इक्कीस के बाद? ‘*सफ़र द लिटिल चिल्ड्रेन टू कम अन्टू मी, एंड फोर्बिड देम नॉट, फॉर ऑफ़ सच इज़ द किंगडम ऑफ़ गॉड*। “ईश्वर का राज्य, उनका है, जो छोटे बच्चों जैसे हो गए हैं।”

कैसे होते हैं छोटे बच्चे?

श्रोता: खुश्मिजाज, खेलते हुए।

वक्ता: रोते हुए भी होते हैं।

श्रोता १: रोते हुए। खुल्ले।

श्रोता २: सहनशील।

श्रोता १: खुल्ले।

वक्ता: पहली पंक्ति जो है जीसस की, उससे जोड़ कर देखो, तो समझ जाओगे।

सफ़र दी लिटिल चिल्ड्रेन टू कम अन्टू मी, एंड फोर्बिड देम नॉट, फॉर ऑफ़ सच इज़ दी किंगडम ऑफ़ गॉड

समाज, जीसस को, पसंद नहीं करता। बहिष्कृत करता है, सूली देता है और छोटे बच्चे क्या कर रहे हैं?

कोई श्रोता: पसंद।

वक्ता: वो जा रहे हैं! उन्हें दिख रहा है जीसस की आँखों में। कुछ बात है, सच बोल रहा है! समझ में भले ही नहीं आता, पर फिर भी दिख रहा है। दुनिया रोक रही है, दुनिया ही तो रोकती है? जीसस कह रहे हैं, न रोको उन्हें, ‘ फोर्बिड देम नॉट।’ तुम भी छोटे ही बच्चे हो। तुम्हारे भी मन का एक हिस्सा, जीसस की ओर भाग रहा है। लेकिन कोई है, जो बीच में खड़ा हो गया और तुम्हें मना कर रहा है। कोई है, जो तुम्हें रोक रहा है। कह रहा है, ‘’न! जीसस की तरफ न जाना। न! सत्य की तरफ न जाना। न! मुक्त होकर न उड़ना। न! उसकी बात मत सुनना,’’ यू आर फोर्बिडन। जीसस कह रहे हैं, ‘’ फोर्बिड देम नॉट। दे आर एनीवे कमिंग टू मी।’’ छोटे बच्चे हैं! भले खुद नहीं समझते, लेकिन जब उन्हें समझाया जाता है, तो रौशनी दिखती है उनको। मेरी बातें न जानते हों, मेरा प्रेम जानते हैं। बुद्धि से भले ही मेरे शब्दों को न जान पाते हों, पर मेरा बहता हुआ प्रेम, उन्हें दिखाई देता है। वो आना चाहते हैं, खिंच रहे हैं, कुछ है जो उन्हें आकर्षित कर रहा है मेरी ओर। क्यों रोकते हो?

बच्चे ही हैं, जो कभी भी, किसी भी, जीसस के पास गए। प्रौढ़ों से उम्मीद नहीं की जाती ये और जब बच्चे जाएंगे, एक जीसस की ओर, तो समाज, माँ-बाप, शिक्षा, व्यवस्था, दुनिया, बाज़ार, व्यापार, उन्हें रोकेंगे। जीसस कह रहे हैं, *फॉर गॉड सेक, फोर्बिड देम नॉट। * वो आना चाहते हैं, उन्हें आने दो, और यही है, ‘ईश्वर का साम्राज्य’। सत्य का साम्राज्य, ऐसा ही है। निष्कपट, भोला-भाला; जिधर सरलता देखी उधर को चल दिया, इज़ी गोइंग।

बच्चा, दोनों संभावनाएं लेकर के आता है। वो जीसस भी हो सकता है, बुद्ध भी हो सकता है या फिर वो तुम्हारा एक औसत, दुनियावी, बाज़ारी, गृहस्थ बन कर भी रह सकता है। उसकी दूसरी गति हो, उसका पतन हो, ये आवश्यक नहीं है। बुद्ध बनने के बीज हैं उसमें। जीसस की संभावना है उसमें लेकिन दूसरी भी संभावना मौजूद है, दुर्भाग्य ये है कि समाज, उसे जीसस बनने नहीं देगा।

जीसस बनने के लिये आवश्यक है कि बच्चा, किसी और जीसस के सम्पर्क में आए, जो उसे उसके स्वभाव की याद दिलाए। पर दुनिया, बच्चे को, बाजार भेज देगी, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी भेज देगी, जहाँ की मशीनें, उसको माल की तरह तैयार कर देंगी, और खपा देंगी दुनियां में। बच्चे से पूछो, तुझे क्या चाहिए? उसके सामने रख दो जीसस , और रख दो बाज़ार, और हर बच्चा वही करेगा, जो जीसस कह रहे हैं। वो भागेगा, वो प्रेम की ओर भागेगा। वो मुक्ति की ओर भागेगा। वो जीसस की ओर भागेगा। जीसस कह रहे हैं, बच्चों को आने दो न, वो आना चाहते ही हैं। जीसस ये नहीं कह रहे हैं कि, ‘’मैं उनको बुला रहा हूँ, मैं आकर्षित कर रहा हूँ।’’ जीसस को उन्हें आकर्षित करने की ज़रूरत ही नहीं क्योंकि हर बच्चे के भीतर, जीसस पहले से बैठा हुआ है। बीज उसमें विद्यमान है। बच्चे के भीतर का जीसस , उसको बाहर के जीसस की ओर खींचता है। बच्चा जाना चाहता है उधर ही। बीच में परिवार, समाज शिक्षा, खड़े हो जाते हैं, रोकते हैं। यही है आदमी का इतिहास।

अनगिनत जीसस हुए, वो कहते ही रह गए, मत रोको, आने दो न बच्चों को। बच्चे आना चाहते हैं, जीसस उन्हें गले लगाने को तैयार खड़ा है। और बीच में दस झूठे नियम, मर्यादाएं, नियंत्रण, ‘ सच इज़ द किंगडम ऑफ़ गॉड’ बच्चा उसमें प्रवेश करना ही चाहता है।

जीसस के प्रभु का साम्राज्य ऐसा है कि उसमें हर बच्चा जाना चाहता है। अभी वो, इतना होशियार नहीं हुआ, अभी उसमें कूट-कूट के संस्कार नहीं भर दिये गए, बच्चा जाना चाहता है। *सच इज़ द किंगडम ऑफ़ गॉड, दैट आल चिल्ड्रेन आर अट्रेक्टेड टू, बिकॉज़ दैट किंगडम इज एनीवे प्रेजेंट विदिन देम*।

जीसस हैं ईश्वर के साम्राज्य में, बच्चा उनकी ओर भाग रहा है, क्योंकि जीसस जिसे ईश्वर कह रहे हैं, वो बच्चे के भीतर ही बैठा हुआ है। नहीं, ऐसा भी नहीं है कि बच्चा बड़ा हो जाता है तो, वो भगवान कहीं बाहर निकल जाता है। पर बड़ा होने का अर्थ ही यही होता है कि अब बच्चे वाली सरलता, उससे छीनी गई। यही तो तरीका है न, बच्चे को बड़ा करने का कि छीन लो उससे उसकी सरलता, उसका भोलापन, उसे होशियार बना दो। उसे दुनियादारी सिखा दो। जिन बच्चों के बारे में, जीसस कह रहे हैं, ‘उन्हें रोको मत’, कौन हैं वो बच्चे? वो हम हैं, हम सबको रोका गया है। रोक-रोक कर के हमें, दूसरी दिशाओं में भेजा गया है, और जो बाधाएं हमारे सामने लगाई गईं, आज भी बाधाएं अगर हट जाएं, तो हम रास्ता बदलेंगे, और भागेंगे हम जीसस की ओर ही फिर से। जब-जब वो बाधाएं हटेंगी, हम फिर-फिर भागेंगे। जैसे नदी पर कितना भी तुम बांध बनाओ, पर जैसे ही बांध हटता है, नदी फिर भागेगी। तुम दस बार बांध बनाओ, नदी रुक जाएगी। क्या करेगी, मजबूर है? बच्चा मजबूर है, नदी मजबूर है। पर जितनी बार, उस बांध में दरार पड़ेगी, जितनी बार उस बांध के दरवाजे खुलेंगे, पानी फिर भागेगा। तुम भी भागोगे। तुमने अपने सामने, व्यर्थ ही, हजार बाधाएं, अड़चने, दीवारें, खड़ी कर रखी हैं। तुमने व्यर्थ ही उन ताकतों को महत्व दे दिया है, जो तुम्हें रोकतीं हैं।

जो दीवार तुम्हें रोक रही है, वो असली नहीं है, वो दीवार, सिर्फ़ तुम्हारी सहमति से खड़ी हुई है। उसमें अपना कोई दम नहीं। तुम अपनी सहमति वापस ले लो, वो दीवार गिर जाएगी। दो प्रेमी, उनके मध्य दीवार! कौन सी दीवार ऐसी है, जो रोक सकती है उन्हें? निश्चित रूप से, कोई भ्रम है! अगर दीवार बहुत मजबूत प्रतीत हो रही है, तो भ्रम है। देखो कि क्या भ्रम है।

कातर स्वर में पुकार रहे हैं जीसस , ‘’बच्चे आ रहे हैं, उन्हें आने दो, मत रोको। उन्हें मना मत करो। प्रभु के राज्य की ओर आ रहे हैं, क्यों रोकते हो उन्हें? तुम उनके हितैषी हो, या दुश्मन? बच्चे किसी खतरनाक जगह पर नहीं जा रहे। उनका कुछ अमंगल नहीं हो जाना है। वो तो प्रभु के साम्राज्य की ओर आ रहे हैं। कैसे माँ-बाप? कैसे दोस्त? कैसे शिक्षक? कैसे हितैषी हो तुम, जो उन्हें रोक रहे हो? खतरे में जाने से रोको, समझ में आता है। तुम उन्हें प्रभु के राज्य में जाने से रोक रहे हो! तुम उन्हें मेरी ओर आने से रोक रहे हो!

उन्होंने रोका तो रोका, तुम रुके क्यों? मत रुको। जब तुम नहीं रुकोगे, तभी उन्हें समझ में आएगा कि उन्हें भी नहीं रुकना। भूलना नहीं, वो भी कभी बच्चे थे। भूलना नहीं, उन्हें भी किसी ने रोका था और भूलना नहीं, रोकने वाला एक ही है, उसको माया कहो, चाहे अविद्या। जब तुम नहीं रुकोगे, तब उन्हें याद आएगा, कि उन्हें भी नहीं रुकना है। व्यर्थ ही समय गवांया उन्होंने, रुक-रुक के। तुम्हारे न रुकने से, उन्हें भी सन्देश जाएगा, अरे! हमें भी तो जाना है, जीसस कब से बुला रहे हैं। क्यों रुके पड़े हैं हम? सच्ची पुकार है, प्यारी पुकार है, मुक्त करने वाली पुकार है। क्यों नहीं सुन रहें हम। उन्हें भी याद आएगा।

तुम खुद ही सोचो न, तुम किसी को, किसी काम से, बहुत वर्जित करो और वो तब भी, वो काम कर गुज़रे, तो क्या तुम ठिठक कर सोचोगे नहीं कि ऐसा क्या आकर्षण था, जो मेरे लाख मना करने पर भी, मेरी वर्जनाओं के बाद भी, मेरे रोकने पर भी, वो कर गया? वो पल बोध का पल होगा। जागृति का पल होगा कि कुछ तो बात होगी, लड़का इतना बेवकूफ तो नहीं। अगर हमारे लाख समझाने पर भी कर रहा है, वर्जनाएं तोड़ रहा है, तो बात क्या है? ज़रा हम भी तो देखें।

जो काम, जीसस से जीसस होकर नहीं हो पाया, वो काम जीसस, तुम्हारे रूप में कर डालेंगे। तुम जीसस बन जाओगे, उन लोगों के लिये जो तुम्हें रोकते रहे, जिन्होंने वर्जित किया तुम्हें। बड़े उल्टे रूप में बनोगे। जीसस बुलाते थे, और तुम तो भागे हो, पर ऐसा ही है, अस्तित्व का खेल। कोई दाएं चल कर पहुंचता है, कोई बाएं चल कर पहुंचता है। पहुंचना तो सभी को है।

शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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