आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
समय से दोस्ती || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
13 मिनट
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श्रोता १ : क्या कोई ऐसा लक्ष्य हो सकता है, जिसका पहले से कोई पता ना हो?

वक्ता : जो बाहर से लक्ष्य आयेगा, वो और कुछ नहीं होगा, पास्ट की पुनरावृति होगी। तुम्हारा सवाल है कि क्या कोई ऐसा लक्ष्य हो सकता है, जिसका पहले से ही पता नहीं है? जो हमारे अतीत के अनुभवों में शामिल नहीं है? बिलकुल ठीक कह रहा है। जो भी लक्ष्य बाहर से आयेगा, वो अतीत के अनुभवों से ही आयेगा। और वो होगा अतीत का, पर भविष्य के बारे में। जो लक्ष्य अपना होता है, वो लक्ष्य जैसा लगता ही नहीं। वो एक नॉन-टारगेट टारगेट होता है। वो टारगेट होता ही नहीं। ध्यान देना, जो अपना होता है, वो कभी अतीत से नहीं आता। उदाहरण के लिए, अभीमैं तुम्हें जवाब दे रहा हूँ; तुमने जो सवाल पूछा, ये सवाल मुझसे कुछ नहीं तो शायद ६० -७० बार पहले भी पूछा जा चूका है। मेरे लिए बहुत आसन होगा कि मैनें इसका कल जो जवाब दिया था, परसों जो दिया था, पिछले हफ्ते जो दिया था, वही उठा कर तुम्हें परोस दूँ। पर अगर मैं वो करूँगा तो अन्याय करूँगा। अभी जो बोल रहा हूँ, उसे ताज़ा ही होना पड़ेगा। अभी भी मेरे एक लक्ष्य की पूर्ति हो रही है लेकिन वो अतीत से नहीं आ रहा। क्योंकि जो बोल रहा हूँ, वो अभी है। हाँ, अगर मैं कुछ भविष्य की सोचूंगा तो निश्चित वो अतीत से आयेगा।

एक चीज़ नोट कर लें हम: एनी इमेजिनेशन ऑफ़ द फ्यूचर ऑलवेज कम्स फ्रॉम द पास्ट| हेन्स एनी टारगेट ऑफ़ द फ्यूचर विल आल्सो बी अ रेपेटिशन ऑफ़ द पास्ट| द ओनली न्यू एंड फ्रेश एक्सपीरियंस इज़ दैट इन द प्रेजेंट मोमेंट| हेन्स ऑल टारगेट्स ऑफ़ योर ओन,विल ऑलवेज बी अबाउट द प्रेजेंट ओनली’ |

तुमने जो बात पूछी है, वो है बहुत कीमती। वो ये कह रहा है कि एक लक्ष्य मान लीजिये हटा दिया, कोई दूसरा बनायेंगे। पर जो भी दूसरा बनाऊँगा वो किसी ना किसी पुरानी सोच से ही तो बनाऊँगा! जिसके बारे में मुझे पहले ही पता है, जिसके बारे में मुझे पहले ही अनुभव है, जो मेरे अतीत में शामिल है। बात बिलकुल ठीक है। तुम जब भी लक्ष्य बनाओगे, तो अतीत के प्रभाव में ही बनाओगे और उस लक्ष्य का कोई ख़ास महत्व होगा नहीं। लक्ष्य बनाना नहीं है , होश में रहना है । हमने कहा है, होश में रहना है और इस होश के फलस्वरूप स्पोंटेनियेस, अपनेआप आदमी आगे बढ़ता है। लक्ष्य बनाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। तब, जो अपना टारगेट होगा, वो एक प्रकार से नॉन-टारगेट होगा। वो इतने करीब का होगा कि अभी करना है बस। समझ रहे हो इस बात को?

श्रोता १ : यस सर।

वक्ता : ‘लिव लाइफ इन दिस मोमेंट’| मैं चाहता तो इस बात को सीधे-सीधे इस तरह भी बोल सकता था कि लक्ष्य बनाओ ही मत। पर जब मैं ये बोलता हूँ तो तुमलोग डर जाते हो। ये लो… लक्ष्य ही नहीं होगा तो हम कुछ करेंगे ही क्यों? अगर टारगेट ही नहीं होगा तो हम आगे कैसे बढ़ेंगे? तो फिर इसलिए कहना पड़ता है, अपना लक्ष्य बनाओ और अपना लक्ष्य ‘प्रेजेंट मोमेंट’ का हो। बात लेकिन यही कही जा रही है कि तुम जो भी टारगेट बनाते हो वो अतीत की पुनरावृत्ति, एक रेपेटिशन ही तो होते हैं। वो टारगेट्स तुम्हें कुछ ख़ास दे नहीं सकते।

श्रोता २ : सर अतीत तो भूलता ही नहीं तो फिर प्रेजेंट में कैसे रहे?

वक्ता : अच्छा सवाल है। ये कह रहा है कि सर आप बात तो कर रहे हैं प्रेजेंट में रहने की लेकिन ये जो अतीत है भूलता ही नहीं। अतीत तो भुलाना है भी नहीं। अतीत बहुत कीमती है, इनफार्मेशन की तरह। इस बात को सब ध्यान से समझें। जिनका अतीत भूल जाता है, वो तो वैसे हो जाते हैं जैसे ग़जनी।

(सारे मुस्कुराते हैं)

वक्ता : बड़ी दिक्कत हो जायेगी। हम बात ही नहीं कर पायेंगे; ये भी तो अतीत से आ रही है। तुम बैठना भूल जाओगे, अचानक खड़े होगे और निकल पड़ोगे कहीं इधर-उधर। अतीत भुलाने के लिये नहीं है। अतीत ऐसा ही जैसे कि ये माइक है। जब मैं चाहता था, मैंने इसका इस्तेमाल किया और ज़रूरत नहीं रही तो मैंने इसको लाकर यहाँ रख दिया। ये उपलब्ध है मुझे, लेकिन कोई कम्पल्शन नहीं है कि इस्तेमाल करता ही रहूँ। उचित हुआ तो इसको कॉल कर लिया और जब ज़रूरत नहीं हुई तो इसको छोड़ दिया। इसी तरीके से इस ब्रेन में जो डेटाबेस मौज़ूद है, पास्ट का;इस पुरे डेटाबेस को जब कॉल करने की ज़रूरत है, कॉल कर लो और जब ज़रूरत नहीं है तब छेड़ो ही मत। उसको अपना मालिक नहीं बनने दो। अब मेरी हालत ऐसी हो जाये कि मैं इस माइक को चिपका ही लूँ अपनेआप से कि ये तो मेरा प्यारा अतीत है;इसे मैं छोड़ कैसे दूँ और इतना मुझे इससे इतनामोह जाये कि मैं अपना हार्ट ट्रांसप्लांट करवा कर इस माइक को अपने अन्दर ही फिट करवा लूँ। तो तब समझ लो कि मैं बीमार हो गया। अब ये आदमी मेंटली सिक है, पागल ही हो गया है। ये अवेलेबल है, तो जब इसकी ज़रूरत पड़ी, इसका इस्तेमाल किया और ज़रूरत नहीं है तो छोड़ दिया। फिर जब ज़रूरत पड़ेगी तो फिर इस्तेमाल कर लेंगें। ये हमेशा अवेलेबल है। जैसे ब्रेन में हमेशा मेमोरीज अवेलेबल है। एक स्वस्थ आदमी जब उनकी ज़रूरत पड़ती है, उनको बुला लेता है और जब इनको इस्तेमाल नहीं करना होता तब इनको अपने ऊपर छाने नहीं देता है। अंतर समझ में आ रहा है? एक अस्वस्थ आदमी क्या करता है कि वो बैठा यहाँ रहता है और मेमोरीज को अपने से चिपका रखता है। तो बैठा यहाँ पर है लेकिन मन उसका स्मृतियों में घूम रहा है। बैठा यहाँ पर है और याद कर रहा है कि आज सुबह क्या हुआ था और परसों क्या हुआ था? और पास्ट से ही फ्यूचर निकल कर आता है। तो जहाँ उसने ये सोचा कि सुबह क्या हुआ था, ये भी सोचेगा कि शाम में क्या करना है। उसका मन लगातार पास्ट और फ्यूचर में घूमता रहता है। वो अब अपनी मेमोरीज का ग़ुलाम हो गया है।

पास्ट को डिलीट नहीं करना है, उसे रखे रहना है, बस इस्तेमाल के लिये। कि जब मर्ज़ी होगी इस्तेमाल कर लेंगें और जब मर्ज़ी नहीं होगी तो छोड़ देंगे| बिल्कुलखुले होके घूमेंगे|अतीत के ग़ुलाम नहीं बन जायेंगे। कम्पलसरी अटैचमेंट नहीं है अतीत से कि हमेशा अतीत की ही सोच रहे हैं, उससे चिपके हुए हैं।

श्रोता ३ : सर, ये होगा कैसे?

वक्ता : होगा कैसे क्या …. , ये रहा अतीत और ये रहे तुम…., छोड़ दो! तुम पहले भी मुझसे मिल चुके हो और मैं भी तुमसे पहले मिल चूका हूँ। तो तुम्हें वाकई ऐसा लगता है कि मैं याद कर रहा हूँ कि पिछली बार मैंने तुमसे क्या कहा था? ये रहा प्रमाण, अभी, सामने।

श्रोता ३ : लेकिन सर जब मैंने आपको देखा तो ध्यान आ गया कि पहले भी आप से मिल चूका हूँ।

वक्ता : तो गड़बड़ हो रही है। क्योंकि इसी हॉल में मैं पाँच बैचेज से बात कर चूका हूँ। पर तुम्हें क्या लगता है कि इस वक़्त मैं ये याद कर रहा हूँ कि पिछले पाँच बैचेज से क्या बात की थी? ठीक उसी कुर्सीपर बैठेहुए, ये सोच रहा हूँ कि हाँ, यहाँ पहले भी आ चूका हूँ और मैं अपना पुराना एल्बम निकाल-निकाल कर देख रहा हूँ? औरों को याद भी दिलाऊँ कि पता है, मैं यहाँ पहले भी बैठ चूका हूँ? जैसे कि तुम करते हो कि जब कश्मीर गये हुए हो और जैसे ही हाउसबोट दिखी….*पता है ,* *पिछली बार आया था तो उस हाउसबोट पर रुका था*। और मैं भी ऐसे ही करने लगूँ कि *पता है, पता है ,* *पिछले बार आया था तो इस कुर्सी पर बैठा था। पता है, पिछले बार वहाँ जो स्टूडेंट बैठा था, उसे बड़े जोर की डांट लगाई थी। इस बार कौन बैठा है वहाँ ?* *चलो इसको भी डांट लगाते हैं।*

(सारे मुस्कुराते हैं)

वक्ता : अब क्या हालत होगी? यही ना कि पिछली बार जो वहाँ बैठा था वो बेवक़ूफ़ था तो इस बार भी वहाँ जो बैठा है, वो बेवक़ूफ़ ही होगा। याद सब कुछ है मुझे पर फिलहाल मैं उस याद का कोई इस्तेमाल नहीं कर रहा, वो मेरे हाथ में है। याद है पर उस याद का इस्तेमाल किया जाये वो ज़रूरी नहीं ना? और अगर मैं इस वक़्त उसको याद करने लगूँगा तो अभी मैं तुमसे कुछ बोल नहीं पाऊँगा। मैं इस मोमेंट का सत्यानाश कर दूँगा। तुम में से कुछ लोग ध्यान से सुन रहे हैं मुझे?

(कई एक साथ) : यस सर।

वक्ता : तो ठीक-ठीक बताओ कि अभी तुलना कर रहे, पिछली बार जो बोला था उससे?

(सभी एक साथ) : नो सर।

वक्ता : और अगर ये तुलना करने लग जायें तो सुन नहीं पायेंगे। जो लोग तुलना करेंगे वो सुन नहीं पायेंगे। दो एक्सट्रीम हैं। एक एक्सट्रीम है कि पास्ट को डिलीट करने की कोशिश, जो तुम वैसे भी कर नहीं पाओगे। कौन मेमोरीज को डिलीट कर सकता है ? दूसरी एक्सट्रीम है , मेमोरी से चिपके रहो। मैं किसी तीसरी चीज़ की बात कर रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ , ना डिलीट करना है और ना चिपके रहना है ; जब ज़रूरत हुई तो कॉल कर लेना है और जब ज़रूरत नहीं हुई तब छोड़ देना है।

ठीक है? अभी तक जो कहा कितने लोगों को समझ में आया है?

(बहुत सारे हाथ हवा में उठ जाते हैं)

वक्ता : अच्छी बात है।

श्रोता ४ : हम समय से दोस्ती कैसे कर सकते हैं?

वक्ता : बहुत बढ़िया सवाल है। कभी-कभी तो होता है, जब कोई ऐसा सवाल पूछता है जो सुनकर ये नहीं लगता कि इसे सैकड़ों बार सुन चुके हो। तब अच्छा लगता है।

समय क्या है?

श्रोता ५ : प्रेजेंट।

वक्ता : ना। क्योंकि प्रेजेंट का तो जब तक तुम नाम लेते हो वो क्या बन जाता है?

(कई एक साथ) : पास्ट।

वक्ता : तो समय निश्चित रुप से क्या है? पास्ट और फ्यूचर। प्रेजेंट समय से बाहर होता है। प्रेजेंट तो जीवन है। समय में सिर्फ पास्ट और फ्यूचर आता है। सवाल था कि समय से दोस्ती कैसे कर सकते हैं। पास्ट से दोस्ती का मतलब ये है कि पास्ट मेरे ऊपर हावी नहीं हो रहा, दुश्मन की तरह। वो राक्षस नहीं है मेरे लिये। मुझे मेरी स्मृतियों से डर नहीं लगता और ना ही मुझे उन स्मृतियों से गहरा जुड़ाव है। मुझे पता है कि वो स्मृतियाँ हैं। मुझे भविष्य से भी डर नहीं लगता कि मेरा क्या होगा । बेरोज़गारी आ जायेगी, फेल हो जाऊँगा! और ना ही मैं भविष्य के सपने ले रहा हूँ कि मैं बड़ी ऊँची उड़ान उडूँगा, मेरा बड़ा घर होगा, गाड़ी होगी! समय से दोस्ती का मतलब है, भूत और भविष्य से स्वस्थ सम्बन्ध। समय है- ‘भूत और भविष्य’ और समय से दोस्ती का मतलब है- भूत और भविष्य से स्वस्थ सम्बन्ध । और अब तुम सब मुझे बताओगे कि भूत और भविष्य से अस्वस्थ सम्बन्ध, अन्हेल्दी रिलेशनशिप क्या होती है?

श्रोता ५ : उनसे चिपके रहना।

वक्ता : सही। लेकिन याद रखना कि इसका विपरीत भी अन्हेल्दी है। कुछ लोग भुलाने की कोशिश करते हैं। कुछ लोगों का अतीत दुःख से इतना भरा होता है कि ये लगातार कोशिश करते रहते हैं कि मैं इसको मिटा दूँ, भुला दूँ। ये भी अन्हेल्दी है। चिपके रहना भी अन्हेल्दी है और उससे दूर भागना भी अन्हेल्दी है। पास्ट और फ्यूचर से एक स्वस्थ सम्बन्ध है कि जब मुझे तुम्हारी ज़रूरत होगी, बुला लूँगा और नहीं पड़ी ज़रूरत तो कोई मतलब ही नहीं है। घर जाना है होली पर, ट्रेन का रिजर्वेशन कराना है; बात फ्यूचर की है ना? तो फ्यूचर को मन में आने देंगे और रिजर्वेशन करा लेंगे। और अब जब रिजर्वेशन हो गया, तो उसके बाद के सपने कि *मैं अब ट्रेन में हूँ ,* *मैं सीट पर बैठ गया हूँ ,* बगल में दूसरे कॉलेज की एक लड़की भी बैठी है …..

(सभी हँसते हैं)

वक्ता : ये अन्हेल्दी रिलेशन है। ये फ्यूचर के साथ अन्हेल्दी रिलेशनशिप है। हेल्दी बस यही है कि होली आ रही है तो रिजर्वेशन करवा लिया; टिकट आ गया और उसे रख दिया। अब जिस दिन का टिकट है उस दिन जायेंगे, टिकट उठायेंगे, ट्रेन में बैठ जायेंगे; घर आएगा तो उतर जायेंगे। बात खत्म। अन्हेल्दी रिलेशन तो तुम समझ ही गये हो कि बैठे यहाँहैं और हिचकोले ट्रेन के ले रहे हैं।

(सारे मुस्कुराते हैं)

वक्ता : बात आ रही समझ में? हेल्दी रिलेशन ये है कि कल एग्जाम है तो देख लिया कि टाइम-टेबल क्या है, सेंटर कहाँ है एग्जाम का, कितने बजे पहुँचना है और बस हो गया। अन्हेल्दी रिलेशनशिप क्या है? *हे भगवान ,* *कल क्या होगा ;* *पेपर में क्या आ जायेगा ;* *मुझे कुछ आता नहीं है ;* *पिछली बार जो पेपर हुआ था तो फेल हो गया था ;* *इस सेंटर पर पहले भी एग्जाम दे चूका हूँ ,* बड़ा ही मनहूस सेंटर है। ये अन्हेल्दी रिलेशनशिप है।

समय से दोस्ती का अर्थ है, समय से एक सम्यक सम्बन्ध बनाना, एक उचित सम्बन्ध बनाना। उचित सम्बन्ध वो होता है जो ना इस एक्सट्रीम पर होता है ना उस एक्सट्रीम पर। इस बात को बिलकुल उल्टीतरह से पलट कर कहूँगा कि समय से दोस्ती का अर्थ है, वर्तमान से दोस्ती। मैं वर्तमान में हूँ, पास्ट और फ्यूचर सिर्फ उपयोगी चीज़ेंहैं, जीने के लिए नहीं हैं। जीना मुझे हमेशा वर्तमान में है। यही है समय से दोस्ती। पर याद रखना वर्तमान समय नहीं है। समय …

(सभी श्रोता एक साथ) : पास्ट और फ्यूचर है।

वक्ता : ठीक है।

-’संवाद ‘ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

संवाद देखें: https://www.youtube.com/watch?v=IAEvpPjm0CA

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