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लेख
इस बंदे को रोक कर दिखाओ || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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जो आदमी साहस के साथ अपने लिए एक सही लक्ष्य, सही काम, सही अभियान खोज लेता है, वो आदमी फिर बहुत मुश्किल से रुकता है। रुकेगा भी तो, पल-दो-पल को रुकेगा, हफ्ते-दो-हफ्ते को रुकेगा, महीने-दो-महीने को रुकेगा। वो कमर कस कर फिर आगे बढ़ जाएगा। हो सकता है वो आगे बढ़ रहा हो, फिर गिर जाए, एक बार गिरे, पाँच बार गिरे, हो सकता है गिर जाए, चोट लग जाए, कुछ समय तक गिरा पड़ा रहे। लेकिन वो धूल झाड़ कर फिर खड़ा हो जाएगा और फिर आगे बढ़ेगा।

कुछ ऐसा चुनो अपने लिए जिसको जीवन भर बहुत रस के साथ, बहुत मौज, बड़े आनंद के साथ कर सको। सफलता मिले, असफलता मिले, पैसा मिले, पैसा ना मिले। तुमको पैसा नहीं भी मिल रहा तो भी काम इतना मस्त है कि हम करे ही जाएँगे। पैसा चाहिए किसको? बिना पैसे के भी काम हो जाएगा। बहुत कम पैसे में भी काम हो जाएगा। अब कैसे असफल हो सकते हो तुम? अगर तुमको हार में भी जीत दिख रही है तो तुमको हरा कौन सकता है फिर?

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