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लेख
जीवन पथमुक्त आकाश है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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वक्ता: दुनिया वास्तव में बहुत सुन्दर है। पर हमें उसकी सुन्दरता कहाँ पता चलती है। तुम तो एक विरोध खड़ा कर रहे हो। तुम कह रहे हो कि इस सुन्दर दुनिया में जाएँ या अपने साथ लगे रहें। तुमने ज़बरदस्ती एक बंटवारा कर दिया है, ये बंटवारा कुल ही निरर्थक है, नकली है। वो बंटवारा हमारे सबके मन में होता है, उसको हम कई बार विकर्षण का नाम देते हैं। हम कहते हैं कि अपना काम करें या अन्यमनस्क हो जाएँ। हम कहते हैं कि वो करें जो ज़रूरी है, या वो करें जो उचित है? उसी तरह से तुम पूछ रहे हो कि दुनिया की तरफ आकृष्ट हो जायें या फिर अपने रास्ते पर चलते रहें? ये सवाल सिर्फ तुम्हारा नहीं है, यहाँ पर बैठे बहुत लोगों का है। इस आकर्षण को तुम ‘भटकने’ का नाम भी देते हो। कई बार माता-पिता ने शायद बोला होगा, ‘बेटा भटक मत जाना, अपने रास्ते पर चलना’।

भटकना कुछ नहीं है, भटकने जैसे कुछ होता ही नहीं, सिर्फ ना जानना है। न जानने के क्षण में तुम जो कुछ भी करोगे, वो तुम्हें दुख देता है। भटकने का मतलब तो ये हुआ कि एक रास्ता है, उसके दायें-बायें हुए तो तुम भटके। कोई एक रास्ता नहीं है, कोई एक रास्ता है ही नहीं। जीवन आकाश की तरह है, उसमे रास्तें नहीं है सिर्फ जगह है उड़ने की, सिर्फ सम्भावना है, रास्ते नहीं हैं कि भटक जाओगे। आसमान में कोई भटकता है क्या? हाँ अगर रास्ता मन में बना कर चल रहा हो, तो भटक सकता है, वरना पूरा आकाश तुम्हारा है। जहां पर तुम हो वही तुम्हारा है। भटकना कैसा? जीवन, ‘जहाँ पर हो वहीं पर होने’ का नाम है। जीवन इसी का नाम है- जहाँ पर हो, वहीं पर हो। अगर यहाँ पर हो, यहीं पर हो, तो यही जीवन है। और अगर यहाँ नहीं हो, तो जहाँ पर भी हो, भटके हुए हो।

जीवन कोई आदर्श नहीं है, कि एक आदर्श रास्ता है, इस रास्ते पर चलो, ना चलो तो भटके। और फिर बहुत सारी छवियाँ तुम्हारे सामने लायी जाती हैं; इस रास्ते पर चलना, भले ही उस पर कितने ही पत्थर हों, बहक मत जाना, इधर-उधर की तितलियों से और सुन्दरता से प्रभावित मत हो जाना। ये सब बातें हैं, इनका कोई अर्थ नहीं है। मैं कहता हूँ कि अगर तुम अभी यहाँ पर प्रस्तुत हो, तो अभी यह दुनिया बहुत सुन्दर है। तुमने जो मानसिक चित्र बना रखा है, वो ये है कि ये मेरा रास्ता और सुन्दरता इसके इधर-उधर है। और इसी वजह से तुम भटकने से बचना चाहते हो। तुम कहते हो कि ये मेरा रास्ता है, इधर कुछ सुन्दर है, उधर कुछ आकर्षक है, कहीं मैं भटक ना जाऊँ। मैं कहता हूँ कि सुन्दरता अभी है, तुम्हारे साथ है, ना इधर है, ना उधर है। अगर तुम जीवन को पूर्णता के साथ जी रहे हो, खेल रहे हो तो पूर्णता से खेल रहे हो, पढ़ रहे हो तो पूर्णता से पढ़ रहे हो, किसी के साथ हो तो पूरी तरह उसके साथ हो, तो यही सुन्दर है, यही जीवन का सत्य है। और क्या है ज़िन्दगी?

ये जो पल हम लोग बिता रहे हैं, यही तो है ज़िन्दगी। इससे अतिरिक्त और क्या है ज़िन्दगी? क्या कोई ख्वाब का नाम है ज़िन्दगी? कोई कल्पना? या तुम्हारे स्मृतियाँ है ज़िन्दगी? ये तुम जो अभी यहाँ पर बैठे हो ये जीवन ही तो है, और क्या है? और अगर इसी पर पूर्णतया उतरे हुए हो, तो यही सुन्दर है, यही परम आकर्षक है। मन में ये बटवारा मत कर लेना कि जीवन कष्टदायी यात्रा है और अगल-बगल तुम्हारा ध्यान भंग करने के लिए अप्सराएँ घूम रही हैं, और तुम्हें अपना ध्यान कायम रखना है कि ये सब कुछ नहीं है। जीवन बहुत-बहुत सुन्दर है, तुमने जो कुछ जाना है, उससे कहीं-कहीं ज्यादा सुन्दर है, पर उस सुन्दरता को तुम जीवन में डूब कर ही पाओगे। ऐसे बंटवारा कर के नहीं कि ये मेरा रास्ता है और इधर-उधर मुझे जाना नहीं। ऐसे नहीं, लक्ष्य बनाकर नहीं, ऐसे नहीं पाओगे।

जीवन में सुन्दरता पाई जाती है जीवन को पूरी तरीके से गले लगाकर। प्रेम में, जहाँ हो वहाँ हो कर, ऐसे नहीं। ये सब धारणाएँ निकालो मन से कि एक लक्ष्य है, एक आदर्श है, एक रास्ता है, उस पर चलना है। ना! जहाँ हो वहीं जीवन है। जीवन ‘पाया’ नहीं जायेगा चल कर, जीवन किसी रास्ते पर चल कर ‘पाने’ की वस्तु नहीं है कि वहाँ गए तो उसको पाएँगे, जीवन प्राप्त करना है। जो है वही जीवन है, उसी में डूबो, उसी में उतरो, उम्मीदें छोड़ो। जीवन या तो यहीं है, नही तो नहीं है।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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