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लेख
जवान हो, मेहनत करो || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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लड़के यहाँ आते हैं – लड़के भी क्यों कहूँ – युवा, मर्द पच्चीस-पच्चीस, तीस-तीस साल के। वो कहते हैं, “घर वालों के कारण घर पर पड़ा हुआ हूँ, कोई काम नहीं करता और घर का माहौल कुछ ऐसा है कि काम करने की प्रेरणा नहीं मिलती।“ सारा दोष घर वालों का है।

और घर वालों से बात करो तो घर वाले क्या कहेंगे? कि, “छाती पर पीपल उग आया है हमारे! टरता ही नहीं है घर से। खाट तोड़ता है! रोटी तोड़ता है! खाट तोड़ता है! रोटी तोड़ता है!”

कोई पशु आपत्ति नहीं करता अगर उसे आराम से रोटी मिल रही हो तो, कि करता है? कुत्ता तुम्हारे दरवाज़े पड़ा रहेगा, बस रोज़ उसे दो रोटी डाल दिया करो। ऐसे ही हैं हम। आराम से रोटी मिल रही हो हम किसी के भी दरवाज़े का कुत्ता बनने को तैयार हो जाते हैं।

बात सुनने में कड़वी लगेगी। पर मैं मजबूर हूँ। सच्चाई तो बोलनी पड़ेगी न।

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