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लेख
जानवर को इंसान मत बनाओ || आचार्य प्रशांत (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
12 मिनट
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प्रश्न: हम प्रकृति के नियम का पालन कैसे करें?

वक्ता: प्रकृति के नियम तो चल ही रहे हैं। आप कौन से प्रकृति के नियम का उल्लंघन कर पा रहे हो।

श्रोता: जैसे हम हवा प्रदूषित करते हैं।

वक्ता: तो उसका नियम है, प्रदूषित करोगे तो डंडा पड़ेगा, डंडा पड़ रहा है।

श्रोता: हमारे पास विकल्प क्या है? हम क्या कर सकते हैं?

वक्ता: नियम है गुरुत्वाकर्षण का। कल भी था, आज भी है, जब तक समय रहेगा तब तक यह नियम भी रहेगा। अब आप पूछो की विकल्प है कि नहीं है।

श्रोता: जैसे आपने बताया गौतम बुद्ध, महावीर ने जीवन को प्रकृति के अनुसार व्यतीत किया।

वक्ता: नहीं, उन्होंने प्रकृति के अनुसार जीवन नहीं व्यतीत किया। मैंने ऐसा बिलकुल नहीं कहा।

श्रोता: उन्होनें प्रकृति के नियम को तोड़ा नहीं?

वक्ता: कोई नहीं तोड़ सकता, कौन करता है बताओ? दिखाना कौन गुरुत्वाकर्षण को तोड़ रहा है। तुम्हारा बड़े से बड़ा रॉकेट भी क्या गुरुत्वाकर्षण के नियम को तोड़ रहा है? तुम्हारा बड़े से बड़ा रॉकेट भी क्या गुरुत्वाकर्षण नियम के विपरीत भी जा रहा है है?

श्रोता: उत्तराखंड मैं जो कुछ भी हुआ? (उत्तराखंड में आई आपदा के सन्दर्भ में)

वक्ता: वह नियम के आधीन है। नियम यह है कि तुम अगर यह करोगे तो यह होगा, हो रहा है। आप किस नियम को तोड़ पा रहे हो प्रकृति के, ज़रा बता तो दीजिये। ज़बरदस्त अहंकार है कि हम प्रकृति के नियमों को तोड़ रहे हैं। यह भी अहंकार है। किसने तोड़ा है नियम आज तक?

समझिएगा। प्रकृति के साथ भी आपका सिर्फ़ दो प्रकार का रिश्ता होता है: या तो सहजता का या कुटिलता का। जानवर का डिफ़ॉल्ट सम्बन्ध क्या है प्रकृति के साथ?

श्रोता: सहजता का।

वक्ता: आदमी का भी डिफ़ॉल्ट सम्बन्ध सहजता का है पर विकल्प है दूसरा एक सम्बन्ध बना लेने का। कौन सा सम्बन्ध बना लेने का?

श्रोता: कुटिलता का।

वक्ता: आप सम्बन्ध कोई भी बना लो पर प्रकृति के साथ आप कुछ कर नहीं सकते। आप जो कुछ भी कर रहे हो, वह प्रकृति के आधीन ही है। आप प्रकृति के नियमों को भंग नहीं कर रहे; आप हद से हद यह कर रहे हो कि मेरा सम्बन्ध कैसा है प्रकृति के साथ, ये देख लो। आप चाहे सहजता का सम्बन्ध रखो या कुटिलता का प्रकृति अपनी जगह खड़ी हुई है; अपना काम कर रही है।

श्रोता: हमारे गाँव में एक आदमी है वह लोगों के हिसाब से पागल है वह आदमियों से कम बात करेगा लेकिन चिड़ियों से कह देगा “अरे यहाँ धूप है, इधर छाँव है, इधर बैठ।” और चिड़िया बात मान लेंगी और मैंने खुद यह कई बार होते देखा है। चिड़िया उसकी बात हमेशा मान लेती हैं। मैं हैरान रह गया था उसका नियंत्रण देख।

वक्ता: नियंत्रण नहीं है। इस बात को बार-बार अपने आप से पूछिए कि ऐसा क्यों है कि आज तक जिन भी लोगों को अद्भुत माना गया, उनका जानवरों से बड़ा प्यारा सम्बन्ध रहा है। ऐसा क्यों है? और अगर आप के जीवन में जानवरों के प्रति हिंसा है तो फिर आपका जीवन कैसा होगा? जो कोई उठा है, उसने जानवरों से दोस्ती की ही की है और अगर आप हिंसा से भरे हुए हो, तो फिर आप कहाँ जाओगे अब ये सोच लो।

बुल्लेशाह रात भर जागते थे तो उनकी गली में कुत्ते थे। कुत्तों को रात में बड़ी मौज हो जाती है। दिन भर दबे दबे रहते है, रात में भौंकना शुरू कर देते हैं। बुल्लेशाह ने उन कुत्तों से दोस्ती कर रखी थी और अक्सर कुत्तों को अपना साथी ही कहते थे। उनका एक काफ़िया भी है जिसमें वह कहते हैं ”मैं तो ‘उसके’ लिए जगता हूँ तो रात में मुझे नींद आ भी जाती है, मुझसे तो बाज़ी ये कुत्ते ही मार ले गए। ये रात भर जागते हैं।’’ जितने भी लोग जिन्होंने जीवन में कुछ भी पाया है उन सब की बड़ी दोस्ती रही है जानवरों से। अगर हमारी नहीं है तो हम क्या पाने वाले हैं? कितने और महापुरषों की कितने और किस्से है जानवरों के साथ।

श्रोता: विवेकानंद ने भी अपना आख़री समय ज़्यादा से ज़्यादा समय जानवरों के साथ बिताया।

वक्ता: आदमी का प्रकृति से क्या सम्बन्ध है वह सीधे-सीधे बताता है कि आपका खुद से क्या सम्बन्ध है। अगर सारी पुरानी कथाओं में कहा जाता है कि अवतार भी जानवरों का रूप लेकर आ जाते हैं, तो उसका अर्थ समझिएगा। उसमें एक चूक हो सकती है उससे ज़रा बचिएगा। जानवरों को इसान मत बनाइएगा। अक्सर हम जानवरों से दोस्ती का मातलब यह समझते हैं कि जानवरों में हम वही गुण डाल दें, जो इंसानों में है। और अगर नहीं डाल पा रहे तो कम से कम कल्पना करें कि उनमें आ गए हैं। जानवरों को इंसान बनाना सिर्फ़ आपके अहंकार की घोषणा है। आप कह रहे हो, ”मैं तुझसे ऊँचा हूँ; मैं तुझे सभ्य कर दूँगा।’’

लोगों को बड़ा फ़क्र होता है “मेरा तोता है, वह पूरी बातें बोलता है।’’ तुम तोते जैसी भाषा क्यों नहीं बोलते? तुम्हें बड़ा अच्छा लगता है कि ”तोता मेरे जैसा बोलता है। मेरा कुत्ता है वह मेरा एक-एक भाव समझता है, एक एक बात समझता है। हिंदी भी समझता है, अंग्रजी भी समझता है।”

जानवरों के पास जाने का अर्थ यह नहीं है कि आप जानवरों को इंसान जैसा बनाने की कोशिश शुरू कर दो। यह तो वैसा ही अहंकार है जैसा वाइट मैन्स बर्डन होता था। वाइट मैन्स बर्डन समझते हैं? यूरोपवासियों को यह भ्रम था कि वह ज़्यादा सभ्य हैं और बाकी पूरी दुनिया को सभ्य बनाना उनकी ज़िम्मेदारी है। तो वह जहाँ कहीं भी गए, उन्होंने अंग्रेजी भाषा फैलाई। उनकी मिशनरीज़ गईं उन्होंने इसाईयत फैलाई, यह वाइट मैन्स बर्डन है।

वही काम हम करना शुरू कर देते हैं। कुत्ता घर में आता है, उसको प्रशिक्षण देना शुरू कर देते हैं। काहे का प्रशिक्षण कि ‘’तू इंसान जैसा हो जा। कुत्ता है ये, यह इंसान जैसा हो गया है न तो बढ़िया है।’’ यह यंत्रणा नहीं है क्या? कपड़े पहनता है, नहाता है, शैम्पू करता है। अरे! तुम कुत्ते जैसे क्यों नहीं हो जाते? तुम चलो चार पांव पर, अगर बड़ा प्यार है कुत्ते से। पर तुम कुत्ते को प्रशिक्षण दोगे कि दो पांव पर खड़ा हो कर हाथ मिलाए। कई लोगो के घरों में कुत्ते होते हैं, वह दो पांव पर खड़े हो कर हाथ मिलाते हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि हममें से किसी के घर में ऐसा नहीं है।

बड़ा अच्छा लगता है, कोई आया हो घर पर “ टाइगर , मिसेस गुप्ता से हाथ मिलाओ’’ और बड़ा अच्छा लगता है मिसेस गुप्ता डर के पीछे हो जाती हैं और टाइगर खड़ा हुआ है। कभी नहीं किया, तो टाइगर की शामत है। पेट्स के स्पा होते हैं, प्रशिक्षक होते हैं बड़े महंगे होते हैं वह आपके पेट को सभ्य करते हैं; इंसान जैसा बना देते हैं।

श्रोता: यह काम हम बच्चों के साथ भी करते हैं।

वक्ता: बिलकुल, यह काम आपके अहंकार की घोषणा है। यही काम आप आदिवासियों के साथ भी कर रहे हो। यह जो सारी लड़ाई है, नक्सलवाद की उसके मूल में बात यही है। आप कह रहे हो कि ”यह क्या है कि यह सब कबीले वाले बिना पढ़े-लिखे? हमें हक़ बनता है इनको इनकी ज़मीन से हटा कर, इनको जंगल से हटा कर, जंगल साफ़ कर देंने का। फिर हम इन्हें सभ्य करेंगे,” वो कह रहे हैं ”हम जैसे हैं, खुश हैं। तुम मेरा जंगल क्यों छीन रहे हो।” आप कहते हो ”जिस ज़मीन पर तुम रहते हो, उस ज़मीन पर बड़े मिनिरल्स हैं। हमे जंगल काट देने दो हमें मिनिरल्स निकाल लेने दो, हम तुम्हारी जगह को अपनी जगह जैसा बना देंगे। हम तुम्हारे इलाके को दिल्ली जैसा कर देंगे।” वह कहते है ”हमें दिल्ली में रहना ही नहीं। हम ऐसे ही रहना चाहते हैं।” पर आप कह रहे हो ”नहीं, तुम्हें ऐसा रहने का हक़ नहीं है क्योंकि तुम अभी आदिवासी हो। आदिम हो, पिछड़े हो? तुम्हें हक़ किसने दिया यह कहने का कि वह पिछड़ा हुआ है? तुम्हें कैसे पता कि वह पिछड़ा हुआ है। ठीक वैसे ही तुम्हें कैसे पता कि वह जानवर तुमसे कुछ नीचे है?

अक्सर जब हम बोलते हैं, ”पशुओं पर दया करो तो हम बड़े कृपालु भाव से बोलते हैं।” बड़ा उसमें अहंकार होता है कि दया करो। अपने पर दया कर लो, पशु को तुम्हारी दया की नहीं, दोस्ती की ज़रुरत है। दोस्ती कर सकते हो तो करो और दोस्ती में दोनों बराबर होंगे। दोस्ती में यह नहीं होगा कि ”मैं ऊपर हूँ और पशु नीचे है।’’ तो उस भ्रम से भी बचना है। गाय को रोटी दे रहे हो, क्यों दे रहे हो? गाय पर दया कर के? गाय पर दोस्ती करके दे रहे हो तो अलग बात है पर अगर गाय पर दया करके दे रहे हो तो देख लेना फिर गड़बड़ ही हो रही है। दोस्ती बिलकुल दूसरी चीज़ है। दोस्ती और प्रेम बिलकुल आस पास की चीज़ें हैं।

प्रेम बिलकुल दूसरी चीज़ है। वह यह सब दया-वया नहीं जानता। वह आपके बड़े-बड़े काम नहीं जानता। आप बड़े-बड़े काम करके आए हो, घर में आपका कुत्ता है उसको कोई मतलब नहीं है। तुम होगे दुनिया के राष्ट्रपति वह पास आएगा और चढ़ जाएगा। आए होंगे तुम अन्तर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में भाग लेकर, मुझे फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे इन शिखर सम्मेलन में रखा भी क्या है? वह तुम्हारे मन में बैठी हुईं है कि ”इनमें बड़ा महत्व है।” प्रकृति कोई महत्त्व नहीं देती, न तुम्हारे सुख को, न दुःख को, न ऊँच को, न नीच को, न बड़ी बातों को न छोटी बातों को उसके लिए सब बराबर हैं। होगे तुम दुनिया के राष्ट्रपति ज़ुखाम का वायरस तुम्हें भी लगेगा।

प्रकृति में तुम एक बराबर हो। तुम्हारे अहंकार को सबसे बड़ी चोट तो प्रकृति ही मारती है। जब तुम्हें पता चलता है कि तुम्हें वही बीमारी हो गई है, जो किसी टुच्चे से टुच्चे आदमी को भी हो सकती है। अब कहाँ गया तुम्हारा अहंकार? तुम तो विशिष्ट थे, खास थे, अद्भुत थे तुम्हें कौन सी बीमारी हुई, बवासीर। प्रकृति तुम्हारे अहंकार को कोई वरीयता नहीं देती। एक फिल्म में गाना था ऊँचे से ऊँचा बंदा ….

श्रोता: पौटी पर बैठे नंगा

वक्ता: और उतनी ही बदबूदार भी होगी। तुम होंगे कोई बुद्ध पौटी, तो बदबू ही करेगी। तुम होगे जो होगे चोट लगेगी तो खून भी बहेगा मवाद भी आएगा। प्रकृति भेद भाव नहीं करती कोई अहंकार नहीं है वहाँ। बिलकुल ही कोई मान्यता नहीं है। बराबर करके रख देती है सब कुछ। उसके साथ नाच सकते हो, तो नाच लो। एक हो सकते हो तो एक हो लो। उससे दूरी बना कर रखोगे, उससे लड़ोगे, बस में करना चाहोगे, नियंत्रण का भाव रहेगा। तो ठीक है बैठे रहो कि हम खास हैं। तुम रहे आओ, अपनी खासियत में!

जब दोस्ती कर लोगे तो पेड़ भी बोलेंगे। इतनी पुरानी कहानियाँ सुनी है न कि पक्षी ने आकर कुछ बता दिया, जानवर कोई सन्देश दे गया। अब सन्देश ऐसे नहीं दिया गया कि हिंदी या अंग्रेजी में बोल रहा था या कविता सुना के चला गया। उसका अर्थ समझिये। आप इतने एक रस हो कि आपको वहाँ भी कुछ सन्देश मिल जा रहा है। आप उसमें भी अपने लिए कोई सीख ले पा रहे हो। यही अर्थ है इस बात का जो कहा यह जाता है कि चिड़िया आई और राजा को कुछ बता कर चली गई। रहती है न कहानियाँ ऐसी पुरानी कि राजा बैठा था, चिड़िया आई उसके सामने आई और कुछ बता कर चली गई। उसका अर्थ इतना ही है कि राजा का ध्यान इतना गहरा था कि चिड़िया को देख कर भी वह कुछ समझ गया। चिड़िया ने बिलकुल कुछ कुछ बताया नहीं, पर राजा का ध्यान ऐसा था कि चिड़िया को देख कर भी समझ गया।

लाश ने बुद्ध को कुछ नहीं बताया पर बुद्ध का ध्यान ऐसा था कि वह समझ गए। प्रकृति का तुम्हारे प्रति कोई आदर नहीं है।

आदर उसका होता है, जो तुमसे अलग हो।

तुम प्रकृति हो, किस तरह का आदर करे प्रकृति तुम्हारा प्रति? तुम्हारा अस्तित्व शारीरिक रूप से है और यह पर्याप्त है। प्रकृति ने इतना कर दिया, यह बहुत है। यह हाथ, पांव, पेट दिल की धड़कन, यह सब प्रकृति है। प्रकृति ने इतना कर दिया बहुत है इससे ज़्यादा कुछ नहीं। इसके आगे बस दोस्ती है, अब नाचो ऐश करो।

शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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