आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
बाबाजी बोले, "अगर भगवान हैं, तो भूत भी हैं" || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2023)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सवाल ये था कि भगवान और भूतों का फिर रिश्ता क्या है?

आचार्य: ये जो बाहर वाले तुम्हारे भगवान हैं, उनका क्या काम है? तुम्हारी कामनाओं की पूर्ति करना। तो उसको तुम बोलते हो पॉज़िटिव एनर्जी। (सकारात्मक ऊर्जा) ठीक है? जो तुम्हारी कामना पूर्ति करे उसको तुम बोलते हो पॉज़िटिव। हमारे लिए पॉज़िटिव शब्द का अर्थ ही यही होता है। मेरी पसन्द का, मेरी कामना का, मेरी इच्छा का काम हो उसको मैं बोलता हूँ पॉज़िटिव। यही तो है न? और जो आपकी इच्छा, आपकी पसन्द से अलग हो उसको आप निगेटिव (नकारात्मक) बोलते हो।

यही तो है न पॉज़िटिव-निगेटिव की परिभाषा? सोचकर देखना, यही परिभाषा है।

तो भगवान को आप फिर बोलते हो पॉज़िटिव एनर्जी। क्योंकि वो आपकी कामना पूरी करता है। पर आपकी कामनाऍं पूरी तो होती ही नहीं। तो आपको फिर इक्वेशन (समीकरण) ठीक करने के लिए निगेटिव एनर्जी तो लानी पड़ेगी न। भाई आपके पास है कामना, और भगवान बैठे हैं आपकी कामना पूरी करने को, लेकिन कामना तो है कि पूरी होने को आती ही नहीं, आदमी मर जाता है।

आदमी दो हज़ार साल जी ले तब भी उसकी कामना नहीं पूरी होती। तो फिर आदमी कहता है, कहीं कोई निगेटिव एनर्जी भी होगी ज़रूर। तो फिर भूत खड़ा करना पड़ता है।

इसीलिए जो लोग कहते हैं कि अगर भगवान है तो भूत भी होगा, वो ठीक ही कहते हैं। लेकिन ये बात लागू होती है बस बाहर वाले भगवान पर। हमने जो भगवान की मान्यता बनायी है अगर वो मान्यता बनाओगे तो तुम्हें भूत की भी मान्यता बनानी पड़ेगी मज़बूरी में।

क्योंकि अगर एक है जो कामना की पूर्ति करता है तो कोई दूसरा भी तो होगा न जो कामना को बाधित करता है, जो कामना को अपूरित रखता है? क्योंकि अगर बस तुम होते और भगवान होते तो तुम्हारे पास कामना है और वो कामना पूरी कर सकते हैं, तो कुल मिलाकर झट से कामनाएँ पूरी हो गयी होतीं। पर कामना तो पूरी होती नहीं।

इसका मतलब कि कोई तीसरा भी है। फिर पिक्चर बनती है श..श..श..श... कोई है! अब समझ में आ रही है बात? हम क्यों बोलते हैं कोई है तो? ज़रूर कोई है। क्योंकि अगर बस भगवान होते और हम होते तो सारी कामनाएँ पूरी हो गयी होतीं। फिर हम कहते हैं, ‘एक कोई तीसरी ताक़त है वो कामना पूरी होने से रोकती है, वो गन्दी ताक़त है। वो हमारा बुरा करती है।

तुम कहते हो, भगवान वो ताक़त है जो हमारा भला करती है और एक और कोई ताक़त है जो हमारा बुरा करती है। फिर उसको तुम कभी शैतान बोल देते हो, कभी प्रेत, कभी भूत, कभी घोस्ट, कभी जिन्न, कभी चुड़ैल, डायन कितने तरह के। दुनिया भर में उसको हज़ार तरह के नाम दिये गए हैं।

पर तुम्हें उस ताक़त की कल्पना करने की ज़रूरत ही इसीलिए पड़ती है क्योंकि तुमने अपने भगवान को बाहर कहीं बैठाया है और तुमने भगवान को जो रोल दिया है वो रोल है कामना पूर्ति का। अगर भगवान यहाँ (भीतर) है तो फिर भूत की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर भगवान वहाँ (बाहर) है तो भूत की ज़रूरत निश्चित रूप से पड़ेगी। अगर वहाँ भगवान है तो भगवान और भूत का जोड़ा रहेगा। द्वैत है न यही? भगवान-भूत। यहाँ (हृदय में) अद्वैत है, यहाँ भगवान रहेंगे, भूत नहीं रहेगा। तो आपको कौनसे भगवान चाहिए, जिनके साथ भूत भी होंगे-ही-होंगे? या वो भगवान चाहिए जिनके साथ कोई भूत हो ही नहीं सकता?

वो भगवान जिनके साथ कोई भूत नहीं हो सकता वो यहाँ (भीतर) के भगवान हैं। उन्हीं को सत्य कहते हैं, उनको आत्मा बोलते हैं। उनको पाने को मुक्ति बोलते हैं। उन्हीं भगवान को ब्रह्म भी बोलते हैं। उन्हीं भगवान को पाने को ब्रह्मनिर्वाण भी बोलते हैं। समझ में आ रही बात? वहाँ पर क्या है? कामना पूर्ति। यहाँ क्या है? कामना से मुक्ति। वहाँ क्या है? भगवान और साथ में भूत। यहाँ क्या है? मात्र भगवान, मात्र भगवान।

प्र: इसमें आचार्य जी, हमने अभी पहले बात की थी कि जिन्हें हम भगवान कहते हैं वो बेसिकली (मूल रूप से) हमारी कल्पना मात्र होते हैं और..।

आचार्य: कल्पना माने ऐसा नहीं कि तुमने बैठकर ऐसे ही कल्पना कर ली, हो सकता है तुमने किसी किताब में पढ़ लिया हो। और वो किताब भी किसी ने तो लिखी है न? तो मान्यता है।

प्र: तो ईश्वर जो है या भगवान जो है वो आपकी मान्यता है। और उसी तरीक़े से जो भूत भी है, वो भी आपकी मान्यता है। लेकिन बहुत सारे लोग होते हैं जो आते हैं और बताते हैं कि उनको भूत का एक्सपीरियंस हुआ है। उन्होंने भूत देखा है। तो अगर वो मात्र मान्यता है तो फिर फिर उन्हें देखा कैसे?

आचार्य: नहीं, वो कम बताते हैं। उन्होंने तो यही बताया कि साल में एक-दो बार उन्हें भूत दिख जाता है। वो कम बता रहे हैं, उन्हें साल में तीन-सौ-पैंसठ दिन भूत-ही-भूत दिख रहा है। भूत माने क्या? कुछ ऐसा जिसका तुम्हें साफ़-साफ़ पता न चले, लेकिन अनुभव हो की कुछ है।

तो इनको भी कहाँ कुछ पता है? इनके घर में इनका लड़का है, इनको पता है वो लड़का क्या कर रहा है? इनके घर में इनकी लड़की है, इनको पता लड़की क्या कर रही है? इनको पता है इनकी पत्नी क्या कर रही है, इनका भाई क्या कर रहा है? इन्हें कुछ भी पता है क्या?

इन्हें अपना भी कुछ पता है क्या कि ये क्या कर रहे हैं? तो इनके लिए तो भूत-ही-भूत हैं चारों ओर।

देखिए, अनुभव प्रमाण नहीं होता। आप कह दो आपको अनुभव हो गया भूत का, तो इससे ये नहीं सिद्ध हो जाता है कि भूत है। ये पहाड़ी हैं साहब! उन इलाकों में सबको भूत का अनुभव होता रहता है, तो इससे ये थोड़े ही सिद्ध हो जाता है कि भूत है। भाई! पुराने समय की बात, पहाड़ों पर न बिजली न कुछ! और पूर्णिमा की रात है और दूर-दूर तक दिखायी दे रहा है।

और वहाँ शोर होता नहीं है, शोर जब होता नहीं है तो कहीं दूर, कहीं पर ज़रा सा कोई हवा चलती है, पेड़ की पत्तियाँ खड़कती हैं तो भी लगता है कि कोई बोल रहा है। समझ में आ रही है बात? पेड़ झूमते हैं तो छायाऍं, लगता है जैसे पता नहीं कौन नाच रहा है। तो आपको अनुभव कुछ भी हो जाएगा। पहाड़ों पर चले जाइए, पहाड़ों पर अच्छे-ख़ासे लोगों को अनुभव होने लग जाते हैं। कि कुछ तो है! लेकिन तुम्हें अनुभव हो रहा है इससे प्रमाणित थोड़े ही हो जाता है कि कुछ है, अनुभव तो कुछ भी हो सकता है किसी को भी।

आपको रोज़ ही कुछ ऐसे अनुभव होते हैं न जो कि झूठे होते हैं? आप बैठे थे, आपको लगा दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी है, लगता है कि नहीं लगता है? आप जाते हो दरवाज़ा खोलते हो वहाँ कोई नहीं होता क्योंकि किसी ने दस्तक दी ही नहीं थी। तो इससे क्या ये साबित हो जाता कि वो भूत था? नहीं, ऐसे ही था, भ्रम था, धोखा था। इन्द्रियाँ हैं इनको धोखा होता रहता है।

प्र: कुछ लोग इसी में प्रमाण दिखाते हैं, वो वीडियोज़ बनाते हैं या दिखाते हैं ..?

आचार्य: लोग झूम रहे हैं और.।

प्र: कुछ जा रहा है, कुछ बस हल्का सा..।

आचार्य: और ये सब करके कन्वर्ज़न भी खूब होता है। ये सब करके, उनके वीडियो बनाकर दिखाया जाता है, देखो भूत चढ़ता है और तुम्हारे धर्म में तो कोई है नहीं जो भूत उतार सके, तो तुम हमारे धर्म में आ जाओ और हम तुम्हारा भूत उतार देंगे। ये सब चलता है इस तरह के वीडियो सर्कुलेट हो रहे हैं। उसके जवाब में फिर हिन्दू धर्म वाले बोलते हैं कि अच्छा तुम अगर भूत उतार सकते हो, तो हम भी तो भूत उतार सकते हैं। हम भी भूत उतारकर दिखाऍंगे। तो उधर नौटंकी है तो इधर भी नौटंकी करनी है।

प्र: पर भूत जिसका उतारा जा रहा है, उसे तो कुछ एब्नॉर्मल महसूस हो रहा है मतलब वहाँ फिर?

आचार्य: बहुत मज़े आ रहे हैं। एक बात बताओ ये रात-रातभर जाकर डिस्को में नाचते हो। क्या कर रहे हो वहाँ पर? क्या करते हो? वैसे ही तो तुम्हारा वहाँ पर वीडियो बना लिया जाए, ठीक है? और किसी को दिखाया जाए ये बोलकर के कि इनको भूत चढ़ा है, तो वो मानेगा कि नहीं मानेगा? बाल आपने खोल लिये हैं, कपड़ो का आपको होश नहीं। अस्त-व्यस्त हो बिलकुल, कपड़े इधर-उधर उड़ रहे हैं, बाल खोल लिया और ऐसे बाल ऐसे-ऐसे करके झूम रहे हो। डिस्को में ये सब क्यों करते हो? वो एक तरीक़े का रेचन होता है, कैथारिसिस।

तुमने जो तनाव भीतर जमा कर रखा होता है न, वो बिलकुल झूमकर बेख़ुदी में नाचने से थोड़ा कम हो जाता है। उसका उपचार नहीं हो जाता पर वो तनाव कम हो जाता है। इसीलिए लोग जब हफ्ते भर घटिया काम करते हैं, कॉरपोरेट्स वगैरह में तो फिर वो कहते हैं, ‘अब सटर्डे नाइट है। और सटर्डे नाइट को हम छ: घंटा बहुत नाचेंगे, बहुत नाचेंगे, बहुत नाचेंगे।

उस नाचने से ये होता है कि तनाव कम हो जाता है। तो जहाँ कहीं भी न्यूरोसिस होता है, माने मन में तनाव होता है। मन में कई तरीक़े की समस्याएँ होती हैं। वहाँ पर व्यक्ति कई तरीक़े की अजीब-अजीब शारीरिक हरक़तें शुरू कर ही देता है। और ये काम ये जो भूत में, भूत चढ़ाकर नाचने-वाचने का काम है ये महिलाओं के साथ ज़्यादा होता है। वो भी जो दमित पृष्ठभूमि की महिलाएँ होती हैं।

अब वो कहीं कोई औरत है, उसको कभी घर से बाहर निकलने को नहीं मिल रहा है। उसको कभी अपना मनोरंजन करने को नहीं मिल रहा, उसको कभी नाचने-गाने को नहीं मिल रहा। वो कभी अपनेआप को अभिव्यक्त नहीं कर पा रही। खुली आवाज़ से बोल नहीं पा रही। तो फिर क्या करेगी वो?

एक ही तरीक़ा है न उसको अगर खुलकर के दुनिया के सामने आना है झूमना है, नाचना है? और उसके फिर कई तरीक़े के अत्याचार भी हो रहे हैं। उसकी कामनाएँ कुचली जा रही हैं, उसका दमन हो रहा है बहुत तरीक़े से। तो अगर उसको एक विस्फोट की तरह अपनेआप को अभिव्यक्त करना है तो फिर वो यही सब करती है कि मुझ पर भूत चढ़ गया है। लो देखो! जो मेरी सुनते नहीं थे, अब सुनेंगे।

और आपको ये थोड़ा सा रोचक लगेगा कि परम्परा में जो लोग शोषित रहे हैं उनको अभिव्यक्ति देने का ये बड़ा तरीक़ा रहा है। उदाहरण के लिए बहुत जगहों पर अभी भी ऐसे उत्सव मनाये जाते हैं, जहाँ पर माना जाता है कि किसी व्यक्ति पर कोई भूत उतर आया है, कोई आत्मा उतर आयी और वो एक दिन निर्धारित होता है और उस दिन होता है कि अब इस पर ये उतर आया है। और उस दिन उस व्यक्ति को बहुत सम्मान मिलता है। क्योंकि आज उस पर कोई देवता उतरा हुआ है। उस दिन उसको बहुत सम्मान मिलता है।

प्र: फोकस्ड अटेंशन।

आचार्य: फोकस्ड अटेंशन , सम्मान मिलता है। समझो मेरा ज़ोर सम्मान शब्द पर है। आपको पता है वो जो व्यक्ति है जो आम तौर पर ये बनता है कि आज इस पर उतरा है, जिस पर उतरता है। वो आमतौर पर दलित समुदाय से होता है। तो ये दलित समुदाय को अभिव्यक्ति देने का एक तरीक़ा रहा है कि चलो साल भर तो तुमको दबाया गया पर आज ब्राह्मण भी आकर तुम्हारे पाँव छुएगा।

तो चलो, एक तरह से थोड़ा सा हिसाब बराबर हो गया। हिसाब बराबर ऐसे हो नहीं जाता, लेकिन फिर भी जो भीतर आक्रोश रहता है वो थोड़ा कम हो जाता है। कि साल भर तो मुझ पर अत्याचार ही हुआ, पर आज अब मुझे जो है, मेरा चेहरा रंग दिया गया, मैं नाचूॅंगा और ऐसे ऐसे करूँगा। और उसमें फिर जितने ब्राह्मण भी हैं पुजारी भी हैं, वो सब भी आकर के मेरी पूजा करेंगे। और मुझे देवता की तरह वो नमस्कार करेंगे। और आम तौर पर ये जो बन्दा है, ये दलित समुदाय से होता है।

इसी तरीक़े से जो शोषित एक वर्ग है वो स्त्रियों का है। तो आप देखते हो कि माता वगैरह ये सत्तर-अस्सी प्रतिशत स्त्रियों पर ज़्यादा चढ़ती हैं। आवाज़ मिलती है न उस दिन। वो उस दिन चढ़ी हुई है तो उस दिन ससुर भी ऐसे-ऐसे काॅंपेगा उसके सामने। और नहीं तो साल भर क्या होता है? कि ससुर जी ने ज़रा सा खखार दिया, खाॅंस दिया, तो बहू इधर-उधर भाग रही है और अपना घूॅंघट कर रही है, छुप रही है। और कहीं ससुर ने ऊँची आवाज़ में बोल दिया तब तो एकदम ही हालत उसकी ख़राब हो जाती है। और जिस दिन वो ऐसी हो जाती है कि आज मुझ पर कुछ चढ़ा है, उस दिन ससुर जी फिर काॅंपते हैं उससे।

तो इन सब चीज़ों के पीछे, जटिल सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण हैं। ये भूत-प्रेत बाधा नहीं है, इसके पीछे कुछ और ही चल रहा है वो हमें समझना पड़ेगा।

प्र: इसके पीछे एक मान्यता ये भी रहती है कि पूरा जो तन्त्र ही है कि जब एक व्यक्ति मरता है उसकी मृत्यु होती है, तो उसके भीतर से आत्मा निकलती है। और वो जो आत्मा होती है फिर वो अगर, स्पेशली अगर वो सही कंडीशन्स में नहीं मरा है...|

आचार्य: जो आत्मा निकलती है वो इसी दुनिया में ही घूमती है और फिर जाकर इसी दुनिया में किसी में घुस जाती है। तुम्हें दिख नहीं रहा है ये कौनसे तरीक़े के लोग हैं जो इस प्रकार की आत्मा की बात करेंगे? हमने कहा था, शुरुआत में ही कहा था कि दो तरह के लोग होते हैं।

एक जिनकी नज़र हमेशा दुनिया की ओर होती है, कामना पूर्ति के लिए। दुनिया ही इनके लिए सबकुछ है। और दूसरे जिनकी नज़र अपनी ओर होती है। हमने कहा, ये दो तरह के लोग होते हैं, इसलिए दो तरह के भगवान होते हैं। और इन दो तरह के भगवानों में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है। तो जिनकी नज़र दुनिया की ओर है वो दुनिया से ऐसे ही चिपके रहते हैं जैसे गुड़ से मक्खी। समझ रहे हो?

जानते हो गुड़ में मक्खी कई बार ऐसे फॅंस जाती है कि तुम निकलना चाहो तो भी नहीं निकाल सकती। तुम कोशिश करके उसको निकाल दोगे, तो देखोगे उसकी एक छोटी सी टाॅंग उस गुड़ में फॅंसी रह गयी है। वो छोड़ ही नहीं पाती गुड़ को। वैसे ही कई लोग हैं जिन्हें दुनिया रूपी गुड़ इतना ललचाता है कि वो मरने के बाद भी दुनिया को नहीं छोड़ पाते।

वो कहते हैं, मैं आत्मा हूँ। मैं अभी भी दुनिया में हूँ और अब मैं अगली देह धारण करूँगा। दुनिया का लालच इतना है कि उन्होंने अपने लिए कल्पना बना ली है कि मैं मरने के बाद भी हूँ। मैं गया नहीं अभी, दुनिया छूटी नहीं अभी। मैं हूँ अभी दुनिया में।

पहले मेरे पास स्थूल शरीर था, अब मेरे पास सूक्ष्म शरीर है। पर मैं अभी भी दुनिया में हूँ। दुनिया का लोभ उनसे छूट ही नहीं रहा। लेकिन जो लोग यहाँ (भीतर की ओर इशारा) वाले भगवान को मानते हैं, वो इस तरह कोई कल्पना नहीं करते। वो कहते हैं कि ये जन्म है, ये बार-बार नहीं मिलता।

कितने ही सन्तों ने कितनी ही बार आपको समझाया। ऋषियों ने बताया कि ये जो जन्म मिला है इसको व्यर्थ मत गॅंवाओ। ये जो अवसर है ये बार-बार नहीं आएगा। गाते हैं न वो कितने प्यारे-प्यारे भजन हैं, “अवसर, बार-बार नहीं आवे, अवसर बार-बार नहीं आवे” ये अवसर एक बार मिला है दोबारा नहीं आएगा। ये नहीं है कि अब यहाँ से निकलोगे तो कोई दूसरा इंसान बन जाओगे।

एक जन्म है, एक अवसर है, इसको भुना सकते हो तो भुना लो।

प्र: जो वो जैसे मक्खी और गुड़ है तो वो जो व्यक्ति है वो तो मर गया। पर मरने के बाद जो जीवित है और जो दूसरे लोग जीवित हैं, उनको लगता है और उनको आभास ऐसा होता है कि...

आचार्य: नहीं वो मरने से पहले ये व्यक्ति भी अपने मन में सुख ले रहा होता है न। कि मैं पूरा नहीं मरूँगा मेरा कुछ हिस्सा बचा रह जाएगा। मैं पूरा नहीं मरूँगा, मेरा कुछ हिस्सा बचा रहेगा। जैसे बहुत लोग होते हैं वो मरने से पहले अपना डीएनए कहीं पर रखवा जाते हैं, कोल्ड स्टोरेज में। कहते हैं मैं पूरा नहीं मरा, किसी दिन मैं ज़िन्दा होकर के वापस आ सकता हूँ। कुछ ऐसा है नहीं। तुम तो मर ही गये हो, कोई और होगा अगर आ भी गया हो वापस।

तो ये आकांक्षा मनुष्य को हमेशा से रही है कि मैं मरूँ नहीं। तो उसके नाते कुछ लोगों ने कल्पना कर ली कि मैं मर भी जाऊॅंगा तो भी मेरे भीतर की एक चीज़ है, सूक्ष्म चीज़; वो दुनिया में रहेगी। मैं पूरा मरा नहीं, अभी मैं बच गया। ये मृत्यु का डर है। और ये जो मृत्यु का डर है बस ये बताता है कि तुम ज़िन्दगी ग़लत जी रहे हो। जब आप ग़लत ज़िन्दगी जीते हो तो आपको मृत्यु का बड़ा डर रहता है। और जब मृत्यु का डर रहता है तो आप इस तरह की अनाप-शनाप कल्पनाएँ करते हो।

जो यहाँ (भीतर) वाले भगवान को मानते हैं उन्हें इस तरह के अगले-पिछले जन्म की कल्पना करने की कोई ज़रूरत नहीं होती। वो कहते हैं, यही जन्म कौनसा बड़ा सच्चा है जो अगले-पिछले जन्म की बात करें। वो कहते हैं, मैं अजात हूँ, मेरा यही जन्म नहीं हुआ, मैं आत्मा हूँ। आत्मा वो जिसका जन्म न हो। कह रहे हैं मेरा तो यही जन्म नहीं है तो आगे-पीछे का जन्म कैसे होगा? मेरा यही जन्म नहीं है तो आगे-पीछे का जन्म कैसे होगा? हम वो हैं जो जन्मे ही नहीं तो हमारा पुनर्जन्म कैसे होगा! मेरा यही जन्म नहीं है मेरा पुनर्जन्म कैसे होगा?

प्र: तो वो जो एक जीवित व्यक्ति है, वो जब कोई मरता है उसके सामने तो वो अपने मन में ये कल्पना बनाता है और उससे वो ख़ुद को दिलासा देता है कि जब वो ख़ुद भी मरेगा तो वो जो है बचा रहेगा।

आचार्य: हाँ-हाँ-हाॅं, मैं बचा रहूँगा, मैं बचा रहूँगा। ये मृत्यु का खौफ़ है। और मृत्यु का खौफ़ वास्तव में अनजिये जीवन का खौफ़ होता है। ज़िन्दगी आपको जैसे जीनी चाहिए थी, आपने जी नहीं है। ज़िन्दगी की उच्चतम सम्भावना, वो जो भगवान है उच्चतम, ज़िन्दगी की उच्चतम सम्भावना आपने पायी नहीं है, तो आप डरे हुए हो कि कहीं समय पूरा न हो जाए। कहीं काम अधूरा न छूट जाए। तो फिर आप कल्पना करते हो कि मरने के बाद भी इधर-उधर डोलूॅंगा।

प्र: कई यूट्यूब पर ऐसे वीडियोज़ रहते हैं, ईवन जिन्हें जो ख़ुद को गुरु कहते हैं या बाबा कहते हैं। और उनके बहुत सारे ऐसे सेशंस उस तरीक़े से होते हैं जहाँ पर वो दूसरों के ऊपर से भूत उतार रहे होते हैं। वो चिल्ला रहे होते हैं उन पर; या उन पर कुछ मार रहे होते हैं। और फिर उसके बाद जो है वो पूरी प्रक्रिया दिखायी जाती है। इसकी वजह से क्योंकि यहाँ पर अब क्या होता है कि आपकी भूत की जो अपनी एक मान्यता है और उसके साथ अब एक रिलिजन और जुड़ गया है आकर के। तो वो जो पूरा एक चीज़..।

आचार्य: तो आप कहते हो कि अगर आप भूत को नहीं मानते हो, तो आप धार्मिक आदमी नहीं हो। कह रहे हैं कि आस्तिक वो है जो भूत में विश्वास करता है। ये तो गजब हो गया! कह रहे हैं कि आपकी आस्तिकता अब ये नहीं है कि भगवान है कि नहीं, आपकी आस्तिकता ये है कि जो भूत को माने वो आस्तिक है और जो भूत को न माने वो नास्तिक है। ये तो गजब हो गया! आप बोल दो मैं भूत-प्रेत नहीं मानता, कहेंगे, ‘नास्तिक कहीं के!’

प्र: और वो उसे भूत भी नहीं बोलते हैं, आत्मा बोलते हैं।

आचार्य: उन्हें पता ही नहीं न; आत्मा होता क्या है। सारी समस्या यही है, आत्मा माने मैं। मैं कौन हूँ? कोहम्? ये प्रश्न उनका कभी सुलझा ही नहीं। तो वो फिर आत्मा नाम से कुछ भी चलाते रहते हैं। आत्मा क्या है ये जानना है तो आपको अष्टावक्र ऋषि के पास जाना पड़ेगा। आपको महर्षि ऋभु के पास जाना पड़ेगा। आपको उपनिषदों के पास जाना पड़ेगा। तो आपको पता चलेगा आत्मा बोलते किसको हैं।

प्र: असल में शायद ये एक पूरी अन्धविश्वास की अपनी एक पूरी इंडस्ट्री (उद्योग) ही चलती है। जहाँ पर चाहे वो यूट्यूब पर हो कि अगर उस तरीक़े के विडियोज़ होते हैं तो वो बहुत पॉपुलारिटी (प्रसिद्धि) पाते हैं या इस तरीक़े के अगर सेंटर्स होते हैं, तो वो भी बहुत ज़्यादा पॉपुलारिटी पाते हैं। विशेषकर ग्रामीण लोगों के मध्य।

तो क्योंकि लॉजिक और शायद साइंस उतनी पॉपुलारिटी इतनी आसानी से पा ही नहीं सकता, जितनी जल्दी जो है अन्धविश्वास फैलता है और पाता है। और फिर वही चीज़ एक लूप, एक कुचक्र सा जो है बनता चला जाता है। जिससे आप ज़्यादा-से-ज़्यादा उसको संभवत: कैपिटलाइज़ कर सको और हज़ारों-करोड़ों लोगों का जो जीवन है या…

आचार्य: हाँ, पैसा मिलता है उससे बहुत सारा। वो एक इंडस्ट्री है, भूत इंडस्ट्री है पूरी।

प्र: घोस्ट इंडस्ट्री (भूत उद्योग)।

आचार्य: घोस्ट इंडस्ट्री , भूत उद्योग। वो बहुत लम्बा-चौड़ा उद्योग है। वो बिलियन डॉलर इंडस्ट्री है, ट्रिलियन डॉलर इंडस्ट्री है, भूत इंडस्ट्री। और उसके भी आंत्रप्रेन्योर होते हैं, वो बाबा कहलाते हैं। और उसमें ज़बरदस्त सक्सेज़ मिलती है, टैक्स फ्री। तो वो पूरी एक; क्या-क्या तो चीज़ें हैं। हॉरर फिल्म्स बनती हैं, ये क्या हैं? ये भूत इंडस्ट्री से ही तो जुड़ी हुई हैं, भूत उतारने का जो पूरा कार्यक्रम है वो भूत इंडस्ट्री से ही तो जुड़ा हुआ है|

प्र२: चिकित्सा है वो एक तरीक़े की।

आचार्य: बिलकुल, तो भूत भी अपनेआप में; हॉन्टेड हाउसेज़ हैं उनको लेकर के ये चल रहा है, वो चल रहा है। सब भूत इंडस्ट्री ही तो है।

प्र२: और ये भूत हॉस्पिटल्स बन जाते हैं। जहाँ पर आकर के आप अपने जो हैं..।

आचार्य: बिलकुल-बिल्कुल।

प्र२: इसमें आचार्य जी, कई बार ये भी देखा गया है; कई बार व्यक्ति शारीरिक रूप से बीमार होता है लेकिन वो डॉक्टर के पास नहीं जाएगा। वो जाता है तान्त्रिक के पास।

आचार्य: और ये सब मुझे ऐसा लगता था कि पुराने समय की और पिछड़े समाज की बातें हैं, ये समाप्त हो रही हैं। मुझे तो ऐसा लगा, ये हो गयीं समाप्त। लेकिन पिछले पाँच-दस साल में ये चीज़ें इतनी ज़ोर से वापस आयी हैं, जैसे किसी षडयन्त्र के तहत इनको वापस लाया गया हो। ये तो ऐसा लगता है कि देश पचास साल, सौ साल पीछे चला गया हो। और बहुत इसके घातक दुष्परिणाम होंगे।

प्र३: आचार्य जी, जैसे आपने बताया कि पहले आपको लगता था कि ये किसी गाँव में हो रहा है, तो न सिर्फ़ भारत में, इवेन यूएस में हम देखते हैं। वो इसको पैरानॉर्मल एक्टिविटीज़ कहते हैं और टेलिविजन पर जैसे नेट जियो है, डिस्कवरी उस पर स्पेसिफ़िक उसके प्रोग्राम्स आते हैं और रेगुलरली आते हैं। वहाॅं दिखाया जाता है कि पैरानॉर्मल एक्टिविटीज़ क्या हैं।

और उसको एक इन अ वे एक साइंटिफ़िक बेस (वैज्ञानिक आधार) दिया जाता है कि इसके पीछे भी कोई साइंस है। दिस इज़ नॉट जस्ट कि मतलब पहले लोग जो अन्धविश्वास करते थे फॉलो थोड़ा दबी-कुचली बात पर करते थे, ऐसा है वैसा है। लेकिन अब ये बिलकुल टेलिविजन पर आ रहा है। और यूएस में बहुत ज़्यादा इसकी फॉलोइंग है। तो मतलब इवेन और उसको एक साइंटिफ़िक टच दिया जा रहा है समझाने के लिए?

आचार्य: उसकी वजह है कामनाओं का उठना। ये बात आसानी से समझ में नहीं आएगी, पर ध्यान दो सोचना इस बात पर। हमने ये सोचा था कि इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन है या फिर डिज़िटल रिवॉल्यूशन है तो सबकुछ तो हो गया। हम सोचते थे कि ये तो इंटरनल रिवॉल्यूशन ही हो गया।

इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन ने हमें गुड्स दे दिये। डिज़िटल रिवॉल्यूशन ने हमें इन्फॉर्मेशन दे दी और क्या चाहिए? गुड्स माने स्थूल पदार्थ और इन्फॉर्मेशन माने सूक्ष्म चीज़। तो सबकुछ मिल गया स्थूल, सूक्ष्म, ग्रॉस, सटल सबकुछ मिल गया। हमें लगता था ये दोनों चीज़ें इंडस्ट्री और इन्टरनेट मिलकर के तो अब सबकुछ हमारी सारी कामनाओं की पूर्ति हो जाएगी। वो तो हुई नहीं!

वो हुई ही नहीं न! हमें लगा था कि ये आ गया तो सबकुछ पूरा हो जाएगा, अब वो हुआ नहीं तो क्या करें हम? अभी हमने क्या बोला था? मेरे पास कामना है और ये दुनिया है, ये कामना पूरी करने की जगह है। मेरे पास कामना है और दुनिया कामना पूरी करने की जगह है। और दुनिया में सब तरह के प्रोडक्ट्स (उत्पाद) और सर्विसेज़ (सेवाऍं) आ गये और टेक्नोलॉजी आ गयी और इन्फॉर्मेशन आ गयी। फिर भी मेरी कामना तो पूरी हो नहीं रही, तो कुछ-न-कुछ तो और होगा।

भाई! सारे जितने तरीक़े के कंज़म्प्शन के गुड्स मैं माॅंग सकता था सब आ गये। और जितने तरीक़े की मैं इन्फॉर्मेशन माॅंग सकता था वो भी आ गयी। कामना पूर्ति के जितने तरीक़े आज उपलब्ध हैं, इतने इतिहास में कभी नहीं थे। लेकिन फिर भी मेरे दिल को चैन नहीं मिल रहा न, तो ज़रूर कोई होगा जो मुझे रोक रहा है।

तो ज़रूर कोई छुपा हुआ है। ज़रूर कोई निगेटिव और डार्क एनर्जीज़ होती हैं। अगर वो नहीं होतीं, तो मैं इतना परेशान क्यों होता? क्योंकि कंज़म्प्शन और हैप्पीनेस के सारे रूट (रास्ते) तो अब खुले हुए हैं। जितना कंज़म्प्शन अब करना चाहूँ, कर सकता हूँ। हैप्पीनेस जहाँ-जहाँ तलाशना चाहूँ, तलाश सकता हूँ। फिर भी मैं हैप्पी नहीं हूँ, हैप्पी नहीं हूँ।

तो ज़रूर कोई निगेटिव और डार्क एनर्जीज़ हैं। और हम रिस्पांसिबिलिटी (ज़िम्मेदारी) तो लेना नहीं चाहते न कि अगर मैं हैप्पी नही हूँ तो मैं ही ज़िम्मेदार हूँ। तो वो ज़िम्मेदारी हम किसके ऊपर डालते हैं फिर? डार्क एनर्जीज़ , निगेटिव एनर्जीज़ के ऊपर। और फिर वो अपनेआप में पूरी इंडस्ट्री बन गयी है। वो सिर्फ़ यही नहीं है कि उससे हॉरर मूवीज़ बन रही हैं, वो सोशल मीडिया पर भी तो छाई हुई है। सोशल मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसी पर चल रहा है, भूत-प्रेत, टोना-टोटका। इसी पर चल रहा है। वो यही दिखा रहा है, यही चल रहा है।

प्र३: इसमें एक ये भी होता है कि आप अगर एक पब्लिक स्पेस में हो। पब्लिक स्पेस में भी ऐसे कि अगर आप किसी मॉल में घूम रहे हो और काफ़ी सारे लोग हैं वहाँ पर। और उसकी बजाय कि आप एक अकेले फ्लैट में बैठे हो, अकेले हो और इतना कोई शोर-शराबा नहीं है।

आप बस कुछ काम करते हो, करते-करते बस कुछ आहट सी महसूस हो रही है। अरे! कुछ है क्या या कुछ आवाज़ अपनेआप ही जो आने लग रही है और वो फिर धीरे-धीरे आप बार-बार नज़र उठा-उठाकर देख रहे हो कि अरे! कुछ है क्या? ये ठीक है? मैं ठीक हूँ न? जितना भी रहता है।

तो ऐसा लगता है कि जैसे आप भीतर से, अन्दर बहुत डरे हुए हो और अब आपने उस डर को ही अपने सामने प्रक्षेपित कर दिया है।

आचार्य: वो तो है ही। और आप में इतनी ईमानदारी और इतनी रिस्पांसिबिलिटी नहीं है कि आप मान सको कि गड़बड़ आपके भीतर है। आप इतने ईमानदार आदमी नहीं हो कि आप स्वीकार करो कि सारी गड़बड़ आपके भीतर है। वो आप कहते हो, वो गड़बड़ बाहर है कहीं। अब बाहर किसके ऊपर दोष डालें?

तो कोई इंसान मिल गया तो इंसान पर दोष डाल दिया। कोई व्यवस्था मिल गयी, व्यवस्था पर दोष डाल दिया। इतिहास मिल गया, इतिहास पर दोष डाल दिया। और ये सब पर दोष डालकर भी अभी पूरी नहीं हुई बात; तो किस पर दोष डाल दिया। कोई हिडेन एनर्जी है वो मेरा नुक़सान कर रही है। ले-देकर करना ये है कि रिस्पांसिबिलिटी किसी और की। अगर मैं परेशान हूँ, तो बाहर ही कोई है जो मेरे ख़िलाफ़ साजिश कर रहा है।

ये जो बाहरवाद है, एक्स्टर्नलिज़्म ये बड़ी ख़राब चीज़ है। और जब तक आप बाहर वाला भगवान खड़ा करते रहोगे, आपको बाहर वाला भूत भी खड़ा करना पड़ेगा। दोनों ही बाहरवाद, बहिर्वाद के प्रोडक्ट्स , उत्पाद हैं। उसी बहिर्वाद को द्वैतवाद भी बोलते हैं। द्वैत माने कि एक मैं हूँ एक संसार है, दो हैं। एक मैं और एक बाहर की चीज़, दो। तो जब तक द्वैत चलेगा, तब तक आप बाहर एक भगवान की छवि बनाओगे और आपको भूत भी खड़े करने पड़ेंगे। जो वास्तविक भगवान है वो अद्वैत है, उसको आत्मा बोलते हैं वो यहाँ (भीतर) है। वहाँ कोई भूत नहीं होता।

प्र४: सर, मेरे अन्दर जो भूत की छवि है न, वो यहाँ से आयी थी कि जैसे ही बच्चा पैदा होता है। मैं पैदा हुआ तो मैं रोया, मेरे अन्दर कुछ मोशन (गति) था। मैं जब तक जीता हूँ तब तक मेरे अन्दर मोशन होता है। मैं सोता हूँ तब भी मैं साॅंस लेता हूँ, मेरी आँखों की पुतलियाँ चलती हैं। मेरे विचार तो चलते ही हैं। मगर जब कोई मरता है, तब लगता है कि कुछ नहीं है। तो ज़िन्दगी भर लगातार मोशन था उसके जीवन में। मगर अचानक से मोशन ख़त्म हो गया। तो ऐसा लगता है कि कुछ था और उसमें से निकलकर गायब हो गया। तो इसी चीज़ को लगता है कि ये तो इसके अन्दर ‘समथिंग वेंट रॉंग’, कुछ फ्यूज़ हो गया।

आचार्य: हाँ, तो वजह ये है कि हम मानते हैं न कि कुछ था। हाँ, तो समझाने वालों ने यही समझाया है कि कुछ नहीं था, कुछ नहीं था। लेकिन जब तुम बोलते हो कि बाहर कुछ निकल गया उससे पहले तुम ये मान रहे थे कि भीतर कुछ था। तुम्हारी समस्या ये नहीं है पहली कि तुमने ये कहा कि कुछ बाहर निकल गया, फुर्रर्रर्रर्र से उड़ गयी है चिड़िया। लोग कहते हैं, वो मरा तो आत्मा निकलकर भागी। वो कहते हैं, एक एक्सपेरिमेंट (प्रयोग) हुआ था उसको शीशे के बक्से के अन्दर रख दिया आदमी। फिर वो शीशे के बक्से के अन्दर मरा। जैसे ही मरा तो वो बक्सा क्रैक (टूट) हो गया।

क्योंकि आत्मा निकलकर भागी थी। ऐसा कोई एक्पेरिमेंट हुआ नहीं है पर झूठ बोलने से हमें कौन रोक सकता है? तो कोई चीज़ निकलकर भागी, आप ये मान रहे हो। उससे पहले देखो न आपने क्या माना है? उससे पहले की भी आपकी एक मान्यता है कि भीतर कोई चीज़ थी।

हाँ, समझाने वालों ने आपको ये समझाया है कि भीतर कोई चीज़ थी ही नहीं। जो है नहीं पर प्रतीत होता है उसको बोलते हैं अहंकार। वो कभी नहीं था, पर आपको लगता रहा कि है। वो स्वयं को ही प्रमाणित करता रहा कि मैं हूँ। अहंकार को ही लगता है वो है, वो था ही नहीं कभी भी। वो कभी नहीं था।

तो जो चीज़ आप कह रहे हो कि चल रही थी। एक्टिविटी हो रही थी, गति हो रही थी, आँखों की पुतलियाँ चल रही थी, विचार चल रहे थे। वो वैसा ही था जैसे आपका मोबाइल चल रहा है। उसके भीतर कुछ नहीं था। वो टूट गया। उसका मदरबोर्ड फूॅंक गया। तो बताओ, उसके भीतर से क्या कोई चिड़िया निकलकर भागी है? मोबाइल भी चलता था न, आपकी गाड़ी भी चलती है। ज़िन्दगी भर गाड़ी चली दस साल। अब नहीं चलती, खटारा। तो उसके भीतर से क्या कोई चिड़िया निकलकर भागी है? पहले ही कुछ नहीं था। पहले ही कुछ नहीं था पर अहंकार मानता है कि कुछ था।

तो आत्मा तक पहुॅंचने का मतलब है, अहंकार का विसर्जन। कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं है। प्रक्रिया मात्र है, प्रोसेस भर है, प्रकृति भर है ये सबकुछ। तो इसीलिए ज्ञानियों ने, सन्तों ने, आपको कहा कि ये सबकुछ मिट्टी है। तू कहाँ इसमें फॅंसा हुआ है। “माटी कुदम करेंदी यार।”

मिट्टी है, कुछ नहीं है और यहाँ। मिट्टी के भीतर कुछ नहीं है, मिट्टी-मिट्टी है बस। तो लेकिन मुझे तो लगता है न कि मिट्टी कुछ है। देह भाव मुझे लगता है कि मैं देही हूँ। मैं देह हूँ। और ये देह.. अरे! भाई तुम्हें लगता है, है नहीं। और गीता का जो श्लोक आपको यही बताने के लिए है कि कुछ नहीं होता भीतर। हमने या तो अज्ञान में या षड्यन्त्र करके उसका ये अर्थ निकाल लिया है कि कुछ होता है भीतर।

गीता आपको यही बताने के लिए है कि कुछ नहीं होता। कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि बेटा जैसे बचपन के बाद जवानी आती है, जवानी के बाद बुढ़ापा आता है। तुम ये मान लो कि मृत्यु भी वैसे ही है एक प्रक्रिया का हिस्सा। बचपन से जब जवानी आयी, तो भीतर क्या कोई चिड़िया थी जो छोटी चिड़िया उड़ गयी और जवान चिड़िया भीतर आ गयी? ऐसा कुछ हुआ क्या?

ऐसा तो नहीं हुआ। एक प्रक्रिया थी। वैसे ही बुढ़ापे से मृत्यु आ गयी, एक प्रक्रिया हो गयी। कोई भीतर की चिड़िया नहीं थी जो उड़ गयी है और नयी चिड़िया आ गयी है भीतर।

प्रकृति में प्रक्रियाएँ होती हैं जैसे समुद्र में लहरें होती हैं। लहर उठी लहर गिर गयी; लहर के भीतर थोड़े ही कुछ था। लहर बस उठी, लहर नीचे गिर गयी। लेकिन हम मानना चाहते हैं, हम कुछ हैं। इसी को अहंकार बोलते हैं। है कुछ नहीं पर हम मानना चाहते हैं, कुछ है। जब हम मानते हैं कि कुछ है तो फिर हमें ये मानने पर भी मज़बूर होना पड़ता है कि जब हम मरते हैं तो वो जो कुछ था वो निकलकर बाहर भागता है। अरे! पहले ही कुछ नहीं था तो निकलकर बाहर क्या भागेगा?

तो ये सब जो बोल रहा है ये कौन है? ये प्रकृति भर है, प्रकृति है। और कुछ नहीं है, प्रकृति है। प्रकृति माने? ये जैसे सागर में लहरें आती हैं। वृक्ष पर पत्ते और फूल आते हैं। वैसे ही अभी तुम बोल रहे हो, चल रहे हो, खा रहे हो, सो रहे हो। लहर उठती है गिर जाती है। वृक्ष का पत्ता एक दिन झड़ जाता है। ऐसे ही तुम्हारा ये शरीर भी एक दिन गिर जाएगा। उसमें ये थोड़े ही है कि भीतर कुछ था। भीतर कुछ नहीं था। भीतर जब कुछ था ही नहीं तो बाहर क्या जाएगा?

प्र४: जो टोना-टोटका जैसे बात होती है। ये होता है क्या? क्योंकि काफ़ी बात की जाती है कि टोना-टोटका अब किसी के ऊपर..|

आचार्य: इतनी हमने जो बात कर ली, इसके बाद तुम्हें क्या लग रहा है? क्या टोना-टोटका? क्या होता है टोना-टोटका? कि मैं तुम्हारा बाल ले लूॅंगा; मान लो, किसी ने ले ही लिये हैं बहुत सारे, मान लो, बचा हुआ मैंने एक बाल ले लिया। और तुम्हारे बाल के साथ मैं कुछ कर दूॅंगा तो तुम बीमार पड़ जाओगे? या तुम्हारी तस्वीर पर मैं जादू मार दूॅंगा तो तुम पर कुछ असर हो जाएगा? तुम्हें लगता है ऐसा हो सकता है?

अभी रात के एक-दो बज रहे हैं। भूख किस-किसको लगी है? जल्दी-जल्दी बताओ। अपनी फोटो भेजो मैं उसको खाना खिलाऊँगा। फोटो जल्दी से व्हाट्सएप करो मैं उसको आज खाना खिलाता हूँ। अगर तुम्हारी फोटो को कुछ करने से तुम बीमार पड़ सकते हो, तो मैं तुम्हारी फोटो को खाना भी खिला देता हूँ। और अगर तुम कुछ कुकर्म करते हो, तो सज़ा भी तुमको क्यों होनी चाहिए? तुम्हारी फोटो जेल भेज देंगे।

आजकल बड़े-बड़े गुरु लोग यही बता रहे हैं कि फोटो के साथ कार्यक्रम हो जाता है सारा। बहुत गड़बड़ हो सकती है फिर! पत्नियों को अपने पति की फोटो बचाकर रखनी चाहिए, पतियों को अपनी पत्नी की। पता नहीं कौन क्या कार्यक्रम कर ले! सबकुछ तो फोटो के साथ ही हो सकता है। मूर्खता, जैसे कोई सीमा ही नहीं जानती। किसी विद्वान ने कहा था दो ही चीज़ें अनन्त हैं, ब्रह्माण्ड और इंसान की मूर्खता।

प्र४: अब एक पूरी इंडस्ट्री भी रन होती है जहाँ पर घोस्ट टूर्स होते हैं या घोस्ट टूरिज़्म होता है। घोस्ट डिटेक्टिंग इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं जहाँ पर आप हॉन्टेड प्लेसेज़ में जाते हैं और वहाँ पर जाकर के घोस्ट को ढूॅंढते हैं, भूतों को ढूॅंढते हैं। एंड..

आचार्य: क्या मस्त मनोरंजन होता होगा! मैं भी जाऊॅंगा। चलो चलते हैं अपन! सुनने में ही कितना मज़ा आ रहा है। इंस्ट्रूमेंट बना दिया इन्होंने वो घोस्ट को डिटेक्ट करेगा। गजब हो गया। हम भी चलते हैं, मुझे तो ज़रूर ही मिलेगा वो बच्चू।

जो दुनिया भर के भूत-प्रेत हैं उनकी मुझसे ख़ास दुश्मनी है। कह रहे हैं, बाक़ी लोग तो बस भूत-प्रेत भगाते हैं, ये तो हमारी हस्ती को ही नकारने में लगा हुआ है। ये कह रहा है होते ही नहीं। बाक़ी लोग कम-से-कम इतना तो मानते हैं कि होते हैं। फिर कहते है, ‘होते हैं, अब इनको भगा देंगे।’ ये अजीब है, ये तो कह रहा है होते ही नहीं। उनको मुझसे बड़ी दुश्मनी है। मज़ा आएगा एनकाउंटर होगा। चलते हैं।

प्र५: आचार्य जी, भारत के जिस राज्य से मैं हूॅं। मैंने वहाॅं अक्सर ये पाया है कि लोगों पर भूत आता है। ठीक है? और उसको उतारने के लिए पशुओं की बलि दी जाती है। ये क्रूरता तो दिखती है..

आचार्य: वही है। वो बली देकर के क्या करते हैं उसका? वो जो काट दिया उस माॅंस का क्या होता है? ख़ुद ही खाते हैं। तो वही है। जब भगवान का तुम्हारा कॉन्सेप्ट ही कामना से, इच्छा डिज़ायर से रिलेटेड है, तो उसमें फूड फिर आ ही जाता है न? बस, मस्त अपना खाओ। और कुछ नहीं है इसमें। ये तुम तो बस एक राज्य की बात कर रहे हो। भाई हमारे पहाड़ी हैं, ये उत्तरांचल की बात कर रहे हैं। तुम देखो, विश्व में धर्म हैं जहाँ बलि के उत्सव मनाये जाते हैं बड़े-बड़े। मैं बकरीद की बात कर रहा हूँ।

इसी तरीक़े से भारत में पूर्व की ओर शाक्त सम्प्रदाय में, देवी मन्दिरों में बलि का बड़ा प्रावधान रहा है। वो बेचारी चिड़िया है, कौनसी? ईस्टर के दिन जो पकड़ी जाती है। टर्की। वो हमको मिली थी एक जगह होटल में उन्होंने रखा हुआ था। इतनी प्यारी चिड़िया है वो तो आकर बात करती है। मोटी है तो मस्त अपना, जाओ उसके पास, वो तो ख़ुद ही अपनी ओर से आती है इंसान के पास। और उसको बना दिया है कि इसको तो खाना-ही-खाना है। ये क्या चल रहा है? खून की नदियाँ बहा रहे हो, ये तुम्हारा धार्मिक त्योहार है?

कुछ नहीं है, स्वाद की बात है। स्वाद, ज़बान, कामना, लोलुपता। धर्म को एकदम ज़मीन पर गिरा देने वाली हरक़त।

प्र५: ये इंसान ने दो चीज़ें क्रिएट कर दी हैं, एक जगह भगवान और दूसरी जगह भूत। उसका कारण डर है क्या?

आचार्य: कामना। भगवान कौन? जो मेरी इच्छाएँ पूरी करेगा। और मेरी इच्छाएँ सब दुनिया से ही तो पूरी होती हैं। मैं छोटा था; याद करो आज की पूरी बातचीत हमने कब शुरू करी थी दो घंटे पहले। मैं छोटा था, मैंने बिस्कुट माॅंगा। बिस्कुट दिया मम्मी ने। मम्मी कहाँ मिलती है? दुनिया में। मेरे कमरे में नहीं थी, बगल के कमरे में मम्मी थी। इसी दुनिया में मम्मी मिली। और बिस्कुट भी कहाँ मिला? इसी दुनिया में, बाहर की दुकान थी। मम्मी गयी दुनिया के दुकान से बिस्कुट खरीद लायी और मुझे दे दिया।

तो सारी कामनाएँ कहाँ पूरी होंगी? दुनिया में। तो भगवान को भी मैं कहाँ स्थापित कर दूॅंगा? दुनिया में। तो बोल देंगे, वो पहाड़ के ऊपर रहते हैं मेरे भगवान। फ़लाने वन में रहते हैं, फ़लाने कुॅंए में रहते हैं, फ़लाने पेड़ पर रहते हैं, फ़लाने रेगिस्तान में रहते हैं। या उनका सम्बन्ध जोड़ दूॅंगा कम-से-कम, किसी-न-किसी जगह से। या इस लोक में नहीं रहते तो परलोक में रहते हैं।

वो वहाँ जन्नत के ऊपर रहते हैं। आठवें आसमान पर रहते हैं। और बड़े-बड़े ऐसे ज्ञानी घूमते हैं वो बोलते हैं हाँ, होंगे तो भगवान कहीं दुनिया में, लेकिन अभी हमने यूनिवर्स को पूरा एक्सप्लोर नहीं करा है न। जब हम यूनिवर्स को पूरा एक्सप्लोर कर लेंगे, तो वहाँ कहीं भगवान भी किसी कोने में मिल ही जाऍंगे। छुप रहे थे, हाइड-एन-सीक। पर जैसे ही यूनिवर्स का हम पूरी स्कैनिंग करेंगे, तो वहाँ कोने में वो बैठा, वो बैठा, पकड़ो-पकड़ो-पकड़ो।

भगवान मिल गया वो कोने में बैठा है यूनिवर्स में। और इस यूनिवर्स में नहीं मिलेगा तो किसी और यूनिवर्स में मिलेगा, मल्टीवर्स है। क्या पागलपन है? कैसी बातें कर रहे हो ये? चुटकुलों के लिए अच्छी है ये बातें।

प्र५: मतलब वो भगवान और भूत नहीं, वो कामना और डर है?

आचार्य: वो आदमी के भीतर का अज्ञान है। हमारा अज्ञान ही कामना बनकर खड़ा होता है। हम चूॅंकि स्वयं को नहीं जानते इसीलिए हम लगातार इनकम्प्लीट , अपूर्ण अनुभव करते हैं। जो अपूर्ण अनुभव करेगा, उसमें कामना उठेगी। जब कामना उठेगी तो दुनिया की ओर भागेगा। दुनिया की ओर भागेगा तो दुनिया में कामना पूरी करने वाली एक एजेंसी को खड़ा करेगा, उस एजेंसी को नाम दे देगा भगवान का।

वो एजेंसी बस कामना नहीं पूरी करती है उसको हमने फिर एक रेगुलेटरी एजेंसी भी बना दिया है। कहते हैं कि वो कर्मों का फल भी देती है, ये भी करती है वो भी करती है। तो एक हमने एजेंसी पूरी खड़ी करी है। और उसी एजेंसी के फिर काउंटर में हमने एक दूसरी एजेंसी खड़ी करी है। जिसको हमने डार्क फोर्सेज़ बोल दिया है। तो एक हमने बोला है कि ब्राइट फोर्सेज़ और एक हमने बोल दिया डार्क फोर्सेज़। तो ये दो हमने एजेंसीज़ ऐसे खड़ी करी हैं। जबकि जो असली भगवान है वो यहाँ (भीतर) रहता है। वो वहाँ बाहर है ही नहीं, वो यहाँ रहता है।

प्र६: सर, आपने बोला है कि फैक्ट्स आर द डोर टू ट्रुथ। तो मतलब मैं देखता हूँ कि टेलिविजन है या एक यूट्यूब वीडियो है जहाँ पर खुलेआम कोई आदमी बोल रहा है कि ब्लैक मैजिक है। और पूरा समझा रहा है कि कैसा है, क्या जो मैथमेटिक्स है या जो पैरानॉर्मल एक्टिविटीज़ है। और आज का सभ्य समाज जो पढ़ा-लिखा है, लॉजिकल है, तो ये सब देख रहा है और। मतलब वैसे तो बड़ा लॉजिकल है जीवन में लेकिन उसको उस समय..?

आचार्य: देखो, लॉजिकल वगैरह तो पता नहीं पर अगर हम सजग समाज होते तो इस तरह की हरक़तों की अनुमति नहीं देते। कि कोई अगर खुलेआम टीवी पर या यूट्यूब पर ये भूत-प्रेत चला रहा है तो हमारा कानून इसकी अनुमति नहीं देता।

प्र६: तो जो आदमी है जो पढ़ा लिखा है, उसने इंजीनियरिंग की उसका उसका लॉजिक ; मतलब वो उसको देखते हुए भी वो कैसे?

आचार्य: इंजीनिरिंग करने से आत्मज्ञान थोड़े ही हो जाता है। इंजीनियरिंग करने से आप ये थोड़े ही समझ जाते हो कि आपके भीतर क्या कमी है। इंजीनिरिंग करने से आप अपनी जो वृत्ति है, टेंडेंसी है उसको थोड़े ही समझ जाते हो। करी होगी इंजीनियरिंग।

अब तो पहले ये माना जाता था कि उदाहरण के लिए कि आतंकवादी वो होते हैं जो अशिक्षित समुदाय से आते हैं। जो कम पढ़े-लिखे रहते हैं वो आतंकवादी बनते हैं। अब देखो न सब पी.एच.डी पकड़े गये हैं आतंकवादी। इतने सारे इंजीनियर हैं, डॉक्टर हैं वो आतंकवादी पकड़े गये हैं। बल्कि ज़्यादा आतंकवादी अब पढ़े-लिखे ही मिल रहे हैं।

तो ये जो हमारी शिक्षा है, ये भीतरी अज्ञान दूर नहीं करती है। आप बिलकुल पढ़े लिखे टेररिस्ट हो सकते हो। शिक्षा में आत्मज्ञान की बहुत ज़रूरत है और आत्मज्ञान का मतलब है, स्वयं को देखना समझना कि मन कैसे काम करता है।

क्योंकि मन ही तो समस्या है न। तो मन को देखना है, मन की टेंडेंसीज़ क्या होती हैं। ‘अच्छा जब लालच उठता है तो किन-किन रूपों में अपनेआप को अभिव्यक्त करता है? अच्छा जब मैं तो डरता हूँ तो डरने का और ईर्ष्या का क्या सम्बन्ध है? ये सब चीज़ें बच्चों को पढ़ायी जानी चाहिए। इनका स्कूल-कॉलेज में बहुत अनिवार्य स्थान होना चाहिए। इसीलिए तो एच.आई.डी.पी शुरू करा था मैंने।

बारह साल तक देश के सैकड़ों स्कूलों, कॉलेजों में जा-जाकर मैं एच.आई.डी.पी. की कोशिश करता रहा। कुछ सफलता भी मिली उसमें। वो क्यों करता रहा? क्योंकि दिख रहा था कि देश की शिक्षा व्यवस्था में सेल्फ़ नॉलेज, ‘नॉलेज ऑफ द सेल्फ़’, ‘नॉलेज ऑफ लाइफ़’ के लिए जगह नहीं है। तो वो देने के लिए मैंने ‘होलिस्टिक इंडिविज़ुअल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ एच.आई.डी.पी. नाम से प्रयास कर रहा था। वो अभी भी चल रहा है। तो उस चीज़ की कमी है।

प्र६: सर, जो स्टार्टिंग में मैंने डिस्कशन किया था तीर्थ के ऊपर, मन्दिर के ऊपर। तो मैं बचपन का एक वाकिया याद कर रहा हूँ कि पहले हम मन्दिर जाया करते थे। मन्दिर में आप गये, घंटी बजायी, प्रसाद लिया और चले गये। और फिर मैंने देखा कि मैं फिर किसी और मन्दिर भी गया। वहाँ पर थोड़ा नाचना-गाना भी था। नाच भी रहे हैं। तो उसका क्या रेलेवेंस है, गाने का और मुझे लगा कुछ आध्यात्मिक हो रहा है क्योंकि मैं कुछ गा भी रहा हूँ, नाच भी रहे हैं। उसका क्या रेलेवेंस है?

आचार्य: देखो, कुछ भी किसी भी चीज़ का रेलवेंस हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है। वो तो इस पर निर्भर करता है कि आपकी नीयत क्या है। ठीक है न? आप एक क़दम बढ़ाते हो किसी दिशा में वो क़दम अपनेआप को मिटाने के लिए भी बढ़ा सकते हो, और अपनेआप को और मोटा करने के लिए, फुलाने के लिए भी बढ़ा सकते हो।

तो ज़्यादातर तो अगर आप कहीं नाचना-गाना देख रहे हो तो वो मनोरंजन ही है, ठीक है? आपकी ज़िन्दगी में सौ तरीक़े की उलझनें हैं, अज्ञान है। और आप अपनी ज़िम्मेदारियों से भाग रहे हो। आप समझ ही नहीं रहे हो कि कृष्ण ने आपको क्या बताया है।

स्वधर्मे निधनं श्रेय:। स्वधर्म का पालन करो न। तुम्हारा स्वधर्म संघर्ष है, जीवन कुरुक्षेत्र है। अर्जुन को श्रीकृष्ण सिखा रहे हैं। और वो सब करने की जगह तुम जीवन की युद्ध भूमि से बचकर के अपना मनोरंजन कर रहे हो। इसकी सम्भावना रहती है, बहुत लोग ऐसा करते हैं। कर सकते हैं। और कोई ऐसा भी हो सकता है जो इतना मग्न हो गया हो अपने भ्रमों के मिटने पर कि वो स्वत:स्फूर्त स्पॉन्टेनियसली नाच उठे।

तो वैसा भी कोई नाच हो सकता है। लेकिन निन्यानवे प्रतिशत लोग अगर नाच रहे होते हैं, तो वो बस अपने मनोरंजन के लिए नाच रहे होते हैं अपनेआप को एक तरह की बेहोशी देने के लिए नाच रहे होते हैं। लेकिन इसका ये अर्थ नहीं है कि नाचने का मतलब अनिवार्य रूप से असत्य ही होता है या गैर ज़िम्मेदाराना ही होता है। लेकिन हज़ार में से नौ-सौ-निन्यानवे लोग तो बस यही है कि ज़िन्दगी से भागकर, सच्चाई से भागकर किसी तरह का मनोरंजन करते हैं। मनोरंजन कोई भी शक्ल ले सकता है।

प्र६: मैं इन द प्रोस्पेक्ट देखता हूँ जब मैं, वही था कि डिस्क हब आप हम जा नहीं सकते हैं हमेशा। और आपको एक एक..?

आचार्य: हाँ। अब भारत में ये चलता है न देखो। डिस्को थीक जाने पर एक सांस्कृतिक पाबन्दी है। तो अब नाचना तो है ही तो कहाँ नाचोगे? घर में किसी फिर जल्दी-जल्दी सबको, ‘अरे! चल तू शादी कर ले, शादी कर ले, नाचने को मिलेगा।’ मोहल्ले में किसी के यहाँ उसके यहाँ नाचने को हो गये। और फिर यही जब चीज़ आगे बढ़ जाती है तो धर्म का मतलब बना लो फिर कि नाचना-गाना ये सब करना।

प्र६: तो उसमें आचार्य जी फाइनेंसियल एंगल (आर्थिक पहलू) भी है। डिस्क भी आप.. ।

आचार्य: वहाँ पैसा देना पड़ता है। डिस्कोथीक में जाकर नाचोगे तो पैसा देना पड़ेगा और गली-मोहल्ले में किसी उत्सव के नाम पर नाचोगे तो उसमें पैसा भी नहीं लगता।

प्र६: और उसमें अगर थोड़ा सा इंग्लिश एक्सेंट और हो तो लगता है कि और..|

आचार्य: हाँ बिलकुल।

प्र६: आचार्य जी, जितना सोचा था, बात उससे बहुत आगे बढ़ गयी। पर बहुत-बहुत आनन्द आया और बहुत कुछ सीखने के लिए मिला, धन्यवाद।

आचार्य: आप लोगों का भी आभार। (सभी प्रणाम की मुद्रा में)। सच्चे भगवान की सबको प्राप्ति हो। अद्वैत भगवान की, हार्दिक भगवान की सबको प्राप्त हो। चलिए बढ़िया! नमस्ते!

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