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लेख
भैंसे वाला ब्रह्ममूर्त नहीं देखता! || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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“बिलकुल एकदम बढ़िया आदमी हैं, रोज़ रात में सो जाते हैं दस बजे और सुबह ठीक पाँच बजे इनकी आँख खुल जाती है।“ करोगे क्या दस बजे सो कर और पाँच बजे आँख खोल कर? एक दिन तो ऐसा आएगा जब आँख खुलनी ही नहीं है। तब बता देना भैंसे वाले को कि, “हमने तो रोज़ सुबह पाँच बजे खोली थी”, वो कहेगा, “कोई बात नहीं। जिन्होंने छः बजे खोली, आठ बजे खोली, बारह बजे खोली, उनकी भी अब कभी नहीं खुलेगी। ठीक वैसे ही जैसे तेरी कभी नहीं खुलेगी रोज़ सुबह पाँच बजे खोलने वाले!”

ये तो बहुत बेहोश लोगों का काम है कि सो गए, क्यों सो गए? सो भी इसलिए नहीं गए कि दस बजे में कुछ खास है, इसलिए क्योंकि सुबह आठ बजे फिर से रोटी पानी का जुगाड़ करने निकलना है। नौ बजे नहीं पहुंचे तो बॉस बहुत जुतियाएगा।

जीवन ऐसा चाहिए जो रातों की नींद उड़ा दे। वो पागलपन नहीं है अगर जीवन में, तो तुम बहुत मुर्दा आदमी हो।

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