आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
लिखनी है नई कहानी? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्नकर्ता: जिस ललक और आग की आपने बात की है, वो कभी-कभी उठती है और मन करता है कि भाग जाऊँ, ऐसी जगह जहाँ कोई ना हो। पर ये समाज ऐसा है कि उसमें सब कुछ निभाना भी है। इन सभी बातों में आपकी निजता खो जाती है। इस निजता को कैसे कायम रखें?

आचार्य प्रशांत: आँख खोलकर परिणाम देखते चलो और अपने आसपास के लोगों को देखते चलो।

मेरा एक साथी था, उसके माँ-बाप रात-दिन उसको बोलते रहते थे कि शादी कर ले। उसने एक दिन उनसे कहा, “तुम दोनों को देखता हूँ, उसके बाद भी तुम्हें लगता है कि मैं शादी कर सकता हूँ?” उसने ये बात मज़ाक में नहीं कही थी। उसने कहा, “परिणाम सामने है। अगर शादी का अर्थ ये है जो तुम दोनों मुझे रात-दिन दिखाते हो, और जैसा जीवन तुम दोनों ने जिया है, भले ही होंगे मेरे माँ-बाप, पर मुझे दिख तो रहा है कि कैसे हो, तो मुझे नहीं करनी शादी। कहाँ है प्रेम? निभा रहे हो, वो अलग बात है। निभाना प्रेम नहीं है, कर्त्तव्य पूरा करना प्रेम नहीं है। प्रेम कहाँ है? तो अगर यह शादी है तो मुझे नहीं करनी शादी।”

तो तुम भी ऐसे ही परिणाम देख लो कि अगर तुम उस आवाज़ को ऐसे ही दबाती चली, तो क्या होगा। आँख खोलो और परिणाम देखती चलो, देखो चारों तरफ कि दुनिया कैसी है। और यही तुम्हारा भी भविष्य है, अगर बचती रहीं। यह जो सड़क पर आदमी चलता है जिसको तुम ‘आम आदमी’ बोलते हो, उसकी शक्ल ध्यान से देखो। वो तुम हो। और अगर वैसा ही हो जाना है, तो फिर कोई बात नहीं।

ये जो अपार्टमेंट्स में एक के बगल एक परिवार बैठे हुए हैं, उसमें माता हैं, पिता हैं, उनके बच्चे हैं, दिन-रात की कलह हैं, संघर्ष हैं, जाओ और उनकी ज़िंदगी को ध्यान से देखो। वो तुम्हारी ज़िंदगी है। और अगर वही चाहिए, अगर वही स्वीकार्य है, तो बढ़ो आगे, किसने रोका है? क्योंकि जा तो उसी दिशा में रहे हो, जीवन उसी दिशा में ही बढ़ रहा है और बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। बहुत समय नहीं है अब तुम्हारे पास। तुम्हारी भी कहानी अब वही सब मोड़ लेने वाली है। इच्छुक हो, तो बढ़ो आगे।

बिलकुल तयशुदा कहानी है, उसमें कोई बड़े उतार-चढ़ाव नहीं हैं। उस कहानी में क्या-क्या आता है बता देता हूँ। उस कहानी में आता है थोड़ी बहुत शिक्षा – कुछ सालों की, सात फेरे, मैटरनिटी वॉर्ड, दूध की बोतलें, घर पर बैठना, पैसे को लेकर चिक-चिक, दुनिया की देखा-देखी घर को फर्नीचर से भरना, क़र्ज़ लेकर मकान खरीदना, रोज़ आईने में देखना कि उम्र बढ़ रही है।

एक दिन पाना कि चेहरे पर झुर्रियाँ आ गईं हैं, बीतते हुए जीवन की व्यर्थता देखना, और अपने आप को भुलावा देना, और जब सच साफ़-साफ़ दिखाई देने लगे तो टेलीविजन में मुँह डाल देना कि बहाना मिल जाए समय काटने का; और जब मन बिलकुल उदास हो तो किसी शॉपिंग मॉल में जाकर बैठ जाना ताकि लगे कि जीवन में कुछ है, ताकि लगे कि जो कमाई कर रहे हैं वो व्यर्थ नहीं है। हम इससे कमीज़ ख़रीद सकते हैं, प्रेशर कुकर खरीद सकते हैं, नए मॉडल का फ्रिज खरीद सकते हैं, नई कार आ सकती है। ताकि जीवन को बहाने मिलते रहें आगे बढ़ने के।

तीज-त्यौहारों पर रिश्तेदारों के सामने झूठा चेहरा बनाकर के बधाईयाँ दे देना और पीठ पीछे हिसाब लगाना कि कितना मिला है और हमने कितना दिया है, दूसरों की ज़िन्दगी से तुलना करना। पति को देखकर यही ख़याल उठना कि, "कहाँ फँस गई हूँ!" लेकिन फिर भी अपने आप को ऐसा बंधन में पाना कि, "भाग भी नहीं सकती क्योंकि ये दो छोटे-छोटे बच्चे बैठे हैं, जाऊँ तो जाऊँ कहाँ?"

कल्पना से कहानी नहीं बता रहा हूँ। लोग आते हैं मेरे पास और यही पूरी दुनिया कि कहानी है, और अगर यही तुम्हें अपनी कहानी बनानी है तो देख लो। “कब की चली गई होती, कब का आग लगा दिया होता इसको। पर अब इन दो का क्या करूँ जो पैदा हो गए?”

फिर एक दिन पाना कि मैं प्रौढ़ हो गई हूँ, फिर पाना कि शरीर में बीमारियाँ हो गई हैं, कैल्शियम की कमी हो रही है। फिर जाकर चेक करवा रहे हो कि कहीं कैंसर तो नहीं है, क्योंकि रहना तो इसी शहर में है न। तुम्हारी कहानी में शामिल है इसी शहर में पड़े रहना जहाँ की हवा गन्दी, जहाँ का पानी गन्दा, जहाँ का खाना गन्दा, जहाँ की मिट्टी गन्दी। और यही तुम्हारा सपना है कि किसी बड़े शहर में रहें और बड़े शहर का मतलब भी नहीं समझते तुम। बड़े शहर का अर्थ है कैंसर। पर तुम कैंसर के लिए तैयार रहोगे क्योंकि तुमने मेडिकल इन्शुरेंस कराया होगा। तुम इतने समझदार हो न। तुम मेडिकल इन्शुरेंस कराते ही इसलिए हो क्योंकि कैंसर होना पक्का है।

बीच-बीच में पैसे बचा कर छुट्टियाँ मनाने चले जाना और बड़ा खुश महसूस करना कि दार्जिलिंग घूम आए, ऊटी घूम आए, और थोड़ा पैसा ज़्यादा हो तो मॉरिशस घूम आए। और अपनी सारी फ़ोटो को फेसबुक और ट्विटर पर लगाना ताकि दुनिया को यह भ्रम हो जाए कि तुम खुश हो। जानते सिर्फ तुम हो कि तुम क्या हो। पति के साथ, बच्चे के साथ अपनी फ़ोटो लगा देना ताकि दुनिया को ये लगे कि तुम बहुत खुश हो।

यह खाका खींच दिया है, चाहिए तो बोलो। जितने सब यहाँ बैठे हो, सब इसी ओर बढ़ रहे हो, तेज़ी से बढ़ रहे हो, जैसे पहाड़ी ढलान है और गाड़ी न्यूट्रल में है, और ब्रेक फेल हैं। अब देख लो कि रोकना कैसे है।

और सुनना चाहोगे झाँकियाँ? बच्चों का होमवर्क, सेक्स को लेकर पति से तकरार क्योंकि पहले तीन-चार महीने तो अच्छा लगता है, उसके बाद सारा आकर्षण जाता रहता है। पर शरीर है, उसे बीच-बीच में खुजली उठेगी और तुम पाओगे कि मन साथ नहीं दे रहा, जैसे कोई रूटीन हो कि होना ही चाहिए। और जो बातें तुम्हें आकर्षक लगती हैं, उन पर घृणा आएगी।

तीस दिन काम करोगे, किसलिए? कि एक दिन तन्ख्वाह मिल जाए। तन्ख्वाह मिलेगी एक दिन और तीस दिन क्या करोगे? इंतज़ार। खड़े रहोगे अपने बॉस के सामने जैसे वो अपने बॉस के सामने खड़ा रहता है, और बॉस अपने बॉस के सामने और बॉस का बॉस अपने बॉस के सामने। (व्यंग्यात्मक तरीके से हँसते हुए) “कितना रोचक है! हम इसी के लिए तो सब कुछ कर रहे हैं, हमारा सुनहरा भविष्य!”

पूरी तैयारी कर ली गई है तुम्हें इसमें धकेलने की। शादी वाले भी तैयार हैं, नौकरी देने वाला भी तैयार है। और कुछ तो मन में सोच रहे हैं कि कितना रोमांचक है सब। (व्यंग्य करते हुए) “यही तो हमें चाहिए।”

फिर से एक चुनौती दे रहा हूँ, क्या ज़िन्दगी इस सब के अलावा भी कुछ हो सकती है? और इसके साथ आश्वासन भी दे रहा हूँ, हाँ हो सकती है अगर तुम्हें अपने आप से प्यार है तो। अगर खुद से नफ़रत ही करते हो, तो छोड़ो।

ज़िंदगी निश्चित रूप से इसके अलावा भी हो सकती है, पर ज़िम्मेदारी तुम्हारी है। तुम्हें जगना पड़ेगा, तुम्हें चेतना पड़ेगा, तुम्हें इस कहानी को बदलना पड़ेगा। और उसमें डर है, और उसमें तुम्हें विरोध बहुत मिलेगा, उसमें बहुत लोग तुम्हारे सामने खड़े हो जाएँगे कि, "नहीं तुम चुपचाप वो करो जो हम तुमसे कह रहे हैं! बड़ी होशियार हो गई है, बहुत बोलना आ गया है!”

इन विरोधों को झेलने को तैयार हो, तो कुछ कोई दूसरी संभावना है, नहीं तो बस यही है। है दम? सवाल ज़िंदगी का है, उससे ज़रा भी छोटा नहीं। सवाल जीवन-मरण का ही है। है दम?

इससे हटकर जो कहानी होगी, उसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। वो नई कहानी होगी, जो तुम लिखोगी। जो नया है उसे मैं कैसे बता दूँ? वो एकदम नई कहानी होगी। अभी से उसकी कल्पना नहीं की जा सकती, उसे पहले से ही निर्धारित नहीं किया जा सकता। और इसलिए वो बहुत प्यारी होगी क्योंकि बिलकुल ताज़ी, एकदम नई होगी।

अब चुनौती तुम्हारे सामने है, तुम देख लो कि तुम्हें नई कहानी लिखनी है या इसी पर चलते रहना है।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles