आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
आज की दुनिया में कौन से काम करने लायक हैं? || (2020)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
8 मिनट
288 बार पढ़ा गया

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी! पिछले दो दिनों में मैंने सफलता और व्यवसाय के ही विषय में आपसे जिज्ञासा की। आपको सुन रहा हूँ, गुन रहा हूँ। चाहता हूँ कि जो व्यवसाय करूँ उसमें आपसे सुने वक्तव्यों की सुगंध मौजूद हो। आज की अर्थव्यवस्था को देखते हुए, बाज़ार को मद्देनजर रखते हुए मुझे कौन से एथिक्स (नैतिकताएँ) और प्रिंसिपल्स (सिद्धांतों) को लेकर अपने व्यवसाय में उतरना चाहिए ताकि कुकर्म ना हो, देश, समाज का भला हो और व्यापार में भी समृद्धि मिले?

आचार्य प्रशांत: सबसे पहले तो तुम्हें ये पता होना चाहिए कि कौन से ऐसे काम हैं जो बिलकुल नहीं करने हैं। जो भी काम, जो भी व्यवसाय, जो भी उद्योग, इंडस्ट्री चलती ही आदमी की कमज़ोरी पर हो, फलती-फूलती ही आदमी की पशुता और आदमी की असुरक्षा से हो, उससे दूर रहना है। ऐसे समझ लो कि ऐसे कौन से काम हैं उनकी एक सूची बना लो, जिनमें मुनाफा बढ़ता ही जाता है आदमी जितना गिरता जाता है। उन कामों से सबसे पहले कह दो कि, "माफ करिएगा, आपको स्पर्श नहीं करूँगा।"

बहुत सारे ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें ज़बरदस्त मुनाफा होगा तुम्हें, जितना तुम आदमी को गिरा हुआ पाओगे। आदमी गिरता जाएगा, उन व्यवसायों में मुनाफा बढ़ता जाएगा। वो व्यवसाय फलेंगे-फूलेंगे ही ऐसी जगहों पर जहाँ पर आदमी का मन सबसे ज़्यादा मैला, हिंसक, विकृत हो। उनसे बचना। ऐसी हर जगह से बचना जहाँ डर मुनाफे का कारण बनता हो, जहाँ हिंसा मुनाफे का कारण बनती हो, जहाँ रोग मुनाफे का कारण बनता हो, जहाँ आदमी का लालच मुनाफे का कारण बनता हो। जहाँ आदमी को भ्रमित करके मुनाफा कमाया जाता हो, ऐसे सब उद्योगों से बचना।

तो फिर करें क्या? देखो कि आज दुनिया जहाँ खड़ी है — मैं बाज़ार की बात नहीं कर रहा, मैं दुनिया की बात कर रहा हूँ — आज दुनिया जहाँ खड़ी है वहाँ किस काम की ज़रूरत है। ऐसा काम जिसको करते हुए तुम्हें साफ पता हो कि मुनाफा हो ना हो, ये काम ज़रूरी है, ये काम होना चाहिए।

उस काम का बहुत संभव है कि कोई बाज़ार ना हो। उस काम का बहुत संभव है कि कोई इंडस्ट्री , कोई मार्केट ना हो, लेकिन वो काम ज़रूरी है न, तो तुम करो। और ये यकीन रखो कि अगर वो काम करना ज़रूरी है तो उसमें से तुम्हारे रोटी-कपड़े का इंतजाम हो जाएगा; मकान का मैं नहीं कहता, किराए पर रह लेना। रोटी कपड़े भर का इंतजाम हो जाएगा, तुम सही काम चुनो।

और अगर तुमने सही काम चुना है तो ये भी भरोसा रखो दिल में कि तुम अकेले ही नहीं हो दुनिया में जो सही काम को सही जानते हो। सही काम को सही जानने वाले लोग निश्चित रूप से अल्पमत में हैं, निश्चित रूप से बहुत कम हैं, निश्चित रूप से शून्य-दशमलव-एक प्रतिशत हों शायद लेकिन भाई आठ-सौ करोड़ लोगों का शून्य दशमलव एक प्रतिशत भी बहुत होता है।

तो बहुत हैं जो तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं, बहुत हैं जो चाहते हैं कि कोई आगे बढ़े बीड़ा उठाए और सही काम करके दिखाए। वो तुम्हारा समर्थन करेंगे, वो तुम्हें सहारा देंगे। ऐसा नहीं कि वो पहले ही दिन से बिलकुल तुम्हारे बगल में आ खड़े होंगे लेकिन अगर तुम डटकर काम करोगे, तो इधर से, उधर से बहुत जगहों से तुम्हें मदद अपने-आप मिलेगी।

कोई आवश्यक थोड़े ही है कि सामान बेचो तो ही पैसा मिले। हाँ, तुम कोई ऐसा उत्पाद या ऐसी कोई सेवा ला सकते हो जो सबके काम की है तो उसको ज़रूर बेचो, उसको बेच करके पैसा आ जाएगा। पर मान लो तुम ऐसा काम कर रहे हो जिसका कोई बाज़ार है ही नहीं, जिसका कोई ख़रीदार है ही नहीं - मान लो तुम जानवरों के लिए काम कर रहे हो। अब तुम जानवरों को जो भी सेवा देते हो उसको वो ख़रीद तो नहीं सकते न? तुम सेवा कर रहे हो, सर्विस तो है पर उस सेवा, उस सर्विस के एवज में कोई भी पशु-पक्षी या पेड़ या पौधा तुम्हें पैसे तो नहीं दे सकता। कोई बात नहीं, वहाँ बाज़ार नहीं है तो कहीं और से मदद मिलेगी। मदद करने वाले बहुत हैं। तो ये सोचना छोड़ो कि पैसा कहाँ से आएगा, पैसा आ जाएगा। तुम्हें चाहिए कितना? हाँ, कहो कि तुम्हें पाँच-सौ करोड़ चाहिए, तुम्हें अरबों में चाहिए तो भाई मुझे नहीं पता।

लेकिन अगर तुमको उतना चाहिए जितना एक सरल सामान्य नौजवान को जीवन-यापन के लिए वास्तव में चाहना चाहिए तो वो तुम्हें मिलेगा। ऐसा नहीं होने वाला कि तुम बिना रोटी के पेट पकड़े भूखे मर रहे हो। ऐसा नहीं होने वाला कि तुम फुटपाथ या प्लेटफार्म पर सो रहे हो। एक ठीक-ठाक गरिमामई जीवन बिता लोगे।

भारत देश में हो अभी, वो दिन अब नहीं रहे कि सुबह-सुबह चौराहे पर एक नौजवान की लाश मिली है, लगता है आठ दिन से भूखा था। हालाँकि हमारी आशंकाएँ कुछ इसी तरह की रहती हैं। अंदेशा हमें कुछ ऐसा ही होता है और जो हमारे हितैषी होते हैं, वो हमें डरावने दृश्य भी कुछ इसी तरह के दिखाते हैं — भूखा मरेगा। नहीं, कोई भूखा नहीं मरने वाला, बहुत काम है। तुम अपने सब डरों और संदेहों को परे रखकर सही काम करो।

एक खोजी की तरह, एक छात्र की तरह, एक शोधकर्ता, एक वैज्ञानिक की तरह अपने-आपसे पूछो; एक जागरूक व्यक्ति की तरह अपने आप से पूछो कि, "बस काम जानना है, कौन सा काम है जिसकी आज दुनिया को ज़रूरत है?" और फिर डूब पड़ो उस काम में। पैसा कहाँ से आएगा? कैसे आएगा? उसका प्रबंध हो जाएगा। काम अगर तुम सही कर रहे हो तो पैसा आ जाएगा।

तुम दूसरों की ज़िम्मेदारी लो, कोई और है जो तुम्हारी ज़िम्मेदारी ले लेगा। तुम सच की परवाह कर लो, सच तुम्हारी परवाह कर लेगा। पर काम तो सही करो न।

और बहुत योजना मत बनाओ, भविष्य के बारे में बहुत सोचो मत कि ऐसा करूँगा, फिर वैसा करूँगा, फिर वैसा करूँगा। एक-एक, दो-दो कदम आगे बढ़ो। आगे की सोचनी भी है तो थोड़ा सा आगे की सोच लो। उसके आगे जो होना है, वो वैसे भी तुम्हारे बस में नहीं है। आदमी की सब योजनाएँ कचरे के डब्बे में ही जानी हैं। थोड़ा-थोड़ा सोचो, आगे बढ़ते रहो, लालच के ग़ुलाम मत बनो, सही काम करने पर ध्यान दो।

आवश्यकताएँ अपनी कम रखो, खर्चे अपने कम रखो अगर आज़ादीपूर्वक सही काम का चयन करना चाहते हो। ज़्यादातर लोग जो घटिया कामों में फँसे हैं और अब बाहर आ भी नहीं सकते, उनकी मजबूरी ये है कि उन्होंनें अपने खर्चे बहुत बढ़ा लिए हैं। और उन्होंने अपने खर्चे ऐसे नहीं बढ़ा लिए हैं कि इस महीने बड़ा खर्चा आ गया है। उन्होंने खर्चों का पूरा एक ढाँचा, एक महल तैयार कर लिया है। उन्होंने खर्चों की पूरी एक रेल तैयार कर ली है जो हर महीने गुज़रती है। वो हर महीने विवश हो गए हैं बहुत बड़े-बड़े खर्चे करने के लिए। उन्होंने तयशुदा चीज़ें बाँध ली हैं — इस चीज़ का बिल, इस चीज़ का बिल, इस चीज़ की किस्त, इस चीज़ का किराया। ये सब मत कर लेना। घर में हाथी मत बाँध बैठना, ना हथिनी। बात समझ लो।

ज़िंदगी में कोई सही काम करना हो तो खर्चे वाले गठबंधनों से बचना। ये नहीं कि ना अभी कोई ठौर, ना ठिकाना, ज़िंदगी को ना परखा, ना जाना और सबसे पहले बड़े-बड़े खर्चे खड़े कर लिए — हाँ जी, हमारा थ्री बी.एच.के है तो इतना तो किराया जाना ही है। दो बच्चे हैं, इतनी तो उनके स्कूल की फीस जानी ही है।

ये सब तुम अगर जल्दी से करने को उतावले हो, तो फिर भूल जाओ कि सच्चा जीवन जीना है। फिर तुम यही सब कर लो। जो ये कर रहा है फिर उसको महीने में हज़ारों नहीं, फिर लाखों चाहिए होते हैं। और जिसको अनिवार्य रूप से महीने में लाखों चाहिए वो कर चुका जीवन में कोई सच्चा काम, कोई क्रांतिकारी काम, कोई ढंग का काम। वो तो अब मजबूर हो जाएगा हर घटिया काम करने को क्योंकि उसका जीवन ही अब भोग केंद्रित हो चुका है।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें