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लेख
काम तो राम ही आएँगे || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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सागर पार करके लंका पहुँचने हेतु पुल बन रहा था। उसमें यह सब वानर, भालू सब लगे हुए थे, हनुमान तो थे ही, इंजीनियर थे नल-नील, यह सब। और वहाँ एक फुदकी गिलहरी, वो भी लगी हुई है साथ में पूँछ उठाए। वह क्या कर रही है? वह बालू के इतने-इतने कण ले जाकर के समुद्र में डाल रही है। कह रही है, “पुल बन रहा है राम का, भाई! मेहनत तो करनी पड़ेगी न।”वह कभी पीठ पर, कभी पूँछ पर, कभी मुँह में ही, दो कण, चार कण रेत के लेकर जाए और समुद्र में डाले।

रामचंद्र यह सब देख रहे थे, बोले, “इधर आ, क्या कर रही है?” “पुल बनाना है न आपके लिए, सीता माँ फँसी हुई हैं, आपको तो सुध ही नहीं कुछ, काम जल्दी का है।” तो बड़े स्नेह से उन्होंने उसकी पीठ पर हाथ फेर दिया। तो कहावत है गिलहरी की पीठ पर जो धारियाँ दिखाई देती हैं, वो उन्हीं के उंगलियों के निशान हैं।

समर्पित किए बालू के दो कण मात्र, पर किसको समर्पित किए? राम को, तर गई। यह मत देखो कितना, यह देखो किसके लिए।

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