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लेख
भगवान' माने क्या! || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
12 मिनट
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प्रश्न: भगवान क्या है ?

वक्ता: इसका जवाब देना बहुत आसान हो जाता अगर तुमको वाकई पता ही ना होता। अगर पहले ये शब्द कभी सुन ही ना रखा होता। अगर कोई बिल्कुल साफ़ स्लेट के साथ ये सवाल पूछे कि ‘भगवान‘ शब्द का क्या मतलब है, तो इसका जवाब देना बिल्कुल मुश्किल नहीं होता। एकदम आसान होता| पर जितने भी लोग यहाँ बैठे हैं उनमें से कोई नहीं है जिसने ‘भगवान‘ शब्द पहले से सुन नहीं रखा है| हम सबके मन, ‘भगवान‘ शब्द की छवियों से, कहानियों से, अतिभारित हैं| तो इसलिए ‘भगवान‘ क्या है यह कहना तो दूर की बात है, पहले तो यह देखना ज़रूरी है कि ‘भगवान‘ क्या नहीं है| एक कमरे में बहुत सारी गन्दगी भरी हो और उसमें तुम्हें कुछ और रखना हो, तो पहले क्या करना पड़ेगा?

श्रोता १: उस कमरे की सफ़ाई|

वक्ता: पहले सफ़ाई करोगे| या ये करोगे कि दरवाज़ा खोलोगे और जो सामान है उसे अन्दर ले आओगे? ‘भगवान‘ को लेकर हमने कितनी सारी छवियाँ बना रखी हैं, कितनी कहानियां चलती रहती हैं| क्या कहानियां हैं ‘भगवान‘ को लेकर?

श्रोता २: कुछ उसे मूर्ति में देखते हैं, कुछ इंसानों में देखते हैं, कुछ के लिए मंदिर में रहता है, कुछ धार्मिक ग्रंथो में ढूँढते हैं| किसी के लिए बड़ा ताकतवर है, जो पापी होते हैं उनको दंड देता है, बढ़िया वालों को स्वर्ग में मिठाइयाँ देता है| कुछ के लिए प्यारा है, पर जब गुस्सा करता है तो दंड भी देता है |

वक्ता: तो ये सब छवियाँ हैं ‘भगवान‘ की| अभी तो हमने एक ही मिनट बात की है, और अगर थोड़ा गहराई से जाएं तो पता लगेगा कि इतनी छवियाँ हैं ‘भगवान‘ की, कि पहले तो छवियों को नष्ट करना ज़रूरी होगा| वह सारी छवियाँ हमारी कंडीशनिंग हैं, हमारे संस्कार हैं, और जो छोटा-सा बच्चा होता है उसके मन में बात बैठ जाती है| जैसे -“भगवान् जी को नमस्ते करो”|

तुमने भी किया होगा| तब तुम्हें क्या पता कौन भगवान जी, और नमस्ते कर रहे हो भगवान जी को| अब उसके मन में तो बात बैठ गई ना, और अब वह उन्हीं छवियों को लेकर बड़ा होगा| अगर हिंदू घर में पैदा हुआ है, तो जब भी किसी मंदिर के सामने से निकलेगा तो हाथ जोड़ेगा| क्यों?

श्रोत २: जो सिखाया है वही कर रहा है|

वक्ता: अब भगवान शब्द आते ही हाथ जोड़ना पक्का है| यहाँ एक प्रयोग करते हैं| यहाँ पर कुछ लोग जो बैठे हैं, वो हिन्दू हैं? अगर मैं अभी यहाँ भगवद्गीता की प्रतिलिपि रख दूं और कहूँ कि इस पर पांव रखो, तो तुम्हारे लिए बड़ी दिक्कत हो जाएगी| हो जाएगी ना? पढ़े-लिखे हो और जानते हो कि कागज़ है| पाँव, पाँव है, और कागज़, कागज़ है| विज्ञान की दृष्टि से पाँव भी अणु हैं और कागज़ भी| जो इलेक्ट्रान, प्रोटोन वहाँ घूम रहे हैं, वह इसमें भी घूम रहे हैं| और अगर मॉडर्न फिज़िक्स पढ़ी है तो यह भी पता होगा कि ये भी आखिरी चीज़ नहीं है, असली चीज़ नहीं है| लेकिन बड़ा मुश्किल हो जाएगा भगवद्गीता पर पाँव रखना| और अगर रख दिया तो क्या करोगे?

श्रोता ३: आदर से, मांथे से लगाएँगे|

वक्ता: इतना भार है भगवान का मन पर| मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि गीता पर पाँव रखना चाहिए| ये मैं बिल्कुल नहीं कह रहा कि घर जाकर गीता पर पाँव रखकर बैठ जाओ| पर इस बात को समझो कि मन पर भार कितना है इन धारणाओं का| ज़बरदस्त तरीके से है या नहीं?

वक्ता: जी सर|

श्रोता ३: आजकल ये चलन बहुत शुरू हो गया है, पिछले कुछ समय से बंद था, पर अब फिर शुरू हो गया है| टी.वी. पर खूब पौराणिक धारावाहिक आ रहे हैं ‘भगवान‘ को लेकर| ये जो बच्चे इनको देख रहे होंगे इनका क्या हो रहा होगा? क्या ये बड़े होकर ‘भगवान’ की छवि से मुक्त हो पाएँगे? क्या हो पाएँगे मुक्त?

श्रोता ३: नहीं सर|

वक्ता: और हर किसी के ‘भगवान‘ अलग-अलग हैं, क्योंकि हर किसी की कंडीशनिंग अलग-अलग है| अब एक मुस्लिम बच्चा है, उसका ‘भगवान‘ बिल्कुल ही अलग है| उसके ‘भगवान‘ का कोई रूप-रंग नहीं हो सकता| कोई आकार नहीं हो सकता, वह कहीं रहता नहीं है तो उसकी कोई छवि नहीं बना सकते| जो हिन्दू है उसका ‘भगवान‘ हमेशा बड़ा सजा-संवरा होता है| जितने आदमी उतनी ही कल्पनाएं| हिन्दू का ‘भगवान‘ खूब कपडे-लत्ते पहनकर रखता है, एक दम सजा हुआ रहता है| कितने तो आभूषण रहते है| कभी देखा है कृष्ण की मूर्ती को ? कितनी ज्वेलरी रहती है, मोरपंख भी होता है| और जैनों का ‘भगवान‘ देखा है? नग्न, जिसकी जैसी कल्पना|

तो ’भगवान’ जैसा कुछ है भी? हमारे मन में एक कल्पना उठती है और हम उसको ’भगवान’ का नाम दे देते हैं| जैसे कोई पहरेदार हमारे सर पर बैठा है और जब भी होता है तब हम ऐसे ही तो कहते हैं:‘वह ऊपर वाला|’ नीचे वाला क्यों नहीं? दाएं वाला क्यों नहीं? बाएँ वाला क्यों नहीं?

एक आदमी ने कल्पना बनाई और ये कल्पना आज से नहीं चल रही है| कहाँ से आता है ’भगवान’ इसको ध्यान से समझना:

’भगवान’ वहीँ से आता है जहाँ से आज से दस हज़ार साल पहले आता था| आदमी ने देखा के बिजली कडकी, ज़बरदस्त बिजली कडकी| आदमी ने देखा कि ग्रहण हुआ| सूरज तक पर एक काल धब्बा सा आ गया| आदमी ने देखा कि बहुत जोर के हवाएं चलीं| और आदमी अभी भी आदिमानव है| क्यों? नहीं पता है कि ये सब कहाँ से हो रहा है, क्यों हो रहा है, क्या चक्कर है पूरा|

तो आदमी ने क्या कहा? आदमी ने कहा के ये ज़रूर कोई और आदमी है, बड़ा आदमी, जो बहुत शक्तिशाली आदमी है, जो ये सब कुछ कर रहा है| जो सबसे पुराने ग्रन्थ हैं, तुम उसे उठाओगे तो जो उसमे डिविनिटी की पहली सोच है, वह कहती है कि वह एक ‘फ़ोर्स ऑफ़ नेचर है| फोर्सिस ऑफ़ नेचर‘ को ही ’भगवान’ माना गया है| इसलिए तुम्हारे जो पहले के देवता थे वो सारे प्राकर्तिक शक्तियों के प्रतिनिधि थे|

वरुण माने जल| तो अगर बारिश नहीं हो रही है और आदमी को डर लग रहा है तो ‘वरुण देवता‘|

अग्नि| आग लग रही है| ‘अग्नि देवता‘

वो नहीं जानता था कि बिजली कैसे कड़कती है और नहीं जानता था कि इसकी क्या थ्योरी है| वो नहीं जानता था कि हवाएं कैसे चलती हैं| वह नहीं जानता था कि एक तरफ हाई प्रेशर होता है और एक तरफ लो प्रेशर तो हवा हाई प्रेशर से?

श्रोता : लो प्रेशर पर जाती हैं|

श्रोता : वो सोचता था कि यह ज़रूर किसी ताकतवर ’भगवान’ का काम है| ये बात सिर्फ आदिमानव ही नहीं सोचता था| आदिमानव भी ’भगवान’ कि कल्पना तभी करता था जब वह डरा हुआ होता था और परेशान होता था| वह जब बिजली कड़कते देखता था तो कहता था कि आसमान में कोई बड़ा आदमी बैठा है और ये इसके दांत हैं जो चमक रहे हैं| उसे नहीं पता था ग्रेविटेशनल पुल क्या होती है| वह नहीं जानता था कि प्लैनेट्स अपने फिक्स्ड ऑर्बिट में ही चलते हैं| तो क्या सोचता था? कि सूर्य देव हैं और उनके घोड़े उनको प्रथ्वी के एक सिरे से दुसरे सिरे तक ले जाते हैं| वह ये सब नहीं जानता था|

तो जहाँ पर इग्नोरेंस है, अज्ञान है वहां क्या आ जाता है?

श्रोता : भगवान |

वक्ता : जहाँ फीयर है, डर है, वहां क्या आ जाता है?

श्रोता : भगवान |

वक्ता : उसको साइंस का कुछ पता नहीं, जब साइंस का पता नहीं तो इग्नोरेंस है और अगर इग्नोरेंस है तो क्या आ गया?

श्रोता : भगवान

वक्ता : ‘हमारे शत्रुओं का नाश हो| हे प्रभु ऐसा कर देना|’ जहाँ डिजायर है, इच्छा है वहां क्या आ गया?

श्रोता : भगवान |

वक्ता : ये तो बड़ा ज़बरदस्त सम्बन्ध निकल आया|

जहाँ इग्नोरेंस है, अज्ञान है वहां ’भगवान’ आ गया|

जहाँ फीयर है, डर है वहां ’भगवान’ आ गया|

जहाँ डिजायर है, इच्छा है वहां ’भगवान’ आ गया|

और यह सिर्फ आदिमानव के समय की बात नहीं है| आज भी ’भगवान’ वहीँ आता है जहाँ इग्नोरेंस, फीयर या डिजायर हो| तुम कब जाते हो मंदिर?

श्रोता : जब कोई काम है|

वक्ता : तो यह डिजायर हो गयी| डिजायर आई और ’भगवान’ आ गया| और कब जाते हो मंदिर? मंदिर में जो ज़्यादातर लोग क्यों जाते हैं?

श्रोता : परेशानी|

वक्ता : परेशानी, फीयर| अब फीयर आया तो क्या आ गया?

श्रोता : भगवान |

वक्ता : इसका मतलब है कि अगर फीयर ना होता, इग्नोरेंस ना होता, डिजायर ना होती तो ’भगवान’ की भी कल्पना करने की आवश्यकता ही नहीं थी| अब तुम मुझे ये बताओ कि क्या ज़रूरी है? मैं तुम्हे ये बताऊँ की ’भगवान’ क्या है या ये बताऊँ की इग्नोरेंस, फीयर और डिजायर क्या है?क्योंकि ’भगवान’ की तो सत्ता ही तभी तक है जब तक मन?

श्रोता: डरा हुआ है, अज्ञानी है और इच्छा रखता है|

वक्ता : तो क्या समझना चाहते हो?

श्रोता : यही| इग्नोरेंस, फीयर और डिजायर|

वक्ता : अगर इग्नोरेंस, फीयर और डिजायर को समझ लिया तो ’भगवान’ की कहाँ आवश्यकता है? तो ’भगवान’ मत पूछो, आदमी के मन के बारे में पूछो| क्योंकि ’भगवान’ भी आदमी के मन से ही निकला है| कहते हैं कि ‘छह दिन भगवान् ने बैठकर दुनिया बनाई और सातवे दिन आराम किया‘| तो इसी में किसी ने एक बढ़िया लाइन जोड़ दी और कहा कि ‘छह दिन भगवान् ने बैठकर दुनिया बनाई और सातवे दिन आदमी ने ’भगवान’ को बना दिया| ये जो हमारा ’भगवान’ है यह हमारे ही दिमाग की उपज है| तो ’भगवान’ को समझें या अपने दिमाग को समझें? और दिमाग का मतलब क्या है? इग्नोरेंस, फीयर और डिजायर|

श्रोता : सर, तो क्या एक नास्तिक अज्ञानी नहीं है?

श्रोता : बेटा, जो नास्तिक होता है वह तो बड़ी ही अजीब जगह पर खड़ा होता है| नास्तिक ‘किसको‘ मानने से मना कर रहा है? नास्तिक ‘क्या‘ मानने से मना कर रहा है? नास्तिक होता है, जो कहता है की ’भगवान’ नहीं है| तुमने रात में एक सपना देखा| उस सपने में तुमने लड्डू देखे| तुम्हारी कल्पना है न? सपना एक कल्पना ही है| अब यह(एक स्टूडेंट की तरफ हाथ करते हुए) एक नास्तिक है और तुम एक मानने वाले हो| सुबह उठकर तुम कह रहे हो कि लड्डू हैं| और वो कह रहा है कि लड्डू नहीं हैं| यह सही बोल रहा है या वह सही बोल रहा है?

श्रोता : दोनों में से कोई नहीं|

वक्ता : क्योंकि दोनों ही एक काल्पनिक चीज़ के पीछे लड़ रहे हैं| ये कह रहा है कि ’भगवान’ है, वो कह रहा है की ’भगवान’ नहीं हैं| और दोनों ही नहीं जानते की ’भगवान’ माने क्या? दोनों ही नहीं समझ रहे कि ’भगवान’ तो एक कल्पना है|

तो नास्तिक और मानने वाला दोनों एक ही हैं| दोनों में कोई अंतर नहीं है| क्योंकि अगर नास्तिक कहता है कि “गौड डस नौट एग्सिस्ट”| उससे पूछो, “क्या एग्सिस्ट नहीं करता?” मैं किसी चीज़ के लिए कहूँ कि यह एग्सिस्ट नहीं करती तो उससे पहले मुझे पता तो होना चाहिए कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ| ये कह रहा है कि “गौड एग्सिस्ट”, वो कह रहा है कि “गौड डस नौट एग्सिस्ट”,’भगवान’ क्या है यह दोनों को ही नहीं पता| तो दोनों में से ज्यादा सही कौन बोल रहा है?

श्रोता : कोई भी नहीं|

वक्ता : दोनों एक ही स्तर पर हैं| दोनों ही नहीं जानते की ’भगवान’ क्या है? ऐसे समझो| उसने सपने में कत्ल कर दिया| वह सुबह उठकर कह रहा है कि मैंने कत्ल किया| और दूसरा कह रहा है कि मैंने नहीं किया| और वह अपने सपने की बात कर रहा है जिसका उसे पता भी नहीं है| ये कह रहा है कि कत्ल किया है तो बेवकूफी की बात कर रहा है क्योंकि वह एक सपना बस था और वह कह रहा है कि मैंने कत्ल नहीं किया और उसे पता भी नहीं है कि एक सपने की बात कर रहा है|

वह किस ’भगवान’ के बारे में कहेगा कि “गौड डस नौट एग्सिस्ट”| क्या उसे पता है ’भगवान’ क्या है? जब नास्तिक बोले कि “गौड डस नोट एग्सिस्ट” तो उस से पूछो, “वॉट डस नौट एग्सिस्ट?” यह ऐसी ही बात है कि एक अशिक्षित आदमी जिसको कुछ नहीं पता साइंस के बारे में और वह बोले कि “गौड डस नोट एग्सिस्ट”, उसे बोलने का हक भी है यह? अगर कोई बिना पढ़ा-लिखा तुम्हारे पास आये और कहे, “इलेक्ट्रान डस नौट एग्सिस्ट” तो उस से क्या कहोगे?

श्रोता : हम पूछेंगे ‘इलेक्ट्रान‘ माने क्या? तू किस चीज़ के बारे में इनकार कर रहा है? तुझे पता भी है?

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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