आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
ऐसे जाँचो अपनी ताक़त को || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत: सिर्फ़ इसलिए कि तुम्हें शरीर मिला है इंसान का तो तुम इंसान नहीं हो गए।

इंसान बस वो है जो चुनौतियों के सामने बिलकुल छाती खोल कर खड़ा हो जाए। कहे, “आओ!” जैसे सुबह हो गई हो, ऊर्जा आ गई हो शरीर में कि सामने चुनौती खड़ी हो गई। एक इस तरह के लोग होते हैं और दूसरे वो होते हैं कि जब तक आसान चल रहा है तब तक, “टक टक टक टक टक (बैडमिंटन के रैकेट से खेलने का इशारा करते हुए), और जहाँ चुनौती आयी नहीं कि उनके दबाव बनने लगता है, मल-त्याग के लिए भागते हैं बहुत ज़ोर से, “अरे रे रे रे रे रे रे रे...!”

आदमी और आदमी में बस यहीं पर अंतर स्थापित हो जाता है। वो जो दूसरा वाला है जिसकी हवा निकल जाती है चुनौतियों के सामने, जो बिलकुल भग लेता है, वो झूठ-मूठ ही अपने-आप को इंसान बोल रहा है। वो कोई और ही चीज़ है।

प्रश्नकर्ता: जानवर।

आचार्य: जानवर है? भग्! जानवर इंकार कर देंगे उसे अपने दल में मानने से। ना वो इंसान है, ना वो जानवर है। वह कोई और चीज़ है।

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