आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
जब ज़िंदगी तोड़ दे तुम्हें || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
1 मिनट
47 बार पढ़ा गया

ज़िंदगी में इतनी बड़ी चुनौती अपनाकर तो देखो कि वो तोड़ ही डाले तुम्हें, और फिर पाओगे तुम कि टूटने के बाद भी बचे हो। कुछ है तुम्हारे भीतर जो ऐसा जुड़ा हुआ है कि टूटता नहीं। सबकुछ टूटने के बाद जो बचा रहता है वो असली है। उसका कुछ पता नहीं चलेगा जबतक ज़िंदगी तुम्हें तोड़ ही ना दे। ज़िंदगी तुम्हें तब तक नहीं तोड़ेगी जब तक तुम ज़िंदगी को इजाज़त ना दो। छोटी-मोटी चीज़ नहीं है टूटना, मैंने कहा न, सौभाग्य है; टूटने के लिए तो प्रार्थना करनी पड़ती है कि, ‘तोड़ डालो न मुझे!’ टूटने के लिए तो बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ती है, सबको नहीं नसीब होता टूटना।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें