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लेख
अधूरे जिससे होते पूरे || आचार्य प्रशांत, क़ुरआन शरीफ़ पर (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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वक्ता: शिक़ायत करने में एक बहुत बड़ा सुकून है| शिक़ायतें करना हमारा स्वभाव बन चुका है| यह मानना कि परिस्थितियों ने, समाज ने, पूरी दुनिया ने हमारे साथ कुछ ग़लत किया है, यह कह कर हम अपने आप को बड़ा ढांढस बंधा लेतें हैं| क्योंकि हम जब ये शिक़ायत करतें हैं कि हम शोषित हैं, तब हम यह भी कहते हैं कि पूरी दुनिया से अब हम कुछ छीन भी सकते हैं, क्योंकि हमारे साथ ग़लत किया गया है|

लेकिन हम अगर थोड़ा रुककर उन चीज़ों की ओर देखें जो हमें उपहार स्वरुप मिलीं हैं, सिर्फ़ भेंट हैं, जिनके लिए शायद जो योग्यता या पात्रता चाहिए वो हम में थीं भीं नहीं, तो हम पायेंगे कि बहुत सी जो महत्वपूर्ण चीज़ें हैं, वो तो हमको भेंट में हीं मिलीं हुईं हैं| तब हम शिक़ायत कम कर पायेंगे, और हम पायेंगे कि हम ज़्यादा प्रसन्न हैं और मुस्कुरा सकते हैं|

(दिनांक २४ मार्च, २०१०)

इसी विषय पर और:

वक्ता: ये बात अविश्वसनीय है ना? हमने कोई पात्रता नहीं दिखाई, हमने कोई कीमत नहीं अदा की है, फिर भी एक स्रोत है जहाँ से सब मिल सकता है| हमारे ‘हाँ’ करने की देर है|

श्रोता १३: ये तो बड़ी लालच वाली बात हो गई?

वक्ता: तुम कर लो लालच| कोई दिक्कत नहीं है| जैसे हमने कहा ना कि तुम्हें लक्ष्य बनाना है, गोल बनाना है, तुम बना लो, पर फिर परम लक्ष्य बनाओ| तुम्हें लालच करना है ना? तो परम लालची हो जाओ|

श्रोता १४: भगवान लालच मंज़ूर करेगा?

वक्ता: अगर उसका लालच है| वो कहता है कि जब मैं उपलब्ध हूं, तो छोटे-मोटे लालच क्यों करते हो| जब पूर्ण-विरट मिल सकता है, तो छोटे-मोटे पर जा कर क्यों तुम्हारा मन अटकता है? उपनिषद कहते हैं, ‘विराट’| इसको समझाते हुए एक पंक्ति है,

अणोरणीयान्महतो महीयानात्मा गुहायां निहितोSस्य जन्तोः

बड़े से बड़ा| बड़े से बड़ा उपलब्ध है| साथ ही ये कहते हैं कि छोटे से छोटा भी उपलब्ध है| ‘छोटे से छोटा’ मतलब? ऐसा छोटा कि वो हर जगह समाया हुआ है| रेशे-रेशे में समाया हुआ है|

‘ज्ञान सत्र’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|

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