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लेख
अपनी रुचियों को गंभीरता से मत ले लेना || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत : आपकी जो रुचियाँ हैं, वो आपके संस्कार से ही तो आती हैं ना? आपकी रुचियाँ कहाँ से आते हैं? रुचियों का स्रोत क्या है? भारत में गोरी चमड़ी पर बड़ा ज़ोर है ।

भारत में गोरी चमड़ी पर बड़ा ज़ोर है । ग़ुलामी बिलकुल छायी हुई है सर पर ।

अभी यहाँ पर यूरोपियन लड़कियाँ चार-पाँच ले आयी जाएँ, बिलकुल गोरी चिट्टी और तुमसे कहा जाए के ज़रा इनको सुंदरता पर, १० में से अंक देना, और उस अंक का औसत ले लिया जाए । उसके बाद, अफ्रीकन लड़कियाँ बुलाई जाएँ । और अपने देश में, अपनी जगह पर, उनको भी बड़ा सुन्दर माना जाता हो ! पर उनका रंग बिलकुल गाढ़ा काला । और अब तुमसे कहा जाए, ज़रा इनको बताना, ये कितनी सुन्दर हैं ! तो अंक कहाँ ज़्यादा आएगा?

श्रोता : यूरोपियन लड़कियों पर ।

आचार्य जी : यूरोपियन लड़कियों पर । तुम कहोगे, हमारी दिलचस्पी यूरोपियन लकड़ियों में है ।

अब मैं यहाँ पर अफ्रीकन लड़के बुला लूँ, तुम्हारी उम्र के । अब उनके सामने वो यूरोपियन लड़कियाँ आएं और नाइजीरियन लड़कियाँ आएं । अब अंक कहाँ ज़्यादा आएगा?

तुम जिसको बोलते हो के ये मेरी रूचि है, वो रूचि तुम्हारे अतीत से ही तो आ रही है ! तुम्हें अतीत में बता दिया गया है, कि ऐसी-ऐसी चीज़ दिलचस्प है ।

तुम भारत में पैदा हुए, तो तुमको गोरापन दिलचस्प लगता है । तुम कहीं और पैदा हुए होते तो तुमको कुछ और दिलचस्प लग रहा होता । भाई! भारतीय मूल के ही लोग हैं, क्रिकेट में नाम सुना होगा, सुनील नारायण, शिवनारायण चंद्रपाल । सुना है?

श्रोता : जी, आचार्य जी ।

आचार्य जी: तुम इन सबकी पत्नियाँ देखो, पश्चिम-भारतीय ही हैं । काली ही हैं । यही अगर भारत में रहे आते, ये भारत से गए हुए लोग हैं । यही अगर भारत में रहे आते, तो क्या होता? तो क्या ये जाते साँवली औरतों से शादी करने? तो ये नहीं करते !

ये जो रूचि जिसे तुम कहते हो, ये तो बाहर से आयी हुई चीज़ है, दूसरों ने तुम्हें दी है, अतीत ने तुमको दी है । आज तुम बोलते हो, उदाहरण के लिए, तुम में से कितने लोगों की रूचि है तंदूरी रोटी, बढ़िया मटर-पनीर की सब्ज़ी और ये सब खाने में कितने लोगों की रूचि रहती है? रहती है?

श्रोतागण : जी, आचार्य जी ।

आचार्य जी: वेनेज़ुएलेन खाना खाने में कितने लोगों की रूचि है?

वेनेज़ुएलेन खाना खाने में कितने लोगों को रूचि है?

बात स्पष्ट हो गई, क्या कहना चाहता हूँ?

श्रोता : आचार्य जी, जो पता नहीं है, उसमें रूचि नहीं होती !

आचार्य जी: तुम्हारी सारी रूचि, तुम्हारे अतीत के संस्कार हैं । और बोलूँ?

दो त्यौहार बिलकुल आसपास पड़े, दशहरा और बकरा-ईद । ठीक है? दशहरा मनाने में कितने लोगों को रूचि थी? तुम सबके सब हिन्दू हो? कोई मुसलमान है यहाँ पर?

श्रोता : जी, आचार्य जी ।

आचार्य जी: बकरा-ईद मनाने में रूचि है?

श्रोता : जी, आचार्य जी ।

आचार्य जी: क्या अर्थ निकला? जो पहचान तुम्हें दे दी गईं, जो तुम्हारी कंडीशनिंग कर दी गई, उसी को तुम अपनी रूचि माने बैठे हो ! तुम ये माने बैठे हो कि जैसे ये मेरी रूचि है ।

अरे!

इसमें तुम्हारा क्या है? तुम एक घर में पैदा हुए हो तो दशहरा मना रहे हो, दूसरे घर में पैदा हुए होते तो? ईद मना रहे होते । तुम्हारी इसमें क्या रूचि है?

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