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लेख
जब गाय-भैंस दूध देना बंद कर देती हैं, तब कहाँ जाती हैं? || (2021)

रोबिन सिंह: बहुत से जो लोग हैं उनको होता है कि भाई अभी तो हम दूध ले रहे हैं इस चक्कर में गाय की कुछ क़दर तो है। अगर दूध को आप बहिष्कार करने को कह दो तो गाय की बिलकुल ही बेकद्री हो जाएगी।

आचार्य प्रशांत: बात तो ये है न कि वो जो गाय आई है वो आई कहाँ से है?

अगर आप दूध नहीं ले रहे होते तो गाय पैदा नहीं होती। खेल तो सारा कृत्रिम गर्भाधान का है न। तो लोग कहते हैं कि, "देखिए हमने दूध लेना भी बंद कर दिया तो सारी गायें सड़कों पर आ जाएँगी फिर तो उनका और बुरा हाल होगा", और ये सब। साहब आपने अगर दूध और पशु शोषण से जो और उत्पाद आते हैं वो छोड़ दिए तो ये गायें पैदा ही नहीं होंगी।

हम क्या सोच रहे हैं?

असल में दूध पीने वाले को पता ही नहीं है कि उनका दूध आता कहाँ से है। पहली बात तो ये है‌। ना तो उनका गावों से कोई ताल्लुक है और ना तो उनका डेयरी फॉर्म से कोई ताल्लुक है और ना वो ये जानते हैं कि बड़े-बड़े उद्योग किस तरह से काम करते हैं। तो उनके दिमाग में पता नहीं कौन-सी बहुत बचकानी सी छवि है कि गाय होती है और गाय दूध देती है। बस इतना उनको पता है — एक गाय होती है वो दूध देती है।

वो आती कहाँ से है, वो हमें नहीं पता। अभी हालत ये है। मैं थोड़ी देर पहले आपसे पूछ रहा था न, उसमें जितना मुझे पता है बताता हूँ — आम गायें जो होती हैं हिंदुस्तानी, देशी वो दस लीटर के आस-पास से शुरू करती हैं दूध देना। और जो उसका मालिक होता है वो ये इंतेज़ार भी नहीं करता, कि उसका दूध जब गिरने लगे, दस लीटर से पाँच लीटर हुआ, फिर चार लीटर हुआ, फिर दो लीटर हुआ, कि वो पूरा ही दूध देना बंद कर दे तब उसे गर्भधान करे। वो दो-तीन लीटर पर आती है उसी समय उसका कृत्रिम गर्भाधान करा दिया जाता है जोकि उसके शरीर के लिए भी बहुत ग़लत है। और ये कर-करके जो उसकी आंतरिक व्यवस्था है — बस ये सोचिए कि एक मादा है जो हर समय गर्भ से है उसका क्या हाल होगा? हम इंसान हैं हम जानते हैं न कि स्त्रियों का जो अंदरूनी जो तंत्र होता है वो कैसा होता है।

आप उसको लगातार गर्भ से रख रहे हो तो उसका क्या हाल होगा?

अभी वो दूध दे रही है और उसका फट से जा करके गर्भाधान कर दिया आपने। ये करते-करते वो अंदर से हो जाती है बिलकुल खोखली और सात-आठ साल से ज़्यादा वो चलती नहीं है और फिर क्या किया जाता है तब? फिर वो हो जाती है बोझ। क्योंकि अब आपको उसको खिलाना है और वो आपको अब दूध दे नहीं सकती तो फिर आप समझ लो वो कहाँ जाती है।

अब ये बात, पता नहीं, हमारे दूध पीने वाले भाई-बहन सोचते ही नहीं बिलकुल, कि जिस दिन गाय ने दूध देना बंद कर दिया उस दिन गाय पालने वालें के लिए, किसान के लिए क्या हो गई? वो एक बोझ हो गई। अब तो वो दूध देगी नहीं लेकिन अभी जीएगी। अभी वो कम-से-कम चार साल, छः साल और जीएगी तो अब उसका क्या होगा? उसका यही होगा कि वो बूचड़खाने में जाएगी और क्या होगा उसका।

इसी तरीके से ये जो बछिया पैदा हुई वो तो ठीक है वो गाये बन जाएगी लेकिन छोटे बछड़े का क्या होगा? उसको कौन पालेगा? उसका क्या उपयोग है? तो वो कटता है। तो ये कहना कि, "अगर हमने गौ पालन छोड़ दिया तो गायें सड़कों पर आ जाएँगी।" ये बहुत ही, मतलब एकदम मूर्खता की बात है।

भाई, वो ज़बरदस्ती पैदा किए जाते हैं, चाहे गायें हो, चाहे मुर्गी हो, बकरा हो, कुछ भी हो। वो अपने-आप थोड़े ही टपक रहे हैं आसमान से। तुम उनका शोषण करना बंद करो तो उनका ये जो ज़बरदस्ती का दिया हुआ जन्म है ये भी बंद हो जाएगा। फिर वो प्रकृति में उतने ही रहेंगे जितना की प्रकृति चाहती है। जैसे कि अब ऐसा तो है नहीं कि ये जो स्पीसीज (प्रजाति) है गाय की ये जिस दिन से आई है उस दिन से आदमी उसका दूध पी रहा है। तो पहले तो ये अपना उन्मुक्त, स्वतंत्र ही, विचरण करती रहती थी इधर-उधर। तो लोगों को क्यों लगता है कि तुम अगर गाय को छोड़ दोगे और उसका दूध नहीं पीयोगे तो गाय की प्रजाति ही नष्ट हो जाएगी? भाई, इतिहास में एक समय ऐसा भी था जब इंसान का गाय से कोई लेना-देना नहीं था।

ठीक है न?

ऐसा तो नहीं है कि जिस दिन वो स्पीसीज तैयार हुई उस दिन से हमने उसको दुहना शुरू कर दिया। तो गाय तो मस्त पहले अपने हिसाब से घूमती थी। आप छोड़ दो फिर अपने हिसाब से घूमने लगेगी। हाँ, इतना ज़रूर है कि आपने उसको जिस तादाद में पैदा कर रखा है, चाहे वो गाये हो चाहे भैंस हो — मैं सब उन जानवरों की बात कर रहा हूँ जिनको ज़बरदस्ती पैदा किया जाता है, हमारे उपभोग के लिए; चाहे वो कोई भी जानवर हो। आपने उसको बहुत ज़बरदस्ती पैदा कर रखा है और ये बहुत शोषण की, बहुत क्रूरता की बात है।

रोबिन: तो जिसे हम गौ-पालन कह रहे हैं, बेकद्री तो अभी भी हो रही है। बल्कि दूध के चक्कर में उसमें साल-द- साल बढ़ोतरी ही हो रही है।

आचार्य: हमारे पास असल में डब्बा बंद दूध आ जाता है, पैकेज्ड माल आ जाता है। और इतना ना हमारे पास वक़्त है, ना इतना दिल है कि हम एक मिनट को भी रुककर सोचें कि ये चीज़ आ कहाँ से रही होगी। हमें गाय समझ में आती है कि जैसे गाय कोई फेक्ट्री से निकल कर के खड़ा हुआ प्रोडक्ट है, कि एक ये गाय खड़ी है और ये दूध दे रही है।‌ हम ये सोचते भी नहीं कि वो पैदा ही कैसे हो रही है।

रोबिन: आपने एक बात कही कि दूध पीने वाले भाई ये समझते नहीं कि दुध के पीछे का क्या प्रोसेस (प्रक्रिया) है, हमारे पास तो वही डिब्बा आ गया। मैं थोड़ा इतिहास में जाता हूँ, उन्नीस-सौ-छियासठ में गौ आंदोलन हुआ कि भाई गौ वध बंद किया जाए। उसके बाद एक कमिटी का गठन हुआ जिसमें वर्गीस कुरियन भी थे जोकि अमूल के पिता माने जाते हैं। उस समय उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर किसान बछड़ा पालेगा तो वो डेयरी में मुनाफा नहीं कमा पाएगा, अगर वो बूढ़ी गाय-भैंस नहीं बेचेगा तो नई गाय-भैंस नहीं ला पाएगा। मुझे लगता है कि ये साफ, स्पष्ट बात है कि डेयरी बिना कसाईखाने के मुमकिन नहीं है। खैर ये तो तब की बात है और उसके बाद से ये बात सामने आई नहीं। तो इसमें हम चाहते हैं कि डेयरी उद्योग खुल कर बोले कि भाई बिना कसाईखाने के डेयरी मुमकिन नहीं है। तो इसके लिए हम उनसे तीन सवाल पूछ रहे हैं, हमें एक साल हो गया पूछ्ते हुए। हमारे मुहिम का नाम है क्लीन मिल्क * । भाई पहला सवाल है कि बूढ़ी गाय-भैंस कहाँ जाती है, दूसरा है — दूध के उत्पादन के लिए जो बछड़ा पैदा किया जाता है जोकि वो नर बछड़ा है उसका क्या होता है‌। तीन — इंडिया गौमाँस का * टॉप का निर्यातक है तो ये भैंसे डेयरी से नहीं तो कहाँ से आ रही हैं।

आपकी हमारे इस अप्रोच (दृष्टिकोण) के बारे में क्या राय है?

आचार्य: ये बिलकुल सही बात है और ये सवाल तो पूछने की बात ही नहीं है। ये तो हर प्रबुद्ध नागरिक को जिसकी थोड़ी भी सोचने-समझने की क्षमता हो उसे ये खुद ही चुपचाप बैठकर विचार कर लेना चाहिए, कि भाई गाय ने जिस दिन दूध देना बंद किया वो कहाँ गई, जिस गाय का आज तुमने दूध पीया है कल वो गाय क्या बन जानी है। वो बीफ (गौमाँस) बन जानी है और क्या होना है। भाई, हम कहेंगे, "नहीं, गौशालाएँ हैं वहीं बूढ़ी गायें जाती हैं।"

मुझे ये बताइए कि जितनी गायों का दूध लिया जा रहा है — एक आँकड़ा ये है कि इतनी गायें हैं जिनसे दूध निकाला जाता है, गायें-भैंस सब कुछ, और इतनी गायें हैं जो गौशालाओं में अभी पल रही हैं, वृद्ध गायें, उनमें अनुपात क्या है?

दस और एक का भी अनुपात है क्या? दस और एक का ही अनुपात है।

तो ये कहना कि, "नहीं, जो गाय बूढ़ी हो जाती है वो गौशाला में चली जाती है।" ये बात बिलकुल नासमझी की है। सौ में से एक या दो गायें पहुँचती हैं बेचारी गौशालाओं तक, बाकियों का तो बड़ी क्रूरता से वध होता है। चाहे वो — फिर मैं कह रहा हूँ मैं जब गाय बोल रहा हूँ तो मेरा मतलब है दूध देने वाला प्राणी, उस अर्थों में — उसमें ज़्यादा भैंस ही है क्योंकि दूध तो ज़्यादा भैंस का ही चलता है। तो उसका तो सीधी-सी बात है कत्ल ही होता है। तो ये बात तो देश के आम नागरिकों को खुद ही समझ जानी चाहिए कि भारत बीफ का इतना बड़ा निर्यातक है ही इसीलिए क्योंकि भारत में लोग मस्त दबाकर के दूध पीये जा रहे हैं।

तुम दूध पियोगे फिर उस बूढ़ी गाय का या भैंस का क्या होगा, ये थोड़े ही तुम सोच रहे हो। वास्तव में अगर आप इस पर ध्यान दें, आर्थिक दृष्टि से तो दूध हमें जिस भी दाम में मिल रहा है, साठ रुपए, सत्तर रुपए जिस भी दाम में मिल रहा है वो उस दाम में मिल ही इसलिए पा रहा है क्योंकि बाद में फिर गाय-भैंस का कत्ल होता है। अगर सब गायों पर, अगर सब गौपालकों पर ये शर्त लगा दी जाए, ये बंदिश लगा दी जाए, कि साहब अगर आपने गाय पाली है और उसका आपने दूध बेचा है तो जब तक गाय प्राकृतिक मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाती आपको उसको पालना पड़ेगा, उसके बुढ़ापे में, तो दूध बहुत महँगा हो जाएगा, क्यों? क्योंकि फिर दूध के दाम में वो सब खर्चा भी जुड़ जाएगा जो गाय पालने वाले का होगा गाय का बुढ़ापा काटने के लिए।

अभी हमें सस्ता दूध मिल ही इसीलिए जाता है क्योंकि वो जो गाय है उसको जितना कुछ दाना, भुसी सब खिलाया गया है, चारा दिया गया वो तो लागत थी — भाई ये काम तो पूरा अर्थव्यवस्था का है न? तो लागत में क्या था? कि आपने गाय को बड़ा करने में, उसको खिलाने में या उसकी देखभाल करने में आपने जो भी रुपया-पैसा खर्चा किया, वो आया, ये लागत है। अब इतना जो मूल्य लगा है ये आपको उगाहनी है, रिकवर करनी है, वो आप किस-किस तरीके से करते हो? एक तो आप दूध से करते हो। पर दूध से पूरी नहीं कर सकते फिर आप किस चीज़ से करते हो? फिर आप चमड़े से करते हो, फिर आप माँस से करते हो, फिर आप हड्डियों से करते हो, फिर आप उसके हड्डियों के और माँस के अंदर से जो पचास तरीके के रसायन निकाले जाते हैं आप उनसे करते हो।

अगर वो सब बंद हो जाए, अगर ये हो जाए कि गाए से सिर्फ दूध लिया जाएगा, तो वो जो पूरी लागत लगी थी, जो पूरा खर्चा हुआ था गाय को या भैंस को जन्म देने में, पालने में, उसको पूरी एक छाया देने में, खिलाने-पिलाने में वो जो सारा खर्चा है वो किससे निकालना पड़ेगा? दूध से, तो दूध हो जाएगा महँगा।

तो असल में हम सब सस्ता दूध पी ही रहे हैं उस बेचारे प्राणी के माँस की क़ीमत पर। अगर उससे माँस नहीं लिया जाए तो दूध महँगा हो जाएगा। तो मैं बस सबसे यही निवेदन करता हूँ बार-बार कि आप बस ये सोचें कि ये जो आप दूध पी रहे हैं क्या उसमें उस निरीह, बेज़ुबान जीव का रक्त नहीं मिला हुआ है? बिलकुल मिला हुआ है।

रोबिन: एक तरफ तो ये जो गौमाँस का व्यापार है ये दूध को सब्सिडाइज कर रहा है दूसरी तरफ गौमाँस जो है वो बहुत सस्ते में मिलता है तो कहीं पर दूध गौमाँस को सब्सिडाइज़ करता है।

आचार्य: अब असल में गौमाँस तो फिर भी इतना उपलब्ध नहीं होता। जब हम कह रहे हैं गौमाँस तो वो ज़्यादा भैंस या भैंसे का माँस होता है। ज़्यादातर जिसे हम भारत में बीफ कहते हैं वो आम भाषा में वो बफ कहा जाता है, वो गाय का नहीं, ज़्यादा भैंस का होता है। पर फिर भी उसमें एक बड़ी तादाद में बेचारी गाय भी हैं जो कटती हैं।

रोबिन: तो ये दोनों चीज़ें एक दूसरे को सब्सिडाइज़ कर रही हैं।

आचार्य: हाँ जी, बिलकुल।

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