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लेख
पशुबलि का सच || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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एक बेज़ुबान निरीह को पकड़ कर काट दिया, उसका माँस पका कर खा गए – इससे कौन-सी परम सत्ता आपको आशीर्वाद देने वाली है, बताइए ज़रा? इससे आसमानों से फूल बरसेंगे आप पर? क्या तुक है!

जब बात की जाती है पशु बलि की, तो वास्तव में कहा जाता है कि "अपनी पशुता को मारो।" किसी पशु को मारने की बात नहीं हो रही है, अपने भीतर की पशुता को मारने की बात हो रही है।

तुम्हारे भीतर है एक घोड़ा, वह तड़बक-तड़बक दौड़ता है सब दिशाओं में। वह पहुँचता कहीं नहीं पर दौड़ता बहुत ज़ोर से है। उसी के लिए एक साफ़-सुथरा नाम है – मन। भीतर के इस घोड़े की बलि देनी है। अन्यथा घोड़ा मार करके... थोड़ा तो बुद्धि का इस्तेमाल करो! ऐसे तो स्वर्ग में सबसे ज़्यादा वही लोग भरे होंगे, जिन्होंने दिन-रात मच्छर मारे हैं।

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