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लेख
असली सिकंदर तो एक ही है || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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सिकंदर दुनिया में सिर्फ़ एक ही है असली; कौन? जो घड़ी को हरा दे। वरना बहुत बड़े-बड़े बादशाह हो गए, सब से जीत लेते हैं, किससे हार जाते हैं? घड़ी से; घड़ी से जीत कर दिखाओ तो बात है! समझ में आ रही बात?

वो टिक-टिक लगातार याद रहे। कलाई पर नहीं भी बंधी है तो भी धड़कन में बज रही है, साँस बनकर; टिक-टिक नहीं, नगाड़ा है भाई! नगाड़ा बज रहा है। कलाई वाली घड़ी तो बहुत महीन टिक-टिक करती है, साँस नगाड़े की तरह बजनी चाहिए भीतर! और दिन-रात बज रहा हो नगाड़ा। 'बाजत है दिन रैन', साँस को याद रखो! साँस तुमको लगातार बता रही है कि तुम्हारा मीटर चल रहा है, मीटर चल रहा है, मीटर चल रहा है। “कुछ और खो दिया मैंने, कुछ और खो दिया मैंने! बिल बढ़ता ही जा रहा है, भुगतान करना है, बिल बढ़ता ही जा रहा है; कमाया क्या? भुगतान कैसे करूँगा?”

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