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लेख
ब्रह्मचर्य का असली अर्थ समझो || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
15 मिनट
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प्रश्नकर्ता: ब्रह्मचर्य और विवाह में क्या सम्बन्ध है? जो भी जितने भी ब्रह्मचारी लोग हुए हैं, उनके जीवन को पढ़ते हुए बड़ा आनन्द आता है। मतलब जो ब्रह्मचर्य के नियम पर चले हैं। जैसे– स्वामी दयानन्द हो गए, महात्मा बुद्ध हो गए, भगवान महावीर हो गए या स्वामी विवेकानन्द हो गए, प्रधानमंत्री जी हो गए और तमाम सारे; आपका जीवन हो गया। तमाम सारे लोग हैं, बड़ा आनन्द आता है।

और ऐसा कई सालों से लगातार हो रहा है। ये मेरी समस्या है इसलिए मैं आपको बता रहा हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि मुझे अविवाहित रहना चाहिए, मतलब मेरी समस्या है ये। और अविवाहित रहकर जैसे इन लोगों ने देश के लिए अपने को खपा दिया उस तरफ़ आगे बढ़ना चाहता हूँ, तो इसमें आपकी क्या राय है?

आचार्य प्रशांत: मेरे बारे में तुम्हारी राय इतनी ज़बरदस्त है कि अब मैं क्या राय दूँ?(मुस्कुराते हुए)। ये बेटा जो तुम सुना रहे हो न, ये एक कहानी है। इसका सत्य और धर्म से बहुत कम सम्बन्ध है। ये एक कहानी है, कुछ इसमें से लोगों की कल्पना का उत्पाद है और कुछ तो जान-बूझकर किया गया मिथ्या प्रचार है।

बात समझ रहे हो?

पार्ट मिथ पार्ट प्रोपेगेंडा। (कुछ मिथ्या कुछ दुष्प्रचार) दो-तीन बातें समझना, ये जिन सब महानुभावों को तुमने एक ही साँस में बोल दिया, ये सब एक ही कोटी के थोडे़ ही हैं भई! विवेक सीखो, भेद करना सीखो। ब्रह्मचर्य का विवाह से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ब्रह्मचर्य का स्पष्ट-सी बात है, सम्बन्ध ब्रह्म से होता है। जब तुम्हारा आचरण ब्रह्म के केन्द्र से संचालित होने लगे तो तुम हुए ब्रह्मचारी।

ब्रह्मचर्य में बहुत सारी छोटी-छोटी बातें तुमको व्यर्थ लगने लगतीं हैं। और वही बहुत सारी छोटी-छोटी बातें, जो व्यर्थ लगती हैं, उनमें एक छोटी-सी बात है, स्त्रियों के पीछे भागना। तो ब्रह्मचर्य एक विशाल पेड़ है और उस पेड़ की एक छोटी-सी पत्ती ये है कि अगर तुम पुरुष हो तो अब स्त्री के पीछे नहीं भागोगे और तुम स्त्री हो तो पुरुष के पीछे नहीं भागोगे क्योंकि ये काम अब तुमको बचकाना लगता है, यह काम अब तुमको बेवकूफ़ी भरा लगता है।

इसलिए नहीं कि तुमने बड़ा संयम, अनुशासन करा हुआ है और बिलकुल बाँध दिया है। इसलिए नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि तुम्हें ये सब काम अब मूर्खतापूर्ण लगते हैं, तुम कहते हो, थोड़ा-सा समय हैं जीवन में, उसको इन कामों में नहीं लगाना है, समय लगाने के और कई अच्छे स्थान हैं, उपक्रम हैं।

लेकिन हमसब बड़े कामुक लोग हैं। हमसब बड़े कामुक लोग हैं, आदमी का मन कामुकता से बुरी तरह ग्रस्त है। और उसके दो प्रमाण हैं, पहला तो ये कि तुमने अपनी पूरी व्यवस्था को, अपनी पूरी सांसारिक व्यवस्था को कामवासना से जोड़कर रखा है। और उससे भी बड़ा प्रमाण यह है कि तुमने अध्यात्म को और ब्रह्मचर्य को भी काम से ही जोड़ दिया।

तुमने काम को ही केन्द्र में रखकर ब्रह्मचर्य को भी परिभाषित कर दिया। समझो! हमारा मन ऐसा है जिसके केन्द्र में बैठा हुआ है, काम! तो अब तुम्हें अगर ब्रह्मचर्य को भी परिभाषित करना है तो तुमने क्या किया? तुमने काम को ही केन्द्र में रखकर के ब्रह्मचर्य को परिभाषित कर दिया। बी इज़ इक्वल्टु एफ के। ब्रह्मचर्य किसका फंक्शन हो गया? काम का।

तो तुमने कहा, संसारी वो जो काम में उद्यत रहता है, ब्रह्मचारी वो जो काम में उद्यत नहीं रहता। लेकिन दोनों ही स्थितियों में तुमने परिभाषा की काम के ही संदर्भ में। और ये बताता है कि हमारा मन काम से कितना आच्छादित है। जिसको देखो वही वो लेकर चला आता है, फलाना ब्रह्मचारी। फलाना क्यों ब्रह्मचारी? उसने विवाह नहीं किया।

हरियाणा के झज्झर जिले में सेक्स रेशियो (लिंगानुपात) बुरी तरह गिरा हुआ है, वहाँ पर क्योंकि भ्रूण हत्या होती है। हज़ार लड़कों पर डेढ़-दो सौ लड़कियों की कमी चल रही है। तो वहाँ तो बड़े ब्रह्मचारी निकलेंगे। अगर विवाह भर न करने से आदमी ब्रह्मचारी हो जाता है, तो वो सब लोग जिन्हें अब लड़कियाँ नहीं मिलने वाली शादी करने के लिए, लड़कियाँ तो सब मार दीं तुमने, गर्भ में ही मार दीं।

तो अब शादी के लिए भी नहीं मिल रहीं हैं, ये हो रहा है– पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात। हज़ार लड़कों पर कहीं नौ सौ लड़कियाँ हैं, कहीं साढ़े आठ सौ हैं, कहीं आठ सौ हैं, कहीं आठ सौ से भी कम हैं।

तो बहुत सारे अब घूम रहे हैं उनको नहीं मिलतीं हैं शादी के लिए। तो ये तो बड़ा अध्यात्म फैल रहा है, भ्रूण हत्या अध्यात्म का साधन बन गई। अगर अविवाहित रहने से ही; और ये सारा अध्यात्म पुरुषों में ही फैल रहा है। स्त्रियों के पीछे तो अब ज़्यादा ऑफर है क्योंकि लड़की एक है गाँव में और लड़के पाँच हैं। चार लड़कियाँ मार दीं थीं पहले ही।

ब्रह्मचर्य का विवाह से क्या सम्बन्ध है? ब्रह्मचर्य का तो कामवासना से भी बस परोक्ष सम्बन्ध है, प्रत्यक्ष नहीं। ब्रह्मचर्य का प्रत्यक्ष सम्बन्ध अगर है तो मात्र ब्रह्म से। ये छोटी-सी बात समझ में क्यों नहीं आती? ब्रह्मचर्य का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मात्र ब्रह्म से है, सीधा, डायरेक्ट।

जिसने अपने अहंकार को इतना न्यून, इतना शून्य कर लिया कि अब वो सत्य पर ही जीता है, ब्रह्म के चलाये चलता है, ब्रह्म के सुलाये सोता है, ब्रह्म के खवाए खाता है, सो हुआ ब्रह्मचारी। ब्रह्म उससे जो कराए वो करता है उसकी अपनी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है अब। हाँ मैं कह रहा हूँ, 'जो ब्रह्म के चलाए चल रहा है, उसका छोटी-छोटी बातों में, मीठे, खट्टे, तीखे रसों में आसक्ति और स्वाद कम हो जाता है; शून्य भी हो सकता है।'

तो फिर न तो वो इर्ष्या के पीछे भागता है, न मोह के पीछे भागता है, न धन उसको बहुत बड़ी बात लगती है, न सफलता और यश और कीर्ति उसे बड़ी बात लगते हैं, न सत्ता की कोई पदवी उसे बड़ी बात लगती है; इसी तरीक़े से फिर उसे यौन सुख भी बड़ी बात नहीं लगता।

इसीलिए यह पाया जाएगा कि जो ब्रह्म में चर्या कर रहा है, वो अगर पुरुष है तो स्त्रियों से भी एक स्वस्थ सम्बन्ध रखेगा। ये नहीं कि वो स्त्रियों से दूर रहेगा, वो स्त्री से स्वस्थ सम्बन्ध रखेगा। वो ये नहीं करेगा कि जो स्त्री दिखी उसी को कामवासना की नज़र से देख रहा है। उसके लिए स्त्री एक जीव होगी, एक व्यक्ति होगी; उसके लिए स्त्री काम की पूर्ति का खिलौना नहीं होगी।

और यही बात स्त्रियों पर लागू होती है। वो स्त्री है अगर तो वो भी फिर पुरुष से स्वस्थ सम्बन्ध रखेगी। पुरुष को ऐसे नहीं देखेगी कि यह मेरी वासना की पूर्ति का उपकरण है। ये हुआ ब्रह्मचर्य।

तो ब्रह्मचर्य का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है एब्स्टिनेंस, सेक्सुअल एब्स्टिनेंस। (परहेज़, यौनेच्छा से परहेज़)

बात समझ रहे हो?

यौनेच्छा से मुक्ति ब्रह्मचर्य का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है, ब्रह्मचर्य बहुत बड़ी बात है। जबतक तुममें सत्ता का लालच है, तुम ब्रह्मचारी कैसे भाई? जबतक तुममें धन का लालच तुम ब्रह्मचारी कैसे? जबतक तुम्हारे ऊपर अज्ञान चढ़ा हुआ है, तुम ब्रह्मचारी कैसे? जबतक तुम मानव द्वारा रचित सीमाओं में विश्वास करते हो, तुम ब्रह्मचारी कैसे? ब्रह्म तो असीम है।

समझ में आ रही है बात?

और न ही ब्रह्मचर्य का मतलब है कि, स्त्री दूर रहे बिलकुल अब! कहीं छू न दे हमें। ब्रह्मचर्य का मतलब है फिर कहता हूँ, स्त्री को यौनेच्छा की पूर्ति का साधन ही नहीं समझना है, स्त्री को देहमात्र नहीं समझना है। स्त्री भी उसी तरीक़े से जीव है, जैसे तुम हो। स्त्री भी उसी तरीक़े से एक अपूर्ण चेतना है, जैसे तुम हो। स्त्री भी उसी तरह से आत्मा से मिलन को लालायित है, जैसे तुम हो।

वो तुम्हारी कामनाएँ पूरा करने के लिए कोई गुड्डा-गुड़िया नहीं है; ये ब्रह्मचर्य है। इन्सान को इन्सान की तरह देखना, इन्सान को ऐसे नहीं देखना कि आदमी है कि औरत है। और जो इन्सान को इस तरह नहीं देखेगा कि आदमी है कि औरत है वो फिर इन्सान को ऐसे भी नहीं देखेगा कि, हिन्दु है कि मुस्लिम है, फिर ऐसे भी नहीं देखेगा कि, बनिया है कि शूद्र है।

ब्रह्म में सीमाएँ नहीं होती न, विभाजन नहीं होते न। तो जो आदमी दुनिया को विभाजित तरीक़ों से देख रहा है, वो ब्रह्मचारी नहीं हो सकता। जो अभी अपने-पराए में उलझा हुआ है, वो ब्रह्मचारी नहीं हो सकता। जिसको कुछ भी अपना और कुछ भी पराया लगता हो, वो ब्रह्मचारी नहीं हो सकता।

विवाह नहीं किया या पत्नी को छोड़ दिया, ये कौन सा ब्रह्मचर्य है भाई? और मैं ये नहीं कह रहा कि ब्रह्मचारी विवाह करेगा। बात सूक्ष्म है समझो, मैं नहीं कह रहा हूँ कि ब्रह्मचारी विवाह करेगा। मैं कह रहा हूँ, 'विवाह करने या न करने से ब्रह्मचारी को परिभाषित नहीं किया जा सकता।'

बात समझ रहे हो?

ज्ञानी कौन है और कौन नहीं? क्या तुम उसके सिर के बाल गिनकर बताओगे? तो सिर के बालों की संख्या से ज्ञानी का निर्धारण नहीं हो सकता न, नहीं हो सकता न? नाम 'क' से शुरू होता है या 'ख' से इस बात को देखकर तुम बता दोगे, कौन सन्त है, बोलो? नाम या जाति से किसी के सन्तत्व का निर्धारण नहीं होता न? ठीक वैसे ही तुम्हारी वैवाहिक स्थिति से तुम्हारे ब्रह्मचर्य का निर्धारण नहीं होता।

रामकृष्ण परमहंस विवाहित थे और आजन्म पत्नी के साथ ही रहे तो? वो ब्रह्मचारी नहीं थे क्या? रामकृष्ण से बड़ा ब्रह्मचारी खोजना मुश्किल है। और यहाँ कितने ही घूम रहे हैं कुऑंरे, उनका ब्रह्मचर्य और ब्रह्म से क्या लेना-देना? एक-से-एक घूम रहे हैं, उन्हें तुम ब्रह्माचारी बोल दोगे क्या, क्योंकि विवाहित नहीं हैं?

पर ये बड़ी अजीब लोकधारणा बन गई है, जिस किसी को तीस की उम्र तक नहीं मिली पत्नी, उसी के बारे में लोग कहने लग जाते हैं, 'ब्रह्मचारी है।' ब्रह्मचारी है, इनकी शक्ल देखो! ये ब्रह्मचारी हैं। और फिर वो भी कहता है, 'अब ये ठीक है।' बीवी न मिली इज़्ज़त तो मिली।

प्र: आचार्य जी, जैसे हमने अपने चित्त को शुद्ध कर लिया तो यदि यह इच्छा उठी वासना की तो किसी को तो इस नज़र से देखना होगा न। जिसके साथ आप इस इच्छा की पूर्ति करें?

आचार्य: तुम जैसे हो उसी अनुसार तुम किसी को चुन लोगे। कामवासना भी कोई हल्की चीज़ नहीं होती, वो भी आत्म-अवलोकन के लिए एक समुचित साधन बन सकती है। तुम जैसे हो; चूँकि तुम पुरुष हो इसलिए पुरुष की तरफ़ से बात कर रहा हूँ। तुम जैसे हो उसी अनुसार स्त्री को ढूँढोगे तुम, अपनी वासना की पूर्ति के लिए भी।

जो आदमी अपनी ही नज़रों में गिरा हुआ है, वो किसी गंदी गली में जाएगा और किसी सस्ती वेश्या के साथ अपनी खुजली मिटा आएगा। एक आदमी जो जानता है कि वो कौन है, जो पसन्द नहीं करेगा, अपनी ही दृष्टि में नीचा हो जाना, कभी उस गन्दी गली में प्रवेश कर ही नहीं सकता।

इसी तरीक़े से एक साधारण आदमी के सामने अगर एक विदुषी स्त्री आ भी गई; गहरी, समझदार, बोध से परिपूर्ण स्त्री तो साधारण आदमी उसकी ओर आकृष्ट ही नहीं होगा। क्योंकि उसे अपने ही तल की कोई चाहिए। चिबिल्ले को चिबिल्ली ही तो चाहिए। चिबिल्ली उसे खूब पसन्द आएगी तुरन्त बोलेगा उसको, व्हाट्सएप कर न मुझको।

आठवीं पास के सामने पीएचडी स्त्री आ जाए, तो ये तो छोड़ दो कि उसमें कामवासना जगेगी; जगी भी होगी तो बुझ जाएगी। क्योंकि वो स्त्री उसे उसकी अशिक्षा और अनभिज्ञता का एहसास कराएगी। तो तुम किसकी और आकृष्ट हो रहे हो, ये बताता है कि तुम कौन हो। ऊँचा आदमी अपने लिए ऊँची स्त्री ही खोजेगा, ऊँची स्त्री अपने लिए ऊँचा आदमी ही खोजेगी।

और ऊँचे आदमी को निचली स्त्री अगर किसी तरह मिल गई तो वो उसको उठाने की कोशिश करेगा। वो कहेगा, 'मैं तुझे खींचकर के अपने तल पर ले आता हूँ।' और इसकी उलट बात सुनो, किसी तरीक़े से अगर किसी नीचे आदमी को ऊँची स्त्री मिल भी गई तो वो कुछ दिन उसके साथ रहेगा, फिर भाग जाएगा। क्योंकि उसका छुद्र अहंकार उसे टिकने नहीं देगा।

जब भी एक श्रेष्ठ मन और एक छुद्र मन मिलते हैं तो ये एक संघर्ष और द्वन्द्व की स्थिति होती है। इसमें या तो ये होगा कि जो नीचे वाला है, वो भाग जाएगा। या फिर जो ऊँचा होगा वो नीचे वाले को ज़बरदस्ती पकड़कर उठा लेगा। आमतौर पर यही होगा कि अगर एक ऊँचा इन्सान और एक नीचा इन्सान एक रिश्ते में बॅंध भी जाएँ, सम्बन्धित हो भी जाएँ, तो जो नीचा आदमी होता है वो जल्दी ही छोड़कर भाग जाता है।

कुछ दिनों तक टिका रहेगा, इधर-उधर। टिककर के कोशिश करेगा कि ऊँचे को भी गिरा दूँ, नीचा बना दूँ। पर जब देखेगा कि जो श्रेष्ठ है, जो ऊँचा है वो नीचे करने को तैयार नहीं है, तो फिर वह भाग जाएगा। या फिर कभी-कभार दस प्रतिशत ऐसा भी होगा कि जो नीचा है, उसका मन परिवर्तित होगा, वो कहेगा, 'ऊँचे के साथ हूँ, तो मैं भी क्यों न ऊँचा हो जाऊँ, उठ ही जाऊँ,' पर ऐसा कम होता है।

तो अपनी कल्पनाओं, अपने ख़्वाबों को देखना, रात के अपने गीले सपनों को देखना; कौनसी स्त्री आती है पुरुषों? देखना कि जब पोर्न देखने बैठते हो तो किस तरह की स्त्री को देखकर उत्तेजित हो जाते हो? कौन है वो? वो एक ऊँची स्त्री है?

देखना कि तुम्हारी पसन्दीदा सिने-तारिका कौनसी है और वो क्यों पसन्द है तुम्हें। इसलिए कि वो एक बहुत कुशल अभिनेत्री है या इसलिए कि उसके पास एक तराशा हुआ जिस्म है? बताओ क्यों पसन्द है तुम्हें वो अभिनेत्री? जिसको तुम कहते हो मेरी फेवरेट है, उसके पोस्टर लगते हो घर में; घर में नहीं लगाते तो भी फोन में छुपाकर घूमते हो।

क्यों पसंद है तुम्हें वो?

इसलिए कि उसके पास ज्ञान है, विवेक है, सन्तोष है, शान्ति है, बोध है इसलिए पसन्द है तुम्हें वो स्त्री? अगर इसलिए पसन्द है तो जान दे दो उस स्त्री को पाने के लिए; लेकिन ऐसा होता नहीं, चूँकि हम गिरे हुए लोग हैं इसीलिए जो सबसे गिरे-से-गिरा आदमी होता है, हम आकर्षित भी उसी की ओर हो जाते हैं।

अब और ख़तरनाक बात सुनो! अगर हमें कोई हमारे जितना ही गिरा हुआ नहीं मिला तो हम किसी ऊँचे आदमी को अपने तल तक गिरा लेते हैं। मैंने पूछा था एक बार— 'यहाँ पर अगर कोई जंगली जानवर आ जाए, कुछ भी, भालू, भेड़िया, तेंदुआ, शेर कुछ; तो उसके लिए मैं क्या हूँ?' उसके लिए मैं माँस हूँ बस। उसके लिए मैं न गुरु हूँ, न वक्ता हूँ, न विद्वान हूँ, न आचार्य हूँ, उसके लिए मैं बस माँस हूँ। इसी तरह से एक आम पुरुष के सामने अगर एक ऊँची-से-ऊँची औरत भी बैठ जाए तो उस पुरुष के लिए वो स्त्री बस माँस है।

भारत के शहरों में अभी भी ऐसा होता है, कितने शर्म की बात है कि माँ-बाप कहते हैं, 'लड़की को ज़्यादा पढ़ा दिया तो इसकी शादी नहीं होगी।' कम होता है अब पहले से, पर अभी भी ऐसा होता है कि ज़्यादा मत पढ़ा देना शादी वगैरह नहीं होगी। क्योंकि पुरुष के लिए तो वो माँस ही बननी है, इतना पढ़ा-लिखा माँस देखेगा तो पुरुष घबरा जाएगा।

तो हम ऐसे जंगली जानवर हैं कि जिनके सामने कोई ऋषि-मुनि भी बैठा दो तो जानवर के लिए तो ऋषि भी माँस बस है।

ग़ौर से देखो, किसकी ओर आकर्षित हो रहे हो। और ये भी देखो कि किसको छोड़कर किसकी ओर आकर्षित हो रहे हो।

अभी हम योगसूत्र का पाठ कर रहे थे, पतंजलि के साथ थे। तो पतंजलि हमें समझा रहे थे कि समाधि का एक मार्ग ये भी है कि सपनों में जो ज्ञान मिलता है, तुम उसको पाओ, उसका अन्वेषण करो। तो यहाँ जवान लोग भी कहीं बैठे हैं, वो यही लिखते हैं कि हम दिनभर अगर काम को साधे भी रहते हैं, तो भी रात में सपने में स्त्रियाँ आतीं हैं। चलो ठीक है, रात में सपने में आतीं हैं, लड़कियाँ, औरतें।

ये तो देख लो कौनसी औरत आई है, सपने में? आ गई कोई बात नहीं, उसका विज़िटिंग कार्ड माँग लो बस। कि चलिए आप आ ही गईं हैं तो अपने बारे में कुछ बता दीजिए, रजिस्टर भर दीजिए। उस रजिस्टर को देखकर के तुम्हें तुम्हारे चित्त का पता चल जाएगा, कौनसी औरत है जो तुम्हें आकर्षित कर रही है।

जो तुम्हें आकर्षित कर रहा है, सम्भावना यही है कि वैसे ही तुम भी हो। अहम् कहाँ अपने से किसी को ऊँचा मानता है, उसे तो सबकुछ अपने ही तल का चाहिए; ऊँचे से तो वो घबराता है।

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