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लेख
आओ तुम्हें अमीर बनाएँ || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2022)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
37 मिनट
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प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, आज सुबह से थोड़ा मैं परेशान था इसलिए मैं चाहता था मैं आपसे थोड़ा बात करूँ इस विषय में। मेरा एक दोस्त है उसका मुझे सुबह फ़ोन आया था और सुबह जो उसका फ़ोन आया था उसके पीछे थोड़ा बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) है वो बताना चाहूँगा पहले।

उसका ऐसे ही मेरे पास दो या तीन महीने पहले भी फ़ोन आया था उस वक़्त बहुत परेशान था, रो रहा था और मैंने उससे वजह पूछी कि इतना परेशान क्यों है। तो उसने मुझे वजह बतायी कि उसका एक स्टॉक पोर्टफ़ोलिओ था या उसने कुछ पैसे जो थे अपने जो भी उसकी सेविंग्स (बचत) थीं वो कुछ जगहों पर इन्वेस्ट (निवेश) कर रखी थीं। मैंने जानना चाहा कि ये उसने ऐसा क्यों किया है, कुछ भी, तो मुझे पता चला कि वो कुछ यूट्यूब पर वीडियोज़ वगैरह देखता है और वहाँ पर उसने कुछ कोर्स (पाठ्यक्रम) वगैरह कुछ करा। स्टॉक मार्केट (शेयर बाज़ार) का, एंटरप्रेन्योरशिप (उद्यमशीलता) का ये वो। कहीं से उसे पता चला इन-इन चीज़ों पर उसको इन्वेस्ट करना चाहिए। फिर उससे फ़ायदा होता है पैसे बनते हैं और जल्दी अमीर बन सकते हो।

तो इसी आस में उसने कहीं पैसे वगैरह लगाये थे और उस दिन जब उसने मुझे फ़ोन किया तो उसके सारे पैसे डूब चुके थे। तो उस वक़्त परेशान था समझना चाहता था पूछ रहा था कि मैं क्या करूँ, कैसे हुआ; और ये सब बातें। और मुझे ख़ुद भी पता है कि वो एक बहुत एक साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। वो मेरा बचपन से दोस्त रहा है मैंने उसे बचपन से देखा है। उसकी घर की हालत कैसी रहती है।

तो मुझे ये भी पता था कि उसने जो अपना पैसा यदि गँवाया है तो वो भी उसके लिए बहुत बड़ी बात है। उस समय मैंने उसे समझाया, बात की, सान्त्वना दिया, समझ गया। आज सुबह उसका जब फ़ोन आया इस बार वो बहुत खुश था और मैंने बात-वात थोड़ी बहुत करी तो मुझे पता चला कि अब उसने इस बार कोई नया व्यक्ति है जिसको उसने फ़ॉलो (अनुसरण) करना शुरू कर दिया है यूट्यूब और सोशल मीडिया पर।

और वहाँ से उसे कुछ नया पता, जगह पता चली जहाँ वो पैसे इन्वेस्ट करेगा यदि, तो बहुत अच्छा मुनाफ़ा उसे मिल सकता है। और इस बार जब मैंने उससे पूछा कि तेरी पूरी सेविंग्स तो जा चुकी है, अब तू कैसे पैसे इन्वेस्ट करेगा। तो इस बार वो शायद अपने घर से पैसा उधार लेकर वहाँ डालने वाला है या पता नहीं डाल चुका है। और अब उसके यहाँ से है कि अब जो है पैसे बनेंगे।

और इस बार वो खुश था पर मुझे ग़ुस्सा आ रहा था अन्दर-ही-अन्दर जब दो महीने पहले जो मैंने समझाया उस वक़्त तो बात ऐसी थी कि हाँ, सब स्पष्ट हो गया। पर आज अब वो फिर से उसी जगह पर जहाँ वो एक बार पहले लात खा चुका है फिर उस जगह जा रहा है। तो मुझे बिलकुल समझ नहीं आ रहा था कि इंसान ऐसा क्यों करता है।

आचार्य प्रशांत: बाहरी तौर पर तो अच्छी एजुकेशन (शिक्षा) का अभाव। हमारी जो शिक्षा व्यवस्था है उसमें आप बारहवीं पास कर सकते हो, आप ग्रेजुएशन (स्नातक) कर सकते हो बिना फ़ाइनेंस (वित्त) का ‘क ख ग’ समझे भी।

आप कह सकते हो कि मैं ग्रेजुएट हूँ और आपको ये भी न पता हो कि स्टॉक्स, शेर्ज़, डिबेंचर्ज़ (उधार पत्र) माने क्या होते हैं। तो पहली बात तो यही है कि जो हम में एक्स्टर्नल वर्ल्ड (बाहरी दुनिया) की एजुकेशन है वो ठीक से मिली नहीं है। और दूसरी बात ये है कि जो इनर एजुकेशन (आन्तरिक शिक्षा) होती है जो आपको सिखाती है के सही ग़लत में अन्तर कैसे करना है, अपने लालच को क़ाबू में कैसे रखना है? किसी भी क्षेत्र में ज़िन्दगी के सही निर्णय किस तरीक़े से लेने हैं वो भी आपको नहीं मिली है। तो न तो हमको ये सिखाया गया है कि बाहर की दुनिया कैसे काम करती है? ये पूरा जो फ़ायनेंशियल वर्ल्ड (वित्तीय दुनिया) है वो ऑपरेट (प्रचालन) कैसे करता है?

ये अच्छे-ख़ासे पढ़े लोगों को भी नहीं पता है। और लालच भीतर कूट-कूटकर भरा हुआ है क्योंकि स्पिरिचुअल एजुकेशन (आध्यात्मिक ज्ञान) मिली नहीं। तो अब ये दोनों मिलकर के बहुत घातक कॉम्बो (सम्मिश्रण) हो जाते हैं न? आप कुछ नहीं जानते फ़ाइनेंस की दुनिया के बारे में, लेकिन लालच आपमें ज़बरदस्त तरीक़े से है और उस लालच को भड़काने वाले बहुत लोग बैठे हुए हैं। तो वो आपको आकर लालच दिखते हैं; कहते हैं कि यहाँ पैसा लगा दो, ‘ये नयी अपॉर्चुनिटी (अवसर) आयी है या ऐसा कर लो फ़लानी जगह में, फ़लाने सेक्टर में एंटरप्रेन्योरशिप (उध्यमशीलता) कर लो। तुम पर पैसे बरसने लग जाएँगे।’ वो अपने भीतर लालच भड़काते हैं और जिधर को आप जा रहे हो उधर का आपको ज्ञान कोई नॉलेज है नहीं। ये दोनों बातें मिलकर के क्या लाती हैं? तबाही लाती हैं।

तो वही होता है कि देखो नॉलेज हमें इस बात का तो नहीं ही है के हम जिस क्षेत्र में पैसा लगाने जा रहे हैं या अपनी ज़िन्दगी लगाने जा रहे हैं उसके फ़ैक्ट्स (तथ्य) क्या हैं। वो तो हम नहीं ही जानते। हम ये भी नहीं जानना चाहते हैं कि जितने लोग उस दिशा में गये उनका हुआ क्या। समझ रहे हो।

हमें टेक्निकल नॉलेज (तकनीकी ज्ञान) तो नहीं ही है, हम बाय इग्ज़ाम्पल — उदाहरण से भी नहीं सीखना चाहते। हम ये भी नहीं पता करना चाहते हैं कि कितने लोग हैं यहाँ जो पैसा लागतें है उनमें से कितनें लोगों को ये रिटर्न मिलता है और कितनें तबाह हो जाते हैं। हम वो सब भी नहीं जानना चाहते। इन्वेस्टमेंट कोई हल्की चीज़ नहीं होती है। उससे पहले आपको बहुत फंडामेंटल नॉलेज (मौलिक जानकारी) होना चाहिए। और वो फंडामेंटल नॉलेज ज़रा मेहनत से आता है, किताबों से आता है, यूट्यूब से भी आ सकता है। लेकिन यूट्यूब पर आप प्रोफ़ेसर्स के लेक्चर्स (व्याख्यान) देखिए न।

फ़ाइनेंस के प्रोफ़ेसर्स हैं। कोई पोर्टफ़ोलिओ (जानकारी संग्रह) में स्पेशलाइज़ (विशेषज्ञता) करता है। कोई डेरिवेटिव्स (शेयर बाज़ार कि एक तकनीक) में स्पेशलाइज़ करता है। तो पोर्टफ़ोलिओ मैनेजमेंट सीखना है तो आप एक प्रोफ़ेसर से सीखेंगे न।

वहाँ कोई भी आकर के आपको यूट्यूब पर बता रहा है ऐसा कर लो वैसा कर लो नोट बरसेंगे और वो अपनी नोटों के साथ तस्वीर लगा रहा है और आपमें इतनी बुद्धि नहीं है कि आप समझ पाओ कि आपको लालच के माध्यम से बेवकूफ़ बनाया जा रहा है।

तो फिर तो वो ही हुआ जो तुम्हारे दोस्त के साथ एक बार हुआ। आशा करता हूँ दूसरी बार न हो पर सम्भावना यही है कि ये जो भी व्यक्ति है ये दूसरी बार भी लूटेगा। क्योंकि मार्केट्स में आम तौर पर आप पैसा बनाते नहीं हो आपको वो ही पैसा मिलता है जो किसी ने गवाया है।

देखो वैल्यू क्रिएशन (मूल्य सर्जन) तो इकॉनमी (अर्थव्यवस्था) में प्रतिवर्ष पाँच प्रतिशत-सात प्रतिशत की दर से हो रहा है न। वैल्यू क्रिएशन तो इतना ही हो रहा है। तो कोई व्यक्ति अगर कहे कि उसने बीस प्रतिशत रिटर्न हासिल करे तो बीस प्रतिशत रिटर्न कैसे आ सकता है? वो तो तभी आ सकता है न, जब किसी ने माइनस पन्द्रह (-15) हासिल करा हो। ये एक मोटा-मोटा उदाहरण है। ठीक है सिर्फ़ समझाने के लिए। क्योंकि अगर तुम कॉरपोरेट सेक्टर (व्यासायिक क्षेत्र) को भी सिर्फ़ देख लो तो वो कितने प्रतिशत से ग्रो (बढ़) कर रहा है?

ये निफ़्टी-फ़िफ़्टी (देश की उच्तम पचास कम्पनियाँ जिसमें निवेश किया जा सकता है) की कम्पनीज़ हैं तुम अगर इनकी टॉप लाइन या बॉटम लाइन ग्रोथ (उच्तम बढ़ोतरी या कम-से-कम बढ़ोतरी) भी देखोगे; पाँच प्रतिशत, दस प्रतिशत, बारह प्रतिशत। लेकिन आप जब इन्वेस्ट करने जाते हो तो आपको अरमान दिखाए जाते हैं कम-से-कम बीस प्रतिशत के, कम-से-कम। और बीस प्रतिशत भी ऐसा लगता है कि साल भर में सिर्फ़ बीस प्रतिशत ही रिटर्न्स आये ये तो कुछ भी नहीं आया। बीस प्रतिशत रिटर्न कैसे आएगा? जब वो कम्पनी हाई नहीं ग्रो कर रही है दस प्रतिशत से, जिसमें आपने इन्वेस्ट करा है।

वो तो तभी आ सकता है जब कोई मूरख आपको मिल गया हो जो माइनस दस कर गया हो तब जाके ऐसा होगा कि उसका जो नुक़सान है वो आपका फ़ायदा बनेगा।

जब मैं अपने कैरियर के आरम्भिक दिनों में कॉरपोरेट में था तो वहाँ ऐसे बोला जाता था कि ‘द पिग्ज़ आर हिअर टू गेट स्लॉटेड’ (सुअर यहाँ काटने को आये हैं)। और पिग्ज़ किनको बोलते थे यही छोटे-मोटे रिटेल इन्वेस्टर्स होते हैं।

यूज़ूअली मिडल क्लास , लोअर मिडल क्लास (आम तौर पर मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग) जो अपनी जमा पूँजी ले कर के आ जाते हैं कोई पचास हज़ार, कोई पाँच लाख, कोई दस लाख। जो स्टॉक मार्केट के हेवी वेट्स (बड़े निवेशक) होते हैं वो हस्ते हैं इनपे और कहते हैं ये आये ही इसीलिए ताकि इनका स्लॉटर (वध) हो।

यही तो गँवाते हैं तभी तो जो हैवी वेट्स होते हैं वो कमाते हैं, कमाते नहीं हैं बनाते हैं। स्टॉक मार्केट में कोई कमाता नहीं हैं लोग पैसा बनाते हैं।

तो ये तो ऐसे लोगों को उस तरफ़ भेजनें का काम चल रहा है जो बिचारे वहाँ सर्वाइव (जीवित बचना) नहीं कर सकते। स्टॉक मार्केट कोई जुआ खेलने की चीज़ नहीं होती है, आपको पूरा नॉलेज (जानकारी) होना चाहिए कि स्टॉक चीज़ क्या है उसकी वैल्यू डिटर्मिन (क़ीमत निर्धारित) कैसे होती है?

आपको कैसे पता कोई स्टॉक ख़रीदने लायक़ है? किसी कम्पनी का स्टॉक है वो पिच्चासी रुपये चल रहा है, आपको कैसे पता इसे ख़रीदूँ कि नहीं ख़रीदूँ? क्या आपको फंडामेंटल अनालिसिस (बुनियादी विशेषण) करना आता है? क्या आप ख़ुद बैठकर के उस कम्पनी की बैलेन्स शीट पर ये निकाल सकते हो के पिच्चासी रुपये फ़ेयर प्राइस्ड (उचित मूल्य) है, अंडर प्राइस्ड (बहुत कम मूल्य) है, ओवर प्राइस्ड (बहुत ज़्यादा मूल्य) है।

बहुत एक्युरेसी (शुद्धता) के साथ नहीं तो भी क्या आप मोट-मोटा ख़ुद ये कैलकुलेशन (गणना) कर सकते हो आप कहो, ‘नहीं साहब, इसका जो शेयर है वो सौ का होना चाहिए पिच्चासी का चल रहा है? और मेरी कैलकुलेशन — मैंने कैलकुलेशन करा है इक्वेशन (समीकरण) निकालकर के उसमें से आँकड़ा आया सौ का और अभी ये पिच्चासी चल रहा है अभी मैं इसे ख़रीदूँगा। ये पिच्चासी का है ये सौ तक जाएगा। क्या आप ये ख़ुद कर सकते हो?

और अगर ये आप ख़ुद नहीं कर सकते तो आप किस भरोसे पर पैसा लगा रह हो? किसी यूट्यूबर ने बोला कि जाओ पैसा लगा दो आपने पैसा लगा दिया। उसने आपको अरमान जगा दिये कि तुम्हारे घर भी हीरे मोती बरसेंगे खूब पैसा आएगा, ये आएगा, वो आएगा। ‘देखो, मैंने करोड़ों कमाए हैं, तुम भी कमाओगे।’ तुम वहाँ घुस गये जाकर के अपनी खून-पसीने की कमाई लेकर के।

अपने बाप दादाओं की ज़मीन बेचकर के तुम कहीं जाकर के कहीं बिटक्वाइन में लगा रहे हो; कहीं कह रहे हो, ‘मैं एंटरप्रेन्योरशिप करूँगा’, कहीं स्टॉक मार्केट में घुस रहे हो, कहीं डे ट्रेडिंग में घुस रहे हो, कहीं इंट्रा-डे ट्रेडिंग कर रहे हो। ये सब कर रहे हो तुम। ये सब कर रहे तो फिर ‘पिग्ज़ आर देअर टू बी स्लॉटर्ड'।

प्र: मैं इस पूरी चीज़ में अगर ख़ुद समझने की भी कोशिश करता हूँ न, तो मैं देख रहा हूँ कि एक सपना है जो लोगों को बहुत दिखाया जा रहा है जिसको लोग अंग्रेज़ी में बोलते हैं फ़ायनेंशियल फ़्रीडम (वित्तीय स्वतन्त्रता)।

सपना कुछ ऐसा दिखाते हैं कि अभी तुम जवान हो तो अभी तुम जमकर काम करो खूब पैसा कमाओ और बहुत जल्दी से इसको इन्वेस्ट करना शुरू कर दो। और फिर एक दिन ऐसा आएगा जब तुम पैंतीस से चालीस वर्ष के होओगे तुम्हारा पोर्टफ़ोलिओ बहुत मोटा हो चुका होगा।

और वो इतने रिटर्न देना शुरू कर देगा और फिर तुम उसके बाद नौकरी छोड़ भी दोगे तो भी तुम अपना गुज़र-बसर करते रहोगे।

आचार्य: ऐसा नहीं होता है, भाई। पैंतीस-चालीस तक होते-होते अपका एक कॉस्ट स्ट्रक्चर (ख़र्चे की संरचना) भी खड़ा हो जाता है। आप ऐसे देखते हो आप कहते हो कि मैं अभी चौबीस का हूँ तो मेरे इतने ख़र्चे हैं फिर आप कैलकुलेशन करते हो या आपको एक कैलकुलेशन दिखाई जाती है कि अभी तुम इतना-इतना इन्वेस्ट कर दो, तुम्हारे जितने ख़र्चे हैं ठीक इतना पैसा तुम्हें इंट्रेस्ट (ब्याज) से मिलना शुरू हो जाएगा पैंतीस की उम्र में या चालीस की उम्र में।

मान लो तुम्हारा अभी तुम्हारा महीने का ख़र्चा है पचास हज़ार रुपये, ठीक है। तुमसे कहा गया है कि देखिए साहब आप महीने का क़रीब पैंतीस-हज़ार रुपये फ़लानी जगह आप हर महीने इन्वेस्ट करना शुरू कर दीजिए जब आप चालीस साल के हो जाएँगे तो अभी आप पचास हज़ार ख़र्चा करते हो तब आपको साठ-हज़ार महीने का मिलने लगेगा। तो कहते हो ये तो बहुत बढ़िया बात है।

आप ये नहीं सोचते हो कि चालीस का होते-होते अपका जो मासिक ख़र्चा है वो तीन लाख रुपये महीना हो चुका होगा। वो साठ हज़ार रुपये लेकर करोगे क्या तुम?

ये बहुत छोटी-छोटी बातें हैं लेकिन न हमने पढ़ी हैं, न हम इनके बारे में हम सोचना चाहते हैं। ये न तो हमारी एजुकेशन का हिस्सा थीं और न हम कॉमन सेन्स (व्यावहारिक बुद्धि) लगाकर के इन पर विचार करना चाहते हैं। ये मैंने बहुत एकदम एक ग्रॉस उदाहरण दिया है, मोटा-मोटा।

इसमें बहुत इनैक्यूरेसी (अशुद्धता) है, ये सिर्फ़ समझने के लिए दिया है कि तुम समझ जाओ। तो इस तरह कि बातें है कि अभी तुम जमकर के काम कर लो उसमें इन्वेस्टमेंट कर लोगे तो उतना पैसा आ जाएगा। ऐसा नहीं होता है। ये नहीं हो सकता है और अगर कोई अपनी इस तरह का सपना दिखा रहा है तो आपको बेवकूफ़ बनाने के लिए आपको ऐसा सपना दिखा रहा है। इसके अलावा और भी बातें हैं।

प्र: मैं ये पूछना चाहूँगा आप इतना स्ट्रॉंली कैसे कह सकते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता?

आचार्य: क्योंकि ये टेक्निक्ली इम्पॉसिबल (तकनीकी तौर पर नामुमकिन) है। अगर मुझे पेन-पेपर दोगे तो मैं उसपर तुम्हें कैलकुलेट करके दिखा दूँगा कि जो बात बोली जा रही है ये टेक्निक्ली इम्पॉसिबल है। इट्स अ मैथेमैटिकल इम्पॉसिबिलिटि (यह गणित के तौर पर नामुमकिन है)।

जब उसमें तुम अपना कॉस्ट स्ट्रक्चर लाते हो और साथ-ही-साथ इन्फ़्लेशन (महँगाई) को लेकर के आते हो और साथ-ही-साथ एक्स्पेक्टेशन्स (उम्मीदों) को लेकर आते हो तो जो बात तुमको बोली जा रही है वो टेक्निक्ली इनफ़ीज़िबल (तकनीकी तौर पर अव्यवहारिक) है। समझ रहे हो?

रेट ऑफ़ इंट्रेस्ट (ब्याज की दर) कोई आर्बिट्रेरी (स्वेच्छा) चीज़ नहीं होता है। किसी भी इन्वेस्टमेंट पर जो आपको इंट्रेस्ट मिल रहा होता है न उसके पीछे एक लॉजिक (तर्क) होता है वो लॉजिक आप समझिए। वो इंट्रेस्ट अगर इतना ज़्यादा होने लग गया है कि वो दस साल बाद आपको अरबपति बना देगा तो लोग काम करना छोड़ देंगे।

इकॉनमी कॉलैप्स (अर्थव्यवस्था गिर) कर जाएगी। तो वो जो बात है वो टेक्निकल इम्पॉसिबिलिटि की है।

प्र: डिज़ाइन कुछ इस तरह पूरे सिस्टम का।

आचार्य: वो पूरी सिस्टम एक सेट ऑफ़ इक्वेशन्स (सामूहिक समीकरण) से चलता है उन इक्वेशन्स को हम जानते नहीं तो हम ये कल्पना करने लग जाते हैं कि उन इक्वेशन्स में से (चर/बदलनेवाला) एक वेरीएबल सिर्फ़ हमारे लिए बहुत आर्बिट्रेरी ह्यूज वैल्यू (स्वेच्छा से बहुत बड़ी क़ीमत) ले सकता है। वो नहीं ले सकता।

क्योंकि वो सारी इक्वेशन्स एक दूसरे से जुड़ी हुईं हैं। और ये बात आपको इसलिए नहीं पता क्योंकि फ़ाइनेंस में आपकी कोई एजुकेशन नहीं हुई है। और वो एजुकेशन कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं है।

कुछ आपको साधारण किताबें ख़रीदनी है और ख़ुद बैठकर के पढ़ लेना है। ये चीज़ सेल्फ़ एजुकेशन (ख़ुद पढ़ने) से हो सकती है। या मैं कह रहा हूँ कि आप इसको ऑनलाइन भी किसी से पढ़ना-समझना चाहते हो तो आप किसी क्वालिफ़ाइड प्रोफ़ेसर्स (योग्य प्राध्यापक) के पास जाइए वो आपको बता देंगे।

और वो आपको इसलिए बता पाएँगे क्योंकि उनका अपना कोई स्टेक या स्वार्थ नहीं है, उनका काम बस नॉलेज डिसेमिनेशन (ज्ञान प्रसार) है। इसलिए बहुत न्यूट्रल (निष्पक्ष) तरीक़े से बहुत साफ़ तरीक़े से वो आपको समझा देंगे। पर आप ऐसों के पास जाएँगे जिनका स्वार्थ है कि आप जा कर के इन्वेस्ट करो ये करो वो करो तो वो तो फिर आपको मिस लीड (गुमराह) ही करेंगे न। ज़ाहिर सी बात है।

अगली बात ये तो उसका न्यूमैरिकल (संख्यात्मक) और फ़ायनेंशियल (वित्तीय) पहलू था, आप कितना भद्दा काम करोगे ज़िन्दगी में कि हर समय यही सोचते रहोगे कि कब चालीस का होऊँ और कब ये काम छूटे!

कोई इंसान अगर कोई भी ढंग का काम अगर कर रहा है तो उसको चालीस की उम्र में छोड़ कैसे देगा? और अगर आप इतने आतुर हो कि चालीस का हो जाऊँ और इस नौकरी को लात मारकर भाग जाऊँ तो इसका मतलब आप चालीस साल तक आप नर्क में सड़ रहे थे। तो ये तुमने फिर बाइस की उम्र से चालीस की उम्र तक अठारह साल जो तुमने नर्क सहा उसकी फ़ायनेंशियल वैल्यू क्या है? वो कौन कैलकुलेट करेगा? या इंटैंजिबल्स (अप्रत्यक्ष/अस्पष्ट) की कोई वैल्यू ही नहीं होती?

सिर्फ़ इसलिए कि कोई चीज़ इंटैंजिबल है क्या वो इम्मटीरीयल (सारहीन/अभौतिक) भी हो जाती है? उसकी कोई वैल्यू नहीं रह जाती।

आप टॉर्चर (अत्याचार) फ़ेस (का सामना) कर रहे हो हर दिन और आप काम पर इसलिए आ रहे हो ताकि आप इतना पैसा इक्कठा कर लो और ये काम आप अठारह साल से लगातार कर रहे हो। ये जो आपने टॉर्चर बर्दाश्त करा है इसकी वैल्यू कौन कैलकुलेट करेगा? लेकिन इस वैल्यू के बारे में कोई आपको कुछ नहीं बोलता। (प्रश्नकर्ता न में सिर हिलाते हैं)

देखो, जब न — ये भी फ़ाइनेंस के बेसिक्स (मूल बातें) में आता है — आप जब फ़ाइनेंस पढ़ना शुरू करते हो शुरू में एक कॉन्सेप्ट होता है एनपीवी - नेट प्रेज़ेंट वैल्यू (शुद्ध वर्तमान मूल्य)। आप जो कुछ भी सोच रहे होते हो आपको फ़्यूचर (भविष्य) में मिलेगा वो कितना क़ीमती है ये कैलकुलेट आज कर लिया जाता है कि आज उसकी क्या वर्द (क़ीमत) है। ठीक है?

तो कोई चीज़ है को आपको कहा जा रहा है, ‘चालीस साल बाद मिलेगी या अठारह साल बाद मिलेगी’ तो अठारह साल बाद वो जितने की भी है उतने की आज नहीं है। आज उसकी क़ीमत उससे बहुत-बहुत कम की है। फ़ायनेंशियल एजुकेशन होते हुए ये बात पता होती है। लेकिन आपको ऐसे बताया जाता है कि एक करोड़ मिल जाएगा चालीस की उम्र के हो जाएँगे जब आप। आपको लगता है कि एक करोड़ मिल जाएगा, एक करोड़ मिल जाएगा। उस एक करोड़ का एनपीवी (शुद्ध वर्तमान मूल्य) कितना है ये तो बताओ।

वो आप कैलकुलेट नहीं करते। क्यों? क्योंकि आपको एजुकेशन नहीं हुई और दूसरी बात एक लालच से भरा हुआ मन कॉमन सेन्स भी खो देता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि स्पिरिचुअल एजुकेशन भी फ़ायनेंशियल एजुकेशन जितनी ही ज़रूरी है।

आप ज़िन्दगी में जितना महत्वपूर्ण, जितना क्रिटिकल (गम्भीर) काम करने जा रहे हो आपके लिए स्पिरिचुअली एजुकेटेड होना उतना ज़रूरी होता है।

प्र: ये कुछ आज हुआ था जब मैं उससे बातचीत कर रहा था। मैंने देखा उसका फ़ोन आया है तो मुझे ये भी याद था कि ये उस दिन परेशान था। तो मेरे दिमाग में सबसे पहली चीज़ यही आयी कि अभी गीता के ऊपर आपकी सिरीज़ चल रही है। आप गीता को पढ़ा रहे हैं, तो इससे बात करूँगा और उसको समझाऊँगा कि तू गीता पढ़।

पर हुआ कुछ यही कि अभी जो बिलकुल हम चर्चा कर रहे हैं, जब मैं उसको ये बोला तो वो इस बात पर हसने लग गया मतलब मज़ाक उड़ाने लग गया इस बात पर कि इस सब से क्या होता है, ‘इस सब से कोई वैल्यू क्रिएशन थोड़े ही होता है, ये अध्यात्म क्या है और ये गीता पढ़ने से क्या हो जाएगा? और मैं तो यहाँ पर पैसा बनाने की बात कर रहा हूँ, तू क्या बात कर रहा है?’

आचार्य: गीता पढ़ने से कोई वैल्यू क्रिएशन नहीं होता है। जैसे ये आपके दोस्त हैं ये साहब जाकर के कहीं ग़लत जगह पैसा डाल रहे हैं ये वैल्यू डिस्ट्रक्शन (मूल्य नाश) है इतना तो ये समझ रहे हैं।

हाँ, अगर गीता पढ़ी होती तो वैल्यू डिस्ट्रक्शन नहीं होता। ये कम है? जो गीता पढ़ते हैं उनके दिमाग में थोड़ी बुद्धि रहती है, थोड़ी स्थिरता रहती है। वो कम-से-कम वैल्यू डिस्ट्रॉय नहीं करते। वो कम-से-कम ये नहीं करते कि अपना पैसा और घर की ज़मीन-जायदाद बेचकर के किसी फ़ालतू जगह पर इन्वेस्ट कर आये और सब लूटा दिया। गीता वाले ऐसा नहीं करते।

तो ये जो आरोप है कि स्पिरिचुअलटी से वैल्यू क्रिएशन कहाँ होता है? बहुत ही बेवकूफ़ी की बात है। क्योंकि जहाँ कहीं जो भी वैल्यू क्रिएट होती है उसे कौन क्रिएट करता है? उसे इंसान क्रिएट करता है न। गीता इंसान को सीधा रखती है। वैल्यू क्रिएट करने वाला तो इंसान ही है न। इंसान जैसा होगा उसी मुताबिक़ वो वैल्यू क्रिएट करेगा। हाँ तो गीता इंसान को ठीक रखती है। जब इंसान ठीक है तो वैल्यू क्रिएशन भी अच्छा होगा।

तो कौन कह रहा है कि गीता से वैल्यू क्रिएशन नहीं होता? कोई बहुत ही मूर्ख आदमी होगा जो ऐसा बोल सकता है। दुनिया की हर वैल्यू का निर्माता क्रिएटर कौन है?

इंसान है, और इंसान को कौन ठीक रेखेगा? गीता। तो वैल्यू कहाँ से आएगी? फंडामेंटली गीता से ही तो आएगी।

प्र: पर ये चीज़ मुझे … अब मैं इसपर इतना सोच रहा हूँ मुझे अजीब लगता है कि अपने हमेशा इस बात को बोला है कि जो तुम्हारे जवानी के साल होते हैं यही वो समय होता है जब तुम कुछ बन सकते हो, कुछ कर सकते हो।

यहाँ पर मैं उल्टी ओर देखता हूँ कि मेरे आस-पास के जितने भी मेरे दोस्त कॉरपोरेट में काम कर रहे हैं, उनको एक घुट्टी पिला दी गयी है कि जो तुम्हारे जो जवानी के ही साल हैं यही है जो तुम्हारा बुढ़ापे में तुम ऐश कर सकोगे।

आचार्य: बुढ़ापे में तुम कौनसी ऐश करोगे? ऐश करने के लिए आँख चाहिए, कान चाहिए, ये दाँत चाहिए। बुड्ढे हो जाओगे तो ऐश कौनसी करोगे? हाँ, बुड्ढे होकर एक ऐश कर सकते हो सेवन स्टार (सात सितारा) हॉस्पिटल में एडमिट (भर्ती) होओगे।

ऐश! ‘मेरा हॉस्पिटल क्या है? ‘

प्र: सेवन स्टार।

आचार्य: सेवन स्टार है। ‘ स्विमिंग पूल (तरण ताल) के ठीक बग़ल में मेरी सर्जरी (श्ल्यचिकित्सा) हो रही है। सर्जरी के लिए मुझे स्विमिंग पूल के बग़ल में है, हीटेड स्विमिंग पूल है। उसके बग़ल में मेरी सर्जरी हो रही है। एनेस्थिसिया (बेहोशी) देने बिलकुल एकदम चमत्कार नर्स आ रही है मुझको।’ ये ऐश है? ये क्या पागलपन की बात है कि बुढ़ापे में ऐश करूँगा। ये ऐश चीज़ क्या है? और ये बुढ़ापे में कैसे की जा सकती है? दोनों बातें मैं सुन लेना चाहता हूँ।

प्र: वास्तव में उनको जो सपना तैयार किया जाता है न उसमें उसको बोलते वो चालीस की उम्र है, मैंने उसको बुढ़ापा बोल दिया; पर उनके दिमाग में लगता है कि ठीक है अभी वो अठारह के हैं, अभी इक्कीस के हैं अभी चालीस के हो जाएँगे। चालीस में ऐश करेंगे। तो…

आचार्य: इनमें से ज़्यादातर वो होते हैं जो बाइस-चौबीस की उम्र में भी कोई फ़िटनेस टेस्ट पास नहीं कर सकते। ये चालीस में कैसे हो जाएँगे, सोच लो। इनमें से ज़्यादातर वो हैं जिन्होंने ज़िन्दगी में कभी अपने शरीर को बनाने पर ज़रा भी ध्यान दिया नहीं है।

बाइस-चौबीस की उम्र में भी इनकी हालत ऐसी रहती है कि धक्का मारो तो गिर पड़ें। ये चालीस होते-होते कैसे हो जाएँगे सोच लो। ये ऐश करेंगे? जिन्हें ऐश करनी होती है न उनके पास जवानी है और ऐश से मेरा मतलब भोग, विलासिता, लग्ज़री, कन्ज़म्प्शन ये सब नहीं है।

जवानी की ऐश होती है — सही काम में अपनेआप को दिलोजाँ से झोंक देना। वो होती है ऐश। नोट चलाने को ऐश नहीं कहते। सबसे बड़ी ऐश होती है कि मुझे पता है सही ज़िन्दगी क्या है, और उसको जीने के लिए जो भी क़ीमत अदा करनी पड़े मैं कर रहा हूँ और जी रहा हूँ।

ऐश करी थी भगत सिंह ने, सुखदेव ने, राजगुरु ने वो होती है ऐश और वो होता है जवानी का सही इन्वेस्टमेंट और वो इन्वेस्टमेंट ऐसा था कि उसका मुनाफ़ा पूरा हिन्दुस्तान उनके जाने के सौ साल बाद भी उठा रहा है। लूट रहे हैं हम मुनाफ़ा। उन्होंने जिस तरह अपनी ज़िन्दगी का निवेश करा, अपनी जवानी का इन्वेस्टमेंट करा। ये होता है इन्वेस्टमेंट , ये होती है जवानी, ये होती है ऐश। ये थोड़े ही कि कोई घटिया नौकरी पकड़ ली, अपनेआप को पैसे के लिए बेच दिया और ये बेवकूफ़ी भरा अरमान सजा कर बैठे हैं कि पन्द्रह साल-बीस साल काम करूँगा फिर पैसा बहुत आ जाएगा फिर मैं ऐश करूँगा।

फिर तुम नहीं ऐश करोगे, पैसा आ भी गया अगर भूले-भटके तब तक तुम्हारा लड़का जवान हो चुका होगा और लड़की; ऐश करेंगे भी तो वो ऐश करेंगे। वो क्या ऐश करेंगे वो वो ही ऐश करेंगे जो बिगड़े हुए औलादें करतीं हैं अमीर बापों की। इसमें फिर वो ड्रग्स लेती हैं और जेल जातीं है। इस फ़ालतू कमाई का अंजाम यही होता है बिगड़ी हुई औलादें। तुम तो क्या ही ऐश करोगे? तुम तो बर्न आउट हो चुके होओगे, तुम्हारी ऐश अस्पतालों में हो रही होगी और तुम्हारे लड़के-लड़की वो किसी ड्रग्स सिंडिकेट (व्यवसाय संघ) में फँसकर ऐश कर रहे होंगे और जेलों के मज़े लूट रहे होंगें बड़े घर के।

प्र: इस तरह के कुछ उदाहरण मैंने जब उसे देने की कोशिश की न, तो उसका जवाबी तर्क कुछ ऐसा था कि यार, ‘तू क्या पापा की तरह लेक्चर दे रहा है?’

आचार्य: क्यों पापा इतने बुरे आदमी हैं क्या? पापा कोई सही बात नहीं बोल सकते? या पापा शब्द ही गाली हो गया है? उसी पापा से पैदा हुए हैं साहबज़ादे। ऐसी क्या बुराई हो गयी पापा में कि हर बात उनको ज़हर लगने लग गयी? और पापा ने अगर हर कम अगर ग़लत किया है तो ये भी फिर किसी ग़लती के पैदाइश होंगे कि पापा की तरह बोलने लग गये।

प्र: और मुझे दोस्त ने आर्ग्युमेंट दिया था मुझे कहीं-न-कहीं दिख रहा था कि ये भी इसने जो यूट्यूबर्स की जो पूरी एक जेनेरेशन (पीढ़ी) हैं इनसे सीखा है। क्योंकि ये अपनी वीडियो में बहुत बार बोलते हैं कि जब फ़ायनेंशियल अड्वाइस (वित्तीय सलाह) की बात आएगी तो आप अपने घर से थोड़ी ले सकते हैं। ‘क्योंकि उनको कहाँ पता था वो तो ज़मीन ख़रीदते थे, एफडी बनाते थे और असली फ़ायनेंशियल अड्वाइस हम आपको बताएँगे कि ये इंस्ट्रुमेंट (साधन) होता है, ऐसा होता है, वैसा होता है।’ तो कहीं-न-कहीं एक कंडेम्ड (निकम्मा ठहराना) कर दिया है।

आचार्य: ये कुछ नहीं हो रहा। ये एक पूरी प्रक्रिया है जिसमें धीरे-धीरे कम और कम और कम हाथों में कॉन्सन्ट्रेशन ऑफ़ वेल्थ (धन का केंद्रीकरण) होता जाएगा। करोड़ों मिडल क्लास से पैसा निकल-निकलकर, निकल-निकलकर चन्द अमीरों की तिजोरियों में भरता जाएगा। ये चल रही है पूरी प्रक्रिया।

ये जो करोड़ों साधारण मिडल क्लास लोग हैं इनको बताया का रहा है यहाँ इन्वेस्ट करो ये करो वो करो। जिसका असली मुनाफ़ा लूटेंगे बड़े-बड़े धनपति। वो और मोटे और अमीर होते जाएँगे और साधारण लोग और ग़रीब होते जाएँगे।

मैं उदाहरण दिये देता हूँ पिछले दो सालों में देखो क्या हुआ है। पिछले दो सालों में भारत का जो आम आदमी है उसकी आमदनी वास्तव में घटी है। या कम-से-कम बढ़ी नहीं है। लेकिन जो भारत के अमीर हैं उनकी नेट वर्थ (कुल सम्पत्ति) छलाँगें मार गयी है। ये कैसे हो गया?

2020 से लेकर अभी तक जीडीपी में रियल ग्रोथ (सकल घरेलू उत्पाद में वास्तविक विकास) अब तक शून्य है। ठीक है? आम आदमी की आय बढ़ी नहीं है, पर कैपिटा (प्रति व्यक्ति आय) औसत, लेकिन जो रिचेस्ट इंडिविजुअल्स (सबसे अमीर व्यक्ति) हैं साथ-ही-साथ जो टॉप कॉर्परेशनस (शीर्ष निगम) हैं उनमें से ज़्यादातर की वर्थ या वैल्यूएशन (क़ीमत या मूल्यांकन) खूब बढ़ गया है। ये कैसे हुआ है?

सिचुएशन (स्थिति) साफ़ नहीं है। आम आदमी ने पैसा गँवाया है, अमीरों ने पैसा बनाया है। आम आदमी का पैसा उठ-उठकर अमीरों की जेब में जा रहा है, कैसे? आम आदमी में लालच को भड़काकर के। आम आदमी ग़रीब तो है ही या साधारण दर्जे का तो है ही और साथ-ही-साथ स्पिरिचुअली इग्नोरेंट (आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी) है। वर्ल्ड्ली इग्नोरेंट (सांसारिक अज्ञानी) भी है और स्पिरिचुअली इग्नोरेंट भी है। न उसको दुनियादारी पता है, न उसको आत्मज्ञान है।

तो वो ये भी नहीं जनता कि जिस इंस्ट्रुमेंट में पैसा लगा रहा है वो चीज़ क्या है और वो ये भी नहीं जनता कि उसके भीतर कौनसा लालच है जो उसको किसी भी व्यर्थ के इंस्ट्रुमेंट में इन्वेस्ट करने की तरफ़ फेंक देता है। न वो उस इंस्ट्रुमेंट को जनता है, न वो स्वयं को जनता है। मिला-जुलाकर नतीजा ये होता है कि वो और ग़रीब होता जाता है, लुटता ही चला जाता है। अपके खून-पसीने की कमाई, आपका घर का सोना, आपकी ज़मीन-जायदाद आप ले जाकर के बड़े-बड़े लोगों या बड़ी-बड़ी कम्पनियों के हवाले कर देते हो। वो फूलते जाते हैं, आप सिकुड़ते जाते हो।

प्र: पर ये जो पूरा नेट्वर्क है जो लोगों को उस तरफ़ धकेल रहा है। ये मैं देख रहा हूँ ये काफ़ी स्ट्रॉंग है क्योंकि बड़ा क्रिकेटिंग टूर्नामेंट चल रहा है इस देश में। उसमें पन्द्रह-पन्द्रह सेकंड्स के ऐड्स आते हैं। लाइन से जो सारे ऐड्स होते हैं वो किसी-न-किसी इसी तरह की एप के, किसी वॉलेट के या कोई फ़िल्म-एक्टर आकर बोल रहा है कि तुम यहाँ आकर जी क्रिप्टो ख़रीद लो, ये कर लो, वो कर लो।

उसके बाद जितने लाइन से यूट्यूबर्स हैं इनकी जितनी वीडियो होतीं हैं, शुरुआत का पाँच मिनट कंटेंट (धारणा का मूल तत्व) होगा, बीच के दो मिनट ऐड होगा फिर कंटेंट होगा और जो बीच का दो मिनट का ऐड होता है वो इसी विषय पर होता है कि ये हमारे स्पॉन्सर (प्रायोजक) हैं और इनकी ऐप है आप इनको इंस्टॉल कर लो और आपको सौ रुपयेे का क्रिप्टो फ़्री में मिल जाएगा, ये मिल जाएगा, वो मिल जाएगा।

तो मैं देख रहा हूँ बन्दा बेसिकली अपना फ़ोन खोलता है, दुनिया में बात करता है, कुछ भी करता है तो उसके सामने ये लोग खड़े हो जाते हैं क्या इन्वेस्ट करो। तो ये जब इस तरह से लोगों को बिलकुल जकड़कर रखेंगे तो फिर आदमी बचेगा कैसे?

आचार्य: नहीं, वो जकड़कर इसलिए रख रहे हैं क्योंकि आप जकड़े जाने को तैयार हो। आप जकड़े जाने को तैयार हो। आपके भीतर लालच नहीं हो तो कोई आपका क्या बिगाड़ सकता है? आपके भीतर थोड़ा आत्मज्ञान हो थोड़ा सेल्फ़ नॉलेज हो, कोई आपका क्या बिगाड़ सकता है? वो तो इसी बात का फ़ायदा उठाते हैं कि आप हो ही इस घात में कि कहीं से पैसा मिल जाए-पैसा मिल जाए, ‘मैं भी कुछ भोग लूँ-मैं भी कुछ भोग लूँ।’

दाने डाले जाते हैं जाल बिछाया जाता है क्योंकि पता है न कि पंछी आएगा चुगने। पंछी मजबूर है, वो तो पशु है वो क्या करेगा बेचारा? लेकिन इंसान हो आप, आप क्यों चुगने पहुँच जाते हो? आपमें तो इतनी आन्तरिक तमीज़ होनी चाहिए न कि कोई जब दिख जाए कि आपके भीतर लालच कोई भड़का रहा है तो अब तुरन्त उससे मुँह फ़ेर लो तुरन्त उसको भगा दो अपने सामने से। दूसरी तरफ़ हो ये रहा है कि जितने लोग आपको बर्बाद करते हैं, आपको गिराते हैं, आपकी चेतना को दूषित करते हैं आप और उनके ओर जाते हो कि यही तो हैं इन्हीं के सहारे तो हमारा कुछ हो जाएगा।

उनके सहारे आपका कुछ नहीं होगा हाँ आपको बेवकूफ़ बना-बनाकर के वो अपना उल्लू खूब सीधा कर रहे हैं। आपको उनसे फ़ायदा नहीं हो रहा है, उनको आपसे खूब फ़ायदा हो रहा है।

प्र: पर ये बड़ी अजीब सी स्थिति है कि मुझे अभी भी ध्यान आ रहा है जब मैंने उससे गीता की बात करी, गीता का नाम लिया। तो मूलतः जो चीज़ उसके अन्दर के लालच का कोई उपाय कर सकती है, उसे ठीक कर सकती है। वो उसकी तरफ़ नहीं आता है।

क्योंकि उसको वो पहली बात ऐसा लगता है वो ओल्ड फ़ैशन्ड चीज़ है कोई। दूसरा वो कहता है कि नहीं अभी नहीं क्योंकि मैं अभी मैं उस टाइम में बीच में हूँ न, बाइस से चालीस तक काम करना है, तो मेरे पास गीता-वीता का समय नहीं है।

आचार्य: ये गीता-वीता क्या होता है? पहले तो कोई इस तरह की बात करे तो हाथ उठने से आपको किसी ने नहीं रोका है। साधारण मर्यादा, तमीज़ आनी चाहिए हर इंसान को। ओल्ड फ़ैशन्ड क्या होता है? वो किसी समय की बात नहीं कर रही, वो इंसान के मन की बात कर रही है। श्रीमद्भागवत गीता कोई एतिहासिक दस्तावेज नहीं है, जिसमें किसी काल की स्थितियों के बारे में वर्णन हो कुछ ऐसा। न। आदमी के मन की बात करती है, हमारी मूलभूत वृतियों की बात करती है। वो जैसी कल थीं वो वैसी आज हैं, वैसे ही कल भी रहेंगी। तो ओल्ड फ़ैशन्ड कैसे हो गयी?

और फिर जिन्हें नहीं पढ़ना है, न पढ़ें। उनका वही होगा जो इन साहब का हुआ है। दो महीने पहले भी इन्होंने मुँह की खाई है और अब ये घरों का पैसा उठाकर के लगा रहे हैं तो और मुँह की खाएँगे। कोई नियम थोड़े ही है कि हर व्यक्ति को आनन्द में ही जीना है। कि हर व्यक्ति का जीवन सफल ही होना चाहिए। बहुतों का बर्बाद होना भी निश्चित ही होता है। इंसान में जन्म इसलिए थोड़ी मिला है कि हर आदमी पुण्य लाभ लेगा, हर आदमी मुक्ति ही पा जाएगा। अधिकांश का तो यही होना होता है कि अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करतें हैं, जीवन भर बेवकूफ़ बनते है और मौत के समय ठगे से रहते हैं।

प्र: पर जैसा आपने थोड़े समय पहले भी कहा था कि जवानी का जो सही निवेश है वो किसी भगत सिंह ने या राजगुरु ने किया था। अब होता ये है कि क्योंकि ये लाभ का पीछा कर रहे हैं, लालच का पीछा कर रहे हैं तो ये जिस तरफ़ अपनी जवानी को इन्वेस्ट करते हैं वो चीज़ें कैसी है कि उदाहरण के तौर पर अभी न अन्तरिक्ष यात्रा का बहुत अच्छा समय चल रहा है, अभी न ब्लॉकचेन का बहुत अच्छा समय चल रहा है।

पर ये जितनी भी चीज़ें हैं इनका कार्बन फ़ुट्प्रिंट (कार्बन पदचिह्न) क्या है, इसका पर्यावरण या समाज पर क्या फ़र्क़ पड़ता है इसकी ओर वो देखते नहीं क्योंकि उनकी सारी जो नज़र है वो सिर्फ़ लाभ के पीछे है। तो ऐसे में मुझे ये भी दिखता है जो जवानी का सही इन्वेस्टमेंट है वो भी…

आचार्य: हाँ, और क्या! जब आपको यही बता दिया गया है और आपने मान लिया है कि पैसे से आप जो कन्ज़म्प्शन करोगे वो ही ज़िन्दगी का चरम सुख है। तो फिर आप उस चरम सुख के सामने किसी भी और बात को अहमियत क्यों दोगे?

‘पृथ्वी में आग लगती है तो लगे, मैं अहमियत नहीं देता। मुझे तो पैसा चाहिए।’ पैसा क्यों चाहिए? ‘क्योंकि मैं उसे कन्ज़्यूम (भोग) करूँगा।’ ये लोग जो हैं जिनकी तुम बात कर रह हो उसे फ़िज़िकली कन्ज़्यूम (शारीरिक रूप से उपभोग) भी नहीं करते वो उसे मेंटली कन्ज़्यूम (मानसिक तौर पर उपभोग) करते हैं कि मेरे अकाउंट (खाते) में इतना है या मेरा इन्वेस्टमेंट अब इतने प्रतिशत पहुँच गया है।

इनका तो जो कन्ज़म्प्शन है वो भी एकदम मेंटल (मानसिक) होता है। वास्तव में फ़िजिकली भी आप उस पैसे से उतना कुछ कर नहीं पाते। या तो पैसा डूब जाएगा या अगर उसका कोई फ़ायदा उठाएगा तो हॉस्पिटल वाले या इनकी औलादें। ये ख़ुद उस पैसे से कोई भौतिक सुख भी नहीं लेने वाले। मेंटल सुख लेते रहते हैं।

इनको यही बता दिया गया है कि ज़िन्दगी है ही इसीलिए कि जो भी मटीरीयल (भौतिक) चीज़ें हैं उनसे प्लेज़र (आनन्द) लेते रहो। इसके अलावा ज़िन्दगी में कुछ रखा नहीं है। और इस तरह की फ़िलॉसॉफ़ी (दर्शन) जिस तरह से पढ़ा दी गयी हो उस बिचारे की ज़िन्दगी बड़ी दयानीय हो जाती है। उसके पास कितना भी पैसा हो, वो बड़ा ग़रीब रहता है।

जिसको ये बता दिया गया है कि कन्ज़म्प्शन इज़ द हाइएस्ट गोल इन लाइफ़ (उपभोग आपके जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है)। इसने क्या कर लिया कि अपनेआप को जानवर बना डाला। जानवर के लिए हाइएस्ट पिलर कन्ज़म्प्शन ही होता है। तुम्हें खाना-पानी मिल जाएगा, या उसको छाँव मिल जाए, या उसको सेक्स मिल जाए। जानवर इससे आगे कुछ माँगता ही नहीं।

अगर इंसान को भी यही बता दिया गया है कि यही है ज़िन्दगी; ख़राब हो गयी ज़िन्दगी, एकदम ख़राब हो गयी ज़िन्दगी। देखो भई, पैसा एक टूल है, एक रीसोर्स (माध्यम) है। अगर तुम्हारे पास ज़िन्दगी में कुछ करने के लिए कोई बढ़िया काम है, कोई ऊँचा लक्ष्य है तो पैसा भी बढ़िया बात है। बल्कि ज़रूरी बात है क्योंकि उस ऊँचे काम को करने के लिए तुम्हें पैसों की ज़रूरत है। ऊँचे काम के लिए जो भी रीसोर्स इस्तेमाल हो रहा होता है वो रीसोर्स भी ऊँचा हो जाता है न के नहीं होता है।

पर जब अपने पास ज़िन्दगी में कुछ करने के लिए कुछ है ही नहीं अपने पास ज़िन्दगी में ऊँचा-से-ऊँचा काम ही पैसा कामना है तो पैसा रीसोर्स नहीं हुआ न अब। पैसा मींज़ (माध्यम) नहीं बना, पैसा पैसा एंड (अन्तिम) बन गया।

अब बस करने को क्या है? आप पैसा किसलिए माँग रहे हो वो आपको नहीं पता। कोई आपसे पूछे, ‘क्या करोगे इस पैसे का?’ वो आपको नहीं पता। आप कोई ऐसे ही उल्टा-पुल्टा सा तो यही जवाब दे दोगे कि पूछ ही लिया है किसी ने तो आप कह दोगे, ‘मैं ये करूँगा, मैं वो करूँगा।’

पहले ये तो देख लो कि जीवन में करने लायक़ काम क्या है, जीवन में पाने लायक़ चीज़ क्या है। फिर उस चीज़ को पाने के लिए अगर पैसे की ज़रूरत हो तो मैं कहता हूँ खूब कमाओ पैसा। लेकिन जब तुम्हें पता ही नहीं कि दुनिया में क्या पाना है, क्या नहीं पाना है तो तुम क्या मूर्खतापूर्वक अपनी पूरी ज़िन्दगी क़ुर्बान कर रहे हो उसी पैसे के पीछे वो भी तब जब तुम्हें ये भी नहीं पता कि पैसा कमाया कैसे जाता है?

हालत देखो। पहली बात, ये भी नहीं पता कि पैसा चाहिए क्यों, फिर भी लगे हुए हैं पैसा कमाने में; और दूसरी बात जिस तरीक़े से पैसा कमा रहे हैं उस तरीक़े का भी कोई ज्ञान नहीं है।

स्टॉक मार्केट से पैसा कमाने निकले हैं स्टॉक मार्केट का कोई ज्ञान नहीं है और वहाँ जाकर के वही पिग्ज़ का स्लॉटर हो रहा है। अपना ही स्लॉटर करवा रहे हो वहाँ पर।

तो ये तो ऐसा है जैसे मूर्खता की कम्पाउंडिंग (चक्रवृद्धि) चल रही हो। लोग को कम्पाउंड इंट्रेस्ट (चक्रवृद्धि ब्याज) बहुत मेस्मेराइज़ (सम्मोहित) करता है न। ’कम्पाउंड इंट्रेस्ट , कम्पाउंड इंट्रेस्ट’! तो यहाँ कम्पाउंडिंग हो रही है मूर्खता की। एम रेज़ टू द पावर एम।

प्र: और मैंने एक चीज़ और देखी है कि वो इस बात में न जब संस्था की तरफ़ से कोई डोनेशन (दान) की अपील जाती है कहा जाता है कि संस्था को संसाधनों की ज़रूरत है आप करें। तो उसे ऐसा लगता है उसे कोई वैलिडेशन (पुष्टि) मिल रहा है, कि देखो जो आध्यात्मिक लोग हैं उनको भी पैसा चाहिए और मैं भी क्या कर रहा हूँ? मैं भी पैसा कमा रहा हूँ तो मैं सही ट्रैक (राह) पर तो हूँ।

आचार्य: हाँ, बिलकुल सही बात है। एंबुलेंस में भी फ़्यूल (ईंधन) डलता है और पेट्रोल बम में भी पेट्रोल डलता है, एक ही तो बात है! एक जगह वो ही फ़्यूल जान बचाने के काम आता है, एक जगह वो ही फ़्यूल जान लेने के काम आता है।

पैसे और पैसे में बहुत अन्तर होता है। संस्था के पास जो पैसा आता है और एक लालची आदमी जो अपनी तिजोरी भर रहा है पैसे से इन दोनों में बहुत अन्तर है। एक तरफ़ जीवन-विरुद्ध काम हो रहा है और दूसरी तरफ़ जीवनदायक काम हो रहा है।

प्र: अब मेरे दिमाग में जो एक सवाल आ रहा है वो यही आ रहा है कि ये जो लोगों के दिमाग में पैसे को लेकर इतना फ़ितूर भर दिया गया है और ये समय के साथ मैं देख रहा हूँ कि और ज़्यादा बड़ा ही होता जा रहा है। इसे बाहर निकलने का क्या तरीक़ा है?

आचार्य: देखो, जो लोग थोड़े से होशियार होते हैं और संवेदनशील होते हैं उनको जब दो-चार बार चोट लगती है उन्हें दिख जाता है कि उनकी दिशा, उनके निर्णय ग़लत हैं। तो वो तलाशते हैं कि कोई और तरीक़ा होना चाहिए ये पैसे की तरफ़ भगना ही सबकुछ नहीं हो सकता। तो वो तो इस तरह से बच जाते हैं। कुछ लेकिन बड़ी मोटी खाल के पशु होते हैं। वो जीवन भर पिटते रहते हैं तब भी उनकी पशुता नहीं जाती। तो ऐसों के लिए बस प्रार्थना ही की जा सकती है।

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