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लेख
शक्की बनो, लंबा जियो || आचार्य प्रशांत (2020)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत: आनन्द फ़िल्म में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन की जो आपसी नोंक-झोंक होती थी वो बड़ी दिलचस्प थी, कि ज़िन्दगी तुमको बड़ी चाहिए कि लम्बी चाहिए? ‘बाबूमोशाय, ज़िंदगी बड़ी चाहिए या लम्बी चाहिए?’

लम्बी चाहिए तो ख़ूब नकारात्मकता से भरे रहो, जितना तुम शक्की रहोगे, प्रकृति ने संयोग ऐसा बैठाया है कि तुम्हें उतनी तरक्की मिलेगी, ज़बरदस्त तरीके की तरक्की मिलेगी!

लेकिन जितना शक्की रहोगे, जीवन की गुणवत्ता, क्वालिटी ऑफ लाइफ़ उतनी बुरी रहेगी। तुम देख लो कि तुमको आनन्द के पचास साल चाहिए या शक़, सन्देह, संशय से भरे हुए सौ साल। ये तो चुनाव है जो हर व्यक्ति को करना ही पड़ेगा।

शक़ में सुरक्षा है, आनन्द में एक असुरक्षित मौज है, अब तुम बता दो कि तुमको सुरक्षित वेदना चाहिए या असुरक्षित मौज चाहिए, जो तुम्हें चाहिए हो ले लो।

लेकिन ये समझ लेना कि शक़ करना या निराशा से भरे रहना या आशंकाओं से घिरे रहना व्यर्थ नहीं होता, प्रकृति में उसकी उपयोगिता है — तुम्हारे शरीर को बचाये रखने में उसकी उपयोगिता है — इसीलिए इस तरह की वृत्तियाँ इतनी ज़्यादा व्यापक पायी जाती हैं।

जिस आदमी को देखो वही आशंकित है, डरा हुआ है, सन्देह से भरा हुआ है। कोई वजह होगी न कि हर आदमी की यही हालत है।

हर आदमी की हालत इसलिए है क्योंकि हमारे जीन्स (वंशाणु) ऐसे हैं, अब तुम देख लो कि तुमको बोध पर चलना है या जीन्स पर चलना है।

जीन्स पर चलोगे तो लम्बा जियोगे बेटा! बोध पर चलोगे तो कुछ पता नहीं कितना जिओगे, कुछ पता नहीं रूपया-पैसा कितना कमाओगे, कुछ पता नहीं कि सामाजिक सम्मान कितना मिलेगा, कुछ पता नहीं जगत की दृष्टि में कितने सफल और कितने सबल कहलाओगे, पर मौज आएगी।

अब मौज का कोई विज्ञापन क्या बताये तुमको। जिनको पसन्द होती है वो उसके लिए जान देने को तैयार हो जाते हैं, जिनको मौज पसन्द नहीं होती, उनके मन में ज़बरदस्ती थोड़े ही प्रेम जगाया जा सकता है कि ‘मौज बड़ी बात है! मौज बड़ी बात है!’

जिन्हें मौज पसन्द होती है उनके सामने तुम लाख बोलो, ‘भेड़िया आया! भेड़िया आया!’ वो कहेंगे:-

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोय। अनहोनी होनी नही, होनी होय सो होय।।

आता होगा भेड़िया और ऐसा नहीं कि भेड़िया नहीं आएगा, ऐसा नहीं कि राम भेड़िये को रोक लेंगे। कहेंगे, ‘देखो, मेरा तुलसी सो रहा है भेड़िये, इसके पास मत जाना।’ ये मतलब नहीं है।

मतलब ये है कि जब आएगा भेड़िया तब आएगा, जब तक नहीं आ रहा तब तक काहे को परेशान होते रहें। मरना तो एक दिन है ही, सब कतार में लगे हुए हैं। क्या रातों की नींद ख़राब करते रहें, क्या परेशान होते रहें कि कहीं इधर से दुश्मन न आ जाये, कहीं उधर से ख़तरा ना आ जाये, कहीं यहाँ नुकसान न हो जाये, अब आएगा तो आएगा।

ये बिल्कुल मत सोच लेना कि राम के भरोसे हैं तुलसी, तो राम खड़े हुए हैं धनुष-बाण लेकर और ज्योंही भेड़िया आ रहा है उसे फ़ट्ट से तीर मार देते हैं, ये सब कुछ नहीं।

राम का आशीर्वाद ये नहीं है कि वो धनुष-बाण लेकर के तुम्हारी सुरक्षा के लिए खड़े हो जाएँगे। राम का आशीर्वाद ये है कि तुम्हारे मन से भेड़िये का डर निकल जाएगा। आएगा तो आएगा।

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