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लेख
अतीत के बोझ का क्या करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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वक्ता: सवाल अच्छा है। ईमानदार सवाल है, ध्यान से देखेंगे इसे। सतीश कह रहे हैं कि ये सब बातें ठीक हैं पर जीवन का एक सत्य ये है कि हम सब अपनी परिस्तिथियों की पैदाइश हैं। बच्चा छोटा होता है, उसे वो ग्रहण करना ही होता है जो उसके आसपास का वातावरण उसे देता है। वो करेगा क्या। बात बिल्कुल ठीक है।

एक उम्र तक तुम कुछ नही कर सकते। तुम पूरे तरीके से असुरक्षित होते हो। बच्चा छोटा है, न उसका शरीर विकसित हुआ है और न ही उसका मस्तिष्क विकसित हुआ है। अभी उसमें काबिलियत ही नहीं कुछ समझने-बूझने की। निश्चित रूप से उसके मन में सारी धारणाऐं बाहर से आऐंगी। आनी ही होंगी, विकल्प ही नही है कुछ। बच्चे को बताना होगा कि सड़क के इस तरफ चलो और इस तरफ मत चलो। बच्चे को बताना होगा कि बिजली का सॉकेट है, ऊँगली न डालो। बच्चे को बताना होगा कि पानी गर्म है, हाथ मत डाल देना इसमें। अभी नहीं समझता वो और ये सब जो उपयोगी जानकारी है इसके साथ बच्चे के मन में कुछ और भी प्रवेश कर जाता है, और वो हैं धारणाऐं।

बच्चा छोटा सा होता है, उसको एक धर्म पकड़ा दिया जाता है। बच्चा छोटा सा होता है, उसको एक दृष्टि थमा दी जाती है कि दुनिया ऐसी है, वैसी है।

उसको बोल दिया जाता है कि जीवन का क्या अर्थ है। समाज, परिवार, इनका क्या अर्थ है? पैसे का क्या अर्थ है। ये सब बातें उसके मन में बैठा दी जाती हैं, और वो छोटा होता है। ये सब होकर रहेगा और जैसा परिवेश होता है तुम्हारा, वैसी बातें ही बैठा दी जाती हैं, सतीश ने ठीक कहा। सतीश हम कुछ कर नहीं सकते उस बारे में, वो अतीत है हमारा।

उसका कुछ हो नहीं सकता। ये अपरिहार्य है, ऐसा होगा। पर ऐसा दस, बारह साल तक की उम्र में हो तभी ठीक है क्योंकि तब तक उन्हें जरूरत है किसी ऐसे हाथ की जो उन्हें उनकी ऊँगली पकड़ कर साथ-साथ चला सके।

प्रश्न ये है कि क्या तुम अभी भी आठ साल या बारह साल के हो? आज तुम क्यों निर्भर हो दूसरों पर? अतीत को नहीं बदल सकते, बात ठीक है। अतीत ने तुमको जो दिया सो दिया वो भी ठीक है, लेकिन अभी तो वर्तमान है। और वर्तमान में तुम्हारे पास क्या कारण है दूसरों पर निर्भर रहना का? आज तुम मुक्त क्यों नहीं हो? मुक्ति से मेरा अर्थ है कि मन क्यों नहीं मुक्त है आज भी? निश्चित रूप से तुम्हारे मन पर अतीत का भार है और मैं उसको समझ रहा हूँ। पर उस भार के अतिरिक्त तुम्हारे पास चेतना भी तो है। उस चेतना को क्यों नहीं खुलने देते? क्यों नहीं पोषित होने देते मन को उस चेतना से? समझ पाने की शक्ति है तुम्हारे पास, सीधे-सीधे कहूँ तो अक्ल है तुम्हारे पास, बुद्धि है तुम्हारे पास। आज अपना जीवन उसके अनुसार क्यों नहीं जीते? अतीत को तुम कभी नहीं बदल पाओगे, अतीत ने तुम्हें जो दे दिया सो दे दिया। रात गयी, बात गयी। अतीत को दोष देकर कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम आज से भागना चाहते हो, अपनी जिम्मेदारियों से भागना चाहते हो ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अतीत का तुमने एक बहाना खोज लिया है ताकि आज वो करने से तुम बच सको जो करना आवश्यक है? ईमानदारी से देखना होगा, ध्यान से। अतीत को नहीं बदला जा सकता पर वर्तमान को पूरे तरीके से जीने से कौन रोक सकता है ये बताओ? हजारों संभावनाऐं हैं तुम्हारे पास। तुम्हें उनको पाने से कौन रोक रहा है? तुम्हारे मन की परतंत्रा रोक रही है। अतीत को दोष मत देना। समझ रहे हो? जिनको अभी करना होता है, वो अभी करते हैं, और जिनको नहीं करना होता, वो बहाने तलाशते हैं। मन बिल्कुल ऐसा ही है। मैं तुम्हें दोष नहीं दे रहा हूँ।

मन का काम है बहानों पर जीना, मन का काम है कुछ न कुछ विकल्प तलाशना। मन की इस प्रक्रिया को समझो। मैं तुमसे अभी कुछ बोल रहा हूँ। क्या इसको समझ पाने के लिए तुम्हारे पास एक विशिष्ट किस्म का अतीत है ?

तुम यहाँ मौजूद हो इतना काफी है। तुम्हारा अतीत बड़ा ही सुनहरा रहा हो, उससे तुम्हें कोई फायदा नहीं हो सकता और अगर तुम्हारा अतीत बड़ा गरीब रहा हो तो उससे तुम्हें कोई नुक्सान हो नहीं सकता। यही वर्तमान है। इस वर्तमान को जीओ पूरे तरीके से तो अतीत तुम्हारे आड़े नहीं आएगा।

जो प्रस्तुत है उसमें तो समाओ। स्मृतियों में क्या रखा है ? वो गयीं।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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