Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
राजसिक आदमी का दुख || आचार्य प्रशांत, उद्धव गीता पर (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
1 min
104 reads

अविवेकी जीव के मन में, ‘मैं’ और ‘मेरे’ का विचार उठता है, फिर रजस मन पर छा जाती है, उस मन पर जो वास्तव में, मौलिक रूप से सात्विक है।

~ उद्भव गीता, अध्याय १८, श्लोक ९

प्रसंग:

  • रज का क्या अर्थ होता है?
  • अविवेकी आदमी "मै" का भाव क्यों रखता है?
  • राजसिक आदमी कौन है?
  • क्या पूरी दुनिया रज है?
  • तमस का क्या अर्थ होता है?
  • तमस से मुक्ति कैसे?
  • सात्विक का मतलब क्या है?
  • सात्विक कैसे पाये?
  • रजस का मतलब क्या होता है?
  • तमस मन से सात्विक की ओर कैसे जाया जा सकता है?
  • क्या गुरु ही तीनो गुणों से आजादी दिला सकता है
  • प्रकृति में कितने गुण होते है?
  • त्याग के तीन प्रकार क्या होते हैं?

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles