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लेख
पाया है कुछ पाया है || संत बुल्लेशाह पर (2017)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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सभी श्रोता (गाते हुए):

पाया है कछु पाया है, मेरे सतगुरु अलख लगाया है

कहूं बैर पड़ा कहूं बेली है, कहूं मजनूं है कहूं लेली है, कहूं आप गुरु कहूं चेली है, आप आपका पंथ बताया है।

कहूं महजत का करतारा है, कहूं बणिया ठाकुरद्वारा है, कहूं बैरागी जयधारा है, कहूं सेखन बनि बनि आया है।

कहूं तुरक मुसल्ला पढ़ते हो, कहूं भगत हिन्दू जब करते हो, कहूं घोर घुंडे में पड़ते हो, कहूं घर-घर लाड लड़ाया है।

बुल्ले शाह का मैं बेमुहताज़ होइआ, महाराज मिल्या मेरा काज होइआदर्शन पिया का मुझे इलाज़ होइआ, आप आप में आप समाया है।

आचार्य प्रशांत: यह अच्छा नाम है ‘बेमुहताज़’। जितने सारे हमने बरहम के नाम लिखे हैं, उसमें अब यह भी जोड़ लो, ‘बेमुहताज़’। कौन सा श्लोक है?

प्रश्नकर्ता: छठे अध्याय का पहला।

आचार्य: “अनाश्रित कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः”। तो वही अनाश्रित है, वही बेमुहताज़ है। ठीक है? तो बेपरवाह तो था ही, अब बेमुहताज़ भी है, यह उसका एक लक्षण है। क्या? कि वो बेमुहताज है। किसी पर निर्भर नहीं करता। और जब तक तुम मनुष्य हो, तुम क्या हो?

प्र२: बेमुह्ताज।

आचार्य: और जो बेमुहताज हो गया, वो साधारण मनुष्य नहीं रहा। जो जितना बेमुहताज होता जाएगा, वो उतना उसके करीब पहुँचता जाएगा। तुम जितनी निर्भरता कम करते हो तुम किसके करीब पहुँचते जाते हो? उसके। और जब बिलकुल वही हो जाते हो तो? “तत त्वम असि”, तुम वही हो। जिन्हें उसे पाना है, वो क्या करें?

प्र२: निर्भरता कम करें।

आचार्य: उससे मुक्त होते जाएँ। जो चाहे मुक्त को, मुक्त के जैसा ही हो जाए। कल कह रहे थे न? बात हो रही थी कि छोड़ने की बात छोड़ो, पाने की बात करो। और यह वही है। बार-बार ज़ोर-ज़ोर से बुल्ले शाह क्या कह रहे हैं? ‘पाया है कुछ पाया है’ बाकी कहानी बाद की है। बाकी कहानी तो हो जाएगी, अपने आप हो जाएगी, पहले पा लेना ज़रूरी है। जिसने पा लिया उसकी आगे की कहानी हो जाएगी। पाओ, फिर छूटना हो जाएगा।

प्र३: नेति-नेति की पूरी प्रक्रिया है।

आचार्य: तुम नेति-नेति नहीं कर पाओगे। जब तक तुमने पहले पाया नहीं, तुम नेति-नेति नहीं कर पाओगे। तुम कहोगे, ‘छोड़ कैसे दें, छोड़ने के लिए पहले पाना ज़रूरी है’। नेति-नेति शुरू ही नहीं हो पाएगी। जब पहले पाने का कुछ-न-कुछ अहसास हो, तभी नेति-नेति शुरू हो पाएगी। अहसास काफ़ी है। देखो आम आदमी को। नेति -नेति नहीं कर पाता है। क्यों नहीं कर पाता है? क्योंकि उसकी जिंदगी में श्रद्धा नहीं है। थोड़ी सी भी श्रद्धा हो तो फिर नेति-नेति हो सकती है। हल्का अहसास भी हो तो काम शुरू हो जाएगा। पर वो हल्की सी झलक नहीं मिली है तो फिर तुम्हारा काम शुरू ही नहीं हो सकता है।

सभी श्रोता (गाते हुए):

मैंनू कौन पछाने,मैं कुछ हो गई होर नी।

हादी मैंनू सबक पढ़ाया,ओत्थे होर ना आया-जाया ,मुतलिक जात जमाल दिखाया ,वहदत पाया जोर नी।

प्र४: प्रभु की साधना में लग जाने और उसका आनंद पा लेने पर तो कुछ और ही हो गयी हूँ। अब पहचानेंगे कैसे?

गुरु ने मुझे शिक्षा दी कि यह मार्ग ऐसा है कि वहाँ अन्य कोई आता या जाता नहीं है। उसने मुझे निरपेक्ष सौन्दर्य का दर्शन करा दिया है और मैं उसी के रंग में ऐसी रंग गई हूँ कि अद्वैत ज़ोर दिखने लगा है। वह अनादि पुरुष है और जन्म-मरण से परे है किन्तु वह प्रियतम प्रत्यक्ष होकर सगुण और परोक्ष रूप में निर्गुण दिखाई देता है। प्रिय से तदाकार हो जाने के पश्चात अब मेरा तो नामोनिशान ही नहीं रह गया है। उससे एक रूप होने के बाद सभी कलह-क्लेश मिट गए हैं। प्रिय ने स्वयं अपना सौन्दर्य दिखाया - उसने स्वयं को कलंदर, मस्त और मवाली आदि रूपों में दर्शन दिए। अब हंसों की चाल चुकने के बाद, स्वभावतः मैं कौओं की चाल भूल गई।

आचार्य: याद रखना कौए की चाल पहले नहीं भूलती है। पहले क्या होता है? पहले हंस की चाल दिखती है। हंसों के बीच जब कुछ दिन रह लेते हो फिर नहीं कौए पसंद आते। पहले ये कहो कि कौओं के बीच में हो, छोड़ दो, तो यह नहीं होगा। पहले उन्हें कुछ दिन हंसों के पास लेकर के आओ, फिर उन्हें कौए ठीक नहीं लगेंगे।

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