Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
बातूनी मन को चुप कैसे कराएँ? || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
6 min
740 reads

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मौन साधना क्या है? इसमें क्या अड़चनें हैं? और मौन साधक का जीवन कैसा होना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: मौन साधना कोई विशिष्ट साधना नहीं होती, साधना ही मौन साधना है। मन बातूनी है, बक-बक, वाचाल। मन की ही बातचीत जीवन में निरर्थक कर्मों के रूप में परिलक्षित होती है। जो कुछ भी तुम कर रहे होते हो, पहले वो प्रकट होता है मन में विचार के रूप में, या वृत्ति के रूप में, एक लहर, एक संवेग के रूप में। वही है मन की बक-बक।

मौन साधना का अर्थ है ये समझना कि बातचीत करने के लिए दो चाहिए। दूसरा न मिले तो पहला बहुत देर तक नहीं बोल पाएगा। दीवारों से कितनी देर तक बात करोगे भाई? मन बक-बक करना चाहता है, तुम उसकी बक-बक में सहभागी न बनो, तुम उत्तर न दो तो मन की बक-बक बहुत दूर तक नहीं जाएगी। मन ने कुछ बोला और तुमनें कहा, 'बात ठीक है’, तो भी तुम मन के सहयोगी हो गये। और मन ने कुछ बोला और तुमनें कहा, 'बात ठीक नहीं है', तो भी तुम बातचीत में प्रतिभागी हो गये।

मौन साधना का अर्थ होता है — मन को बोलने दो, तुम अपना काम करो, तुम्हारे पास बहुत काम हैं।

मन का काम है स्वयं बोलते रहना। मन इन्द्रियों का ग़ुलाम है, प्रकृति का ग़ुलाम है, शरीर की वृत्तियों का ग़ुलाम है। तुम्हारा काम है किसी और को बोलने देना, जान लगा देना उसको ढूँढने में जिसका बोल तुम्हें खींचें ले रहा है, जिसकी आवाज़ से तुम्हें प्यार है।

तुम्हारा काम अति कठिन है, तुम गपशप में कैसे तल्लीन हो गये? कि जैसे तुम्हें प्यार हो गया हो और एक तुम्हारा दोस्त है जिसको प्यार का ‘प’ नहीं पता। जिससे तुम्हें प्यार है वो कहीं गुम है, उसकी छवि भर दिखाई देती है, हल्की-हल्की उसकी आवाज़ भर आती है। अब तुम्हारा यार चाय-पकोड़े लेकर के बैठा हुआ है, और दुनिया भर की बकवास, वाचा-रंभण। वो करे तो करे, तुम कैसे करने लग गये? उसकी ज़िन्दगी रूखी है, सूनी है। उसके लिए चाय-पकोड़े से ऊपर कुछ है ही नहीं। तुम्हारे पास प्रेम है, तुम चाय-पकोड़े के साथ क्या कर रहे हो?

और मन की सारी बातचीत चाय-पकोड़े के तल से ऊपर की होती है क्या? कहीं की चाय, कहीं की कॉफ़ी, किसी का पकोड़ा, किसी का हथोड़ा, यही तो चलता है मन में, और भी कुछ चलता है क्या? कहीं पकड़ा, कहीं जोड़ा, यही चलता है न? ये काम उसको करने दो जिसके पास इस काम से अलग, इस काम से बेहतर कुछ है ही नहीं।

तुम्हारे पास प्रेम है, तुम अपना काम करो। वो जो बक-बक कर रहा है, कितनी देर तक करेगा, जब तुम निकल गये? तुम चुप, तो वो भी चुप। वो बोल ही इतना इसलिए पाता है, क्योंकि तुम अपना काम-धंधा छोड़कर उसकी बातचीत में शामिल हो जाते हो। नहीं तो वो बोलेगा थोड़ा-बहुत, उसके बाद उसे चुप होना पड़ेगा।

देखा है, जीवन में जब भी कोई आकस्मिकता आती है, कुछ बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, तुरन्त तुम्हारा ध्यान खिंचता है, तो मन की बातचीत एकदम रुक जाती है, देखा है? तब क्या बचता है? सार्थक, सशक्त कर्म। सार्थक, सशक्त, एकनिष्ठ, एकाग्र कर्म। अब दुनिया भर की गॉसिप नहीं कर सकते तुम, क्योंकि जीवन में कुछ ऐसा आ गया है जो अति महत्वपूर्ण है, इमरजेंसी (आपात स्थिति) है, एक आकस्मिकता है। आ गया न, अब बैठकर के क्या चाय पकौड़े करोगे? नहीं करते न? खेद की बात ये है कि हमें बस कभी-कभी पता चलता है कि जीवन में इमरजेंसी लगी हुई है। सच्चाई की बात ये है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन एक अनवरत इमरजेंसी है। इमरजेंसी का अर्थ क्या होता है? कि अभी कुछ करो नहीं तो बड़ा नुक़सान हो जाएगा, इसी का नाम होता है न। आकस्मिक आपदा इसी को बोलते हैं न, अभी कुछ करो, नहीं तो बड़ा नुक़सान हो जाएगा। ये पल लौटकर के आएगा?

इसी को इमरजेंसी कहते हैं। अभी कुछ करो नहीं तो गया, मृत्यु हो गयी। जहाँ मौत का ख़तरा हो, उसी को तो अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड भी कहते हैं। लगातार मौत का ख़तरा किसको बना हुआ है? ये जो बीत रहा है पल। अगर तुमने इसका सार्थक उपयोग नहीं किया, तो ये गया। और ये मौत ऐसी है कि अन्तिम। वो बीता पल लौटेगा नहीं, उसका कोई पुनर्जन्म नहीं है। ये बात तुम्हें अगर लगातार याद रहे तो तुम गॉसिप कर कैसे लोगे? कैसे कर लोगे, बोलो?

तो दोनों बातें मैंने कही, या तो प्रेम हो तो गॉसिप नहीं होगी, या इमरजेंसी हो तो भी गॉसिप नहीं होगी। हमारा न तो दिल ऐसा है कि प्यार से भरा हुआ हो, न हमारा ज्ञान ऐसा है कि हमें साफ़-साफ़ दिखाई दे कि सिर पर तलवार लटक रही है, किसी भी क्षण बुलावा आ सकता है। और वो आख़िरी बुलावा नहीं भी आये, तो भी ये बीतता पल कभी नहीं लौटेगा।

हम न प्रेमी हैं न ज्ञानी हैं, हम सिर्फ़ बातूनी हैं, तो बक-बक, बक-बक लगी रहती है। प्रेम साधना कर लो, चाहे ज्ञान साधना कर लो, दोनों ही मौन साधना हैं। दोनों ही तुम्हें मन की वाचालता से मुक्ति दिलाते हैं। प्रेमी को चुप लग जाती है और ज्ञानी मूक हो जाता है। प्रेमी बोल उठे तो गीत कहलाता है और ज्ञानी कुछ कह दे तो श्लोक बन जाता है, पर बकवास दोनों ही नहीं करते। प्रेमी जब बोलेगा तो भजन बहेंगे। ज्ञानी जब बोलेगा तो ऋचाएँ बहेंगी। बकवास दोनों ही नहीं करते। हम न प्रेमी हैं न ज्ञानी हैं, तो हमारे मुँह से न तो भजन बहते हैं न ऋचाएँ बहती हैं, सिर्फ़ मल बहता है।

जीवन में कुछ ऐसा ले आइए जो प्राणों से प्यारा हो, मौन लग जाएगा। या सजग हो जाइए बीतते, छूटते, निरर्थक जीवन के प्रति, तो भी मौन लग जाएगा। और वो मौन सिर्फ़ होठों का नहीं होगा, ज़बान का नहीं होगा, वो मौन आन्तरिक होता है, वास्तविक।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles