आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
जो मध्य में चलते हैं वो दोनों तरफ से पिटते हैं || (2016)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्नकर्ता: सर, आपने पहले कहा था कि एक शुद्ध मन के लिए हमें कुछ करना चाहिए। जैसे हम लोग दफ़्तर जाते हैं, समझौता करते हैं, और कम्पनी के लिए झूठ भी बोलते हैं, अपने काम करने के लिए पता नहीं क्या-क्या करते हैं। यह सब करते भी हैं और इससे हटना भी चाहते हैं। शायद यही ही है, पर फिर शुद्धता कैसे आए जीवन में?

आचार्य प्रशांत: है, प्रारब्ध है। ठीक है, करो।

(श्रोतागण हँसते हैं)

फिर समस्या क्या है? फिर सवाल क्यों है? जाओ रोज़ दफ़्तर, कौन रोक रहा है? फिर सवाल क्यों है?

प्र: सर, शुद्धता कैसे लाएँ?

आचार्य: मत लाओ शुद्धता! मैंने यूँ ही बोल दिया, भूल जाओ। कोई ज़बरदस्ती ही है क्या कि शुद्धता लानी ही है, सफाई करनी ही है? खुश हो अगर जो चल रहा है उससे, तो चलने दो न उसको। एक तरफ़ तो ख़ुद ही कहते हो कि, "नहीं-नहीं जान जा रही है, बड़े परेशान हैं", दूसरी ओर ये भी कहते हो कि, "बदलेंगे नहीं।" तो पहले तय कर लो - परेशान हो, या बदलना है? तय कर लो।

"दफ़्तर जाते हैं। वहाँ सारे गलीच काम करने पड़ते हैं - झूठ बोलना पड़ता है, हिंसा करनी पड़ती है। लेकिन देखिए, उससे तनख्वाह मिलती है, और इज्ज़त मिलती है।"

तो तय कर लो, चाहिए कि नहीं चाहिए। और अगर खुश हो कि इज्ज़त मिल रही है और तनख्वाह मिल रही है, तो करो सारे गलीच काम, कौन रोक रहा है? मज़े ले-ले कर करो, बँटे हुए मत रहो न।

दुःख इस बँटवारे में ही है।

तुम पूरे तरीके से बन जाओ यांत्रिक, और जो-जो काम तुम्हें तुम्हारा दफ़्तर, तुम्हारी संस्था, और तुम्हारी कम्पनी दे, करो। वो तुमसे झूठ बुलवाएँ, वो तुमसे गाली दिलवाएँ, या तुम्हें कसाई बनाएँ, वो तुमसे हत्या करवाएँ, करो!

क्यों नहीं कर रहे?

प्र: कुछ है जो रोक रहा है।

आचार्य: अब कुछ है जो रोक रहा है तो फिर उस ‘कुछ’ का या तो पूर्ण दमन कर दो, मार दो उसको। और अगर नहीं मारा जा रहा, तो बात सुनो।

प्र२: समर्पण कर दें।

आचार्य: बिलकुल।

प्र२: सर, मध्यम मार्ग नहीं है कोई?

आचार्य: हाँ, मध्यम मार्ग हैं न!

(श्रोतागण हँसते हैं)

मध्यम मार्ग का मतलब पता है क्या होता है?

(श्रोतागण हँसते हैं)

मध्यम मार्ग का मतलब ये होता है कि एक ऐसी सड़क जिसमें विभक्त है ही नहीं, उसमें बीच में चलना।

इसका क्या होगा?

श्रोतागण: दुर्घटना घटेगी।

आचार्य: ये दोनों तरफ़ से पिटेगा। मध्यम-मार्गियों का यही होता है कि वो दोनों तरफ़ से पिटते हैं, क्योंकि वो सोच रहे हैं कि बीच में किसी तरीके की सुरक्षा है। बीच का जो बिंदु है, वो सुरक्षा का नहीं, वो सबसे तीव्र आघात का, और पीड़ा का, और कष्ट का बिंदु है। जिन्होंने भी चाहा है बीच में चलना, उन्होंने सबसे ज़्यादा मार खायी है। यदि आपको बचना है, तो या तो उधर चल लो, या तो इधर चल लो; मध्य में कभी मत चलना, ये मध्य वाले बहुत मार खाते हैं।

बद्ध भी बेचारे अफ़सोस करते होंगे कि किस मौके पर उन्होंने ये शब्द दे दिया था: ‘मध्यम-मार्ग’। क्या उन्होंने बोला, क्या हम उसका अर्थ करते हैं। हमारे लिए मध्यम-मार्ग का अर्थ हो जाता है कि हमारा जितना डर है, हमारी जितनी विदृप्ताएँ हैं, सबको एक साथ लेकर के चलना — ना ये छोड़ेंगे, ना वो छोड़ेंगे।

मध्य का मतलब है - इधर भी पकड़ कर रखेंगे, उधर भी पकड़ कर रखेंगे।

आज से जब भी किसी जानवर को या शराबी को सड़क के बीच चलते देखना, तो जान जाना कि मध्यम पंथी है ये। बिलकुल बीचों-बीच चल रहा है।

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